रविवार, जनवरी 07, 2007

गीत # 21 :क्यूँ आजकल नींद कम ख्वाब ज्यादा है...

21 वी सीढ़ी पर एक बार फिर खड़े हैं केके मस्ती में डूबे रूमानियत भरे इस गीत के साथ । ये गीत है वो लमहे और इसे अपने खूबसूरत शब्द दिए हैं गीतकार नीलेश मिश्रा ने । रहा धुन का सवाल तो इसके बारे में साथी चिट्ठाकार नीरज दीवान पहले भी चर्चा छेड़ चुके हैं कि इस गीत की धुन बनाई नहीं बल्कि चुराई है प्रीतम ने !

इस गीत की धुन को उठाया गया है इंडोनेशियाई बैंड Tak Bisakah से
इस जालपृष्ठ www.itwofs.com के अनुसार

"Tak bisakah' means, Couldn't you? and is by one of Indonesia's most popular and successful pop groups, Peterpan. This track was part of the soundtrack of an Indonesian teen flick, 'Alexandria' (2005) and is apparently incredibly popular in those parts of the world!"
खैर, फिर भी चोरी से ही सही पर इस मधुर धुन के साथ ये गीत अच्छा बन पड़ा है । इसे सुनने के बाद आप अपने आप को हल्का फुलका और तरो ताजा अवश्य महसूस करेंगे खासकर तब जब आपको भी किसी से प्यार हो :)


क्यूँ आजकल नींद कम ख्वाब ज्यादा है
लगता खुदा का कोई नेक इरादा है
कल था फकीर, आज दिल शहजादा है
लगता खुदा का कोई नेक इरादा है
क्या मुझे प्यार है....याऽऽऽऽऽऽ
कैसा खुमार है.....याऽऽऽऽऽ

पत्थर के इन रस्तों पर, फूलों की इक चादर है
जब से मिले हो हमको, बदला हर इक मंजर है
देखो जहां में नीले नीले आसमां तले
रंग नए नए हैं जैसे घुलते हुए
सोए से ख्वाब मेरे जागे तेरे वास्ते
तेरे खयालों से भीगे मेरे रास्ते
क्या मुझे प्यार है....याऽऽऽऽऽऽ
कैसा खुमार है.....याऽऽऽऽऽ


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7 टिप्पणियाँ:

bhuvnesh sharma on जनवरी 07, 2007 ने कहा…

मनीषजी गाना तो वाकई मस्त है
लगता है आगे और भी अच्छे गीत सुनने(पढ़ने) को मिलेंगे। :-)

Udan Tashtari on जनवरी 07, 2007 ने कहा…

अजब गणित है..अंक गिर रहे हैं, गीतों का स्तर बढ़ रहा है...बहुत बढ़ियां.

Jitendra Chaudhary on जनवरी 07, 2007 ने कहा…

बहुत प्यारा गाना है, मनीश भाई, बहुत सही जा रहे हो, अगली पायदान का इन्तज़ार रहेगा।

एक सुझाव है, (यदि पसन्द आए तो लागू करिएगा) , गानों के साथ यदि गानों के बारे या उस गायक के बारे मे कुछ और ज्यादा जानकारी मिले तो बहुत सही रहेगा। हालांकि आप जानकारी दे रहे है, लेकिन मै उम्मीद करता हूँ, आप जैसे व्यक्ति के हिसाब से यह जानकारी कम है, आप इससे ज्यादा रिसर्च करके गीत के बारे मे सबकुछ बता सकते है। कोई भाई आपको यू-ट्यूब पर यह गीत भी उपलब्ध करा देगा, उसका लिंक भी दिया जा सकता है।

Upasthit on जनवरी 08, 2007 ने कहा…

Blogs kee mere liye nayee duniyaa me ye rang bhee hai...manish bhai achcha lagaa. par koi mujhe is gaane kee "rang naye hain jaise ghulte huye" ka matlab bas ek tilismi si maayaavi sikaha, line hone se hat kar samjhaa saktaa hai kya? meri raay puchiye to do kaudi kee line hai...haan,"kyun aj kal neend kam khavaab jayda hai", ye to kahaa hee kyaa jaaye.

Manish Kumar on जनवरी 08, 2007 ने कहा…

भुवनेश देखते जाएँ...आगे के गीत भी आशा है आपको अच्छे लगें

शुक्रिया समीर जी

Manish Kumar on जनवरी 08, 2007 ने कहा…

जीतू भाई शुक्रिया आपके सुझावो् के लिए।
जब ऊपर कि पायदान के गीत आएँगे जो मेरे दिल के बेहद करीब हैं तब उनके बारे में ज्यादा विस्तार से आपको पढ़ने को मिलेगा ।
अभी तक मैंने हर गीत के साथ प्रविष्टि के अंत में उसका आडियो लिंक दिया है । अगर यू ट्यूब का लिंक कोई दे तो उसे भी मैं शामिल कर सकता हूँ । वैसे इस श्रृंखला की अगर पहली पोस्ट देखी हो तो उसमें कोई गीत पसंद होने से उसे आपकी mail box तक पहुँचाने का offer भी शामिल है :) ।

Manish Kumar on जनवरी 08, 2007 ने कहा…

उपस्थित स्वागत है आपका इस चिट्ठे पर ! आपने जो प्रश्न किया है वो ये दिखाता है कि आप ने इस गीत को ध्यान से समझने की कोशिश की है।
कवि तो अपनी कोरी कल्पनाओं को स्वछंदता से उड़ने देता हे । और यही कल्पनाएँ किसी के लिए सजीव हो उठती हैं तो किसी के लिए बिलकुल बेकार । पर गलत कोई नहीं है.
किसी शब्द के क्या मायने निकलते हैं ये बहुत कुछ पढ़ने वाले की अपनी सोच उसकी जिंदगी के तत्कालीन हालात और मूड पर निर्भर करता है। ऐसे देखिये तो जिस शख्स को दो जून रोटी मयस्सर नहीं उसके लिए कहाँ होंगे ये सतरंगी से ख्वाब और वो क्या इस गीत में अपने लिए कुछ भी ढ़ूंढ़ पाएगा! शायद नहीं....

 

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