वर्षों पहले की बात है । ओशो यानि रजनीश की किताब पढ़ते वक्त ये कविता पढ़ने को मिली थी । कविता पढ़ते-पढ़ते मन उद्विग्न हो गया था ....शायद भावनाओं के अतिरेक से ..
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मुझे तो यही प्रतीत होता है कि गर शब्दों को सही ताने बाने में बुना जाए तो उनकी शक्ति की सीमा को कभी कभी हम खुद भी आंक नहीं पाते ! इस कविता के शब्दों ने जिंदगी के कई मोड़ों पर मुझे एक संबल प्रदान किया है । एक नई उर्जा दी है...
क्या आप इस उर्जा के प्रवाह में नहीं बहना चाहेंगे ?
गंध से बोझल पवन है
और फिर चंचल चरण हैं
कौन सा मौसम लगा है ?
दर्द भी लगता सगा है ।
अनमिली स्वर लहरियों के गीत जादू डालते हैं
शारदी मेघों तले मैदान फूल उछालते हैं
आज तो वश में ना मन है
गीत से भीगा गगन है
प्राण को किसने ठगा है ?
दर्द भी लगता सगा है
ओ उदासी की किरण भटकी हुई क्या कह रही तू
धुंधलके के पार यूँ, निस्सार सी क्यूँ बह रही तू ?
प्रीत का कोई वचन है
नित निभाना प्रणय प्रण है
नयन में सपना जगा है
दर्द भी लगता सगा है
पूर्ण यौवन भार खेतों में लचकती सांध्य वेला
बांसुरी के स्वर सरीखा एक मेरा स्वर अकेला
टेरता मानो विजन है
और तन मन में चुभन है
कौन सा मौसम लगा है ?
दर्द भी लगता सगा है।
पुनःश्च - अगर इस कविता के रचनाकार का नाम आपको पता हो तो मुझे अवश्य बताएँ ।
मंदासरू : ओडिशा की शांत घाटी Silent Valley of Odisha
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होत...
3 दिन पहले
9 टिप्पणियाँ:
कवि का नाम तो नहीं मालूम...मगर ओशो की प्रवचन माला के कैसेट में ओशो की आवाज में यह कविता न जाने कितनी बार सुन चुका हूँ..वाकई, बहा ले जाने वाली कविता है और उस पर ओशो रजनीश की आवाज की गहराई और मुग्ध कर देती है.
बहुत खूब मनीष भाई.
Afsos...mujhe bhi kavi ke baare mein nahi maloom lekin suna hai iss kavita ko...I mean padha hai :)
bahut khub pesh-kash hai
shukriya
बहुत सुन्दर कविता है। बाँटने केलिये धन्यवाद।
समीर जी उस कैसेट सिरीज का कोई नंबर या पहचान हो तो बताइएगा। मैंने तो बस पढ़ा था सुना नहीं है। किताब में ओशो ने कवि के नाम का जिक्र नहीं किया था ।
डॉनहाँ जी पढ़ा तो होगा ही । अब कहाँ पढ़ा है ये बताऊँ :p
http://manishkmr.blogspot.com/2005/04/dard-bhi-lagta-saga-hai.html
गुप्ता साहब ! जानकर खुशी हुई कि ये कविता आपको पसंद आई ।
सुन्दर अभिव्यक्ति!
प्रेम को जितनी अच्छी तरह से ओशो ने परिभाषित किया है वैसा किसी और के लिये बहुत मुश्किल था।
प्रीत का कोई वचन है
नित निभाना प्रणय प्रण है
नयन में सपना जगा है
दर्द भी लगता सगा है ।
वाह क्या बात है!!!!
बहुत अच्छे मनीष भाई।
इस कविता को दिल से महसूस करने का शुक्रिया शैलेश जी ! जो पंक्तियाँ आपने उद्धृत की है वो मुझे भी अत्यन्त प्रिय हैं !
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