गजल गायिकाओं में मुन्नी बेगम की गायन शैली कुछ हटकर रही है । मुर्शीदाबाद में जन्मी, बाँगलादेश में पली बढ़ी और सत्तर के दशक में करांची से संगीत का कैरियर शुरु करने वाली मुन्नी बेगम ने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा बाँगलादेश के गुलाम मुस्तफा वारसी से पाई थी ।
तो क्या अलग था मुन्नी बेगम के लहजे में...शब्दों के चुनावों की सादगी और बिना घुमा फिरा कर उसे गाने का तरीका । इसीलिए बेगम को जनता ने तो सर आँखों पर बिठाया पर वहीं गजल पंडितों ने उनकी गायिकी के तौर तरीके पर सवालिया निशान लगाए । पर मुन्नी बेगम ने अपनी शैली नहीं बदली । वो उस जमाने की पहली ऐसी गायिका थी जो अपनी महफिल में हारमोनियम ले कर खुद बैठती थीं । मुन्नी बेगम खुद बताती हैं कि उस वक्त लोग सिर्फ ये देखने पहुँचते थे कि ये दुबली पतली सी लड़की हारमोनियम बजाते हुए गा कैसे लेती है । अपनी गायकी के साथ मुन्नी बेगम को अपनी गजलों की धुनें खुद बनाना और स्टेज पर अपने श्रोताओं से संवाद स्थापित करना बेहद पसंद है । ।
वैसे तो मुन्नी बेगम की सैकड़ों गजलें हैं पर आज उनकी एक हल्की फुल्की सी गजल पेश कर रहा हूँ जो शायद ही आपने पहले सुनी होगी । आप ध्यान दें कि इस गजल का लगभग हर शेर ऐसा है जो एक रिक्शेवाले से लेकर एक गजल प्रेमी के दिल को गुदगुदाएगा ।
तो हुजूर देर किस बात की अपने स्पीकर की आवाज तेज कीजिए और साथ- साथ मजा लीजिए इस प्यारी सी गजल का !
हमसे वो दूर दूर रहते हैं
दिल में लेकिन जरूर रहते हैं
इसलिए देखभाल करती हूँ
आईने में हुजूर रहते हैं
लोग इतने कुसूर कर के भी
इस तरह बेकसूर रहते हैं
मैं जमीं पर तालाश करती हूँ
आप तारों से दूर रहते हैं
मेरी तिशन-ए -मिजाजियों में 'अदम'
महकदे पे जरूर रहते हैं ।
तिशनगी - प्यास, पिपासा
कुन्नूर : धुंध से उठती धुन
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आज से करीब दो सौ साल पहले कुन्नूर में इंसानों की कोई बस्ती नहीं थी। अंग्रेज
सेना के कुछ अधिकारी वहां 1834 के करीब पहुंचे। चंद कोठियां भी बनी, वहां तक
पहु...
7 माह पहले
26 टिप्पणियाँ:
मैं आवाज नहीं सुन पा रहा हूं। कैसे सुन सकता हूं।
अब कोई भारी भरकम गज़ल भी हो जाये
मनीष जी गजल सुनाई नहीं दे रही है और हम सुनने को बेक़रार हैं ।
Bhai mere PC pe sunayi de rahi hai.
aapke PC par *.wma file bajne wala software installed hona chahiye . Philhaal main background ke aalava media player ke madhyam se aapko sunvaane ki koshish karta hoon.
Unmukt ji , Yunus Bhai Ab background se hatakar embedded player use kiya hai. Bas ab *.wma wala software agar aapke paas ho to sunne mein dikkat nahin aani chahiye. Agar abhi koyi problem ho to batayein. hope u have enjoyed this one.
अरे बज गई । बज गई गुरू । मुन्नी बेगम की गजल इस बार बज गयी । दो बातें कहना चाहूंगा । काफी झटकेदार गजल लेकर आये हैं आप । खासकर म्यूजिक अरेन्जमेन्ट काफी लाउड है । लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि गजल का असर कम हो गया हो । बहुत ही सादा धुन पर अच्छा काम किया है मुन्नी बेगम ने । मैं भी किसी वज़नदार ग़ज़ल की मांग करूंगा भाई । चाहे वो मुन्नी बेगम की हो या अख्तरी बेगम यानी बेगम अख्तर की । एक ग़ज़ल सुझा रहा हूं, मिल ही जाएगी और आप सुन ही लेंगे । फरीदा ख़ानम की आवाज़ है और शकील बदायूंनी के बोल—मेरे हमनफस मेरे हमनवा मुझे दोस्त बनके दगा ना दे । जिस नशे के साथ फरीदा ने गाया है, मज़ा आ जाता है । एक और ग़ज़ल सुझा दूं, ये भी शायद फरीदा ख़ानम की ही है—मैंने मॉनसून वेडिंग की सी0डी0 में सुनी थी—आज जाने की जिद ना करो । मेरे पहलू में बैठे रहो । उफ़ कमाल की गजल है । एक बार किन्ही रिटायर्ड सज्जन ने मुझसे कहा कि ये गजल कहीं से भी निकालकर विविध भारती पर सुनवाईये, मेरी जवानी के दिनों की यादगार गजल है । और अब तक मिल नहीं रही है । किस्मत से हाथ लग गई और बजा दी । वो सज्जन अपने शहर से सीधे विविध भारती आ गये एक दिन के लिए और सिर पर हाथ रखकर गए । इतना असर है उस गजल का । सुनी है ना आपने ।
यूनुस भाई आपने जो नाम सुझाए हैं वो बेहतरीन गजलें हैं और मेरी PC में मौजूद हैं। आज जाने की जिद तो फरीदा के आलावा हबीब वली मोहम्मद की आवाज में भी सुना है. बहुत प्यारी गजल है किसे अच्छी नहीं लगेगी ।
बहरहाल, मुन्नी की गायिकी simplicity पर आधारित थी इसलिए ये गजल चुनी . आपने बिलकुल सही कहा कि music arrangement जरा loud है।
प्रत्यक्षा जी और आपने भारी भरकम गजल :) की फरमाइश की है तो अपनी पसंद की दो नज्मों का जिक्र करना चाहूँगा। पहली तो टीना सानी की गाई हुई ये नज्म जिसके बारे में मैंने लिखा था
अगर फैज की उपमाओं की खूबसूरती का आपको रसास्वादन करना हो तो उनकी नज्म 'गर मुझे इसका यकीं हो , मेरे हमदम मेरे दोस्त' की इन पंक्तियों पर गौर फरमाएँ...आपका मन उनकी कल्पनाशीलता को दाद दिए बिना नहीं रह पाएगा
कैसे मगरूर* हसीनाओं के बर्फाब से जिस्म
गर्म हाथों की हरारत से पिघल जाते हैं
कैसे इक चेहरे के ठहरे हुए मानूस नुकूश**
देखते देखते यकलख्त*** बदल जाते हैं
*दंभी **परिचित नैन नक्श ***एकाएक
किस तरह आरिजे-महबूब का शफ्फाक बिलूर*
यक-ब-यक बादा-ए-अहमर** सा दहक जाता है
कैसे गुलचीं^ के लिए झुकती है खुद शाख-ए - गुलाब
किस तरह रात का ऐवान ^^महक जाता है
*स्वच्छ कांच सदृश प्रेयसी के कपोल **शराब की लाली ^ फूल चुनने वाले ^^महल
टीना सानी की आवाज में इस दिलकश नज्म को आप यहाँ सुन सकते हैं
http://ek-shaam-mere-naam.blogspot.com/2007/03/2_4060.html
या फिर इकबाल बानों को सुनें इसी ऊपर की पोस्ट में
दश्ते- तनहाई* में ऐ जाने- जहाँ लर्जां **हैं
तेरी आवाज के साये, तेरे होठों के सराब***
दश्ते- तनहाई में , दूरी के खसो - खाक^ तले
खिल रहे हैं तेरे पहलू के समन ^^ और गुलाब
*एकांत का जंगल ** कांपती हुई *** मरीचिका ^घास मिट्टी ^ ^ चमेली
ये नज्में ऊपर की लिंक पर सुनें और मुझे बताएँ कैसी लगीं ?
मनीष भाई, आप ऐसा करें उस गज़ल को zshare.net पर लोड कर देवें ताकि कोई अगर चाहे तो उसे अपने उपयोग के लिये या बाद में सुनने के लिये लोड भी कर सकता है। क्यों कि मेरे कम्प्यूटर पर चार पाँच तरह के प्लेयर होने के बावजूद में सुन नहीं पा रहा हूँ, जब कि पहले संगीत वार्षिकमाला के समय सारे गाने आसानी से सुन सकता था।
मैने इस तरह राजकपूर की फिल्म गोपीनाथ का यह गाना जो मीरां बाई का लिखा है यहाँ
लोड किया है
@ यूनूस भाई
आपने अपनी टिप्प्णी में मेरे हमनफ़स मेरे हमनवाज का जिक्र किया है कि यह गज़ल फ़रीदा खानम ने गाई है, परन्तु मै समझता हूँ यह गज़ल विदुषी गायिका बेगम अख्तर ने गाई है जिसे आप यहाँ सुन सकते हैं। और अगर फरीदा खानम जी ने भी गाई है तो मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि उसे आप हमें भी सुनायें।
sagarchand.nahar@gmail.com
हाँ और दूसरी जिस गज़ल का जिक्र आपने किया है वह है आज जाने की जिद ना करो और इसके अलावा बी फ़रीदाजी की गजलें सुनना चाहते हैं ?
नहीं जी ऐसे ही नहीं सुनायेंगे, इसके लिये आपको हमें मेल करनी पड़ेगी :) :)
sagarchand.nahar@gmail.com
Sagar Bhai Apni mail check keejiye.:)
Background score se isliye hataya kyunki bahut logon ko sunayi nahin de raha tha. Aapke paas to *.wma file bajane wala player hoga jo wma 9 tak support karta ho.
मनीष भाई शुक्रिया, इन गजलों के लिए । आज तो नहीं सुन पाया कल जरूर सुनकर आपको सूचना दूंगा । पर जो आपने लिखा है वो कमाल है । पढ़कर मज़ा आ गया । मुझे फैज़ अपनी क्रांतिकारिता के लिए पसंद हैं । उनकी वो नज्म याद आती है-- दरबारे वतन में इक दिन सब जाने वाले जायेंगे कुछ अपनी सजा को पहुंचेंगे
कुछ अपनी जज़ा ले जायेंगे ऐ खाकनशीनों उठ बैठो
वो वक्त करीब आ पहुंचा है
जब तख्त उछाले जायेंगे
जब ताज गिराए जायेंगे
या फिर शीशों का मसीहा
जिसमें उन्होंने लिखा है
तुम नाहक शीशे चुन चुनकर सीने से लगाए बैठे हो
शीशों का मसीहा कोई नहीं क्या आस लगाए बैठे हो
गुरू ये महफिल तो खूब जम रही है ।
मज़ा आ रहा है ।
प्रिय सागर चंद नाहर जी
लीजिए फरीदा खानम की आवाज़ में हम आपकी फरमाईश पूरी कर रहे हैं ।
सुनिए अपने रीयल प्लेयर पर
http://www.musicindiaonline.com/p/x/cUCpvX_XQd.As1NMvHdW/?done_detect
bahut khub...itna pasand aaya ke tum ise blog per pesh karoge ye nahi socha :)
Mere paas inki ghazalein peechle 5 saal se hein, sirf zikr nahi hua hamare beech :)
accha laga parhkar!
Blog ka screen accha laga bahut
Cheers
waise shrotaon ke liye....hamare blog site per radio blog per bhi suna ja sakta hai...;)
बहुत खूब भाई. मजा आ गया सुनकर और प्रस्तुतिकरण के अंदाज में. जारी रखो.
मुन्नी बेगम की गज़लों में सरलता है और सादगी है । बड़ी ज़ल्दी 'अपील' करती हैं लेकिन फ़िर कुछ समय उन्हें सुननें के बाद सभी गज़लें एक जैसी लगनें लगती हैं । कई बार गज़ल और कव्वाली में एक दूसरे का प्रभाव सा दिखता है ।
उन्हें करीब १/२ घंटे एक दौर में सुना जा सकता है , उसे के बाद ....
हबीब वली का ज़िक्र हुआ , वह मुझे बहुत पसन्द हैं । आज जाने की ज़िद न करो के अलावा 'आशियां जल गया , गुलसितां लुट गया" भी बहुत सुन्दर है ।
यूनुस भाई फैज की दोनों नज्में मुझे बेहद प्रिय हैं जिनका आपने जिक्र किया है । कहीं पढ़ा था कि जब इकबाल बानो जब तख्त उछाले जायेंगे ,जब ताज गिराए जायेंगे गाती थीं तो श्रोतागण का समेवत स्वर निकलता था....... कि हम देखेंगे......फैज की राजनैतिक नज्मों में कुत्ते और बोल कि लब आजाद हैं मेरे मुझे बेहद पसंद है । यहाँ देखें ।
रही शीशों का मसीहा कोई नहीं ..तो उस पर तो एक पूरी पोस्ट लिखी थी मैंने...दरअसल एक बार बच्चन की जो बीत गई सो बात गई पर चर्चा हो रही थी तो एक साथी ने बताया कि ऍसे ही विचार लिये फैज ने भी एक नज्म लिखी है ।और इस नज्म के कुछ अंश लिख कर दिये । बाद में इक किताब में ये पूरी पढ़ने को मिली । बड़ा मजा आया इसे पढ़कर ।
डॉन हाँ जी पसंद आया तभी तो आपसे मांगा ;)। पर फाइल प्लेयर पर सुनाने के लिए *.wma ko pehle mp3 mein aur phir *.wma mein compress kiya तब जाकर 500 kb की बनी ।
समीर जी आपको भी ये गजल मस्त कर गई जानकर खुशी हुई ।
अनूप जी सोलह आने सही बात की है आपने। उनकी अदायगी का अंदाज में जो सादगी है वो लोगों को जल्द समझ आती है और सिधे दिल में असर करती है पर ये गायिकी में विविधता नहीं ला पाती । मुझे उस लिहाज से पाक की गायिकाओं में नूरजहाँ,टीना सानी, नय्यारा नूर और इकबाल बानो कहीं ज्यादा पसंद हैं ।
Thanks for you work and have a good weekend
बाप रे कितनी जानकारी रखते है आप.. आपके तो किसी भी महफ़िल के बहरीन तत्व मौजूद हैं.ग़ज़ल बहरीन है....जो जिक्र आ रहा है आज जाने की जिद ना करो उसे मेहदी हसन ने भी गाया था जिसे बहुत पहले मैंने सूना था.. मेरे पास फ़रीदा खानम की ग़ज़ल तो है पर मेहदी साहब वाली नही है पर आज जाने की जिद को फ़रीदा जी की आवाज़ में सुनना सुखद हैं वैसे आपने मुन्नी बेगम के बारे जो लिखा है वो मई पहले पढ़ लेता तो आज की अपनी पोस्ट और बेहतर बना सकता था अब मई कम से कम देर से आपके यहाँ आया हूँ, पर जब भी आप लिखेंगे तो मैं हाजिर रहूँगा ये वादा रहा, आपके ब्लॉग पर आना मेरे लिए ओक्सिजन की तरह रहा . शुक्रिया अदा करता हूँ आपका .
main munni begam sahiba ki gaayi ek puraani ghazal dhoondh rahi hun jiska mukhda to yaad nahi mujhe par uska sher kuch yun hai...
ye kaisi najar lag gayi jamane ki
ki shaakh toot gayi mere aashiyaane ki..
agar kisi ke paas ho ghazal to pls bataiye
Prachi Ghazal ka audio to mere paas nahin hai par hazal ke baki ke sher kuch is terah se hain
Maar hi daal mujhe chashm-e-ada se pehle
Apni manzil ko pohunch jaoon Qaza se pehle
Ek nazar dekh loon aa jao Qaza se pehle
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Ae meri maut, thehar unko zara aane de
Zehar ka jaam na de mujhko dawa se pehle
हम तो मुन्नी बैगम जी की गजल सुनने आए थे बस पढकर जा रहे है। हो सके सुनवा दीजिए।
Audio file server ne kaam karna band kar diya tha ab divshare par hai. Ab sun sakenge aap.
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