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पहले देव आनंद और फिर राजेश खन्ना को अपनी आवाज़ देने के बाद इस दशक में वो अमिताभ को भी अपनी आवाज़ देते नज़र आए। किशोर हर अभिनेता की आवाज़ के हिसाब से अपनी वॉयस माडुलेट करते थे। इस दौर में किशोर ने बड़े संगीतकारों में बर्मन सीनियर, पंचम, कल्याण जी-आनंद जी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ काम करते हुए फिल्म जगत को कई अनमोल गीत दिए।
चाहे वो 'बुढ्ढा मिल गया 'का रूमानी गीत 'रात कली इक ख़्वाब में...' हो या यूडलिंग में उनकी महारत दिखाता 'मेरे जीवन साथी ' का 'चला जाता हूँ किसी की धुन में...' या फिर दर्द में डूबा 'मिली' में गाया हुआ 'बड़ी सूनी सूनी है..... ' या 'आए तुम याद मुझे, गाने लगी हर धड़कन....' सब के सब किशोर दा की गायन प्रतिभा में विद्यमान हर रंग की उपस्थिति को दर्ज कराते हैं।
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वैसे मुझे मिली में योगेश का लिखा गीत 'आए तुम याद मुझे...' बेहद प्रिय है पर एस डी बर्मन की धुन का आनंद तो आप पहले भी ले चुके हैं तो आज पहली बार इस श्रृंखला में पेश हैं कल्याण जी-आनंद जी के संगीतबद्ध ये दो नग्मे
गीत संख्या ८..जीवन से भरी तेरी आँखें
ये गीत फिल्म सफ़र का है। इस गीत के बोल बेहद खूबसूरत हैं। इन्हें लिखा था इंदीवर ने। कौन कहेगा कि ये वही इंदीवर हैं जिन्होंने अस्सी के दशक में बप्पी दा के साथ मिलकर कुछ ऐसे गीत लिखे जिसमें कविता की छाया तो लेशमात्र भी नहीं है।
आँखें ख़ुदा की दी हुई हसीन नियामत हैं। शायरों ने इनकी कहानी अपने अशआरों में तो खूब बयाँ की है जिसका जिक्र इस चिट्ठे पर यहाँ और यहाँ पहले भी हो चुका है। इसलिए इंदीवर भी इस गीत
में अग़र आँखों के इन सागरों में डूबते नज़र आ रहे हैं तो अचरज कैसा !
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जीवन से भरी तेरी आँखें
मजबूर करे जीने के लिये
सागर भी तरसते रहते हैं
तेरे रूप का रस पीने के लिये
जीवन से भरी तेरी आँखें ...
तस्वीर बनाये क्या कोई
क्या कोई लिखे तुझपे कविता
रंगों छंदों में समाएगी
किस तरह से इतनी सुंदरता
इक धड़कन है तू दिल के लिये
इक जान है तू जीने के लिये
जीवन से भरी तेरी आँखें ...
मधुबन की सुगंध है साँसों में
बाहों में कंवल की कोमलता
किरणों का तेज है चेहरे पे
हिरनों की है तुझ में चंचलता
आंचल का तेरे एक तार बहुत
कोई चाक ज़िगर सीने के लिये
जीवन से भरी तेरी आँखें ...
इस गीत को आप यहाँ देख सकते हैं।
गीत संख्या ७....मेरा जीवन कोरा कागज़
कोरा कागज़ का ये गीत इस मायने में भी महत्त्वपूर्ण है कि १९७४ में बिनाका गीत माला कि पहली पायदान पर ये विराजमान था। इस गीत के बोल एम. जी. हशमत के थे और मुझे बहुत भाते हैं। कल्याण जी-आनंद जी की धुन गीत की उदासी को हृदय तक पहुँचा देती है।
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पूरा गीत आप यहाँ से भी सुन सकते हैं।
मेरा जीवन कोरा कागज़ कोरा ही रह गया...२
जो लिखा था...... आँसुओं के संग बह गया
मेरा जीवन
मेरा जीवन कोरा कागज़ कोरा ही रह गया
इक हवा का झोंका आया,
हो..इक हवा का झोंका आया
टूटा डाली से फू..ल...टूटा डाली से फू..ल
ना पवन की ना चमन की
किसकी है ये भू..ल.. किसकी है ये भू..ल
हो गई.... खुशबू हवा में कुछ ना रह गया
मेरा जीवन
मेरा जीवन कोरा कागज़ कोरा ही रह गया
उड़ते पंछी का ठिकाना
मेरा ना कोई जहाँ..मेरा ना कोई जहाँ
ना डगर है ना खबर है
जाना है मुझको कहाँ..जाना है मुझको कहाँ
बन के सपना हमसफ़र का साथ रह गया
इस गीत को आप यहाँ देख सकते हैं।
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
- यादें किशोर दा कीः जिन्होंने मुझे गुनगुनाना सिखाया..दुनिया ओ दुनिया
- यादें किशोर दा कीः पचास और सत्तर के बीच का वो कठिन दौर... कुछ तो लोग कहेंगे
- यादें किशोर दा कीः सत्तर का मधुर संगीत. ...मेरा जीवन कोरा कागज़
- यादें किशोर दा की: कुछ दिलचस्प किस्से उनकी अजीबोगरीब शख्सियत के !.. एक चतुर नार बड़ी होशियार
- यादें किशोर दा कीः पंचम, गुलज़ार और किशोर क्या बात है ! लगता है 'फिर वही रात है'
- यादें किशोर दा की : किशोर के सहगायक और उनके युगल गीत...कभी कभी सपना लगता है
- यादें किशोर दा की : ये दर्द भरा अफ़साना, सुन ले अनजान ज़माना
- यादें किशोर दा की : क्या था उनका असली रूप साथियों एवम् पत्नी लीना चंद्रावरकर की नज़र में
- यादें किशोर दा की: वो कल भी पास-पास थे, वो आज भी करीब हैं ..समापन किश्त
8 टिप्पणियाँ:
गीत तो खैर आपका प्ले नही हुआ। लेकिन तीनो गीत मेरी पसंद के थे। तीनों से मेरा मतलब आये तुम याद मुझे से भी है।बहुत सुंदर गीत और "रंगों, छंदों मे समायेगी किस तरह से इतनी सुंदरता" पंक्तियाँ मुझे हमेशा से बहुत छूती हैं। अब गाना भी सुना देते तो अच्छा होता।
सत्तर के दशक का एक गीत है फिल्म ज़हरीला इंसान का -
ओ हंसिनी मेरी हंसिनी कहां उड़ चली
मेरे अरमानों के पंख लगाकर कहां उड़ चली
यह गीत ॠषि कपूर पर फिल्माया गया।
बहुत धीमी गति का बहुत सुंदर गीत है।
अन्न्पूर्णा
मनीष इंदीवर और योगेश की याद दिला दी । दोनों से मिलने का सौभाग्ये प्राप्त है मुझे ।
इंदीवर पर लंबा काम करने की तमन्ना है । विविध भारती पर किया भी है । कमाल के शख्स । महाविवादित, लेकिन कविता के शुद्ध हस्ता क्षर । इंदीवर ने हिंदी के कठिन शब्दोंा का पहली बार प्रयोग किया गीतों में और लड़ लड़ के किया । कोई जब तुम्हा्रा हृदय तोड़ दे जैसे गाने में उर्दूदां मुकेश हिरदय गाना चाहते थे । संगीतकार कल्या ण जी आनंद जी भी मुकेश को सपोर्ट कर रहे थे । पर इंदीवर ने कहा रहेगा तो हृदय । वरना मैं ये चला । मुकेश ने बड़ी हिचक और रीटेक के साथ अपनी उर्दूमय ज़बान से हृदय का सही उच्चा रण किया है । इन्हीं इंदीवर ने बैक मारती है फ्रंट मारती है देखो ये लड़की करंट मारती है लिखा है । मैंने उनसे कहा भी था, ये सब क्योंह लिखते हैं । हंस कर रह गये थे वो ।
कितनी कितनी बातें याद हैं मुझे इंदीवर की । विविध भारती में उनसे अहमद वसी ने बातें की थीं और मैं इतने मगन होकर सुनता रहा कि क्याम कहूं । योगेश मेरे जीवन के बेहद महत्व्पूर्ण गीतकार हैं । उनके सभी गीत मुझे प्रिय हैं । विविध भारती पर मेरे जीवन का पहला इंटरव्यू योगेश का ही था ।
जीवन भर जिसके गीतों से प्यार किया, वो सामने थे तो खुशी में फूला नहीं समा रहा था मैं । वो तस्वीर आज भी कहीं होगी । कभी दिखाऊंगा । अच्छे गाने हैं जो आपने पेश किये हैं ।
श्रृंखला जारी रहे । सही जा रही है ।
वाह, यह खूब शुरु किया, मजा आ गया.एक से एक गीत लाये हैं..दोनों ही पसंदीदा हैं. अब किशोर दा के कौन से गीत हैं जो पसंद न आयें. और वो भी तब-जब आप अपने रोचक अंदाज में सुनायें.
कंचन जी गाना तो है वीडियो में। अपनी आवाज में भी डाल दिया है झेलना आपके ऊपर है।
अन्नपूर्णा जी बिलकुल सही कहा आपने वो भी बड़ा प्यारा सा गीत है पंचम दा का
समीर जी शुक्रिया !
यूनुस भाई जानकारी देने का शुक्रिया !योगेश मेरे भी प्रिय गीतकार हैं और उनके लिखा एक और गीत किशोर दा के गाए गीतों में बेहद प्रिय है..
इंदीवर ने बाज़ार की मांग के सामने ८० के दशक में अपनि कला से समझौता कर लिया। अस्सी के दशक में फिल्मी गीतों के गिरते स्तर की एक वजह उनके लिखे गीत भी रहे हैं।
I gave only one quiz..woh music wala..usme mujhe 6/10 marks mile thanku thanku..per uss quiz mei Madhuri dixit aapko nahi pasand thee..ye sunke mujhe badi herat hui...bas wahin points kam ho gaye..
Wah manish g wah, keya baat hai? BAri hi sunder sa abhilekh pesh kiya hai Kishore Da ki.
Dil jhoom utha. Bahut khoob!
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