
इसीलिए, २४ सालों बाद विश्व कप के किसी फाइनल को टीवी पर लाइव देखने का विशेष रोमांच तो था ही, पर साथ ही ये भी लग रहा था कि इस बार भाग्य भी हमारी टीम के साथ है। सच पूछें तो कल के फाइनल से कहीं ज्यादा आस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के साथ इस प्रतियोगिता में पहले हुए मैच का मैंने जम के आनंद उठाया था।
कल तो शुरु से ही एक अज़ीब किस्म के तनाव ने मन में घर कर लिया था। खेल की ऊँच-नीच के साथ तनाव तो घटता बढ़ता गया पर भज्जी की गेदों पर मिसबा उल हक ने जिस तरह छक्के लगाए और हमारे भज्जी जिस तरह छक्के लगने के बाद भी यार्कर लेंथ की बॉल को फेंकने का असफल प्रयास करते रहे , ये तनाव अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच गया।

"सही जा रहे हो बेटा.."
कप्तान साहब अगली गेंद पर ना जाने क्या कह आए कि पहली बार तो जोगिन्दर मिस्बा को आफ स्टंप के बाहर छकाने में कामयाब हुए पर ओवर की दूसरी गेंद पर शर्मा जी ने एक ऐसा हाई फुलटॉस फेंका जिसे देखते ही कलेजा मुँह को आ गया। फिर भी हक के बल्ले से जब
शॉट निकला तो मुझे ऐसा लगा की ये तो लांग आफ पर ही आ रहा है। पर वो नामुराद, आखिरकार छक्का निकला।
अब चार गेंदों में छः रन....
अंत तो आ ही गया था. प्रश्न सिर्फ ये था कि वो कितनी जल्दी या कितनी देर से आता है।
मुझे यकीं हैं कि मेरी क्या, मेरे सारे देशवासियों के चेहरे के मनोभाव इन हालातों में ऍसे व्यक्ति के ही रहे होंगे जिसका सब कुछ लुट चुका हो।
तीसरी गेंद पर मिस्बा का बैक स्कूप मुझे तो सीमा के बाहर जाता दिखा क्यूँकि दो सेकेंड तक श्रीसंत कहीं भी फ्रेम
में नजर नहीं आ रहे थे। इधर श्रीसंत ने कैच लिया और उधर हमारे बेज़ार पड़े दिल में उमंगों की मुरझाई कोपलें एकदम से फूट पड़ीं।
वैसे ये पूरी दास्तां इस वीडियो में भी नज़र आएगी

चाहे वो केरल जैसे क्रिकेट में कमजोर राज्य के श्रीसंत हों या हरियाणा के जोगिंदर शर्मा, राजनीति का गढ़ रही रायबरेली के रुद्र प्रताप सिंह हों या बड़ौदा के पठान बंधु.....इन खिलाड़ियों ने ये दिखा दिया है कि छोटे-छोटे शहरों में रहने वाले भी बड़े सपने देख सकते हैं ..उन्हें साकार कर सकते हैं। अब हमारे शहर राँची से ताल्लुक रखने वाले भारतीय टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी (जो धोनी के नाम से ज्यादा मशहूर हैं) की ही बात करें।

राँची में तीन दिनों से लगातार बारिश हो रही है। पर जीत की खबर मिलते ही, बारिश में भी कल रात से धोनी के घर के बाहर भारी भीड़ जुटी हुई है। जश्न अभी तक थमा नहीं है...और इसकी पुनरावृति देश के हर कस्बे, हर ग्राम और शहर में हो रही होगी। अपने शहर के इस सुपूत के नेतृत्व में टीम के सारे खिलाड़ियों ने जिस एकजुटता के साथ संघर्ष करते हुए विजय प्राप्त की और देशवासियों को खुशियों के ये हसीन पल दिये वो पूरा देश हमेशा याद रखेगा।
पिछले कुछ महिने खेल के लिए अच्छे जा रहे हैं। पहले हॉकी का एशिया कप, फिर फुटबॉल का नेहरू कप और अब टवेन्टी-टवेन्टी विश्व कप की जीत 'चक दे इंडिया' का सही समां बाँधती नज़र आ रही है।
तो लगे रहो इंडिया तुमसे आगे भी ऐसी और कई उम्मीदें हैं......
(सभी चित्र साभार cricinfo.com)
8 टिप्पणियाँ:
वाह जी वाह-पूरी रपट पेश है. भारत की उपलब्धि पर बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनायें.
सही है। धोनी बहुत सफ़ल हुये अपनी मेहनत और आत्मविश्वास के बल पर!
इतना तो साबित हो ही गया है कि तीन धुरंधरों के बल्ला टांग देने के बाद भी भारतीय टीम की दुर्दशा नहीं होगी
जिसका लगातार अंदेशा जताया जा रहा था । फिर ये भी दिखा कि सीनियर्स की बजाय नये खिलाड़ी ज्यादा ज़ोर लगाते हैं । मैं मुंबई के जिस इलाक़े में हूं वहीं रोहित शर्मा का भी घर है । आपको बताऊं कि कल गणेश विसर्जन की साज सज्जा में जगह जगह आदमक़द होर्डिंग लगे थे । वी आर प्राउड आफ यू रोहित शर्मा । ये होर्डिंग रोहित के स्कूल विवेकानदं विद्यालय ने लगवाये थे । मैं मैच की रात मुंबई की सड़कों पर था, कहीं जा रहा था । लोग तिरंगा लेकर
दुपहिया और चौपहिया वाहनों पर नारे लगाते घूम रहे थे । वाकई 20-20 वर्ल्ड कप ने एक समां रच दिया है । बिल्कुल इसी समय जब मैं ये टिप्पणी लिख रहा हूं एयरपोर्ट पर भारतीय टीम का आगमन होने वाला है और आज पूरा मुंबई ट्रैफिक जाम और बारिश पर कुढ़ेगा नहीं । बल्कि जिन जिन रास्तों से विजय रथ का कारवां निकलेगा, वहां गजब का समां होगा ।
बिल्कुल सही शीर्षक हो गई अनहोनी .
वैसे ये सही है की ८३ के वर्ल्ड कप जैसा ही रोमांच इस बार भी था.
आप सभी लोग विश्लेषण कीजिये हम तो बस खुश हैं, ये देख कर कि सारा राष्ट्र एक साथ खुश है।
उस दिन कार्यालय से निकलते लिफ्ट के पास सभी लोगों की निगाह घड़ी पर ही थी, सभी सोच रहे थे कि क्या बहाना बनाया जाये जल्दी निकलने का और बॉस थे कि खुद ही जल्दी जाने की फिराक़ में थे। छः बजते बजते सड़कें सुनसान! और वहीं भारत की जीत के साथ ही बरसते पानी की परवाह किये बगैर सभी लोग सड़क पर नाचने लगे। आज के दिन तो भईया विक्री हो या न हो, दुकानें बंद.... और मिठाई की दुकानों पर छूट.. जी भर के मिठाई खाओ।
बहुत अच्छा लग रहा था... लग ही नही रहा था कि ये वही लोग हैं जो जाति धर्म के नाम पर एक दूसरे के बैरी हो जाते हैं, आज तो बस हिंदुस्तान था और हिंदुस्तानी डूबे हुए थे विजयोत्सव के रंग में।
जीत मुबारक़।
समीर जी आपको भी बधाई
अनूप जी, ममता जी सही कहा आपने !
यूनुस भाई मुंबई के अपार जनसमूह का उत्साह तो कल टीवी के पर्दे पर देख ही लिया।
कंचन सही कहा आपने ! ऐसे मौके सचमुच पूरे देश को जोड़ देते हैं।
We are all proud of this victory & just hope that the Indian team can do the same by beating the Aussies in our homegrounds.
कल्याण अगर वैसा हो सके तो बेहद अच्छी बात होगी। पर नए दौरे की शुरुआत तो प्रतिकूल ढ़ंग से हुई है।
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