वार्षिक संगीतमाला की तीसरी सीढ़ी सुरक्षित है एक ऍसी आवाज़ के लिए जो अपने आप में दिव्य है। एक ऍसा कलाकार जो जब अपनी पूरी लय में डूबा होता है तो ऍसा लगता है कि परम पिता परमेश्वर तक उसके गायन की गूँज पहुँच रही होगी। जी हाँ मैं कैलाश खेर की बात कर रहा हूँ। मेरठ की गलियों से दिल्ली और फिर अँधेरी के प्लेटफार्म से काली होंडा सिटी की सवारी करने वाले कैलाश के सांगीतिक सफ़र की दास्तां तो मैं पहले यहाँ सुना ही चुका हूँ।
कैलाश की गायिकी में उनके बचपन के ग्रामीण परिवेश और पिता के अध्यात्म प्रेम का सीधा असर है। कैलाश कहा करते हैं, कि बचपन से उनके घर में संतों, फकीरों का आना जाना लगा रहता था। एकतारे पर गाते हुए जब कैलाश उन्हें देखते तो उनकी बातों का पूर्ण अर्थ ना समझते हुए उसे गाने लगते। लोक धुनों के प्रति कैलाश का झुकाव भी इसी परिवेश की उपज रहा है। कैलाश का मानना है जो गीत जीवन और प्रकृति के सत्यों को उद्घाटित करे वो ही मन को सबसे ज्यादा सुकून देता है और वो इसी बात को मन में रखकर अपने गीतों का ताना बाना बुनते हैं।
इस श्रृंखला का ये एकमात्र गैर फिल्मी गीत है। तीसरी पायदान का ये गीत कैलाश के इस साल रिलीज हुए एलबम झूमो रे से लिया गया है। यूँ तो सलाम-ए-इश्क में कैलाश खेर का गीत या रब्बा..... भी मुझे बेहद पसंद है पर मैं उसे इसलिए इस गीतमाला में शामिल नहीं कर सका कि गुरु की तरह सलाम- ए-इश्क का संगीत भी पिछले साल ही रिलीज हो गया था और दुर्भाग्यवश मै उसे उस वक्त सुन नहीं पाया था।
कैलाश खेर के लिखे इस गीत की धुन बनाने में सहयोग दिया है उनके बैंड के सदस्य प्रकाश कामथ और नरेस कामथ ने। इन तीनों ने मिलकर इस गीत के लिए अद्भुत संगीत रचा है। मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित करता है अंतरे के बीच ताली और सेतार का प्रयोग। सेतार इरान का वो वाद्ययंत्र है जिससे भारतीय सितार विकसित हुआ। इस गीत में सेतार बजाने के लिए कैलाश ने इरान के सेतार वादक तहमुरेज़ को बुलाया था।
तो आइए पढ़ें प्रेम में पूरी तरह अपने आप को समर्पित करने वाली प्रेयसी की अपने सैयाँ के लिए ये प्रणय निवेदन...
हीरे मोती मैं ना चाहूँ
मैं तो चाहूँ संगम तेरा
मैं तो तेरी सैयाँ.. तू है मेरा
सैयाँ सैयाँ....
तू जो छू ले प्यार से, आराम से, मर जाऊँ
आ जा चंदा बाहों में, तुझ में ही गुम हो जाऊँ मैं
तेरे नाम में खो जाऊँ
सैयाँ सैयाँ.......
मेरे दिन खुशी से झूमें गाएँ रातें
पल पल मुझे डुबाएँ रातें जागते
तुझे जीत जीत हारूँ, ये प्राण प्राण वारूँ
हाए ऍसे मैं निहारूँ, तेरी आरती उतारूँ
तेरे नाम से जुड़े हैं सारे नाते
सैयाँ सैयाँ.......
बनके माला प्रेम की तेरे तन पे झर झर जाऊँ
मैं हूँ नैया प्रीत की संसार से हर जाऊँ मैं
तेरे प्यार से तर जाऊँ
सैयाँ सैयाँ.......
ये नरम नरम नशा है बढ़ता जाए
कोई प्यार से घूँघटिया देता उठाए
अब बावरा हुआ मन, जग हो गया है रौशन
ये नई नई सुहागन, हो गई है तेरी जोगन
कोई प्रेम की पुजारन मंदिर सजाए
सैयाँ सैयाँ.......
हीरे मोती मैं ना चाहूँ
मैं तो चाहूँ संगम तेरा
मैं ना जानूँ तू ही जाने
मैं तो तेरी, तू है मेरा
(चित्र साभार हिंदुस्तान टाइम्स)
कैलाश की गायिकी में उनके बचपन के ग्रामीण परिवेश और पिता के अध्यात्म प्रेम का सीधा असर है। कैलाश कहा करते हैं, कि बचपन से उनके घर में संतों, फकीरों का आना जाना लगा रहता था। एकतारे पर गाते हुए जब कैलाश उन्हें देखते तो उनकी बातों का पूर्ण अर्थ ना समझते हुए उसे गाने लगते। लोक धुनों के प्रति कैलाश का झुकाव भी इसी परिवेश की उपज रहा है। कैलाश का मानना है जो गीत जीवन और प्रकृति के सत्यों को उद्घाटित करे वो ही मन को सबसे ज्यादा सुकून देता है और वो इसी बात को मन में रखकर अपने गीतों का ताना बाना बुनते हैं।
इस श्रृंखला का ये एकमात्र गैर फिल्मी गीत है। तीसरी पायदान का ये गीत कैलाश के इस साल रिलीज हुए एलबम झूमो रे से लिया गया है। यूँ तो सलाम-ए-इश्क में कैलाश खेर का गीत या रब्बा..... भी मुझे बेहद पसंद है पर मैं उसे इसलिए इस गीतमाला में शामिल नहीं कर सका कि गुरु की तरह सलाम- ए-इश्क का संगीत भी पिछले साल ही रिलीज हो गया था और दुर्भाग्यवश मै उसे उस वक्त सुन नहीं पाया था।
कैलाश खेर के लिखे इस गीत की धुन बनाने में सहयोग दिया है उनके बैंड के सदस्य प्रकाश कामथ और नरेस कामथ ने। इन तीनों ने मिलकर इस गीत के लिए अद्भुत संगीत रचा है। मुझे सबसे ज्यादा आकर्षित करता है अंतरे के बीच ताली और सेतार का प्रयोग। सेतार इरान का वो वाद्ययंत्र है जिससे भारतीय सितार विकसित हुआ। इस गीत में सेतार बजाने के लिए कैलाश ने इरान के सेतार वादक तहमुरेज़ को बुलाया था।
तो आइए पढ़ें प्रेम में पूरी तरह अपने आप को समर्पित करने वाली प्रेयसी की अपने सैयाँ के लिए ये प्रणय निवेदन...
हीरे मोती मैं ना चाहूँ
मैं तो चाहूँ संगम तेरा
मैं तो तेरी सैयाँ.. तू है मेरा
सैयाँ सैयाँ....
तू जो छू ले प्यार से, आराम से, मर जाऊँ
आ जा चंदा बाहों में, तुझ में ही गुम हो जाऊँ मैं
तेरे नाम में खो जाऊँ
सैयाँ सैयाँ.......
मेरे दिन खुशी से झूमें गाएँ रातें
पल पल मुझे डुबाएँ रातें जागते
तुझे जीत जीत हारूँ, ये प्राण प्राण वारूँ
हाए ऍसे मैं निहारूँ, तेरी आरती उतारूँ
तेरे नाम से जुड़े हैं सारे नाते
सैयाँ सैयाँ.......
बनके माला प्रेम की तेरे तन पे झर झर जाऊँ
मैं हूँ नैया प्रीत की संसार से हर जाऊँ मैं
तेरे प्यार से तर जाऊँ
सैयाँ सैयाँ.......
ये नरम नरम नशा है बढ़ता जाए
कोई प्यार से घूँघटिया देता उठाए
अब बावरा हुआ मन, जग हो गया है रौशन
ये नई नई सुहागन, हो गई है तेरी जोगन
कोई प्रेम की पुजारन मंदिर सजाए
सैयाँ सैयाँ.......
हीरे मोती मैं ना चाहूँ
मैं तो चाहूँ संगम तेरा
मैं ना जानूँ तू ही जाने
मैं तो तेरी, तू है मेरा
(चित्र साभार हिंदुस्तान टाइम्स)