रविवार, फ़रवरी 17, 2008

वार्षिक संगीतमाला २००७ : पायदान संख्या ६ - तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना दे ना सकूँ...

बॉलीवुड में अक्सर ऍसा होता रहा है कि जब कोई फिल्म विराट स्तर पर प्रदर्शित नहीं होती या फिर ज्यादा दिन नहीं चलती तो उसके गीत लोगों तक पहुँच ही नहीं पाते और गीतकार संगीतकार की सारी मेहनत पानी में चली जाती है। अब मुझे पूरा यक़ीन है कि आप में से बहुतों ने 'मनोरमा सिक्स फीट अंडर' के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं सुनी होगी। समीक्षकों द्वारा अच्छा करारे जाने पर भी ये फिल्म सिनेमाघरों की शोभा ज्यादा दिनों तक नहीं बढ़ा पाई।

इसी फिल्म का एक गीत जो इसके प्रोमो को सुनते समय मन में अटक गया था आज आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस गीत को गाया रूप कुमार राठौड़ और महालक्ष्मी ऐयर ने और इसके बोल लिखे मनोज तापड़िया ने। इस गीत की धुन बनाई जयेश गाँधी ने जो बतौर गायक तो कई फिल्मों में अपना स्वर दे चुके हैं पर संगीतकार की हैसियत से शायद उनकी ये पहली फिल्म है।

आतिफ असलम, मुस्तफ़ा ज़ाहिद सरीखे पाकिस्तानी गायकों के ऊँचे सुरों को पूरे कौशल से लगा सकने की महारत को जो लोकप्रियता भारत में मिली है उससे प्रभावित होकर संगीतकार यहाँ के गायकों को भी वैसे गीत दे रहे हैं। ज़ुबीन गर्ग हों , कृष्णा हों या फिर मिथुन शर्मा इन सबने इस genre के गीतों में कमाल किया है। इसलिए जब रूप कुमार राठौड़ को ऊँचे सुरों में मैंने गाते सुना
आँखों के, आलों में, चाहत की लौ जलने दो...

तो विस्मय के साथ साथ मन मुग्ध हो गया।

शब्दों की बात करें तो मनोज तापड़िया के बोल प्रेमियों की आपसी कशमकश को व्यक्त करते दिखते हैं। जिंदगी में अपने करीबी से कई बार आप कुछ नहीं कह कर भी बहुत कुछ कह जाते हैं। रिश्तों के उलझे धागों में से कई सवाल बाहर निकल कर ऐसे आते हैं जिनके जवाब आँखें , होठों से ज्यादा बेहतर तरीकें से दे पाती हैं...


तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना दें ना सकूँ
पिघले से अरमां हैं, दो पल के मेहमां हैं
आँखों के, आलों में, चाहत की लौ जलने दो
तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना दें ना सकूँ


कह रही है जो नज़र तुझे है खबर की नहीं
कह रही है तेरी नज़र तू बेखबर तो नहीं
तेरे बिना जिंदगी है अधूरी, तेरे बिना क्या है जीना
पिघले से अरमां हैं, दो पल के मेहमां हैं
आँखों के आलों में चाहत की लौ जलने दो


तुम कहो तो मैं रोक लूँ, जो तुम कहो तो नहीं
सीने में है ये कैसी खलिश, तेरी कशिश तो नहीं
तेरे बिना जिंदगी है अधूरी, तेरे बिना क्या है जीना
पिघले से अरमां हैं, दो पल के मेहमां हैं
आँखों के आलों में चाहत की लौ जलने दो

तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना दें ना सकूँ
तेरे बिना जिंदगी है अधूरी, तेरे बिना क्या है जीना


तो आइए सुनते हैं छठी पायदान के इस गीत को

इस संगीतमाला के पिछले गीत

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14 टिप्पणियाँ:

Unknown on फ़रवरी 18, 2008 ने कहा…

gana sunai de tab na comment de.n...wordings to achchhi lag rahi hai.

Manish Kumar on फ़रवरी 18, 2008 ने कहा…

भाई यहाँ तो धड़्ल्ले से चल रहा है कब तक कछुआ चाल कनेकश्न पर रहिएगा :). वैसे आपको आमि जे तोमार भेजना था अब ये भी कम्प्रेस कर भेजना होगा।

Yunus Khan on फ़रवरी 18, 2008 ने कहा…

मनीष छा गये । बेहद खूबसूरत दिन । सच कहूं तो ये गाना इससे पहले रूप कुमार से ही टी वी पर आधी बार सुना था । मतलब आधा सुनकर छोड़ दिया था । आज तुम्‍हारी वजह से इस गाने से होकर गुज़रे और इसकी बेमिसाल होने का अहसास कर सके ।

Sajeev on फ़रवरी 18, 2008 ने कहा…

मनीष जी सुंदर गीत है आज पहली बार सुना, आपने जो निचे लिंक दिए हैं उनमे मैं जहाँ रहूँ गीत के कलमकार का नाम गलती से समीर लिख दिया है, यहाँ जावेद अख्तर होना चाहिए था वैसे पोस्ट में सब दुरुस्त है, आपने मेरी पसंद के दो गीत धागे तोड़ लाओ और मैं जहाँ रहूँ पहले ही पीछे छोड़ दिए अब बस एक तारे ज़मीं पर का शीर्षक गीत बचा है, जिसकी मैं उम्मीद करता हूँ की वर्ष का टॉप गीत होगा आपकी नज़र मैं.... खैर देखते है, पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त...

Udan Tashtari on फ़रवरी 18, 2008 ने कहा…

अति उत्तम-उमदा..बधाई..बस यूँ ही छाये रहिये.

SahityaShilpi on फ़रवरी 18, 2008 ने कहा…

बहुत सुंदर गीत है, मनीष जी! आज पहली बार सुना. आभार इसे सुनवाने का.

बेनामी ने कहा…

बहुत दिन बाद आपकी गली में आना हुआ तो पता चला कि इधर तो महफिल जमी हुई है, सो सीधे घुसे चले आए! वैसे पायदान संख्या १ और २ पर आने वाले गाने हमें पता चल गए हैं, पर बतायेंगे नहीं आपको.... नहीं तो आप बदल दोगे न!

AlokTheLight on फ़रवरी 19, 2008 ने कहा…

Manish Sir, Main bas aapse iss song ke aapke Top 20 mein na hone ki shikayat karne hi wala tha.. ;)

Haan par Life in Metro ke 1 bhi song ko aapki list mein zagah nahi mili.. ??? Main to hairan hu..

कंचन सिंह चौहान on फ़रवरी 19, 2008 ने कहा…

hi hi hi .... aaj apne aap chal gaya..bahut achchha hai.

बेनामी ने कहा…

one of my picks of the year - among the best it's given us :)

Charu on फ़रवरी 20, 2008 ने कहा…

jabse is film ka music release hua tabse ye gaana mere ipod me hamesha rehta hai. doston se kai baar sunane ka anurodh kiya to javaab ye milta tha ki na movie ka naam suna hai na geet ka. aapke blog me iska jikr dekhkar man prasann ho gaya. man ki baat uljhan ke samay me lafjon se nahi aankhon se bayaan hoti hai. yehi baat is geet me bade he khoobsyrat laheje me kahi gayi hai. umeed hai aage aane wale gaanon me metro ka ek gaana to jaroor hoga.

Manish Kumar on फ़रवरी 20, 2008 ने कहा…

कंचन, यूनुस, अजय, समीर जी, सुपर्णा आप सब को भी ये गीत उतना ही पसंद आया जानकर बेहद खुशी हुई।

अमित भाई आप आए बहार आई। आप जैसे गुणीजनों को देखकर तबियत प्रसन्न हो जाती है। शीर्ष गीत की बात बाद में पहले ये बताएं कि ये नग्मा आपको कैसा लगा?

सजीव भाई पहले तो बहुत बहुत शुक्रिया भूल की ओर ध्यान दिलाने का मैंने अब सुधार दिया है। बाकी आपकी guess पर बाद में टिप्पणी करूँगा।

Manish Kumar on फ़रवरी 20, 2008 ने कहा…

आलोक चलिए शिकायत का मौका नहीं दिया आपको
चारु मुझे भी खुशी हुई कि ये आपकी पसंद भी है। सही कहा आपने इस गीत के लफ्ज़ों के बारे में...

हाँ आप दोनों ने लाइफ इन ए मेट्रो के गीतों के बारे में लिखा है। आलोक तो पहले से ही हैरान हैं और चारु आप की आशा के प्रतिकूल इस फिल्म का कोई गीत मेरी गीतमाला में जगह नहीं बना पाया है। मेट्रो के दो गीतों अलविदा.. और इन दिनों... को मैंने बार-बार सुना था इस सिलसिले को सजाने के लिए पर ये गीत मुझे टुकड़ों में ही अच्छे लगे और इसलिए उन्हें मैं यहाँ नहीं रख पाया।

Urvashi on मार्च 09, 2008 ने कहा…

I love this song! Roopkamur Rathod has sung it so well!!

 

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