शुक्रवार, मई 16, 2008

ये अलग बात है ज़रा नाशाद हूँ मैं, पंख कट गए मेरे पर आजाद हूँ मैं ...

चार साल पहले अंतरजाल पर एक नज़्म पढ़ने को मिली थी, शायरी के एक मंच पर। लिखने वाले थे विनय जी जिनके बारे में मुझे बस इतना मालूम था कि वो कानपुर से हैं। अक्सर उनकी ग़ज़लों और नज्मों को उस मंच पर हम सराहा करते थे।

आज अचानक उनकी एक सादी सी मगर बेहद असरदार नज़्म की कुछ पंक्तियाँ याद आ गईं जो पहली बार पढ़ने के बाद अक्सर गाहे बगाहे फिर से लौट कर होठों पर आ जाती हैं। इसीलिए आज सोचा कि क्यूँ ना फिर पुरानी संचिकाओं से निकाल कर उन्हें आप तक लाया जाए।

पूरी नज़्म में शायर अपनी माशूका से दूर जाने की बात करता है, पर नज़्म की आखिरी दो पंक्तियाँ उस की मानसिक स्थिति को बेहद खूबसूरती से व्यक्त कर देती हैं...

मेरे सर खामोशी का कोई इलजाम भी नहीं
तुम्हारे नाम अब मेरा कोई पैगाम भी नहीं
वक़्त ए माज़ी की अब कोई तसवीर नहीं है
तुम्हारे वास्ते कागज़ पे कोई तहरीर नहीं है

अब दूर से मुझको तुम सदा मत देना
बुझते हुए शोलों को हवा मत देना
जो मसायल हैं मेरे सुलझाने दो मुझे
जाता हूँ अगर दूर तो जाने दे मुझे


मंजिलें और भी तो हैं जिन्हें पाना है तुम्हें
चाँद तारों से भी ऊपर जाना है तुम्हें
मेरे वास्ते कभी कोई गम नहीं करना
हौसला अपना कभी भी कम नहीं करना


अब हमेशा के लिए तुम भुला देना मुझको
दिल के खाली किसी कोने में सुला लेना मुझको

ये अलग बात है ज़रा नाशाद हूँ मैं
पंख कट गए मेरे पर आजाद हूँ मैं


विनय जी से पिछले चार सालों से मेरी नेट पर मुलाकात नहीं हुई। आशा है वो जहाँ भी होंगे सकुशल होंगे। चलते चलते उनका एक बेहतरीन शेर अर्ज है

ये तो नहीं कहता कि मैं शख्स बदनसीब था
मगर हारा हूँ जब कभी मैं जीत के करीब था


चित्र साभार
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11 टिप्पणियाँ:

समयचक्र on मई 16, 2008 ने कहा…

बहुत सुंदर कविता सराहनीय है.धन्यवाद

डॉ .अनुराग on मई 16, 2008 ने कहा…

ये अलग बात है ज़रा नाशाद हूँ मैं
पंख कट गए मेरे पर आजाद हूँ मैं

बेहतरीन नज्म है ओर उतना ही खूबसूरत शेर......बाँटने के लिए शुक्रिया......

मीनाक्षी on मई 16, 2008 ने कहा…

बेहद खूबसूरत दिल को छूती हुई नज़्म और शेर भी लाजवाब...

pallavi trivedi on मई 16, 2008 ने कहा…

itni sundar gghazal padhwaane ke liye shukriya....

Udan Tashtari on मई 16, 2008 ने कहा…

वाह!! आनन्द आ गया. इनकी और गज़लें हैं तो सुनवायें:

ये अलग बात है ज़रा नाशाद हूँ मैं
पंख कट गए मेरे पर आजाद हूँ मैं


क्या बात है!! गजब!

अमिताभ मीत on मई 16, 2008 ने कहा…

क्या बात है भाई मनीष .... क्या नज़्म पढ़वाई है. वाह ! दिल खुश कर दिया. बहुत ख़ूब. और ये शेर तो बस ....
"ये तो नहीं कहता कि मैं शख्स बदनसीब था
मगर हारा हूँ जब कभी मैं जीत के करीब था"
बहुत बढ़िया.

Asha Joglekar on मई 17, 2008 ने कहा…

बहुत खूबसूरत गझल और उतने ही खूबसूरत शेर।

ये तो नहीं कहता कि मैं शख्स बदनसीब था
मगर हारा हूँ जब कभी मैं जीत के करीब था"
ज्यादा तर लोगों की हकीकत ।

राजीव रंजन प्रसाद on मई 17, 2008 ने कहा…

पंख कट गए मेरे पर आजाद हूँ मैं

वाह!!!

***राजीव रंजन प्रसाद

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on मई 17, 2008 ने कहा…

Beautiful lyrics --
Thanx 4 posting Manish bhai
- Lavanya

कंचन सिंह चौहान on मई 21, 2008 ने कहा…

yu.n puri nazm khubsurat hai... par alag se diya gaya sher mujhe apne bahut karib laga.....! thanks

Dawn on मई 31, 2008 ने कहा…

wah! Akhiri sher to waqai bahut hee gehari hai ....
umeed hai aapko aapke Vinay ji phir se mil jayein aur dua hai ke woh sakushal hon jahan bhi hon (ameen)

Cheers

 

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