मंगलवार, जून 17, 2008

आइए सुनें बारिशों के इस मौसम में सुमन कल्याणपुर को : शराबी शराबी ये सावन का मौसम ख़ुदा की क़सम ख़ूबसूरत न होता

मानसूनी बारिश से पूरा भारत भीगा हुआ है। झुलसाती गर्मी के बाद बारिश की फुहारें किसे अच्छी नहीं लगती। आज बाहर टप टप गिरती बरखा की बूँदों ने मुझे प्रेरित किया है आपके साथ एक प्यारे से मानसूनी गीत को बाँटने के लिए। यूँ तो बारिश से जुड़े कई अनमोल गीत भारतीय फिल्म जगत हमें दे चुका है। नियमित पाठकों को याद होगा कि किशोर कुमार के बारे में श्रृंखला लिखते समय मैंने मंजिल फिल्म के लिए योगेश गौड़ का लिखा गीत रिमझिम गिरे सावन सुनाया था। इस गीत को गुनगुनाना मुझे बेहद प्रिय है और यही वज़ह है कि इस गीत को आप चिट्ठे की साइडबार में भी पाएँगे। पर आज का ये गीत कुछ अलग सा है, इसमें शास्त्रीयता भी है और लफ़्जों की एक नज़ाकत भी। ये एक ऍसा गीत है जो वर्षा ॠतु को प्रेम के रंगों में सराबोर कर देता है।

जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ १९६७ में आई फिल्म नूरजहाँ के गीत "शराबी शराबी ये सावन का मौसम ख़ुदा की क़सम ख़ूबसूरत न होता..." की जिसे संगीतबद्ध किया था राकेश रोशन के पिता स्वर्गीय रोशन जी ने, जिसे लिखा था गीतकार शकील बदायुँनी साहब ने और इस गीत को गाया था कोकिल कंठी सुमन कल्याणपुर ने....


मझे सुमन कल्याणपुर की गायिकी हमेशा से अच्छी लगती रही है। बचपन में अक्सर जब किसी के संगीत ज्ञान की परीक्षा लेनी होती तो सुमन जी के गाए किसी गीत को गा कर सामने वाले से ये जरूर पूछते कि बताओ इसे किसने गाया है। अक्सर जवाब लता मंगेशकर आता और तब तक हमने अपना प्वाइंट प्रूव कर लिया होता कि तुम्हें अभी तो गायकों की ही पहचान नहीं है तो तुमसे संगीत के बारे में क्या बहस करनी :)।

लता से आवाज की साम्यता की वज़ह सुमन जी को गाने के मौके कम मिले पर जितने भी मिले उसे उन्होंने पूरी तरह निभाया। 'दिल ही तो है', 'शगुन' और 'बात एक रात की' जैसी फिल्मों में उनके गाए कुछ गीत मुझे बेहद पसंद हैं और कभी उन्हें भी आप तक पहुँचाने की कोशिश करूँगा।

इस गीत की एक खासियत ये भी है कि ये राग गौड़ मल्हार पर आधारित है। राग मल्हार के बारे में कहा जाता है कि जब इस राग पर आधारित कोई गीत पूरे सुर ताल और भाव के साथ गाया जाए तो देवराज इन्द्र को बारिश करानी ही पड़ती है। वैसे भी शकील के लिखे खूबसूरत बोल बारिश की बूंदों सी शीतलता देते हैं। आप खुद ही सुन कर महसूस करें ना..




शराबी शराबी ये सावन का मौसम
ख़ुदा की क़सम ख़ूबसूरत न होता
अगर इसमें रंग-ए-मोहब्बत न होता
शराबी शराबी ......................


सुहानी-सुहानी ये कोयल की कूकें
उठाती हैं सीने में रह-रह के हूकें
छलकती है मस्ती घने बादलों से
उलझती हैं नज़रें हसीं आँचलों से
ये पुरनूर मंज़र
ये पुरनूर मंज़र ये रंगीन आलम
ख़ुदा की क़सम ख़ूबसूरत न होता
अगर इसमें रंग-ए-मोहब्बत न होता
शराबी शराबी ......................


पुरनूर - प्रकाशमान

गुलाबी-गुलाबी ये फूलों के चेहरे
ये रिमझिम के मोती ये बूँदों के सेहरे
कुछ ऐसी बहार आ गई है चमन में
कि दिल खो गया है इसी अंजुमन में
ये महकी नशीली
ये महकी नशीली हवाओं का परचम
ख़ुदा की क़सम ख़ूबसूरत न होता
अगर इसमें रंग-ए-मोहब्बत न होता
शराबी शराबी
... ..................

अंजुमन - सभा मज़लिस

ये मौसम सलोना अजब ग़ुल खिलाए
उमंगें उभारे उम्मीदें जगाए
वो बेताबियाँ दिल से टकरा रहीं हैं
के रातों की नींदें उड़ी जा रहीं हैं
ये सहर-ए-जवानी
ये सहर-ए-जवानी ये ख़्वाबों का आलम
ख़ुदा की क़सम ख़ूबसूरत न होता
अगर इसमें रंग-ए-मोहब्बत न होता
शराबी शराबी ....................
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16 टिप्पणियाँ:

मैथिली गुप्त on जून 17, 2008 ने कहा…

बरसात की झमाझम के बीच इसे सुनने में बहुत मज़ा आया मनीष जी!

Abhishek Ojha on जून 17, 2008 ने कहा…

मानसून का इससे अच्छा स्वागत और क्या हो सकता है !

अमिताभ मीत on जून 17, 2008 ने कहा…

वाह वाह गुरु !! बिल्कुल मस्त कर दिया है. बहुत दिनों बाद सुना ये गीत. क्या बात है.

सागर नाहर on जून 17, 2008 ने कहा…

मजा आ गया मनीष भाई... बहुत सुन्दर गीत।

Arun Arora on जून 17, 2008 ने कहा…

हमे तो जी यही सूझ रहा है
"बरखा बहार आई
नालियो मे बाढ लाई ,
लेकिन आपने सुनवाये गाने मे फ़िर भी समा बाध दिया :)

कुश on जून 17, 2008 ने कहा…

आहा मनीष भाई.. तर बतर कर दिया आपने.. जियो मनीष भाई..

डॉ .अनुराग on जून 17, 2008 ने कहा…

खुदा कसम बड़े जोर की बारिश है हमारे यहाँ......

Udan Tashtari on जून 17, 2008 ने कहा…

मौसम की नजाकत को समझते हुए बेहतरीन गीत प्रस्तुत कर दिया आपने. बहुत बढ़िया.

sanjay patel on जून 17, 2008 ने कहा…

मनीश भाई;
सुमनजी चित्रपट संगीत की अनसंग हीरोइन हैं.आपने जो नज़्म जारी की है वह कुदरत के करिश्मे को कितना सँवार देती है. शायद रोशन साहब का कमाल है ये .रामनारायणजी का सारंगी,पं.शिव शर्मा का संतूर और हरिप्रसाद चौरसिया की बाँसुरी इंटरल्यूड्स को क्या कमाल का भराव देते हैं.कितनी मेहनत और ईमानदारी से रचा जाता था बीते समय का संगीत..बेजोड़ बंदिश है मल्हार को उत्तेजित करती.

पारुल "पुखराज" on जून 17, 2008 ने कहा…

ahaa! kya baat hai...hamarey yahan bhi badi rimjhim lagi hai...ye geet ..bas koi shabd ab nahi kahney ko ..bahut shukriyaa

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on जून 18, 2008 ने कहा…

Bahut bahut aabhaar ...Suman Kalyan pur ji ki aawaaz kitnee madhur hai ees geet mei ,
Zabardast Manish bhai ..

Anita kumar on जून 18, 2008 ने कहा…

happy maansoon...:)

Manish Kumar on जून 18, 2008 ने कहा…

गीत पसंद करने के लिए आप सभी साथियों का शुक्रिया !

वैसे अरुण भाई आपने जो बात कही वो भी इस मौसम का एक वास्तविक पहलू है :)

संजय जी गीत में वाद्य यंत्र बजाने वालों के बारे में बताने के लिए धन्यवाद !

कंचन सिंह चौहान on जून 20, 2008 ने कहा…

pahali baar suna..bahut khubsurat...satya hi to hai..! man me agar sneh na ho to, fir feel karne ki manhdrishti kahan milti hai

Manish Kumar on जून 25, 2008 ने कहा…

सही कहा कंचन !

daanish on जुलाई 15, 2010 ने कहा…

bahut bahut bahut hi khoobsurat geet.... jaadu-sa jgata huaa..
aur raag ke baare mei btaa kar aapne lutf doona kar diyaa
aur us par jhaptaal ka tilism... waah !!

 

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