सोमवार, सितंबर 08, 2008

आशा ताई की सालगिरह पर सुनिए गैर फिल्मी गीत, नज़्म और ग़ज़ल का ये गुलदस्ता...!

आज आशा ताई की सालगिरह है। कुछ दिनों पहले उन्हें 'सा रे गा मा' के मंच पर गाते सुना था। अभी भी वो खनक, वो माधुर्य जस का तस बना लगता है। आज इस खुशी के अवसर पर गीत और ग़ज़लों का ये गुलदस्ता आपके लिए पेश-ए-खिदमत है। जीवन के हर रंग को अपनी गायिकी में समाहित करने वाली इस महान गायिका की आवाज़ में आज सुनिए पिया को संबोधित करता एक प्यारा सा गीत, एक उदासी भरी नज़्म और फ़ैज की लिखी एक दिलकश ग़ज़ल ।

सबसे पहले बात इस नज़्म की जो मैंने सबसे पहले 1985 के आस पास सुनी थी। अभी जो थोड़ी बहुत उर्दू समझ में आती है, उस वक़्त वो भी समझ नहीं आती थी। पर जाने क्या था इस नज़्म में, कि मुखड़ा सुनते ही इसकी उदासी दिल में तैर जाती थी। मेरे ख्याल से ये सारा करिश्मा था आशा ताई की भावपूर्ण आवाज का, जिसकी वज़ह से भाषा की समझ ना होते हुए भी इसकी भावनाओं का संप्रेषण हृदय तक सहजता से हो जाता था।


तो आइए पहले सुनें मेराज-ए-ग़ज़ल से ली गई सलीम गिलानी साहब की लिखी ये नज़्म



रात जो तूने दीप बुझाए
मेरे थे... मेरे थे....
अश्क जो सारे दिल में छुपाए
मेरे थे... मेरे थे....

कैफे बहाराँ, महरे निगाराँ, लुत्फ ए जुनूँ
मौसम ए गुल के महके साए
मेरे थे... मेरे थे....

मेरे थे वो, खाब जो तूने छीन लिए
गीत जो होठों पर मुरझाए
मेरे थे... मेरे थे....

आँचल आँचल, गेसू गेसू, चमन चमन
सारी खुशबू मेरे साए
मेरे थे... मेरे थे....

साहिल साहिल लहरें जिनको ढूँढती हैं
माज़ी के वो महके साए
मेरे थे... मेरे थे....


गुलाम अली के साथ आशा जी का ये एलबम मुझे दो अन्य प्रस्तुतियों के लिए भी प्रिय था। एक तो शबीह अब्बास का लिखा, बड़ा प्यारा सा मुस्कुराता गुदगुदाता ये नग्मा । देखिए आशा जी अपनी इठलाती आवाज़ में किस तरह अपने साजन के लिए प्रेम के कसीदे पढ़ रही हैं




सलोना सा सजन है और मैं हूँ
जिया में इक अगन है और मैं हूँ

तुम्हारे रूप की छाया में साजन
बड़ी ठंडी जलन है ओर मैं हूँ

चुराये चैन रातों को जगाए
पिया का ये चलन है और मैं हूँ

पिया के सामने घूँघट उठा दे
बड़ी चंचल पवन है और मैं हूँ

रचेगी जब मेरे हाथों में मेंहदी
उसी दिन की लगन है और मैं हूँ


और आज की इस महफिल का समापन करते हैं इसी एलबम की इस बेहद मशहूर ग़ज़ल से, जिसे लिखा था फ़ैज अहमद फ़ैज ने

यूँ सजा चाँद कि छलका तेरे अंदाज का रंग
यूं फ़जा महकी कि बदला मेरे हमराज का रंग





जिस एलबम में आशा जी के गाए इतने खूबसूरत नगीने हों उसे अगर आप नेट से खरीदना चाहें तो यहाँ क्लिक करें।
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19 टिप्पणियाँ:

कंचन सिंह चौहान on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

रात जो तूने दीप बुझाए
मेरे थे... मेरे थे....
अश्क जो सारे दिल में छुपाए
मेरे थे... मेरे थे....

waah..pahali baar suna... poora guldasta hi behatarin

rakhshanda on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

रात जो तूने दीप बुझाए
मेरे थे... मेरे थे....
अश्क जो सारे दिल में छुपाए
मेरे थे... मेरे थे....
bahut sundar..man khush ho gaya

Yunus Khan on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

मनीष रात जो तूने दिये बुझाए मेरी पसंद का गीत है । वैसे तो मेराजे गजल पिछले दस पंद्रह सालों से अपने दिल के क़रीब ही रहा है । सही मायनों में ये एक नायाब अलबम है । आज ही रेडियोवाणी पर भी मैंने इसे विकलता से याद किया है । आशा जी की इस गायकी पर ही तो हम सब कुरबान हैं ।

शोभा on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

वाह बहुत सुंदर और मधुर गीत सुनवाया है. आपका चुनाव और आपकी पसंद बहुत ही अच्छी है. सुनकर आनंद आ गया. आशा जी और लता जी का कोई सनी नहीं है. इतने अच्छे चुनाव के लिए आभार . सस्नेह

रंजू भाटिया on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

सलोना सा सजन है और मैं हूँ
जिया में इक अगन है और मैं हूँ

तुम्हारे रूप की छाया में साजन
बड़ी ठंडी जलन है ओर मैं हूँ

चुराये चैन रातों को जगाए
पिया का ये चलन है और मैं हूँ

बहुत बहुत शुक्रिया मनीष जी ..यह गाना बहुत पहले सुना था कई दिन से इसको तलाश कर रही थी ..:)लेख तो बेहतरीन है ही ..

पारुल "पुखराज" on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

सब एक से बढ़कर एक---

डॉ .अनुराग on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

रात जो तूने दीप बुझाए
मेरे थे... मेरे थे....
अश्क जो सारे दिल में छुपाए
मेरे थे... मेरे थे....

आहा ....कहते है ख्याम साहब ने आशा जी को पहचान दी थी...उमराव जान ओर .बाजार से .....ये गजल बेहद खूबसूरत है मनीष जी.......

जितेन्द़ भगत on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

मधुर!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

लाजवाब हैँ अल्फाज़ ऐसे मानोँ दमकते हुए नगीने होँ चुने हैँ आपने मनीष भाई ..
आशाजी जीयेँ और हम ऐसे ही सुनते रहेँ !

Abhishek Ojha on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

इस खनकती आवाज़ के दीवाने हजारों हैं... नाहीं नहीं करोड़ों हैं.

संजय पटेल on सितंबर 08, 2008 ने कहा…

आशा-मस्ती
आशा-ग़म
आशा-निश्नगी
आशा-विरह
आशा-तड़प
आशा-उल्लास
आशा-संगीत
आशा-स्वर
आशा-आशा.

siddheshwar singh on सितंबर 09, 2008 ने कहा…

अच्छी और बहुत अच्छी प्रस्तुति!

Sajeev on सितंबर 09, 2008 ने कहा…

बड़ी ठंडी छाँव है और मैं हूँ.....महक रहा है आपका गुलदस्ता....

Anita kumar on सितंबर 09, 2008 ने कहा…

आशा जी के करोड़ों फ़ैनस में से एक मैं भी हूँ। संजय पटेल जी ने सही कहा, आशा जी की गायकी की विविधता का कौन नहीं कायल होगा। सुंदर गीत चुने आप ने। धन्यवाद

Harshad Jangla on सितंबर 09, 2008 ने कहा…

Manishbhai

Excellent!!!!

Thanx.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA

मीनाक्षी on सितंबर 10, 2008 ने कहा…

आशाजी की मधुर आवाज़ में गाए गए सभी गीत आनन्द देते है.. आखिरी गीत तो बहुत अच्छा लगा .

Kaunquest on सितंबर 13, 2008 ने कहा…

kaise hai sir?.. great tribute to a legend. :) kabhi hamaare blog mein bhii aaiyegaa..

Maa Mrudulanandmayee on सितंबर 10, 2011 ने कहा…

BTW I usually get confused while hearing - Yu sajaan Chaand - whether it is Fajaa or Fijaa? Kindly clarify.

I am weak in Urdu comprehension.

Manish Kumar on सितंबर 10, 2011 ने कहा…

‎Maa Mrudulanandmayee फिज़ा और फ़ज़ा दोनों ही सही हैं। इस ग़ज़ल में आशा जी ने फ़ज़ा गाया है जो कि फिज़ा का अरबी स्वरूप है। फ़ैज़ अपनी ग़ज़लों में अरबी/ फारसी शब्दों का अक्सर इस्तेमाल करते थे।

 

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