गुरुवार, मार्च 19, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 रनर्स अप - कहने को जश्न-ऐ-बहारा है....

वार्षिक संगीतमाला का ये पिछले ढाई महिने का सफ़र तय कर के आ गए हैं हम वर्ष 2008 के दूसरे नंबर के गीत पर। और ये गीत है फिल्म जोधा अकबर से जिसके संगीत को आस चिट्ठे की साइडबार पर कराई गई वोटिंग में साल के सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। जावेद अली का गाया, जावेद अख्तर का लिखा और अल्लाह रक्खा रहमान का संगीतबद्ध ये गीत संगीत, बोलों और गायिकी तीनों ही दृष्टिकोणों से ग़ज़ब का प्रभाव डालता है।


वैसे तो जावेद अख्तर साहब को इस साल का फिल्मफेयर एवार्ड इसी फिल्म के एक और खूबसूरत नग्मे इन लमहों के दामन के लिए मिला है पर इस गीत के बोल भी कमाल के हैं। इस गीत में उन्होंने अकबर और जोधा के बीच के प्रेम और शादी की परिस्थितियों से पैदा तनाव को उभारा है वो गीत की हर पंक्ति में सहज ही महसूस किया जा सकता है।

जिंदगी में मनचाहा हमसफ़र अगर साथ हो तो खुशियाँ कभी बेहद नज़दीक सी महसूस होती हैं। पर उन खुशियों को दिल तक पहुँचने के लिए अपने बीच की अहम की दीवार को गिराना पड़ता है। पूर्वाग्रह मुक्त होना पड़ता है। कई बार हम ये सब जानते बूझते भी अपने को इस दायरे से बाहर नहीं निकाल पाते। और फिर मन मायूसी के दौर से गुज़रने लगता है।

देखिए इन भावनाओं से गुँथे जावेद के शब्दों को जावेद अली ने किस खूबसूरती से अदा किया है और पीछे से रहमान का बहता निर्मल संगीत दिल को गीत में रमने में मजबूर कर देता है।

और अगर जावेद अली आपके लिए नए नाम हों तो उनके बारे में इसी साल की संगीतमाला की ये पोस्ट देखिए....



कहने को जश्न-ऐ-बहारा है
इश्क यह देख के हैरां है
फूल से खुशबू ख़फा ख़फा है गुलशन में
छुपा है कोई रंज फ़िज़ा की चिलमन में
सारे सहमे नज़ारें हैं
सोये सोये वक़्त के धारे हैं
और दिल में खोई खोई सी बातें हैं

कहने को जश्न-ऐ-बहारा है....
कैसे कहें क्या है सितम
सोचते हैं अब यह हम
कोई कैसे कहे वो हैं या नहीं हमारे
करते तो हैं साथ सफर
फासले हैं फिर भी मगर
जैसे मिलते नहीं किसी दरिया के दो किनारे
पास हैं फिर भी पास नहीं
हमको यह गम रास नहीं
शीशे की इक दीवार है जैसे दरमियां
सारे सहमे नज़ारें हैं.....

कहने को जश्न-ऐ-बहारा है....
हमने जो था नगमा सुना
दिल ने था उसको चुना
यह दास्तान हमें वक़्त ने कैसी सुनाई
हम जो अगर है गमगीन
वो भी उधर खुश तो नहीं
मुलाकातों में है जैसे घुल सी गई तन्हाई

मिल के भी हम मिलते नहीं
खिल के भी गुल खिलते नहीं
आँखों में है बहारें दिल में खिज़ा
सारे सहमे नज़ारे हैं
सोये सोये वक़्त के धारे हैं......


कहने को जश्न-ऐ-बहारा है....

और

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7 टिप्पणियाँ:

कंचन सिंह चौहान on मार्च 19, 2009 ने कहा…

फिल्म रेलीज़ होने के साथ ही बहुत बार सुना है ये गीत...!

इस गीत का पहला अंतरा मुझे विशेषकर छूता है...!

mamta on मार्च 19, 2009 ने कहा…

जब फ़िल्म देखी थी उस समय तो नही पर हाँ बाद मे ये गीत बहुत अच्छा लगा था ।

Udan Tashtari on मार्च 19, 2009 ने कहा…

सुपर्ब चयन!!! रनर्स अप और विनर के बीच ज्यादा अन्तर न होगा..मैं विनर पर भी इस गीत को देख कर न चौंकता!!

बेहतरीन!! आगे फाइनल का इन्तजार है.

Archana Chaoji on मार्च 19, 2009 ने कहा…

उत्सुकता बढा दी है आपने ---
अगर ये है रनर्स अप ,तो वो कौनसा है जो जीतेगा कप !!!!!!!!

दिलीप कवठेकर on मार्च 21, 2009 ने कहा…

बहुत खूब !!!

Abhishek Ojha on मार्च 21, 2009 ने कहा…

आपकी नजर के कायल हम ऐसे ही थोड़े न हैं !

Urvashi on मार्च 24, 2009 ने कहा…

This song took a while to grow on me. Very often it happens when I hear a song, and even though I have heard it earlier, it suddenly starts sounding really nice to me. :)
It is such a soothing, calm, flowy song. And very romantic! :)

 

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