रविवार, जुलाई 05, 2009

सुरमयी शाम, साँस लेते साए और जागती परछाइयाँ : सुनिए हृदयनाथ मंगेशकर और गुलज़ार की इस अद्भुत जुगलबंदी को !


कभी कभी ब्लॉग पर जब हम पोस्ट डालते हैं तो बहुधा कई विचार जिन्हें हम पोस्ट करते करते रुक जाते हैं वो टिप्पणियों के माध्यम से फिर से उभर कर आ जाते हैं। माया मेमसाब के गीत मेरे सराहने जलाओ सपने के बारे में लिख रहा था तो साथ ही इस फिल्म में हृदयनाथ मंगेशकर की गाई एक बेहतरीन बंदिश भी सुनवाने की इच्छा थी और इसके सबसे लोकप्रिय गीत इक हसीं निगाह.. की भी बात करनी थी। पर लगा की भिन्न भिन्न मूडों के इन गीतों को एक पोस्ट में बाँधना सहज नहीं होगा तो उनसे जुड़ा अनुच्छेद हटा दिया और देखिए नीरज जी, यूनुस और अनुराग ने अपनी टिप्पणियों में उन्हीं गीतों की चर्चा भी की।

तो आइए आज बात करते हैं हृदयनाथ मंगेशकर के संगीतबद्ध दो गीतों की, जिनमें से एक को उन्होंने अपनी आवाज़ भी दी है। यूँ तो हृदयनाथ मंगेशकर गैर फिल्मी एलबमों (मीरा बाई के भजन और ग़ालिब की ग़जलों पर) के आलावा कई हिंदी फिल्मों हरिश्चंद्र तारामती, चक्र धनवान, सुबह, मशाल, लाल सलाम जैसी फिल्मों का संगीत दे चुके हैं पर मुझे नब्बे के दशक में आई फिल्म लेकिन और माया मेमसॉब में उनके द्वारा दिया गया संगीत सबसे ज्यादा प्रभावित करता है।

माया मेमसॉब का कैसेट 1993 में स्ट्रलिंग कंपनी (Sterling) ने ज़ारी किया था। इस फिल्म का सबसे प्रचलित गीत था इक हसीन निगाह का दिल पे साया है, जादू है जुनून है कैसी माया है ये माया है...जिसे कुमार शानू और लता जी ने अलग अलग गाया था। कुमार शानू की आवाज़ में इस गीत की कुछ पंक्तियाँ सुन कर ही इस कैसेट को खरीद लिया गया था। पर बाद में जब गीत सुन लिए गए तो ये चर्चा भी खूब चली थी कि देखिए कुमार शानू इक हसीं निगाह को कुछ इक हसिन निगाह जैसा उच्चारित करते हैं। पर इस बात को नज़रअंदाज कर दें तो ये गीत उनकी आवाज़ पर फबा भी खूब था और शायद यही वज़ह थी कि एक अलग हटके बनी इस फिल्म का गीत होते हुए भी सिबाका गीत माला की भिन्न पॉयदानों पर कई हफ्तों तक ये गीत अपनी शोभा बढ़ाता रहा था। ये भी सही है कि गुलज़ार की चिरपरिचित छाप से परिपूर्ण इस कैसेट के बाकी गीत उतने नहीं बजे..

कुछ वैसा ही हाल १९९१ में प्रदर्शित फिल्म लेकिन का रहा जहाँ एक बार फिर गुलज़ार और हृदयनाथ मंगेशकर की जोड़ी थी। यारा सिली सिली और कुछ हद तक केसरिया बालमा तो लोकप्रिय हुए पर बाकी गीत पर लोगों की निगाह कम ही गई। मेरी आज की प्रविष्टि आपको इन फिल्मों के ऍसे ही एक-एक गीत की याद दिलाने की एक कोशिश है।

इन दोनों गीतों की विषयवस्तु में एक साम्यता है ये दोनों परछाइयों की बातें करते हैं। वैसे सायों की दुनिया से गुलज़ार का रिश्ता पुराना है। याद है ना आपको सितारा फिल्म में आशा जी का गाया वो नग्मा

ये साए हैं..
ये दुनिया है , परछाइयों की

भरी भीड़ में खाली तनहाइयों की

ये साए हैं..

जब इंसान अपना अक़्स ही खो दे तो उसमें और उसकी परछाईं में ज्यादा फर्क नहीं रह जाता। पर यहाँ तो कल्पना ही दूसरी है। छाया में उमंग है, उल्लास है, चाहत है एक नई प्यारी सी काया को पाने की, सजने सँवरने की, मायावी दुनिया में कदम रखने की...।

हृदयनाथ जी ने अपनी सधी गायिकी से इस छोटी सी बंदिश में जो जादू उत्पन्न किया है, उसका अनुभव इसे सुनकर ही किया जा सकता है। अपनी स्वरलहरियों के उतार चढ़ाव से मात्र कुछ शब्दों से कितना जबरदस्त प्रभाव पैदा किया जा सकता है ये गीत इस की जीती जागती मिसाल है। वैसे इस गीत में हृदयनाथ मंगेशकर के साथ पार्श्व में जो आवाज़ उभरती है वो लता की नहीं है जैसा कई जगहों पर उल्लेख है, बल्कि आशा जी की है। रोचक तथ्य ये है कि इस गीत को एकल गीत के रूप में ही रचा गया था। हुआ ये कि रिकार्डिंग के समय अपने भाई के साथ आशा जी भी चली आईं और फिर लगा कि अगर पार्श्व से नारी स्वर रहे तो गीत और प्रभावी बन सकता है और इस तरह आशा जी भी अपनी हमिंग के साथ गीत का हिस्सा बन गई़।


तो सुनिए हृदयनाथ मंगेशकर का दिव्य स्वर इस गीत में

छाया जागी...
छाया जागी...
छाया जागी जागी
छाया जागी जागी
छाया जागी जागी
छाया जागी...........छाया जागी
चंचल चंचल कोमल चंचल चंचल
चंचल कोमल कोमल चंचल चंचल
काया माँगी.........काया माँगी
काया माँ...........गी काया माँगी काया माँगी
सज के सोलह सिंगार
चली सपनों के सपनों के पार
सज के सोलह सिंगार
चली सपनों के सपनों के पार
माया लागी ....
माया लागी माया लागी माया लागी माया लागी
माया लागी लागी
माया लागी लागी


सायों से जुड़े दूसरे गीत को गाया है सुरेश वाडकर जी ने। सुरेश वाडकर इस गीत को याद करते हुए कहते हैं
ये गीत पहले मराठी में रिकार्ड हुआ था । बाद में जब हिंदी में इसे इस फिल्म के लिए रिकार्ड किया जाना था तो रिकार्डिंग वाले दिन लता दी भी स्टूडिओ में मौजूद थीं। उन्हें अपने सामने देखकर मुझे ऐसा लग रहा था कि इनके सामने मेरी आवाज़ क्या निकलेगी। फिर भी मेंने वो गीत गाया। गाने के बाद लता जी आयीं और कहा सुरेश बहुत अच्छा गया बस "साँस लेते हैं जिस तरह साए में..." साँस को एक अलग लहज़े में गाओ और फिर उन्होंने वो कर के भी दिखाया।
ये गीत उन गीतों में से है जिसकी गायिकी और संगीत ने मुझमें ऍसी कैफ़ियत भर दी कि इसके शब्दों की गहराइयों में पहुँचने के पहले ही ये मेरे मन में रच बस गया था। और जब इस गीत के लिए लिखे गुलज़ार के खूबसूरत लफ़्जों को जिंदगी की कई शामों में करीब से गुजरने का मौका मिला तो ये गीत दिल के और करीब होता चला गया। दरअसल ये गीत उन गीतों में हैं जहाँ शब्द, संगीत और गायिकी तीनों मिलकर ऍसा पुरज़ोर असर पैदा करते हैं कि आप इस गीत में डूबते चले जाते हैं।

वैसे क्या आपको नहीं लगता कि इन सायों की दुनिया भी कुछ अजीब सी है। ऍसे तो साये हमारे साथ हमेशा रहते हैं पर दिवस के अवसान के साथ इनका विस्तार बढ़ता चला जाता है। फिर क्यूँ ना अपनी असली रंगत तक पहुँचने के लिए ये शाम का इंतज़ार करें।

सुरमई शाम इस तरह आए
साँस लेते हैं जिस तरह साए




पर नायक को तो इस शाम का इंतज़ार किसी दूसरी वज़ह से है। शायद ये शाम भी वही मंज़र दुहरा दे.. जिसमें वो तो नहीं दिखी थी पर उसके साये की खुशबू ज़ेहन में उतर सी गई थी।

कोई आहट नहीं बदन की कोई
फिर भी लगता है तू यहीं हैं कहीं
वक़्त जाता सुनाई देता है
तेरा साया दिखाई देता है
जैसे खुशबू नज़र से छू जाए
साँस लेते हैं जिस तरह साए



आज वो आस पास नहीं पर दिन के घंटे ज्यों ज्यों गुजरते हैं दिल पर के ऊपर का बोझ हल्का होता जाता है। वो शाम और तेरा वो साया खयालों के ज़रिए दिल के पास जो आ जाता है

दिन का जो भी पहर गुजरता है
इक अहसान सा उतरता है
वक़्त के पाँव देखता हूँ मैं
रोज़ ये छाँव देखता हूँ मैं
आए जैसे कोई खयाल आए
साँस लेते हैं जिस तरह साए
सुरमयी शाम इस तरह आए..

तो आइए महसूस करें गुलज़ार के शब्दों को इस गीत के ज़रिए


अगर आपने इस गीत को ध्यान से सुना हो तो इस बात पर गौर किया होगा कि इस गीत के आंरंभ और इंटरल्यूड में पाश्चात्य वाद्य यंत्रों का प्रयोग है और अंतरे में मुख्यतः तबला सुनाई देता है। है ना सुंदर मिश्रण !इस गीत को विनोद खन्ना और डिंपल पर फिल्माया गया है।
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10 टिप्पणियाँ:

समयचक्र on जुलाई 05, 2009 ने कहा…

बहुत ही रोचक आलेख और वीडियो

"अर्श" on जुलाई 05, 2009 ने कहा…

मनीष जी आज के रौनके-बज्म में क्या खूब गीत सुनायी आपने ...सुरेश्वदेकर साहिब की आवाज़ के बारे में क्या कहने इतनी मीठी आवाज़ है के क्या कहने... एक बार की बात याद आती है के खुद स्वर सम्राज्ञी लता दीदी ने कहा के सुरेश आपकी आवाज़ इतनी मीठी और सुरीली है के बे-वजह ही लोग कंठ कोकिला कहते है ... तो अब इस महान गायक के बारे में हम क्या कह सकते है...
बहोत बहोत बधाई

अर्श

अनिल कान्त on जुलाई 05, 2009 ने कहा…

मुझे भी माया मेमसाहब के गाने पसंद हैं ...

लेख में दिए गए विडियो के लिए शुक्रिया

daanish on जुलाई 05, 2009 ने कहा…

geet-sangeet ke baare mein
itni vistrit jaankaari ke liye
bahut bahut shukriyaa
---MUFLIS---

राज भाटिय़ा on जुलाई 05, 2009 ने कहा…

बहुत सुंदर लेकिन आवाज बहुत धीमी है, मुझे सुनने के लिये अलग से स्पीकर लगाने पडे.
धन्यवाद

विनोद कुमार पांडेय on जुलाई 06, 2009 ने कहा…

adarniy manish ji,

aapne meri kavita pasand ki bahut dhanywaad...

abhi lekhani ke khetr me naya hoon so yah mera aatmvishwash bada deta haiu..

aaj pahali baar aapke blog par aaya hon..upar ke aalekh padh kar bahut achcha laga..purane geet aur yaden mujhe bhi bahut achchi lagati hai..

bahut dhanywaad aapko..

Kapeesh Gaur on जुलाई 06, 2009 ने कहा…

sir manish ji main aapke blog ka bahut bada fan hun aur kafi time se follow karta hun lekin aaj pehli baar likh raha hun main bhi apani audio ko blog per post karna cahata hun. kya aap mujhe bata sakte hain ye kaise kar sakta hun.

डॉ .अनुराग on जुलाई 06, 2009 ने कहा…

शुक्रिया मनीष...सुरेश वाडेकर ऐसे गायक है जिनको अपनी प्रतिभा के अनुरूप सम्मान नहीं मिला जिसके वे हक़दार थे....असल गायक..अपनी शैली .....उन्होंने हिंदी सिनेमा को कई अमर गीत दिए ...जिसमे सदमा का "ए जिंदगी गले लगा ले "से गुलज़ार की नॉन फ़िल्मी एल्बम की कई नज़्म भी जिसमे एक लोरी भी है......लेकिन अपने समय से आगे की फिल्म थी..पता नहीं ऐसी फिल्मे अब क्यों नहीं बनती...अब तो बोस्की (गुलज़ार की बेटी )भी बड़ी हो गयी है...काश वो इस परंपरा को आगे बढाए .वैसे उन्किपहली फिल्म के गाने बहुत अच्छे थे .

कंचन सिंह चौहान on जुलाई 06, 2009 ने कहा…

दिन का जो भी पहे गुजरता है,
एक एहसान सा उतरता है..!
पूरा अंतरा बहुत खूबसूरत...! सुना तो था ये गीत मगर यूँ ही, बिना गौर किये.. ! आज सुना ध्यान से..बहुत खूबसूरत...!

रंजीत/ Ranjit on जुलाई 08, 2009 ने कहा…

गुलजार के शब्द, हृदयनाथ मंगेस्कर के सुर और सुरेश वाडकर की आवाज ! इनके बारे में तो मैं सिर्फ इतना कह सकता हूं कि इन्हें सुनने के बाद संगीत से प्यार हो जाता है। जब ये तीनों एक साथ कुछ रचे तो फिर सुनने वालों का अहो भाग्य !

 

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