गुरुवार, नवंबर 19, 2009

फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा कर लो...

जिंदगी के इस सफ़र में ना जाने कितने लोग हमारे संपर्क में आते हैं। पर बीते समय में झाँक कर देखने पर क्या आपको नहीं लगता कि कुछ ऐसे चेहरे रह गए जिनसे अपने रिश्तों को समय रहते हम वो रूप नहीं दे पाए जो देना चाहते थे।

दिल खुशफहमियाँ पालता रहता है कि काश कभी उनसे एक मुलाकात और तो हो जिसमें हम ऍसे मरासिम बना सके जिन्हें परिभाषित करने में हमारे अंतरमन को कोई दिक्कत ना हो। पर अव्वल तो ऍसी मुलाकातें हो नहीं पाती और होती भी हैं तो माहौल ऐसा नहीं बन पाता कि रिश्तों के अधखुले सिरों को फिर से टटोला जा सके।

ये तो हुई वास्तविक जिंदगी की बात पर फिल्मों में ऐसी मुलाकातें अक्सर हो जाया करती हैं क्यूँकि उनके बिना कहानी आगे बढ़ती नहीं। इसीलिए तो गीतों का ये आशावादी दृष्टिकोण हमारे मन को सुकून देता है। साथ ही उन्हें गुनगुनाकर हम अपने आप को पहले से तरो ताज़ा और उमंगों से भरा महसूस करते हैं।

ऍसा ही एक गीत गाया था रफ़ी साहब ने फिल्म ये रात फिर ना आएगी के लिए और क्या कमाल गाया था। १९६५ में आई ये फिल्म अपने गीतों के लिए बेहद चर्चित रही थी। चाहे आशा जी का गाया 'यही वो जगह है... हो या फिर महेंद्र कपूर का गाया मेरा प्यार वो है..... हो, ओ पी नैयर द्वारा संगीत निर्देशित इस फिल्म के सारे गीत लाज़वाब थे। और इस गीत का तो शमसुल हूदा बिहारी ने, मुखड़ा ही बड़ा जबरदस्त लिखा था ...

फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा कर लो
हमसे एक और मुलाकात का वादा कर लो


वैसे बिहारी साहब अपने नाम के अनुरूप सचमुच बिहार के ही थे और पटना के पास स्थित आरा में उनका जन्म हुआ था। संगीतकार ओ पी नैयर के करीबियों का कहना है कि ओ पी नैयर ने बिहारी के मुखड़े को आगे बढ़ाते हुए पहला अंतरा ख़ुद ही रच डाला था। ये अंतरा गुनगुनाना मुझे बेहद पसंद रहा है इसलिए आज इसे यहाँ लगा दे रहा हूँ



वैसे आप मुझे ना झेलना चाहें तो रफ़ी साहब की गायिकी का आनंद यहाँ ले सकते हैं।




फिर मिलोगे कभी इस बात का वादा कर लो
हमसे इक और मुलाकात का वादा कर लो

दिल की हर बात अधूरी है अधूरी है अभी
अपनी इक और मुलाकात ज़रूरी है अभी
चंद लमहों के लिये साथ का वादा कर लो
हमसे इक और मुलाकात का वादा करलो
फिर मिलोगे कभी .....

आप क्यूँ दिल का हसीं राज़ मुझे देते हैं
क्यूँ नया नग़मा नया साज़ मुझे देते हैं
मैं तो हूँ डूबी हुई प्यार की तूफ़ानों में
आप साहिल से ही आवाज़ मुझे देते हैं
कल भी होंगे यहीं जज़्बात ये वादा करलो
हमसे इक और मुलाकात का वादा करलो
फिर मिलोगे कभी .....


इस गीत का दूसरा अंतरा आप इस वीडियो में देख सकते हैं जिसे आशा जी ने गाया है। ये गीत पर्दे पर फिल्माया गया था विश्वजीत और शर्मिला टैगोर जी पर

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16 टिप्पणियाँ:

Science Bloggers Association on नवंबर 19, 2009 ने कहा…

मन को छू गयी आपकी प्रस्तुति।
------------------
11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?

Udan Tashtari on नवंबर 19, 2009 ने कहा…

फिर मिलोगे कभी...


-हमेशा से ही यह गीत दिल को बहुत भाया. आपका आभार इस रोचक प्रस्तुति का.

राज भाटिय़ा on नवंबर 19, 2009 ने कहा…

फिर मिलोगे कभी...... जबाब नही मनीष भाई इस गीत का ओर आप की प्रस्तुति का, दोनो ही एक से बढ कर.
धन्यवाद

Chandan Kumar Jha on नवंबर 19, 2009 ने कहा…

बहुत सुन्दर गीत !!!!!

Peeyush on नवंबर 19, 2009 ने कहा…

Sahab.. ab to hum aap se roz mileinge!!

Abhishek Ojha on नवंबर 20, 2009 ने कहा…

गीत तो गीत. जानकारी के लिए स्पेशल आभार.

aditya vikram on नवंबर 20, 2009 ने कहा…

jo mil kar kabhi nahi milata
ye dil toot kar usi se milata hai

VIMAL VERMA on नवंबर 20, 2009 ने कहा…

अरे मनीष भाई दोनों प्लेयर का RPM बहुत फ़ास्ट होने की वजह से ठीक तरह से सुन नहीं पाया...पर आपने ऐसी तलब देदी कि उसे अपने लाईब्रेरी को खंगाल कर फिर से सुना वाकई बहुत खूबसूरती से गाया है रफ़ी साहब ने....पर ये प्लेयर की समस्या मेरे यहां है कि आपकी तरफ़ से है समझ नहीं आ रहा......क्यौंकि जितनी टिप्पणियाँ हैं सब गाने को सुन कर मस्त हैं ...फिर भी दूसरे कमप्यूटर में मैं दे के देखता हूँ कि अखिर समस्या कहाँ है.....रफ़ी साहब के इस मधुर आवाज़ सुनवाने के लिये बहुत बहुत शुक्रिया......

सुशील छौक्कर on नवंबर 20, 2009 ने कहा…

इस बेहतरीन गाने को अभी नही सुन पाऐगे जी। जब सुनेगे तो दुबारा आऐगे।

Manish Kumar on नवंबर 20, 2009 ने कहा…

विमल भाई यहाँ तो सुनाई दे रहा है। ये जरूर है कि कभी कभी डिवशेयर गीत पूर लोड करने में ज्यादा समय लगाता है। फिर भी आपको ये गीत मधुर लगा जानकर खुशी हुई।

गौतम राजऋषि on नवंबर 20, 2009 ने कहा…

कुछ चेहरे सचमुच ऐसे रह जाते हैं...रह गये हैं मनीष जी!

इस गीत की याद तो खूब दिलायी आपने। शमसुल हुदा जी के बारे में जानकर कि वो आरा के हैं, सुखद आश्चर्य हुआ।

गीत सुन नहीं पारहे हैं।

शरद कोकास on नवंबर 22, 2009 ने कहा…

bahuta achchhaa laga

dr.shrikrishna raut on नवंबर 30, 2009 ने कहा…

मनीषकुमार जी,

आपका शुक्रिया कैसे अदा करे।

आपने तो एक बार फिर दिल को छू लिया।

विविध भारती पर बहोत बार सुना था

-लेकीन एक ही अंतरा-

रफी साहब की आवाज मे।

और दोस्तो से पूछता था -

क्या यह एक ही अंतरे का गाना है?

आज देखा और सुना भी-

शर्मिला जी की दिलकश अदाकारी और

आशा जी के आवाज की वही नशीली खुमारी।

अब और क्या कहूँ-

बहुत शुक्रिया बडी मेहेरबानी।

गीत के लिखावट मे

दो छोटीसी भूले सुधार ने की कृपा करे-

१.‘हमसे एक’ के बदले ‘हमसे इक’

२.‘दिल हर बात’के बदले ‘दिल की हर बात’

सादर

-डा.श्रीकृष्ण राऊत

Manish Kumar on नवंबर 30, 2009 ने कहा…

शुक्रिया राउत जी अपने विचारों को यहाँ साझा करने के लिए। आपकी तरह मुझे भी इस दूसरे अंतरे के बारे में बहुत बाद में पता चला था। गीत के बोलों को सुधार दिया है।

Unknown on दिसंबर 05, 2009 ने कहा…

kya baat hai

Uttam Thakur on मार्च 04, 2017 ने कहा…

Wah bahut khoob

 

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