मंगलवार, दिसंबर 01, 2009

शहतूत की शाख़ पे बैठी मीना बुनती है रेशम के धागे : 'मीना कुमारी' की शायरी के बारे में गुलज़ार की सोच

कुछ लोग ग़म की दुनिया में जीने के लिए बने होते हैं। मीना कुमारी की शख़्सियत भी कुछ ऍसी ही थी। पर्दे की ट्रेजडी क्वीन ने कब अपनी ज़िदगी में ग़मों से खेलना शुरु कर दिया शायद उन्हें भी पता नहीं चला। महज़बीं के नाम से जन्मी और गरीबी में पली बढ़ी इस अदाकारा ने अपने अभिनय का सिक्का पचास और साठ के दशक में इस तरह चलाया कि किसी भी फिल्म से उनका जुड़ाव ही उसके हिट हो जाने का सबब बन जाता था।


अपने कैरियर की ऊँचाई को छू रही मीना जी के कमाल अमरोही साहब से प्रेम, फिर विवाह और कुछ सालों बाद तलाक की कथा तो हम सभी जानते ही हैं। मीना जी का ठोस व्यक्तित्व, उनकी आज़ादख्याली, अपनी ज़िंदगी के निर्णय खुद लेने की क्षमता और अभिनय के प्रति लगन उन्हें जिस मुक़ाम पर ले गई थी वो शायद कमाल साहब से उनके खट्टे होते रिश्तों की वज़ह भी बनी। रिश्तों को न सँभाल पाने के दर्द और अकेलेपन से निज़ात पाने के लिए मीना कुमारी जी ने अपने आप को शराब में डुबो दिया।

यूँ तो मीना कुमारी अपने दिल में उमड़ते जज़्बों को डॉयरी के पन्नों में हमेशा व्यक्त किया करती थीं पर उनका अकेलापन, उनकी पीड़ा और हमसफ़र की बेवफाई उनकी ग़ज़लों और नज़्मों में रह रह कर उभरी। मिसाल के तौर पर उनकी इस नज़्म को लें।मीना जी के काव्य से मेरा पहला परिचय उनकी इस दिल को छू लेने वाली नज़्म से हुआ था

टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौग़ात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, लो फिर तुमको अब मात मिली
बातें कैसी ? घातें क्या ? चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया,बेचैनी भी साथ मिली

३९ वर्ष की आयु में इस दुनिया से रुखसत होते हुए वो अपनी २५ निजी डॉयरियों के पन्ने गुलज़ार साहब को वसीयत कर गईं। गुलज़ार ने उनकी ग़ज़लों और नज़्मों की किताब हिंद पॉकेट बुक्स द्वारा प्रकाशित कराई है। कल जब राँची के पुस्तक मेले से गुजरा तो उसमें मीना कुमारी की शायरी के आलावा कुछ और भी पढ़ने को मिला और वो भी गुलज़ार की लेखनी से।

गुलज़ार इस किताब में उनके बारे में लिखते हैं ..मीना जी चली गईं। कहती थीं
राह देखा करेगा सदियों तक,
छोड़ जाएँगे यह ज़हाँ तनहा
और जाते हुए सचमुच सारे जहान को तनहा कर गईं; एक दौर का दौर अपने साथ लेकर चली गईं। लगता है, दुआ में थीं। दुआ खत्म हुई, आमीन कहा, उठीं, और चली गईं। जब तक ज़िन्दा थीं, सरापा दिल की तरह ज़िन्दा रहीं। दर्द चुनती रहीं, बटोरती रहीं और दिल में समोती रहीं। समन्दर की तरह गहरा था दिल। वह छलक गया, मर गया और बन्द हो गया, लगता यही कि दर्द लावारिस हो गए, यतीम हो गए, उन्हें अपनानेवाला कोई नहीं रहा। मैंने एक बार उनका पोर्ट्रेट नज़्म करके दिया था उन्हें। लिखा था...
शहतूत की शाख़ पे बैठी मीना
बुनती है रेशम के धागे
लमहा-लमहा खोल रही है
पत्ता-पत्ता बीन रही है
एक-एक साँस बजाकर सुनती है सौदायन
एक-एक साँस को खोल के, अपने तन
पर लिपटाती जाती है
अपने ही तागों की क़ैदी
रेशम की यह शायर इक दिन
अपने ही तागों में घुटकर मर जाएगी।

पढ़कर हँस पड़ीं। कहने लगीं–‘जानते हो न, वे तागे क्या हैं ? उन्हें प्यार कहते हैं। मुझे तो प्यार से प्यार है। प्यार के एहसास से प्यार है, प्यार के नाम से प्यार है। इतना प्यार कोई अपने तन से लिपटाकर मर सके, तो और क्या चाहिए ?’
उन्हीं का एक पन्ना है मेरे सामने खुला हुआ। लिखा है....
प्यार सोचा था, प्यार ढूँढ़ा था
ठंडी-ठंडी-सी हसरतें ढूँढ़ी
सोंधी-सोंधी-सी, रूह की मिट्टी
तपते, नोकीले, नंगे रस्तों पर
नंगे पैरों ने दौड़कर, थमकर,
धूप में सेंकीं छाँव की चोटें
छाँव में देखे धूप के छाले

अपने अन्दर महक रहा था प्यार–
ख़ुद से बाहर तलाश करते थे

अपनी और मीना कुमारी जी की चंद पंक्तियों के द्वारा गुलज़ार साहब ने उनके जटिल व्यक्तित्व को कितनी आसानी से पाठकों के लिए पारदर्शी बना दिया है। अगर गुलज़ार ने मीना जी के कवि मन को टटोलने की कोशिश की है तो संगीतकार खय्याम को मीना जी के दिल की व्यथा को उनकी आवाज़ के माध्यम से निकालने का श्रेय जाता है।

खय्याम द्वारा संगीतबद्ध एलबम I write I recite EMI/HMV में मीना जी ने अपनी दिल की मनोभावनाओं को बड़ी बारीकी से अपने स्वर में ढाला है। इस एलबम से ली गई उनकी ये ग़ज़ल मुझे बेहद पसंद है। आशा है आपको भी पसंद आएगी।

आगाज़ तो होता है अंजाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता

जब जुल्फ की कालिख में घुल जाए कोई राही
बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं होता

हँस हँस के जवाँ दिल के हम क्यूँ न चुने टुकड़े
हर शख़्स की किस्मत में ईनाम नहीं होता

बहते हुऐ आँसू ने आँखों से कहा थम कर
जो मय से पिघल जाए वो जाम नहीं होता

दिन डूबे हैं या डूबी बारात लिए कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता

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19 टिप्पणियाँ:

Amrendra Nath Tripathi on दिसंबर 01, 2009 ने कहा…

मीना कुमारी पर आपकी प्रस्तुति अच्छी
लगी ... गुलजार फिर खैयाम साहब ... वाकही सुन्दर लगा ...
अदाकारा की शाइरी की गिरहें खुलीं ... और लगा 'वाह' ...
.........................शुक्रिया दोस्त ! .................................

वाणी गीत on दिसंबर 01, 2009 ने कहा…

मीना कुमारी और गुलजार जी का एक साथ जिक्र ...मतलब सोने पर सुहागा ....
अपने अन्दर महक रहा था प्यार ...खुद से बाहर तलाशा करते थे ...मन जुदा गयी ये पंक्तिया ...!!

Kapil Sharma on दिसंबर 01, 2009 ने कहा…

"meena kumari" ye naam, ye kirdaar bachpan se achambit karta raha hai...par kabhi itne karib se janne ka mauka nahi mila....unke anchuhe pehlu se rubaru karane ke liye bahut bahut shukriyaa!!!!!!

सागर on दिसंबर 01, 2009 ने कहा…

Kufr ki baaten...

Poonam Misra on दिसंबर 01, 2009 ने कहा…

अपने ही तागों की कैदी ..........प्यार से प्यार करने वाली इस अदाकारा को गुलज़ार की कलम ही हमसे रूबरू करा सकती थी

Himanshu Pandey on दिसंबर 01, 2009 ने कहा…

मीना कुमारी जी की शायरी लिख कर कागज का एक फटा टुकड़ा मुझे मिला था बहुत पहले । बाद में बहुत-सी रचनायें पढ़ीं । एक नया आयाम खुला मीना जी का । अदाकारी से भी वही गज़लें छलकतीं दिखीं ।

खैयाम के संगीत में ढली गजल का आभार ।

Udan Tashtari on दिसंबर 01, 2009 ने कहा…

एक लाजबाब प्रस्तुति मीना कुमारी जी की शायरी और गुलजार साहब की नजर...बहुत उम्दा!!

राज भाटिय़ा on दिसंबर 01, 2009 ने कहा…

बहुत सुंदर लिखा आप ने मीना कुमारी के बारे.
धन्यवाद

रज़िया "राज़" on दिसंबर 01, 2009 ने कहा…

वाह!!!!क्या गज़ल है। आपका बहोत बहोत शुक्रिया।

रज़िया "राज़" on दिसंबर 01, 2009 ने कहा…

वाह!!!!क्या गज़ल है। आपका बहोत बहोत शुक्रिया।

Yunus Khan on दिसंबर 02, 2009 ने कहा…

अहा। ये पूरा एलबम अपना पसंदीदा है । बढिया ।

कंचन सिंह चौहान on दिसंबर 02, 2009 ने कहा…

जब जब चाहा दिल को समझें हँसने की आवाज़ सुनी,
जैसे कोई कहता हो लो फिर से तुमको मात मिली


मीना कुमारी के शायराना पहलू से मेरा भी परिचय इन्ही पंक्तियों से हुआ और मेरी प्रिय पंक्तियों में शामिल है ये....! किसी को समझना वाक़ई बहुत कठिन है....! इसलिये अक्सर इसे मन ही मन दोहराने का मौका भी मिल जाता है....!

हिंद पॉकेट बुक के स्टाल से दो किताबे इस बार के पुस्तक मेला से मैने भी खरीदी थीं। जिनमे से एक यही थी। पैकिंग का आर्डर दे कर दूसरे स्टाल पर चली गई। घर में जा कर जब चेक किया तो पाया कि ये किताब ना पैक की गई है और ना ही पेमेंट लिया गया है। :(

मीना कुमारी की आवाज़ में इस गज़ल को सुनवाने का शुक्रिया

रंजना on दिसंबर 03, 2009 ने कहा…

बहुत बहुत बहुत आभार आपका इस नायाब सफ़र से हमें गुजरने के लिए.....कॉलेज के दिनों से ही जबकि मैं नहीं जानती थी की मीना जी इतनी जबरदस्त लिखती भी थीं ,कहीं कहीं उधृत उनकी रचनाओं को जो देखा तो उसे अपने पास सहेज लिया था....हालाँकि बहुत अधिक पढने का मौका नहीं मिला है आज तक ,पर आपके बताये इस पुस्तक को अवश्य ही खरीदूंगी...

याज्ञवल्‍क्‍य वशिष्‍ठ ने कहा…

दिल से शुक्रिया, लंबे अरसे से सोचता रहा था कि, एक दिन इन बेवजह की व्‍यस्‍तताओं से समय निकाल कर कुछ पढूंगा, आपने काम आसान कर दिया।

बेनामी ने कहा…

Nice Post!! Nice Blog!!! Keep Blogging....
Plz follow my blog!!!
www.onlinekhaskhas.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

MEENA KUMARI'S PAAKIZAA IS ONE OF BEAUTIFUL COMPOSITION AND ALSO A MEMORABLE MASTER PIECE..IT DEPIC WHAT IS EMOTIONS OF A THABAAYABZ.UNFORGETABLE MOVIE.

***Punam*** on फ़रवरी 04, 2012 ने कहा…

मेरी सबसे ज्यादा पसंदीदा अदाकारा हैं मीनाजी...
उनके बारे में कहने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं...

"हंस हंस के जवान दिल के हम क्यूँ न चुने टुकड़े
हर शख्स की किस्मत में इनाम नहीं होता"

दर्शन कौर धनोय on अप्रैल 07, 2012 ने कहा…

mina tujh salam ........

Ankit on अप्रैल 09, 2012 ने कहा…

गुलज़ार साब के दूरदर्शन के कार्यक्रम 'आज सवेरे' में दिए गए साक्षात्कार में जब उनसे मीना कुमारी जी और उनकी शायरी के बारे में पुछा गया तो उनका जवाब था कि "मीना कुमारी जी लम्हों को क़ैद किया करती थी, वो शायरी ज़रूर करती थी मगर किसी बहर और मीटर में बंधकर नहीं. बाद में शायद उन्होंने अपनी कुछ शायरी को कमाल अमरोही और उनके भाई रईस अमरोही जी के साथ मीटर में भी किया, मगर वो उनकी नुमाइंदा शायरी नहीं है."

आप की पोस्ट सुनहरे लम्हों को फिर ताज़ा कर गई

 

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