मंगलवार, अप्रैल 19, 2011

पंचम और उनकी 'मादल' तरंग जिससे बना एक कर्णप्रिय नग्मा : तेरे बिना जिया जाए ना...

पंचम दा एक ऐसे संगीतकार थे जो संगीत संयोजन में नित नए प्रयोग किया करते थे। वैसे तो पंचम, किशोर और गुलज़ार की तिकड़ी के जाने कितने ही गीत सत्तर के दशक के मेरे सर्वप्रिय गीतों में रहे हैं पर उनके कुछ गीत ऐसे हैं जो उनमें प्रयुक्त धुनों और तालों की वज़ह से यादों से कभी दूर नहीं होते। आज 1978 में बनी फिल्म 'घर' का ऐसा ही गीत याद आ रहा है जिसका मुखड़ा और साथ में बजते 'मादल' की अनूठी ताल और उसके साथ स्पैनिश गिटार का अद्भुत संयोजन गीत को एक अलग ही पहचान देता था। ये गीत था स्वर कोकिला लता मंगेशकर का गाया नग्मा तेरे बिना जिया जाए ना...। तो इससे पहले कि मैं आप को ये बताऊँ कि पंचम दा ने इस गीत में नया क्या किया था, ये जान लेना जरूरी होगा कि आखिर मादल वाद्य यंत्र है क्या?

मादल भारत के अन्य पारंपरिक ताल वाद्यों की तरह ही दिखता है पर है ये नेपाल की भूमि में पनपा वाद्य यंत्र, जिसका वहाँ के पहाड़ी लोग लोक गीतों में प्रयोग करते थे। भारत के उत्तर पूर्वी इलाकों और उत्तर बंगाल में भी इसका प्रयोग होता रहा। ढोलक और पखावज की तरह ही मादल को दोनों तरफ से बजाया जाता है पर इनकी तुलना में मादल छोटा और हल्का होता है। इसके बड़े वाले छोर से नीचे के सुर निकलते हैं जबकि छोटे वाले छोर से ऊपर के।

पंचम को इस नेपाली वाद्य यंत्र से परिचित कराने का श्रेय नेपाल के मादल वादक रंजीत गाजमेर को जाता है जिन्हें पंचम 'कांचाभाई' भी कहते थे। पंचम दा को इस वाद्य यंत्र से कितना लगाव था ये इसी बात से स्पष्ट है कि उन्होंने कांचाभाई को अपनी आर्केस्ट्रा का स्थायी सदस्य बना दिया था।

विविध भारती पर पंचम की संगीत यात्रा वाले कार्यक्रम में आशा व गुलज़ार जी से इस गीत में किए गए अपने प्रयोग के बारे में बात करते हुए पंचम ने कहा था..

ये बड़ी मजेदार चीज़ है। जिस सुर में गाने की पंक्ति खत्म होती हो, उसी सुर में... उसी सुर का तबला बजे। जैसे हमारे यहाँ तबला तरंग है तो हम लोगों ने कोशिश की कि उसे मादल तरंग में बजाया जाए...
यानि जिस तरह तबला तरंग में एक साथ कई तबलों को अलग अलग सुरों में लगा कर एक साथ बजाया जाता है वैसा ही यहाँ मादल के साथ किया गया। मादल तरंग को देखना चाहते हों तो यहाँ देख सकते हैं।



पंचम ने इस गीत के आरंभिक तीस सेकेंड में जो गिटार की धुन पेश की है उसे जब भी मैं सुनता हूँ इसे बार बार सुनने का दिल करता है और फिर गीत के पचासवें सेकेंड के बाद से पंचम की मादल पर की गई कलाकारी (जिसका ऊपर जिक्र किया गया) सुनने को मिलती है और मन पंचम को उनकी बेमिसाल प्रतिभा के लिए दाद दिये बिना नहीं मानता। गीत सुनने के बाद भी गीत का मुखड़ा और पंचम की धुन घंटों दिलो दिमाग पर अपना असर बनाए रखती है। ऊपर की रिकार्डिंग में आपने लता के साथ किशोर को भी एक अलग तरीके से गाते सुना। आइए अब सुनते हैं लता जी द्वारा गाया ये नग्मा।



तेरे बिना जिया जाए ना
बिन तेरे तेरे बिन साजना
साँस में साँस आए ना
तेरे बिना ...

जब भी ख़यालों में तू आए
मेरे बदन से खुशबू आए
महके बदन में रहा न जाए
रहा जाए ना, तेरे बिना ...

रेशमी रातें रोज़

न होंगी
ये सौगातें रोज़ न होंगी
ज़िंदगी तुझ बिन रास न आए
रास आए ना, तेरे बिना ...


चलते चलते पंचम और उनके मादल प्रेम से जुड़ा एक और किस्सा बताता चलूँ। 1974 में एक फिल्म आई थी 'अजनबी'। पंचम को उसके गीत रिकार्ड करने थे। पर हुआ यूँ कि ठीक उसी वक़्त फिल्म जगत में साज़कारों की हड़ताल हो गई। इंटरल्यूड्स में संगीत संयोजन में आर्केस्ट्रा का होना तब एक आम बात थी। अब गाना तो रिकार्ड होना था तो किया क्या जाए। पर पंचम तो आखिर पंचम थे। उन्होंने एक रास्ता ढूँढ निकाला। पंचम ने गीत के अंतरे में बजते मादल के रिदम यानि ताल को इंटरल्यूड्स में भी बरकरार रखा और साथ में जोड़ दी ट्रेन की आवाज़ और गाना हो गया सुपर हिट। आप समझ रहे हैं ना किस गीत की बात हो रही है? जी हाँ ये गीत था लता व किशोर की युगल आवाज़ में गाया नग्मा हम दोनों दो प्रेमी दुनिया छोड़ चले...

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16 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा on अप्रैल 19, 2011 ने कहा…

बहुत सुंदर जानकारी दी तबले की, ओर पंचम दा के बारे पढ कर ओर गीत सुन कर बहुत अच्छा लगा, धन्यवाद

डॉ. अजीत कुमार on अप्रैल 20, 2011 ने कहा…

बहुत ही उम्दा गीत और साथ में जानकारी भी.. धन्यवाद.

बेनामी ने कहा…

इस दौर के बहुत कम गीत पसन्द आए...."तेरे बिन जिया न जाए" गीत बेहद पसन्द है..... शुक्रिया

Munish Sharma on अप्रैल 20, 2011 ने कहा…

i feel enlightened , thx for re-sharing this gem.

Madhavi Pandey on अप्रैल 20, 2011 ने कहा…

Is geet ke sath hi is film ke sabhi geet bahut sundar ban pade hai.

Sandeep Lele on अप्रैल 20, 2011 ने कहा…

That's a lovely article again! Being a "Kishore, RD, Gulzar" trio fan myself, I really enjoyed reading this post! Many thanks, Manish-ji!!

Manish Kumar on अप्रैल 20, 2011 ने कहा…

Munish Sharma,Sandeep Lele : Nice to know that both of u liked the article.

Manish Kumar on अप्रैल 20, 2011 ने कहा…

माधवी : सही कहा आपने, व्यक्तिगत तौर पर मुझे इस फिल्म का गीत "फिर वही रात है..." सबसे प्रिय है । साथ ही 'आपकी आँखों में कुछ महके हुए से ख़्वाब हैं' में भी गुलज़ार के शब्द व लता किशोर की युगल गायिकी मन को मोहती है।

Manish Kumar on अप्रैल 20, 2011 ने कहा…

राज जी, अजीत आपको गीत व ये पोस्ट पसंद आई जान कर खुशी हुई.

गुमनाम सत्तर के दशक के गीत आपको कम पसंद हैं इसका अर्थ ये हुआ कि आपको पंचम व किशोर दा शायद उतने अच्छे नहीं लगते क्योंकि ये इन दोनों कलाकारों का उद्भव काल था। मुझे तो साठ व सत्तर दोनों दशकों के गीत पसंद आते हैं।

D. Sahu ने कहा…

It's quite excellent, informative & interesting .

D.Sahu

Abhishek Ojha on अप्रैल 23, 2011 ने कहा…

झारखण्ड का मांदर इससे अलग है?

Manish Kumar on अप्रैल 23, 2011 ने कहा…

अभिषेक मांदर और मादल दोनों ताल वाद्य हैं। पर दोनों से निकलने वाली ध्वनियों में कोई साम्य नहीं है। यहाँ की जनजाति जिस मांदर का प्रयोग करती है वो सामन्यतः मिट्टी के बने होते हैं और मादल से कहीं लंबे होते हैं।। नतीजन इससे निकलने वाली आवाज़ गूँजदार होती है। मांदर को tune करने के लिए लकड़ी के गुटके भी नहीं लगाए जाते जैसा तबले या मादल के साथ होता है।

वहीं मादल जिसके बारे में यहाँ चर्चा हो रही है मूलतः हल्की व मधुर टोन्स निकालने के लिए फिल्मी गीतों में प्रयोग किया जाता रहा है। बाकी जैसा मैंने बताया नेपाल के पहाड़ी लोक गीतों में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है।

Sneha Shrivastava on अप्रैल 29, 2011 ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Sneha Shrivastava on अप्रैल 29, 2011 ने कहा…

Apkey blog mein hamesha kuch na kuch sangit sey juda naya jaaney ko milta hai.
or y song key lyrics to behot hee badiya hain.:)

रंजना on अप्रैल 29, 2011 ने कहा…

दिल की तंतुओं में तो वर्षों से यह गीत संगीत गुन्थाया हुआ था,पर मांदर,मादल ....आज जाना क्या होता है...

ये जो आनंद रस में सराबोर होने का मौका आपने दिया....बहुत बहुत बहुत आभार...

Dimple on मई 19, 2011 ने कहा…

Bahut dinon baad mene apka post padha hai and as usual ek aur sundar post !!

 

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