रविवार, जनवरी 08, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 21 : यूँ रुह की ऊँगलियों से, खींची है तूने लकीरें..आफ़रीन

दोस्तों वार्षिक संगीतमाला की चार पॉयदानों को पार करते हम आ पहुँचे हैं, गीतमाला की 21 वीं सीढ़ी पर जहाँ का गीत है फिल्म अज़ान  से। इस गीत की धुन बनाई है संगीतकार सलीम सुलेमान ने और इसे लिखने वाले हैं अमिताभ भट्टाचार्य

अमिताभ भट्टाचार्या एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं के लिए नया नाम नहीं हैं।  वर्ष 2008 में जहाँ आमिर के लिए उनका लिखा नग्मा सरताज गीत की बुलंदियों को छू गया था वहीं पिछले साल उड़ान में लिखे उनके गीतों ने खासा प्रभावित किया था। पर गंभीर और अर्थपूर्ण लेखन से अपनी पहचान बनाने वाले अमिताभ ने इस साल हर तरह यानि हर 'जेनर' (genre) के गीत लिखे। पर थैंक्यू ,हाउसफुल, रिकी बहल.., लव का दि एण्ड जैसी तमाम फिल्मों में उन्होंने एक तरह से अपने प्रशंसकों को निराश ही किया। लोकप्रियता के मापदंडों से देखें तो इस साल उनकी सबसे बड़ी सफ़लता देलही बेली थी जिसके गीत डी के बोस के बारे में मैं अपनी राय यहाँ ज़ाहिर कर चुका हूँ। इसके आलावा फिल्मों  'रेडी' के लिए लिखा उनका आइटम सांग भी खूब बजा।

बंगाली होते हुए भी  हिंदी और उर्दू पर समान पकड़ रखने वाला ये गीतकार लखनऊ से ताल्लुक रखता है। फिल्म अज़ान में इस गीत के बोलों पर ध्यान देने से उनकी ये सलाहियत साफ नज़र आती है। इस गीत का मुखड़ा है आफ़रीन हो आफ़रीन..। अज़ान तो आप जानते ही हैं कि नमाज़ की पुकार को कहते हैं पर इससे पहले कि इस गीत के बारे में बात की जाए ये प्रश्न आपके दिल को मथ रहा होगा कि ये आफ़रीन क्या बला है? दिलचस्प बात  है कि ये शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की और उर्दू में भिन्न भिन्न अर्थों से जाना जाता है। अरबी में इसका मतलब खूबसूरत, उर्दू में बेहतरीन और फ़ारसी में भाग्यशाली होता है। वैसी गीत को पर्दे पर देखने ने सहज अंदाजा लग जाता है कि यहाँ आफ़रीन नायिका की खूबसूरती को इंगित करने के लिए प्रयुक्त हुआ है।
सच पूछिए तो अज़ान के लिए अमिताभ के लिखे इस नग्मे की हर पंक्ति से प्रेम की किरणें फूटती नज़र आती हैं। गीत का प्यारा मुखड़ा गीत के मूड को बना देता है और उसके बाद सुनने वाला गीत में व्यक्त भावनाओं के साथ बहता चला जाता है

संगीतकार सलीम सुलेमान  इस फिल्म के बारे में कहते हैं कि
हमने इसके संगीत को पवित्र रखने की कोशिश की है जिससे की इसका हर गीत एक प्रार्थना के समक्ष लगे। आप देखेंगे कि फिल्म के प्रेम गीतों में भी एक भक्ति का भाव उभर कर आता है। इसके लिए हमने गीतों की गति मंद रखी ताकि उनके अंदर के भाव श्रोताओ तक पहुँचे।

मेरे ख्याल से सलीम सुलेमान का कथन आफ़रीन के संदर्भ में शत प्रतिशत सही बैठता है खासकर जब आप इसे राहत जैसे बेमिसाल गायक की आवाज़ में सुनें। गीत के इंटरल्यूड्स में गिटार और पियानो का प्रयोग मन को सुकून देता है। तो देर किस बात की आइए लगाते हैं प्रेम की वैतरणी में डुबकी फिल्म अज़ान के इस गीत के साथ..



यूँ रुह की ऊँगलियों से
खींची है तूने लकीरें
तसवीर है रेत की वो
या ज़िंदगी है मेरी रे

जख़्मों को तूने भरा है
तू मरहमों की तरह है
आफ़रीन हो आफ़रीन...आफ़रीन हो आफ़रीन

तेरे पहलू को छू के
महकी है खुशबू में
आब ओ हवा आफ़रीन हो हो
दुनिया बदल जाए
तू जो मुझे मिल जाए
इक मर्तबा आफ़रीन आफ़रीन आफ़रीन....

ये मरहबा रूप तेरा
दिल की मिटी तिश्नगी रे
सारे अँधेरे फ़ना हों
ऐसी तेरी रोशनी रे
जख़्मों को तूने भरा है
तू मरहमों की तरह है
आफ़रीन आफ़रीन...

वैसे इस गीत के दो वर्जन हैं। फिल्म में सलीम का गाया वर्सन प्रयुक्त हुआ है।

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4 टिप्पणियाँ:

AlokTheLight on जनवरी 08, 2012 ने कहा…

Aafreen.. Aafreen.. Aafreen.. :D

रंजना on जनवरी 08, 2012 ने कहा…

निश्चिन्त रहती हूँ मैं कि आपके रहते कोई अच्छा गीत संगीत छूटेगा नहीं सुनने से..
अब देखिये, यह एकदम ही मिस हो गया था...पर आपने सुना दिया...

आपका यह सफ़र चलता रहे,बस हमें और क्या चाहिए...

रंजना on जनवरी 08, 2012 ने कहा…

व्यस्तताओं के कारण अंतरजाल पर जाना नगण्य हो गया है, इसीमे बहुत कुछ छूट गया है...समय मिलते ही देखती/सुनती हूँ...

Manish Kumar on जनवरी 11, 2012 ने कहा…

Alok :)

रंजना जी सुना है इधर खूब सैर सपाटा हुआ है। मैं भी जब घर घूमने निकलता हूँ तो भूल जाता हूँ कि इंटरनेट भी कोई चीज है। :)

 

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