सोमवार, दिसंबर 31, 2012

साल 2012 के दस सबसे ज्यादा झुमाने वाले गीत Top 10 dancing nos. 2012 !

'एक शाम मेरे नाम' की वार्षिक संगीतमाला 2012 अगले जनवरी के पहले हफ्ते से शुरु हो जाएगी। पर गुजरे साल को एक मुस्कान के साथ विदा करने के लिए साल के अंतिम दिन एक नज़र उन गीतों पर जिन पर हमारा देश साल भर थिरकता रहा।

 #10. राधा....

विशाल शेखर युवाओं की नज़्ब को पकड़ने वाले संगीतकर रहे हैं खासकर हिप हॉप वाले संगीत में। वैसे इस साल उन्होंने संगीतप्रेमियों को प्रेम के एक अद्भुत रूप से परिचय करवाया। जी हाँ मै उनके इश्क़ वाले love की बात कर रहा हूँ। धन्य हैं अन्विता दत्त की लेखनी अगर यही हाल रहा तो हमें उर्दू से अंग्रेजी की डिक्शनरी खरीदने के बजाय उनके लिखे गीतों की किताब भर खरीद के रखनी होगी। इसी फिल्म यानि Student of the Year में विशाल शेखर हमें 'आज की राधा' से मिलवा रहे हैं। गीत के बोल सुनने के बाद तो यही लगता है कि अगर भगवान कृष्ण इस युग में पैदा हुए होते तो राधा के नाज़ नखरों को उठाते उठाते वो सीधे ब्रह्मा की शरण में चले गए होते।



 #09. आंटी जी..आंटी जी Get up and dance

ऍसा नहीं कि सारे नचनिया इसी युग की पैदाइश हैं। नाचने वाले हर ज़माने में थे पर वो हर महफिल में चिन्हित हुआ करते थे। ज्यादा संख्या उन लोगों की हुआ करती थी जो पीछे से बैठकर ताली बजाया करते थे। पर आज के समय में आपको ये सुख नसीब नहीं होगा। आज चाहे आप कितने भी जतन से किसी पार्टी की पिछली कुर्सी पर पैरों में फेविकोल लगाए दुबके हों नचनिया पार्टी आपकी भद्द पिटाने में पीछे नहीं रहेगी और अब तो बकायदा अमित त्रिवेदी का संगीतबद्ध  ये गाना ही उनकी कमान में आ गया है। इसकी मार से अब कहाँ बच पाइएगा।  तो आज के युग के अंकल आँटियों थोड़ा हाथ पैर हिलाना सीख लीजिए..



#08. माशाअल्लाह !

लटके झटके हों और सल्लू भाई पीछे रहें ये कैसे हो सकता है? पिछले साल की मुन्नी को बदनाम करने वाले सलमान इस बार शीला के चक्कर में ऐसे फँसे कि उनके साथ एक फिल्म ही कर डाली। अब शीला के रूप में उनकी प्रेमिका ही पर्दे पर हों तो उनकी on screen chemistry तो माशाअल्लाह होनी ही थी।

chinta da chita

 #07.  चिंता ता चिता चिता..

इस गीत पर थिरकने की महारत हासिल करनी हो तो पैरों से नहीं हाथों से काम लेना होगा। नहीं समझे तो गीत का आरंभ देखिए। वैसे हम तो यही कहेंगे कि इन झटकों मटकों से भगवान बचाए..


 #6. किकली कलेर दी

लव शव ते चिकेन खुराना के इस गीत को शायद आपने पहले ना सुना हो। अगर हल्के फुल्के मूड में हों तो एक बार जरूर सुनिए।  प्रयोगधर्मिता अमित त्रिवेदी के संगीत की पहचान है और इस गीत का संगीत संयोजन भी उसकी एक मिसाल है। पर आप पूछेंगे कि संगीत तो ठीक है पर ये किकली कलेर दी क्या बला है ? वाज़िब सवाल है आपका। दरअसल ये पंजाब में बच्चियों द्वारा खेला जाने वाला खेल है जिसमें लड़कियाँ एक दूसरे का हाथ पकड़ गोल गोल घूमती हैं। बाकी इस खेल में गाई जाने वाली आगे की पंक्तियों को बदलकर हीर की मुश्किलें बयानात की गयी हैं कि कैसे उसका रांझा उसे चीट कर रहा है :)

किकली कलेर दी, हट गयी हीर दी
रांझा करे चीट जी, करे ना परवाह





#5.पापा तो बैंड बजाए

भाई बच्चों के लिए अक़्सर पापा ही बैंड बजाने का काम करते हैं इसलिए Houseful-2 ये गीत तो युवाओं की जुबाँ पे चढ़ना ही था। आख़िर ये सब हम सभी ने कभी ना कभी तो अपने जीवन में सुना ही हुआ है ना..

Idiot  हो तुम गधे हो अभी तुम्हें knowledge नहीं है
हमसे पंगा लेने वाली अभी तुम्हारी age नहीं है

वैसे एक बात और इस गीत में अभिनेताओं के कपड़ों का रंग संयोजन कमाल का है।





#4.तुम्हीं हो बंधु सखा तुम्हीं हो..

स्कूल के दिनों में सबसे ज्यादा जो प्रार्थना दोहरायी है वो थी त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव। अब क्या जानते थे कि इतने दशकों बाद इस प्रार्थना की दूसरी पंक्ति को एक डान्स नम्बर की तरह गुनगुनाएँगे। वैसे वेक अप सिड के इकतारा के बाद नीरज श्रीधर के साथ कविता सेठ की गायिकी इस रूप में भी सामने आएगी ये किसने सोचा था ?



#3.चिकनी चमेली..

Item Songs से अब तक श्रेया घोषाल दूर दूर ही रहती थीं। ये उनकी मीठी आवाज़ के दायरे में नहीं आते थे। पर इस साल उन्होंने दिखा दिया कि ऐसे गीतों में जिस शोखी और चंचलता की जरूरत होती है वो उनमें है। अग्निपथ के इस गीत में कैटरीना के ठुमके तो आपने अपने टीवी सेटों पर बारहा देखे होंगे पर अगर ये नृत्य हमारे ये नन्हे मुन्हे Chipmunk करें तो कैसा रहे..




 #2. प्यार की पुंगी..

लो आ गए एक बार फिर प्यार की पुंगी बजाने मीका सिंह ! क्या कहा पुंगी बजाना नहीं मालूम!अरे भई पुंगी मतलब सपेरे वाली बीन से है। अब सीधे सीधे कहते कि प्यार की बीन बजा दो तो क्या आप ध्यान देते।



#1. Dreamum Wakeupum..

Dreamum wakeupum critical conditionam
Earthum quakepum hil dool sab shake upam



दस गीतों की इस फेरहिस्त में सबसे आगे रखा है मेंने अइया फिल्म के इस गीत को। अमित त्रिवेदी का संगीत सुनकर सच में हिल डुल सब शेकअपम हो जाता है। गीत का वीडिओ तो मुझे नहीं रुचता पर दक्षिण की दूसरे दर्जे की फिल्मों पर किया गया ये व्यंग्य कई जगहों पर मुस्कुराने पर मजबूर करता है। 

वैसे गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य  का जवाब नहीं ! शायद ये मुंबई की मायावी दुनिया में आज के गीतकार की बाजार में बने रहने की मजबूरी ही है कि इक लौ ज़िंदगी की बुझी कैसे मौला जैसे संवेदनशील गीतों को भी बड़ी सलाहियत से लिखने वाले अमिताभ आज धड़ल्ले से डान्स नम्बर, आइटम नम्बर और यहाँ तक कि द्विअर्थी गीतों पर भी अपनी कलम चला रहे हैं। इस साल अमिताभ के गीतों की गूँज आपको वार्षिक संगीतमाला में भी सुनाई देगी। वैसे ऊपर के दस गीतों में आधे से ज्यादा में अमिताभ की लेखनी चली है। 

तो चलते चलते आप सबको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!उम्मीद करता हूँ कि झूमते झुमाते गीतों का ये सिलसिला आपको पसंद आया होगा। वैसे वार्षिक संगीतमाला 2012 अगले हफ्ते शुरु हो रही है जिसमें मैं बाते करूँगा साल के पच्चीस बेहतरीन गीतों के बारे में। आशा है आप उस सफ़र में मेरे साथ होंगे.. Bollywood Top 10 dancing nos. of  2012

सोमवार, दिसंबर 17, 2012

जसप्रीत शर्मा (Jazim Sharma)..जिनकी ग़ज़ल गायिकी से मिलता है रूह को सुकून !

सा रे गा मा पा 2012 से जुड़े प्रतिभागियों से जुड़ी बातचीत में पिछले हफ्ते आपने सुना था शास्त्रीय संगीत के महारथी मोहम्मद अमन को। आज उसी सिलसिले को आगे बढ़ाते है जसप्रीत यानि जाज़िम शर्मा (Jazim Sharma) की ग़जल गायिकी से।

आज की तारीख़ में सा रे गा मा पा ही एकमात्र ऐसा कार्यक्रम है जो फिल्म संगीत के इतर हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत और ग़ज़लों को देशव्यापी मंच प्रदान कर रहा है।  जगजीत जी ख़ुद चाहते थे कि ग़ज़ल गायकों को बढ़ावा देने के लिए खास ग़ज़लों से जुड़ा ऐसा कोई कार्यक्रम टीवी के पर्दे पर हो। पर अपनी इस ख़्वाहिश को वो जीते जी अंजाम नहीं दे सके। जगजीत जी ग़ज़लों के प्रति युवाओं की उदासीनता के पीछे इलेक्ट्रानिक मीडिया को दोषी मानते थे। पिछले साल उनकी मृत्यु के बाद लिखे अपने आलेख जगजीत सिंह :  क्या उनके जाने के बाद ग़जलों का दौर वापस आएगा ? में मैंने इस बारे में उनकी राय को आपके समझ रखा था। एक बार फिर उसे यहाँ आपके समक्ष रख रहा हूँ..
"कैसा भी गायक हो निर्माता पैसे लगाकर एक आकर्षक वीडिओ लगा देते हैं और संगीत चैनल उसे मुफ्त में दिखा देते हैं। इससे गैर फिल्मी ग़ज़लों का टीवी के पर्दे तक पहुँचना मुश्किल हो गया है। रेडिओ की भी वही हालत है। प्राइवेट एफ एम चैनलों के मालिकों और उद्घोषकों को ग़जलों में ना कोई रुचि है ना उसको समझने का कोई तजुर्बा है। मैं तो कई बार ऐसे चैनल के साथ साक्षात्कार करने से साफ़ मना कर देता हूँ क्यूँकि वे ग़ज़लों को अपने कार्यक्रमों मे शामिल नही करते।"
आपको याद होगा कि ग़ज़लों को सा रे गा मा पा के मंच पर सुनने का सिलसिला दो साल पहले राजस्थान के गायक रंजीत रजवाड़ा से शुरु हुआ था। इस साल इस सिलसिले को ज़ारी रखा है पंजाब के भटिंडा से ताल्लुक रखने वाले जसप्रीत शर्मा ने। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि रंजीत रजवाड़ा और जसप्रीत शर्मा की गायिकी और व्यक्तित्व के कई पहलुओं में साम्यता है।

रंजीत दमे की बीमारी से लड़ते हुए सा रे गा मा पा के मंच तक पहुँचे थे वहीं जसप्रीत अपनी ज़ुबान की हकलाहट की वज़ह से रियालटी शो में भाग लेने की कई साल तक हिम्मत नहीं जुटा सके थे। रंजीत और जसप्रीत दोनों ही गुलाम अली खाँ साहब के शैदाई हैं और सा रे गा मा पा में दोनों को ही अपने प्रेरणास्रोत के सामने अपना हुनर दिखलाने का मौका मिला। इतना ही नहीं रंजीत की तरह ही जसप्रीत की उँगलियाँ जब हारमोनियम पर चलती हैं तो समझिए कमाल ही हो जाता है। पर एक जगह है जहाँ शायद उम्र के अंतर की वज़ह से जसप्रीत बाजी मार ले जाते हैं। रंजीत जब सा रे गा मा पा पर आए थे तो वे 18 साल के थे जबकि जाज़िम की उम्र 22 साल है। जाज़िम की गायिकी में एक ठहराव है जो कि एक ग़ज़ल गायक के लिए बेहद जरूरी है। तो आइए आज की इस महफिल का आग़ाज़ करते हैं उनकी गाई रंजिश ही सही से...


मुंबई में संगीत की विधिवत शिक्षा ले रहे जसप्रीत की आवाज़ ग़ज़ल के स्वरूप के हिसाब से मुनासिब है। वे उसमें बड़े सलीके से अपनी भिन्नताएँ डालते हैं। बड़े बड़े गायकों के समक्ष भी अपनी गायिकी पर उनका आत्मविश्वास मुझे अब तक डगमगाता नहीं दिखा।  अब तक जाज़िम ने गुलाम अली साहब व अन्य गायकों  की बेहद मशहूर ग़ज़लों चुपके चुपके रात दिन, हंगामा है क्यूँ बरपा, आवारगी, इतनी मुद्दत बाद मिले हो, कल चौदहवीं की रात थी, आज जाने की ज़िद ना करो, रंजिश ही सही  ...को अपनी आवाज़ दी है । ये लगभग वही ग़ज़लें हैं जिन्हें पिछले साल रंजीत ने भी गाया था। ये ग़ज़लें अपने आप में एक कहानी एक लीजेंड (legend) हैं जिन्हें सुनते ही उसके गाने वाले का चेहरा और अदाएगी सामने घूम जाती है।

पर मुझे लगता है कि सा रे गा मा पा के  मंच पर अगर जाज़िम को और आगे बढ़ना है तो उन्हें कुछ जोख़िम उठाने पड़ेंगे वर्ना वो रंजीत रजवाड़ा की तरह ही चौथे पाँचवे या उससे नीचे फिसल जाएँगे। जाज़िम शर्मा को चाहिए को वो आगे ऐसी ग़ज़लों का चुनाव करें जो ज्यादा सुनी ना गई हों या अगर मशहूर हों भी तो वो पूरी तरह अपने अंदाज़ से गाएँ ताकि अगली बार उस  ग़ज़ल को सुन कर लोग कह सकें कि ये जाज़िम की गाई ग़ज़ल है। मुझे याद आता है कि सा रे गा मा के पूर्व विजेता अभिजीत सावंत ने एक बार गुलाम अली की ग़ज़ल रुक गया आँख से बहता हुआ दरिया कैसे को इस खूबी से गुनगुनाया था कि आरिजनल वर्जन उसके सामने फीका पड़ गया था। मुझे पूरी आशा है कि जसप्रीत भी सा रे गा मा पा की अपनी इस यात्रा में ऐसा कुछ कर सकेंगे ताकि जसराज जोशी, शाहनाज, अमन, विश्वजीत जैसे कमाल के गायकों को कड़ी टक्कर दे सकें।

तो चलते चलते एक बार फिर देखते हैं जसप्रीत और हिमांशु द्वारा गुलाम अली साहब की ग़ज़ल आवारगी पर उन्हीं के  सामने की गई अनूठी जुगलबंदी, जिसे देख के गुलाम अली साहब भी गदगद हुए बिना नहीं रह सके..

सोमवार, दिसंबर 10, 2012

सा रे गा मा पा पर शास्त्रीय संगीत की अद्भुत बयार लाए हैं मोहम्मद अमन !

आज एक शाम मेरे नाम में महफिल सजी है राग बागेश्री की। काफी थाट से उत्पन्न ये राग यूँ तो रात्रि के अंतिम प्रहर में गाया जाता है पर राजस्थान के शास्त्रीय संगीत गायक मोहम्मद अमन की वजह से इस राग से जुड़ी कुछ बंदिशों को पिछले हफ्ते से क्या सुबह क्या शाम बस समझिए लगातार ही सुन रहा हूँ।

अगर आप टीवी पर सा रे गा मा पा 2012 देख रहे हों तो मोहम्मद अमन की बेमिसाल गायिकी से आप अब तक परिचित हो चुके होंगे। पिछले हफ्ते  विचित्र वीणा के जादूगर पंडित विश्व मोहन भट्ट के सम्मुख अमन ने बागेश्री की दो बंदिशों को जिस सुरीले अंदाज़ में तानों पर अपनी महारत दिखाते हुए प्रस्तुत किया कि मन बाग बाग हो गया और आँखों में इस बेजोड़ शास्त्रीय गायक की दिल लुभाने वाली गायिकी सुनकर खुशी के आँसू निकल आए।


शास्त्रीय संगीत के बारे में आम जनता यही समझती रही है कि ये बेहद उबाऊ होता है। वहीं अगर संगीत के सच्चे रसिया से पूछें तो वे बिल्कुल उलट ये कहेंगे कि संगीत सुनने का असली सुख यही है। पर शास्त्रीय संगीत की समझ रखने वालों और आम संगीत प्रेमी जनता के बीच शास्त्रीय संगीत की सोच से जुड़ी दूरी को पाटने में  सा रे गा मा पा जैसे रियालटी शो ने एक अद्भुत काम किया है।

वैसे तो घंटों चलने वाले शास्त्रीय संगीत की महफिलों में डूबने के लिए सब्र और संगीत की समझ दोनों होनी चाहिए। संगीत की समझ तो रुचि होने से धीरे धीरे आ ही जाती है। पर उसके लिए वक़्त चाहिए जो आजकल के युवाओं के पास होता ही कहाँ है? संगीत के इन कार्यक्रमों में समय सीमा की वज़ह से प्रतिभागी तीन से पाँच मिनट में रागों की कठिन से कठिन लयकारी को इस क़रीने से निभाते हैं कि क्या आम क्या खास सभी मंत्रमुग्ध से हो जाते हैं। आज युवाओं में शास्त्रीय संगीत और ग़ज़लों के प्रति उदासीनता इस विधा से जुड़े लोगों के लिए चिंता का विषय है। इन हालातों में ग़ज़लों की तरह शास्त्रीय संगीत को सा रे गा मा पा का मंच मिलना एक बेहद सार्थक कदम है जिसकी जितनी भी सराहना की जाए कम है।

मोहम्मद अमन ने भी अपनी हर प्रस्तुति में जो तानें ली है उन्हें सुनकर दाँतो तले अँगुली दबानी पड़ती है। मोहम्मद अमन का संगीतमय परिवार पटियाला घराने से ताल्लुक रखता है। उनके दादा आमिर मोहम्मद खाँ और पिता जफ़र मोहम्मद दोनों तबला वादक हैं और AIR जयपुर से जुड़े रह चुके हैं। इस कार्यक्रम के दौरान विश्व मोहन भट्ट ने  अमन के बारे में कहा कि 
"अभी भले ही वो बीस वर्ष के हैं पर दस साल की आयु में जब उन्होंने अमन को पहली बार सुना तो तब भी उनकी तैयार तानें उनकी आज की गायिकी से बीस नहीं तो उन्नीस ही रही होंगी।निश्चय ही इनकी प्रतिभा से भारतीय शास्त्रीय संगीत और समृद्ध होगा।"
तो आइए सुनते हैं मोहम्मद अमन द्वारा राग बागेश्री में गाई दो बंदिशें पहले अपने गरज पकड़ लीनी बैयाँ मोरी और फिर ए री ऐ मैं कैसे घर जाऊँ..


मोहम्मद अमन को अगर आपने अब तक नहीं सुना तो अवश्य सुनें और उनके पक्ष में वोट करें। जितनी देर तक वो इस कार्यक्रम में बने रहेंगे, संगीत की इस विधा को चुनने की इच्छा रखने वालों के लिए वे एक प्रेरणास्रोत साबित होंगे।
 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie