वार्षिक संगीतमाला की पन्द्रहवीं पॉयदान पर पहली और इस साल की संगीतमाला में आख़िरी बार दाखिल हो रही है ए आर रहमान और गुलज़ार की जोड़ी। वैसे तो ये दोनों कलाकार मेरे प्रिय हैं पर मेरा ऐसा मानना है कि जितना अच्छा परिणाम रहमान जावेद अख़्तर के साथ देते रहे हैं वो गुलज़ार के साथ उनकी जोड़ी में दिखाई नहीं देता । 'जब तक है जान' के गीत 'छल्ला' पर भले ही गुलज़ार फिल्मफेयर एवार्ड लेने में कामयाब रहे हों पर उनकी लेखनी के प्रेमियों को इस एलबम से जितनी उम्मीदें थी उस हिसाब से उन्होंने निराश ही किया। यही हाल रहमान का भी रहा। जब तक है जान में गुलज़ार ने एक गीत में लिखा
साँस में तेरी साँस मिली तो, मुझे साँस आई.. मुझे साँस आई
रूह ने छू ली जिस्म की खुशबू, तू जो पास आई.. तू जो पास आई
पढ़ने में तो भले ही ये पंक्तियाँ आपको प्रभावित करे पर जब रहमान ने इन बोलों को संगीतबद्ध किया तो सुन कर घुटन सी होने लगी यानि साँस आने के बजाए रुकने लगी। पर जिया रे जिया रे के लिए रहमान ने जिन दो कलाकारों पर भरोसा किया उन्होंने द्रुत गति की रिदम के इस गीत के साथ पूरा न्याय किया। ये कलाकार थे टेलीविजन के चैनल वी के रियल्टी शो पॉपस्टार की विजेता नीति मोहन और नामी गिटारिस्ट चन्द्रेश कुड़वा। ये गीत फिल्म में बिंदास चरित्र अकीरा यानि अनुष्का शर्मा पर फिल्माया जाना था। नीति ने ये गीत खुली आवाज़ में स्वछंदता से पूरी तह आनंदित होकर गाया है जिसकी गीत के मूड को जरूरत थी। (वैसे नीति इस साल एक और चर्चित गीत गा चुकी हैं जो इस संगीतमाला का हिस्सा नहीं है। बताइए तो कौन सा गीत है वो ?)
चन्द्रेश गिटार पर अपनी उँगलियों की थिरकन शुरु से अंत तक बरक़रार रखते हैं। पार्श्व से दिया उनका सहयोग गीत के रूप को निखार देता है। रहमान इंटरल्यूड्स में गिटार के साथ बाँसुरी और ताली का अच्छा मिश्रण करते हैं।
गुलज़ार के बोल ज़िदगी के हर लमहे को पूरी तरह से जीने के लिए हमें उद्यत करते हैं। गीतकार ने कहना चाहा है कि अगर हम जीवन की छोटी छोटी खुशियों को चुनते रहें तो उसकी मिठास ज़ेहन में सालों रस घोलती रहती है। ज़िदगी के उतार चढ़ावों को खुशी खुशी स्वीकार कर हम ना केवल ख़ुद बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी अच्छी मनःस्थिति में रख सकते हैं। जब भी ये गीत सुनता हूँ मन में एक खुशनुमा अहसास सा तारी होने लगता है। तो आइए सुनें इस गीत को
चली रे, चली रे...जुनूँ को लिए
कतरा, कतरा...लमहों को पीये
पिंजरे से उड़ा, दिल का शिकरा
खुदी से मैंने इश्क किया रे
जिया, जिया रे जिया रे
छोटे-छोटे लमहों को, तितली जैसे पकड़ो तो
हाथों में रंग रह जाता है, पंखों से जब छोडो तो
वक़्त चलता है, वक़्त का मगर रंग
उतरता है अकीरा
उड़ते-उड़ते फिर एक लमहा
मैंने पकड़ लिया रे
जिया रे जिया रे जिया जिया रे...
हलके-हलके पर्दों में, मुस्कुराना अच्छा लगता है
रौशनी जो देता हो तो, दिल जलाना अच्छा लगता है
एक पल सही, उम्र भर इसे
साथ रखना अकीरा
ज़िन्दगी से फिर एक वादा
मैंने कर लिया रे
जिया जिया रे जिया रे...
8 टिप्पणियाँ:
अहा, मजा आ गया। अभी तक कैसे नहीं सुना था।
टीवी के संगीत चैनलों पर इसके प्रोमो तो खूब चले थे। इसका मतलब है आपकी आदतें (टीवी ना देखने की) अच्छी हैं।
पोस्ट और गीत तो लाजवाब हैं मगर नीति का गाया दूसरा गाना तो बताएं :-)
अनु
अनु जी अरे आज ही तो आ रही थी वो फिल्म शायद सोनी पर यानि Student of the Year. अब तो बताइए कौन सा गीत है वो?
Beautiful Anushka & beautiful song :)
गुलज़ार साब और रहमान दोनों ने वाकई बहुत निराश किया। इस फिल्म का इंतज़ार पूरे साल भर किया लेकिन अंतत: निराशा ही हाथ लगी। जबकि ऐसा सुनने में आया कि रहमान की पेश की गई 30 धुनों में से यश जी चुनाव किया और गुलज़ार साब को उन पर 20 बार कलम चलानी पड़ी।
इस गीत से ज़्यादा अच्छा "छल्ला ...." लगता है हालांकि उसके बोल कम ही समझ आते हैं। आपने सही कहा है कि पंक्तियाँ पढने में ज़रूर प्रभावी लगती हैं लेकिन संगीतबद्ध होकर घुटन का एहसास देती हैं।
अनु जी चलिए मैं ही बता देता हूँ वो गाना था इश्क़ वाला Love from Student of the Year.
माहावर जी गीत आपको पसंद आया जानकर खुशी हुई।
अंकित छल्ला मुझे इसलिए नहीं पसंद आया क्यूँकि पंजाबी लोकगीत की इस शैली के बहुत सारे गीत मैं पहले भी सुन चुका हूँ और उनकी तुलना में गायिकी और धुन दोनों में इस गीत को कमतर पाता हूँ। आप रब्बी का खुद कम्पोज़ किया गीत छल्ला सुनें। उनकी गायिकी मुझे इतनी भाई थी कि मैंने उस गीत का अर्थ भी मालूम कर लिया था। वक़्त मिले तो यहाँ सुनिएगा।
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