वार्षिक संगीतमाला की 23 वीं सीढ़ी पर जो गाना है वो एक सामान्य हिंदी फिल्म गीतों से थोड़ा हट कर है। पहली बार सुनने पर ये आपके कानों को अटपटा लग सकता है पर यही इसका मजबूत पहलू भी है। इस गीत की संगीतकार हैं स्नेहा खानवलकर। इंदौर में पली बढ़ी तीस वर्षीय स्नेहा की माँ का परिवार शास्त्रीय संगीत के ग्वालियर घराने से ताल्लुक रखता है। पहले एनीमेशन और फिर कला निर्देशिका का काम करने वाली स्नेहा को पहली बार 2005 में फिल्म 'कल: Yesterday and Tomorrow' के शीर्षक गीत को संगीतबद्ध का मौका मिला पर हिंदी फिल्मो में पहला बड़ा ब्रेक उन्हें राम गोपाल वर्मा की फिल्म 'Go' में मिला। वर्ष 2008 में स्नेहा ओए लक्की लक्की ओए से संगीत जगत में चर्चा में आयीं। स्नेहा खानवलकर की खासियत ये है वे अपनी फिल्मों में कहानी की पृष्ठभूमि के हिसाब से गीतों में आंचलिक गायकों और वहाँ की ध्वनियों को स्थान देती हैं। स्नेहा का मानना है कि..
हर शहर हर कस्बे की अपनी एक खूबी होती है। वहाँ के लोगों का सोचने का नज़रिया या बोलने का तरीका, बड़े शहरों से सर्वथा भिन्न होता है। इसलिए मेरे लिए ये जानना जरूरी है कि वहाँ के लोग किस तरह गाते हैं? कैसे संगीत रचते हैं? किसी जगह की संस्कृति से जुड़ी इन बारीकियों को जानकर ही हम उनकों गीतों में ढाल सकते हैं। अगर निर्देशक एक फिल्म में कहानी के परिवेश और चरित्र को अपनी सूझबूझ से गढ़ सकता है तो मैं भी अपने संगीत के साथ वही करने का प्रयास करती हूँ।
ओए लक्की.. के संगीत के लिए जहाँ स्नेहा पंजाब और हरियाणा के गाँवों में घूमी वहीं 'Gangs of वासेपुर' के लिए बिहार के संगीत को उन्होंने वहाँ जाकर करीब से सुना। मजे की बात ये है कि GOW में अधिकांश गायक गायिकाओं को भी उन्होंने फिल्म के परिवेश के हिसाब से बिहार और यूपी से चुना पर ठेठ उत्तर भारतीय आवाज़ की तलाश उन्हें एक ऐसी गायिका तक ले गई जिसकी मातृभाषा हिंदी ना हो कर तेलगु है। जी हाँ ये गायिका थीं आंध्र प्रदेश की दुर्गा ! 12 वर्षीय दुर्गा मुंबई की ट्रेनों में गाती थीं। आपने अक्सर देखा होगा कि ट्रेनों में गाने वाले बच्चे ज्यादातर ऊँचे सुरों और बुलंद आवाज़ में गाते हैं। दुर्गा की इसी खासियत को आनंद सुरापुर ने देखा और उन्हें एक एलबम में गाने का न्योता दिया। उनका एलबम तो अभी बाजार में नहीं आया पर इसी बीच स्नेहा को उन्हें सुनने का मौका मिला और अनुराग कश्यप की इस छीछालेदर के लिए उन्होंने उनकी आवाज़ को उपयुक्त पाया।
इस गीत की संगीतकार और गायिका के बारे में
तो आपने जान लिया अब ये मजेदार गीत कैसे बना ये जानना भी आपके लिए रोचक
होगा। फिल्म के निर्देशक अनुराग कश्यप बताते हैं
छीछालेदर शब्द बहुत समय से मेरे दिमाग में था। वो डॉयलाग में भी इस्तेमाल हुआ था Dev D में। इमोशनल अत्याचार के बाद एक छीछालेदर करना था। बस इतनी लाइन थी मेरे दिमाग में मेरा जूता वाइट लेदर (अभी तो फेक हो गया) दिल है छीछालेदर वो हमसे पूछी Whether I like the weather ? Whether I like the weather हमारा बनारस का बहुत पुराना joke है weather के ऊपर। वो टीचर क्लॉस में आकर बोलते हैं Open the window let the climate come in.:)
तो
अनुराग के रचित मुखड़े को इस गीत में ढाला गीतकार वरुण ग्रोवर ने। जैसा कि
आपको पता है GOW-II की कहानी धनबाद के कोल माफिया के बीच वर्चस्व की लड़ाई
पर आधारित है। फिल्म में ये गीत पार्श्व में बजता हुआ हिंसा और प्रतिहिंसा
के बीच जान बचाने की क़वायद में एक आपराधिक ज़िदगी की छीछालेदर को चित्रित
करता है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को
मेरा जूता फेक लेदर, दिल छीछालेदर
वो हमसे पूछा whether I like the weather
चमचम वाली गॉगल भूल के सर मुँह भागे
मखमल वाला मफलर छोड़ के सर मुँह भागे
तेरे नाम के राधे भइया
नज़र कटीली लेजर
मेरा जूता फेक लेदर, दिल छीछालेदर
हेदर बेदर हेदर बेदर दिल छीछालेदर
वैसे ऊपर गाने में जिन राधे भइया का जिक्र हुआ है वो इस फिल्म के नहीं बल्कि इंडस्ट्री के सबसे बड़े भैया सल्लू भइया के फिल्म तेरे नाम के निभाए हुए किरदार के लिए है। अगर आपकी दिलचस्पी इस गीत की किशोर गायिका के बारे में और जानने की है तो ये वीडिओ देख लीजिए..
9 टिप्पणियाँ:
वाह, सारे गाने बहुत ही अच्छे लगे, इसमें तो बहुत ही आनन्द आया।
हा हा हा , मस्त गाना . यकीन मानिए, पहले कभी इस गाने को नहीं सुना था. आपके पोस्ट पढकर ही गाने को सुन रहा हूँ. बिलकुल ऑफबीट गाना है . गाने का हिस्टरी पढकर बहुत अचरज हुआ .
इस गीतमाला में स्नेहा के संगीत की ये पहली धमक है जो शायद आगे कुछ और गीतों में भी आएगी। ये गीत मुझे खासकर दुर्गा की आवाज़ के कारण पसंद है जिसे स्नेहा और अनुराग, मुंबई की लोकल ट्रेन के शोरगुल से बाहर निकालकर लाये। पार्श्व में बजता ये गीत फिल्म के परदे पर जँचता है।
उम्मीद है कि आगे आने वाली पोस्ट में (अगर आती हैं) आप स्नेहा के MTV Sound Trippin और वरुण ग्रोवर की लेखनी को भी शामिल करेंगे।
इस पोस्ट में एक जगह लिखने में शायद गलती हो गई लगती है ": Yesterday and Tomorrow' के शीर्षक गीत को 'लिखने' का मौका मिला ....". मेरे ख़याल से उन्होंने गाना लिखा नहीं होगा, कंपोज़ किया होगा। अगर लिखा है तो वाकई नई जानकारी है।
दुर्गा के बारे में पहली बार पता चला, पूरा गाना और इंटर्व्यू दोनों ही सुने। बहुत अच्छा लगा।
बढ़िया लिखा. मेरे पसंदीदा गानों में से एक है. कई दिनों तक मेरा कालर ट्यून यह रहा है, अभी भी इसी सिनेमा का एक गीत मेरा कालर ट्यून है "फ्रास्टियाओ नहीं मूरा"
Chhee chhaa lether....Sneha Khanvilkar scouted enough talents and represented up/Bihar hinterland music in one movie that many musicians from Bollywood could no to in decades......in fact hav e never done. The movie surely would have been selected for Oscar if Indian stupid gov did not send a trash like barfi.
@Bhole I don't think GOW deserved Oscar nomination either.
प्रवीण, मृत्युंजय,सागर आप सब को भी ये गीत पसंद आया जानकर खुशी हुई।
पीडी हाँ स्नेहा ने फिल्म के गीतों को एक अलग सा टच दिया है। नए लोग अक्सर कुछ अलग करने की कोशिश में रहते हैं।
अंकित, वरुण की लेखनी को मैंने इस लेख में इसलिए ज्यादा तवोज़्जह नहीं दी क्यूँकि इस गीत के मुखड़े और अंतरे की पंक्तियो को रचने में फिल्म के निर्देशक अनुराग कश्यप की बड़ी भूमिका है।
MTV के कार्यक्रम sound trippin में स्नेहा ने देश भर में घूम घूम कर जो किया उसके लिए शायद एक पूरा लेख भी कम पड़े।
गलती की ओर ध्यान दिलाने के लिए शुक्रिया अभी दुरुस्त करता हूँ।
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