रविवार, फ़रवरी 03, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 13 : फिर ले आया दिल मजबूर क्या कीजे..

वार्षिक संगीतमाला की तेरहवीं पॉयदान पर है एक बार फिर बर्फी फिल्म का एक और रूमानी नग्मा जिसे लिखा है सईद क़ादरी साहब ने। बतौर गीतकार पिछले छः सालों में सईद कादरी के लिखे गीत चार बार वार्षिक संगीतमालाओं की शोभा बढ़ा चुके हैं। तेरे बिन मैं कैसे जिया (2006), तो फिर आओ मुझको सताओ (2007), ज़िदगी ने ज़िदगी भर गम दिए जितने भी मौसम दिए सब नम दिए (2007) और पिछले साल दिल सँभल जा ज़रा फिर मोहब्बत करने चला है तू (2011)।  पर क्या आप जानते हैं कि रोमांटिक गीतों में अपनी अलग पहचान बनाने वाला ये गीतकार पेशे से एक बीमा एजेंट है?

अस्सी के दशक में पहली बार काम की तलाश में सईद क़ादरी जोधपुर से मुंबई आए तो वो महेश भट्ट से मिले। महेश भट्ट को उनका काम तो पसंद आया पर तब तक उन्होंने अपने पारिवारिक बैनर तले फिल्में बनानी शुरु नहीं की थीं सो क़ादरी खाली हाथ ही वापस लौट आए। पर 'जिस्म' के गीतों के लिए महेश भट्ट ने सईद क़ादरी को जो मौका दिया उसके बाद उन्हें काम के लिए फिर दौड़ना नहीं पड़ा।

क़ादरी अपना ज्यादातर समय अभी भी अपने पेशे को देते हैं। उनके बारे में मशहूर है कि वो अपने गीत संगीतकारों को जोधपुर में रहते हुए ही फोन पर ही लिखा देते हैं। उनके लिए गीत लिखना एक शौक़ है। साहिर जैसे शायर उनके आदर्श रहे हैं और उनका मानना है कि ऐसे महान शायरों को पढ़कर उन्हें जो आनंद मिला है उसे वो अपने गीतों में ढाल सकें तो उससे बेहतर उनके लिए कुछ भी नहीं है। प्रीतम की फिल्मों के लिए सईद क़ादरी पहले भी लिखते रहे हैं और इस फिल्म में लिखा उनका इकलौता नग्मा उसमें व्यक्त भावनाओं के लिए बेहद सराहा गया।

शायद ही कोई शख़्स होगा जो प्रेम जैसी भावना से दो चार ना हुआ हो। पर प्रेम होना एक बात है और अपने दिल की बात को हिम्मत करके अपने प्रेमी तक पहुँचाना दूसरी। एकतरफा प्रेम के किस्से किसने नहीं सुने। कहीं दिल में एक आँच जल चुकी होती है पर दूसरा शख़्स उसकी तपन का अंदाज़ ही नहीं लगा पाता। सईद कादरी साहब अपने इस गीत में यही कहना चाहते हैं कि प्रेम की जो आस तुमने अपने मन में जगाई है उसे अधूरा मत छोड़ो। वैसे भी प्यार में डूबा मन तुम्हें कहाँ इसकी इज़ाजत देने वाला है?

मुखड़े के पहले का प्रीतम द्वारा दिया संगीत मन में एक शीतलता सा भरता है। गीत के मिज़ाज को ध्यान में रखते हुए प्रीतम ने संगीत को अर्थपूर्ण बोलों पर चढ़ने नहीं दिया है। वैसे तो इस गीत को रेखा भारद्वाज, अरिजित सिंह और शफक़त अमानत अली खाँ तीनों से गवाया गया है पर मुझे रेखा जी का वर्जन ज्यादा पसंद आता है तो आइए सुनते हैं उनकी आवाज़ में ये नग्मा...


फिर ले आया दिल मजबूर
क्या कीजे
रास न आया रहना दूर
क्या कीजे
दिल कह रहा उसे मुकम्मल कर भी आओ
वो जो अधूरी सी बात बाकी है
वो जो अधूरी सी याद बाकी है
(मुकम्मल - पूरा करना)

करते हैं हम आज कुबूल
क्या कीजे
हो गयी थी जो हमसे भूल
क्या कीजे
दिल कह रहा उसे मयस्सर कर भी आओ
वो जो दबी सी आस बाकी है
वो जो दबी सी आँच बाकी है
(मयस्सर - उपलब्ध, प्राप्त)

किस्मत को है ये मंज़ूर
क्या कीजे आए
मिलते रहे हम बादस्तूर
क्या कीजे
दिल कह रहा है उसे मुसलसल कर भी आओ
वो जो रुकी सी राह बाकी है
वो जो रुकी सी चाह बाकी है
(मुसलसल - सिलसिलेवार )

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8 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय on फ़रवरी 03, 2013 ने कहा…

अहा, बहुत सुन्दर..

Manjari Saha on फ़रवरी 03, 2013 ने कहा…

Mujhe laga tha ye song top 5 mein hoga

Manish Kumar on फ़रवरी 03, 2013 ने कहा…

हम्म मंजरी बहुत लोगों को ये गीत बहुत पसंद है। अपनी बात करूँ तो क़ादरी साहब का लिखा मुखड़ा मुझे भी बेहद पसंद है पर अंतरों में वो विविधता मुझे नज़र नहीं आई जिसकी गीत के शानदार आगाज़ के बाद उम्मीद थी। वैसे यहाँ से आठवीं पॉयदान तक के गीत सभी मुझे समान रूप से अच्छे लगते हैं।

Mrityunjay Kumar Rai on फ़रवरी 03, 2013 ने कहा…

ये गाना मुझे भी पसंद है . पर गीतकार के बारे मे मुझे कोई जानकारी नहीं थी . आपने गीतकार से परिचय करवाया , धन्यवाद .
वैसे "बर्फी" फिल्म का हर नगमा बेहतरीन है .

Manish Kumar on फ़रवरी 03, 2013 ने कहा…

मृत्युंजय अक़्सर गीतकार को जितना मिलना चाहिए उससे बेहद कम limelight मिलता है। इसलिए मेरी कोशिश रहती है कि उनके बारे में जो भी जानकारी उपलब्ध हो वो श्रोताओं तक पहुँचे।

बर्फी का एलबम मुझे भी इस साल का सर्वश्रेष्ठ एलबम लगता है और वार्षिक संगीतमाला 2012 में उसके तीन गाने अभी भी आने बाकी हैं।

Amita Maurya on फ़रवरी 03, 2013 ने कहा…

wow lovly song .. pahle nahi suna tha ... thnx for sharing so lovely song

Ankit on फ़रवरी 07, 2013 ने कहा…

रेखा भारद्वाज जी का गाया हुआ वर्जन मुझे भी पसंद है। आपके द्वारा तमाम गीतों में किया गया बारीक से बारीक ऑब्जरवेशन इनके इस गीतमाला में जो पायदान निर्धारित करता है, वो काबिले तारीफ है।

सईद क़ादरी जी के बारे में जानकार अच्छा लगा।

Manish Kumar on फ़रवरी 12, 2013 ने कहा…

अमिता व अंकित आप दोनों को रेखा भारद्वाज जी का गाया ये गीत पसंद है ये जानकर खुशी हुई।

 

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