रविवार, फ़रवरी 10, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 10 : मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ...

वार्षिक संगीतमाला 2012 में बाकी रह गए हैं अंतिम दस पॉयदानों के गीत और आज प्रथम दस की पहली कड़ी के रूप में जो गीत है वो काफ़ी परेशानियाँ खड़ी कर रहा है। पर ये परेशानी हमारी या आपकी नहीं है बल्कि फिल्म इशकज़ादे के उन चरित्रों की है जो ज़िंदगी भर नफ़रत की आग के बीच पले बढ़े हैं। अब इसी बीच हालात कुछ इस तरह के हो जाएँ कि जिस शख़्स को आपको देखना भी पहले गवारा ना हो उसी की चाहत आपको उसके प्रति अपना व्यवहार बदलने पर मज़बूर कर दे तो दिल की इस अंदरुनी उठापटक से परेशानी तो होगी ना।

एक तरुणी के दिल में चल रही मीठी परेशानी को अपने शब्दों से सँवारा है गीतकार क़ौसर मुनीर ने। वर्षों से दबी नफ़रत को मोहब्बत में बदलने के अहसास को मुनीर ज़रा-ज़रा काँटों से लगने लगा दिल मेराचाहत के छीटें हैं, खारे भी मीठे हैं, आतिशें वो कहाँ, रंजिशें हैं धुआँ जैसे जुमलों से बड़ी खूबसूरती से आकार देती हैं। गीत की पंचलाइन मैं परेशाँ परेशाँ...के बारे में मुनीर कहती हैं कि उन्होंने इसी तरह का उद्घोष किसी सूफी रचना में सुना था और वो उनके मन में कहीं बैठा हुआ था। जब उन्हे इस गीत की परिस्थिति बताई गयी तो इसी के केंद्र में रखकर उन्होंने ये गीत बुन दिया।

संगीतकार अमित त्रिवेदी अपनी इस कम्पोजीशन को रॉक बैलॉड की श्रेणी में रखते हैं जिसके इंटरल्यूड्स में हारमोनियम की सुरीली तान है। वैसे भी अगर आप अमित त्रिवेदी के संगीत पर शुरु से पैनी नज़र रखते हों तो आप जानते होंगे कि हारमोनियम उनके संगीतबद्ध गीतों का अहम हिस्सा रहा है। अमित ने इस गीत के लिए एक नई आवाज़ का चुनाव किया। ये आवाज़ थी शाल्मली खोलगडे की।

इशकज़ादे से अपना हिंदी फिल्म संगीत का सफ़र शुरु करने वाली शाल्मली ने पिछले साल अइया और कॉकटेल के गाने भी गाए हैं। अपनी माँ उमा खोलगडे और फिर शुभदा पराडकर से संगीत सीखने वाली शाल्मली हिंदी और अंग्रेजी गायन में समान रूप से प्रवीण हैं। 

 शाल्मली खोलगडे, अमित त्रिवेदी और क़ौसर मुनीर

पश्चिमी शास्त्रीय संगीत में आगे की शिक्षा के लिए विदेश जाने का मन बना चुकी शाल्मली के लिए अमित द्वारा बुलाना उनके सांगीतिक सफ़र का अहम मोड़ साबित हुआ। शाल्मली बताती हैं कि जब पहली बार इस गीत के कच्चे बोलों को उन्होंने अमित त्रिवेदी जी के सामने गुनगुनाया तो उनकी पहली प्रतिक्रिया थी : कहाँ बैठी थी इतनी देर से तू छोरी? हिंदी फिल्म जगत के अपने पहले गीत को जिस तरह उसकी भावनाओं में डूबकर उन्होंने निभाया है वो काबिलेतारीफ़ है

 नए-नए नैना रे ढूँढे हैं दर-बदर क्यूँ तुझे
नए-नए मंज़र ये तकते हैं इस कदर क्यूँ मुझे
ज़रा-ज़रा फूलों पे झड़ने लगा दिल मेरा
ज़रा-ज़रा काँटों से लगने लगा दिल मेरा
मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ 

आतिशें वो कहाँ
मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ
रंजिशें हैं धुआँ..
मैं परेशाँ..
 

गश खाके गलियाँ, मुड़ने लगी हैं.. मुड़ने लगी हैं
राहों से तेरी जुड़ने लगी हैं जुड़ने लगी हैं
चौबारे सारे ये, मीलों के मारे से
पूछे हैं तेरा पता
ज़रा ज़रा चलने से थकने लगा मन मेरा
ज़रा ज़रा उड़ने को करने लगा मन मेरा

मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ
दिलकशीं का समा
मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ
ख़्वाहिशों का समा..
मैं परेशाँ..

बेबात खुद पे मरने लगी हूँ, मरने लगी हूँ
बेबाक आहें भरने लगी हूँ, भरने लगी हूँ
चाहत के छीटें हैं, खारे भी मीठे हैं
मैं क्या से क्या हो गयी
ज़रा-ज़रा फितरत बदलने लगा दिल मेरा
ज़रा-ज़रा किस्मत से लड़ने लगा दिल मेरा

मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ
कैसी मदहोशियाँ
मैं परेशाँ., परेशाँ, परेशाँ, परेशाँ
मस्तियाँ मस्तियाँ..
मैं परेशाँ..

तो आइए सुनते हैं शाल्मली की आवाज़ में ये गीत

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8 टिप्पणियाँ:

travel ufo on फ़रवरी 10, 2013 ने कहा…

ये मिश्रण वाला गीत है और मुझे भी काफी पसंद है

प्रवीण पाण्डेय on फ़रवरी 10, 2013 ने कहा…

नये प्रयोगों का गीत..

Sonal Rastogi on फ़रवरी 11, 2013 ने कहा…

behad khoobsurat geet

Urvashi Rustomfram on फ़रवरी 11, 2013 ने कहा…

Varshik Sangeetmala I like this song!
Can't wait to see the other songs on your list.

Archana Malviya on फ़रवरी 11, 2013 ने कहा…

very beautiful song.....

Manish Kumar on फ़रवरी 12, 2013 ने कहा…

अर्चना जी, मनु, प्रवीण , अन्नपूर्णा जी, सोनल, उर्वशी गीत पसंद करने के लिए शुक्रिया..

Ankit on मार्च 08, 2013 ने कहा…

शाल्मली की आवाज़ का जादू कर देती है। कौसर मुनीर के बोल भी प्रभावित करते हैं, मुझे 'टशन' के 'फ़लक ...." गीत को लिखने के बाद उनका दूसरा अच्छा गीत लगा। कौसर ने गीत में बहुत अच्छे लफ़्ज़ों का चुनाव किया है और ख़ासकर वो नायिका के स्क्रीन पर चल रही ज़िन्दगी से भी जुड़ा रहता है।

अमित त्रिवेदी एक उम्मीद जगाते हैं, और अपने समकालीनों में अलग खड़े नज़र आते हैं। इसी फिल्म का टाइटल सोंग "इशक़जादे" "इक डोर बंधने लगे .........." का शुरूआती प्रील्यूड जबरदस्त है।

अपनी कहूं तो संगीतमाला में ये गीत थोड़ा और उप्पर होना चाहिए था। :)

Manish Kumar on मार्च 11, 2013 ने कहा…

अंकित मेरे ग्यारह वर्षीय पुत्र का भी ये पसंदीदा नग्मा है। :) खासकर उसे मैं परेशां का दोहराव का तरीका खूब जमता था। सो वो रोज़ पूछता था कि इसे आप किस क्रम पर रखेंगे। "इशक़जादे" "इक डोर बंधने लगे .........." का शुरूआती प्रील्यूड जबरदस्त है। बिल्कुल अगर अंतरे भी वैसे होते तो निश्चित ही वो गीत भी इस गीतमाला का हिस्सा बनता।

 

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