जिंदगी की राहें हमेशा सहज सपाट नहीं होती। कभी कभी ये ज़िंदगी बड़े अज़ीब से इम्तिहान लेने लगती है। आपके और आपके करीबियों के साथ कुछ ऐसा होता है जो आप एकदम से स्वीकार नहीं कर पाते। मन अनायास ही ये सवाल कर उठता है..ऐसा मेरे साथ ही क्यूँ भगवन ? पर उस सवाल का जवाब देने के लिए ना आपके संगी साथी ही आते हैं ना ये परवरदिगार। अपने आँसुओं के बीच की ये लड़ाई ख़ुद आपको लड़नी पड़ती है। मन की इन्हीं परिस्थितियों को उभारता हैं वार्षिक संगीतमाला की आठवी पॉयदान का ये संवेदनशील नग्मा जिसे लिखा है कुमार राकेश ने और जिसे संगीतबद्ध किया है विशाल शेखर की जोड़ी ने।
गीतकार कुमार, जिनसे आपकी मुलाकात मैंने 2010 की वार्षिक संगीतमाला में बहारा बहारा हुआ दिल पहली बार रे गीत के साथ कराई थी ने गीत की इन भावनाओं के लिए कमाल के बोल लिखे हैं। ज़िंदगी के कठोर हालातों से उपजी बेबसी और हताशा उभर कर सामने आती है जब कुमार कहते हैं पसीजते है सपने क्यूँ आँखो में..लकीरें जब छूटे इन हाथो से यूँ बेवजह..जो भेजी थी दुआ ..वो जा के आसमान से यूँ टकरा गयी कि आ गयी है लौट के सदा ...
फिल्म शंघाई के इस गीत को गाया है एक ऐसी गायिका ने जिनकी आवाज़ में कुछ ऐसा जरूर है जिसे पहली बार सुनकर आप ठिठक से जाते हैं। ये आवाज़ है नंदिनी सिरकर (Nandini Sirkar) की। नंदिनी की आवाज़ पर हिंदी फिल्म संगीत प्रेमियों का ध्यान भले ही 2011 में प्रदर्शित फिल्म रा वन के गीत भरे नैना.. से गया हो पर बहुमुखी प्रतिभा की नंदिनी पिछले एक दशक से सांगीतिक जगत में सक्रिय रही हैं।
शंघाई के इस गीत में जिस दर्द की आवश्यकता थी वो नंदिनी के स्वर में स्वाभाविक रूप से फूटती नज़र आती है। इस गीत में नंदिनी का बतौर गायक साथ दिया है संगीतकार शेखर रवजियानी ने। विशाल शेखर ने इस गीत में अपने हिप हाप संगीत से अलग हटकर संगीत संयोजन देने की कोशिश की है। जब गीत की लय शुरुआती सवालों से उठती हुई जो भेजी थी दुआ.. तक पहुँचती है तो वो पुकार सीधे दिल से टकराती प्रतीत होती है।
तो आइए कुमार के दिल को छूते शब्दों के साथ महसूस करें इस गीत की पीड़ा को..
किसे पूछूँ, है ऐसा क्यूँ
बेजुबाँ सा ये ज़हाँ है
ख़ुशी के पल, कहाँ ढूँढूँ
बेनिशान सा वक्त भी यहाँ है
जाने कितने लबो पे गिले हैं
ज़िन्दगी से कई फासले हैं
पसीजते है सपने क्यूँ आँखो में
लकीरें जब छूटे इन हाथो से यूँ बेवजह
जो भेजी थी दुआ ..वो जा के आसमान
से यूँ टकरा गयी
कि आ गयी है लौट के सदा
साँसो ने कहाँ रूख मोड़ लिया
कोई राह नज़र में न आये
धड़कन ने कहाँ दिल छोड़ दिया
कहाँ छोड़े इन जिस्मो ने साए
यही बार बार सोचता हूँ
तनहा मैं यहाँ
मेरे साथ साथ चल रहा है
यादों का धुआँ....
5 टिप्पणियाँ:
वार्षिक संगीतमाला सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ रहा है, शीर्ष के गीत की उत्कंठा बढ गयी है।
सुन्दर गीत! सुन्दर प्रविष्टि!
बहुत प्यारा, अनसुना ही रह जाता यह गाना।
हिमांशु सरताज गीत का नंबर आने ही वाला है
जी प्रवीण सीधे दिल पर चोट करता हुआ..
khoobsurat gana hai,emraan hashmi ki kismat mein achche gane hi likhe hain.
यह गीत भी पहली दफा सुना है। अच्छा लगा।
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