बुधवार, मार्च 20, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 सरताज गीत : क्यूँ.., न हम-तुम चले टेढ़े-मेढ़े से रस्तों पे नंगे पाँव रे...

लगभग ढाई महिनों के इस सफ़र को तय कर आज बारी है वार्षिक संगीतमाला 2012 के शिखर पर बैठे गीत से आपको रूबरू कराने। वार्षिक संगीतमाला 2012 के सरताज गीत के गायक पहली बार किसी संगीतमाला का हिस्सा बने हैं और वो भी सीधे पहली पॉयदान पर। इस गीत के गीतकार वार्षिक सगीतमालाओं में दो बार प्रथम दस में अपनी जगह बना चुके हैं पर इस साल की संगीतमाला में वो पहली बार प्रवेश कर रहे हैं और इनके साथ हैं संगीतकार  प्रीतम जो पहली बार एक शाम मेरे नाम की शीर्ष पॉयदान पर अपना कब्जा जमा रहे हैं। जी हाँ आपने ठीक पहचाना ये गीत है फिल्म बर्फी का। इसे गाया है असम के जाने माने फ़नकार अंगराग  महंता वल्द पापोन ने सुनिधि चौहान के साथ और इस गीत के बोल लिखे हैं बहुमुखी प्रतिभा के धनी नीलेश मिश्रा ने।

यूँ तो इस संगीतमाला की प्रथम तीन पॉयदान पर विराजमान गीतों का मेरे दिल में विशेष स्थान रहा  है पर जब भी ये गीत बजता है मेरे को अपने साथ बहा ले जाता है एक ऐसी दुनिया में जो शायद वास्तविकता से परे है, जहाँ बस अनिश्चितता है,एक तरह का भटकाव है। पर ये तो आप भी मानेंगे कि अगर हमसफ़र का साथ मिल जाए और फुर्सत के लमहे आपकी गिरफ़्त में हों तो निरुद्देश्य अनजानी राहों पर भटकना भी भला लगता है।  नीलेश मिश्रा सरसराती हवाओं, गुनगुनाती फ़िज़ाओं, टिमटिमाती निगाहों व चमचमाती अदाओं के बीच प्रेम के निश्चल रंगों को भरते नज़र आते हैं।

  प्रीतम और नीलेश मिश्रा

नीलेश  के इन  शब्दों पर गौर करें ना हर्फ़ खर्च करना तुम,ना हर्फ़ खर्च हम करेंगे..नज़र की सियाही से लिखेंगे तुझे हज़ार चिट्ठियाँ ..ख़ामोशी झिडकियाँ तेरे पते पे भेज देंगे। कितने खूबसूरती से इन बावरे प्रेमियों के बीच का अनुराग शब्दों में उभारा है उन्होंने।

पर ये गीत अगर वार्षिक संगीतमाला की चोटी पर पहुँचा है तो उसकी वज़ह है पापोन की दिल को छूने वाली आवाज़ और प्रीतम की अद्भुत रिदम जो गीत सुनते ही मुझे उसे गुनगुनाने पर मजबूर कर देती है। मुखड़े के पहले की आरंभिक धुन हो या इंटरल्यूड्स प्रीतम का संगीत संयोजन मन में एक खुशनुमा अहसास पैदा करता है। प्रीतम असम के गायकों को पहले भी मौका देते रहे हैं। कुछ साल पहले ज़ुबीन गर्ग का गाया नग्मा जाने क्या चाहे मन बावरा सबका मन जीत गया था। अंगराग महंता यानि पापोन को भी मुंबई फिल्म जगत में पहला मौका प्रीतम ने  फिल्म दम मारो दम के गीत जीये क्यूँ में दिया था।

पापोन को संगीत की विरासत अपने माता पिता से मिली है। उनके पिता असम के प्रसिद्ध लोक गायक हैं। यूँ तो पापोन दिल्ली में एक आर्किटेक्ट बनने के लिए गए थे। पर वहीं उन्हें महसूस हुआ कि वो अच्छा संगीत रच और गा भी सकते हैं। युवा वर्ग में असम का लोक संगीत लोकप्रिय बनाने के लिए उन्होंने रॉक को लोक संगीत से जोड़ने की कोशिश की।

पापोन की आवाज़ का जादू सिर्फ मुझ पर सवार है ऐसा नहीं है। संगीतकार शान्तनु मोएत्रा का कहना है कि पापोन की आवाज़ का नयापन दिल में तरंगे पैदा करता है वही संगीतकार समीर टंडन नीचे के सुरों पर उनकी पकड़ का लोहा मानते हैं। क्यूँ ना हम तुम को जिस अंदाज़ में पापोन ने निभाया है वो माहौल में एक ऐसी अल्हड़ता और मस्ती भर देता है जिसे गीत को गुनगुनाकर ही समझा जा सकता है।

क्यूँ.., न हम-तुम
चले टेढ़े-मेढ़े से रस्तों पे नंगे पाँव रे
चल., भटक ले ना बावरे
क्यूँ., न हम तुम
फिरे जा के अलमस्त पहचानी राहों के परे
चल, भटक ले ना बावरे
इन टिमटिमाती निगाहों में
इन चमचमाती अदाओं में
लुके हुए, छुपे हुए
है क्या ख़याल बावरे

क्यूँ, न हम तुम
चले ज़िन्दगी के नशे में ही धुत सरफिरे
चल, भटक ले ना बावरे

क्यूँ, न हम तुम
तलाशें बगीचों में फुरसत भरी छाँव रे
चल भटक ले ना बावरे
इन गुनगुनाती फिजाओं में
इन सरसराती हवाओं में
टुकुर-टुकुर यूँ देखे क्या
क्या तेरा हाल बावरे

ना लफ्ज़ खर्च करना तुम
ना लफ्ज़ खर्च हम करेंगे
नज़र के कंकड़ों से
खामोशियों की खिड़कियाँ
यूँ तोड़ेंगे मिल के मस्त बात फिर करेंगे
ना हर्फ़ खर्च करना तुम
ना हर्फ़ खर्च हम करेंगे
नज़र की सियाही से लिखेंगे
तुझे हज़ार चिट्ठियाँ
ख़ामोशी झिडकियाँ तेरे पते पे भेज देंगे

सुन, खनखनाती है ज़िन्दगी
ले, हमें बुलाती है ज़िन्दगी
जो करना है वो आज कर
ना इसको टाल बावरे
क्यूँ, न हम तुम...




इसी के साथ वार्षिक संगीतमाला 2012 का ये सफ़र यहीं समाप्त होता है। इस सफ़र में साथ निभाने के लिए आप सब पाठकों का बहुत बहुत शुक्रिया !
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8 टिप्पणियाँ:

दिगम्बर नासवा on मार्च 20, 2013 ने कहा…

बोल, सुर, स्वर ... जब सब कुछ आलोकिक मिउल जाता है तो सीमा नहीं रहती कोई ... ओर ये गीत भी ऐसा ही है ...

प्रवीण पाण्डेय on मार्च 20, 2013 ने कहा…

मन में गहरे उतरता गीत...

Raki Garg on मार्च 20, 2013 ने कहा…

nice song

Sonroopa Vishal on मार्च 20, 2013 ने कहा…

मेरा बेहद बेहद पसंदीदा गीत ..अगेन आपसे सहमत

Jagdish Arora on मार्च 20, 2013 ने कहा…

The only good thing about this place is that have enough time to spend on your interest and listen to songs. I enjoyed this song today. thanks. Nice song.

Archana Malviya on मार्च 20, 2013 ने कहा…

Melodious song....

Mrityunjay Kumar Rai on मार्च 23, 2013 ने कहा…

गीतमाला का ये सरताज मेरे दिल के भी बहुत करीब है. जब भी कंप्यूटर पर बैठता हूँ , ये गाना सुन ही लेता हूँ. गाने के बोल बहुत सुन्दर और भाव्प्रय है.
२०१२ के चुन्नींदा गानों से रूबरू कराने के लिए धन्यवाद .

आप अपनी साहिन्त्यिक और रचनात्मक क्षमता का प्रयोग करके गीतमाला की तरह फ़िल्मों के बारे मे भी एक सीरीज चलाए तो .........

Manish Kumar on अप्रैल 01, 2013 ने कहा…

दिगंबर, प्रवीण, नेहा, अर्चना, सोनरूपा, राकी गीत को पसंद करने का शुक्रिया !
शुक्रिया अरोड़ा सर !

मृत्युंजय आपका सुझाव अच्छा है पर इतना समय मेरे पास उसके लिए फिलहाल समय नहीं है। कार्यालय की व्यस्तताओं के बीच में गीतमाला को समय से चलाए रखने में ही मेरी हालत खराब हो जाती है। तो फिलहाल तो इतना ही कहेंगे
फुर्सत से मिला वक़्त तो सोचेंगे किसी दिन :)

 

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