पिछले साल एक फिल्म आई थी टुटिया दिल। फिल्म कब आई और कब गई ये तो पता नहीं चला पर पिछले साल RMIM पुरस्कार के लिए बतौर जूरी ये गाना जब हिंदी फिल्म संगीत प्रेमियों द्वारा नामांकित हो कर आया तो मैंने इसे पहली बार सुना। तब तक वार्षिक संगीतमाला 2012 के सारे गीत चयनित हो चुके थे इसलिए ये गीत संगीतमाला में स्थान नहीं बना पाया। पर नवोदित कलाकारों द्वारा रचा ये गीत मुझे बेहद पसंद आया था। अक्सर कम बजट की फिल्मो के ऐसे बेहतरीन गीत श्रोताओं तक पहुँच नहीं पाते। पर ये गीत इतनी काबिलियत रखता है कि इस पर चर्चा जरूरी है।
फिल्म टुटिया दिल के इस गीत को लिखा है मनोज यादव ने और इसकी धुन बनाई है गुलराज सिंह ने। जब पहली बार इस गीत को सुना तो माहौल गुलज़ारिश सा लगा। फिर मनोज यादव के बारे में जो जानकारी अंतरजाल से हासिल हुई उससे ये तो समझ आ गया कि आख़िर इस गीत पर गुलज़ार की सी छाप क्यूँ है?
एक आम माँ बाप की तरह मनोज के माता पिता ने भी उनके डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपना देखा था। मनोज पढ़ाई में मन भी लगा रहे थे कि अचानक कविता लिखने का शौक़ जागृत हो गया उनके मन में। इसकी वज़ह थे गुलज़ार । मनोज तब स्कूल में थे जब उन्होंने गुलज़ार का गीत जंगल जंगल बात चली है पता चला है, चड्ढी पहन कर फूल खिला है फूल खिला है.. सुना। गुलज़ार की इस अद्भुत कल्पनाशीलता से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भी लिखना शुरु कर दिया।
फिल्म टुटिया दिल के इस गीत को लिखा है मनोज यादव ने और इसकी धुन बनाई है गुलराज सिंह ने। जब पहली बार इस गीत को सुना तो माहौल गुलज़ारिश सा लगा। फिर मनोज यादव के बारे में जो जानकारी अंतरजाल से हासिल हुई उससे ये तो समझ आ गया कि आख़िर इस गीत पर गुलज़ार की सी छाप क्यूँ है?
एक आम माँ बाप की तरह मनोज के माता पिता ने भी उनके डॉक्टर या इंजीनियर बनने का सपना देखा था। मनोज पढ़ाई में मन भी लगा रहे थे कि अचानक कविता लिखने का शौक़ जागृत हो गया उनके मन में। इसकी वज़ह थे गुलज़ार । मनोज तब स्कूल में थे जब उन्होंने गुलज़ार का गीत जंगल जंगल बात चली है पता चला है, चड्ढी पहन कर फूल खिला है फूल खिला है.. सुना। गुलज़ार की इस अद्भुत कल्पनाशीलता से वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने भी लिखना शुरु कर दिया।
छठी सातवीं कक्षा की बात है। मनोज के स्कूल में इतिहास का पीरियड चल रहा था। इतिहास मनोज को जरा भी नहीं रुचता था तो उन्होंने शिक्षिका को ब्लैकबोर्ड पर तन्मयता से पढ़ाते देख अपनी गीतो की कॉपी में कलम चलानी शुरु कर दी। अभी ब्लैकबोर्ड को देखते हुए कविता की पहली पंक्ति काली रात की स्याही में..लिखी ही थी कि टीचर उनके पास आयीं और इनके गीतों की उस कॉपी को वहीं फाड़कर रखते हुए बोलीं -अब ऐसा नहीं चलेगा। मनोज को क्रोध बहुत आया। उन्होंने टीचर से बहस की और तमतमाते हुए कक्षा के बाहर निकल गए। तभी से स्कूल में मशहूर हो गया कि एक नवोदित लेखक पैदा हो गया। वे अपने इस शौक़ की वज़ह से उपहास के भी पात्र बने पर उन्हें यह अहसास हो चुका था कि ऊपरवाले ने उन्हें यही करने के लिए भेजा है। संयोग से मनोज शंकर महादेवन के संपर्क में आए और फिर उनके साथ पहले एयरसेल के जिंगल के लिए लिखा। फिर लक्स और ऐसे ही कई और विज्ञापनों से बढ़ता मनोज का सफ़र विश्व कप क्रिकेट के गीत दे घुमा के......तक पहुँचा और आज वो फिल्मों के गीत भी लिख रहे हैं।
मनोज की तरह उनके मित्र गुलराज सिंह को स्कूल में ही वाद्य वादन का चस्का लग गया था। उनके माँ बाप ने उनकी इस प्रतिभा को पहचाना और उन्हें काफी प्रोत्साहित किया। जिस तरह मनोज के प्रेरणास्रोत गुलज़ार हैं वहीं गुलराज अपनी ज़िदगी में ध्वनियों के प्रति आकर्षण पैदा करने का श्रेय ए आर रहमान के फिल्म रोजा में दिए गए संगीत को देते हैं। संगीतकार लॉए को उन्हें अपना हुनर दिखाने का मौका मिला और फिर तो वो बतौर की बोर्ड प्लेयर शंकर अहसान लॉय की टीम का हिस्सा बन गए।
मीनल जैन, मनोज यादव, गुलराज सिंह
टुटिया दिल के इस रूमानी नग्मे में गुलराज ने मीनल जैन और जसविंदर सिंह की जोड़ी को गायिकी के लिए चुना। ये वही मीनल हैं जो इंडियन आइडल के वर्ष 2006 के प्रथम दस प्रतिभागियों का हिस्सा बनी थीं। मीनल की आवाज़ मे उनकी उम्र से ज्यादा परिपक्वता है। उनकी आवाज़ जब पहली बार कानों से टकराई तो ऐसा लगा मानो कविता सेठ या रेखा भारद्वाज गा रही हों। इस गीत में उनका बखूबी साथ दिया है जसविंदर सिंह ने जिन्हे लोग कैफ़ी और मैं नाटक में बतौर ग़ज़ल गायक ज्यादा जानते हैं।
गीत के लिए मनोज ने जिस शब्द विन्यास का प्रयोग किया है वो अलग हट के है। एक विशाल जलधारा की बूँद के भीतर बह कर चलने के अहसास के बारे में कभी सोचा है आपने? ऐसे कई नए नवेले से अहसासों के साथ आइए घुलते हैं इस प्यारे से गीत के साथ..
पानियों की छत पर
बूँदों के भीतर बह चलो
पलकों के तट पर
प्यार के पते पर ले चलो रे
ओ चलो चलें परछाइयाँ बाँधकर
इश्क़ के आबशारों पर
बातें सारी सी लें
प्यार सारा जी लें
बाँधे यूँ ही आँखों से आँखों को चलना
(
(
ख्वाहिशें पहन कर
धड़कनों में घुल कर बह चलो
चाहतों के भीतर
प्यार के सिरे पर ले चलो रे
ओ आओ चलें दुश्वारियाँ बाँधकर
इश्क़ के आबशारों* पर
बातें सारी सी लें
प्यार सारा पी लें
बाँधे यू ही हाथों में हाथों को चलना
*झरना)
उजले उजले दिल के परों पे आ
सदियाँ सदियाँ रख ले पिरो के आ
गहरे गहरे उतरें दिलों में आ
छलके छलके पगले पलों में आ
सारी दोस्ती तुझे आज दे दूँ मैं आ
तेरे वास्ते ले के रास्ता चलूँ
आ चलें
राहें सारी सी लें
साथी साथ जी लें
बाँधे यू ही राहों से राहों को चलना
13 टिप्पणियाँ:
खूबसूरत गीत है.. मैंने नहीं सुना था। शुक्रिया
Manish Ji, Jauhari hi jaane heere ki kadar. Bahut achchaa. Manoj bharosa jagate hain nai peedhi mein.
bol kya hain.... maano lafz-dar-lafz jaadu piro diya gayaa ho ...
poori team ko salaam !!!
"daanish"
पहली बार यह सुना, मन प्रसन्न हो गया।
नाम तक न सुना था फिल्म का ...लेकिन गीत खूबसूरत है...शुक्रिया..
Athhah Sagar se Moti Dhoondh laye.Suna pahli baar,per Dil ko chhoo gaya.Aage bhiIntzar rahega....Thanx.
सही बताएं तो फिल्म का नाम ही पहली बार सुना है.... गीत बढिया लगा..
साझा करने के लिए आभार.
फिल्म का नाम तो सुना था मगर ये गीत नहीं सुना था। गीत वाकई अच्छा है और गीतकार के लेखन के प्रेरणास्रोत गुलज़ार हैं ... वाह।
ऐसा नहीं है कि गुलज़ार के अलावा अच्छे गीतकार और गीतों के जादूगर नहीं हुए हैं बल्कि हैं और बहुत हैं लेकिन गुलज़ार के गीत आप को इंस्पायर करते हैं।
तीनों नए फ़नकारों को उम्मीद भरा सलाम।
nice...manoj bhai
Thankyou so much Manish Kumar ji for liking n loving the lyrics and the song :))
मनोज यादव गुलज़ार का मैं भी शैदाई रहा हूँ। सत्तर के दशक में पंचम, किशोर और गुलज़ार के गीतों को सुनकर ही हिंदी फिलंम संगीत की ओर झुकाव बढ़ा। आज जब शब्दों से ज्यादा सरिदम का बोलबाला है आप जैसे युवा गीतकारों का उभरना आने वाले वर्षों में हम जैसे श्रोताओं के लिए नई उम्मीद जगाता है।
फिल्म के बारे में नहीं जानता था। गाना भी पहली बार सुना। इसे सुनना और भी खूबसूरत हो गया जब इसके गीतकार और गायिका की इतनी सारी बातें भी साझा कर दीं आपने! आभार।
हिमांशु जान कर खुशी हुई कि इस ब्लॉग के माध्यम से ये प्यारा गीत आप तक पहुँचा।
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