शनिवार, दिसंबर 28, 2013

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो : ग़ज़लें बशीर बद्र की भाग 2

तो मैं बात कर रहा था बशीर बद्र की ग़ज़लों के बारे में। पिछली पोस्ट में आपको उनकी तीन ग़ज़लों को पढ़ कर सुनाया था। आज उनकी तीन और ग़ज़लों को पढ़ने की कोशिश की है। बद्र साहब की सबसे मक़बूल ग़ज़लों में उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो..न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए का जिक्र सबसे ऊपर आता है।


उनसे कई साक्षात्कारों में ये पूछा जाता रहा है कि उन्होंने किन हालातों में और कैसे इस ग़ज़ल की रचना की..जवाब में बार बार बद्र बड़ी विनम्रता से सारा श्रेय ऊपरवाले को थमाते हुए कहते रहे हैं

"बस ये समझिए की वह जो आसमानों में बैठा है अज़ीम ख़ुदा सब कुछ वही करता है हम कुछ नहीं करते। वह शायरों के दिलों को अपने नूर से रोशन कर के ऐसे अशआर अता कर देता है जो लोगों की ज़ुबान पर चढ़ जाते हैं। यह सब कुछ अल्लाह का है। शायर कुछ नहीं करता लफ़्ज अता वही करता है। शेर को शोहरत वही बख्शता है। ये सब उसी के काम हैं।"
तो आइए एक बार फिर से पढ़े और सुनें उनकी इस कालजयी ग़ज़ल को
 (4)
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाए

मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए


अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आख़िर
मोहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए

समन्दर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
हवाएँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाए


मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमाँ छूने में जब नाकाम हो जाए

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए




बशीर बद्र की शायरी की खास बात ये रही कि उन्होंने अपनी ग़ज़लों को कठिन उर्दू और फ़ारसी के शब्दों से दूर रखा। सहज शब्दों का प्रयोग के बावज़ूद उनके कथ्य की गहराई वैसी ही रही। अयोध्या में जन्में व कानपुर और अलीगढ़ में पठन पाठन करने वाले इस शायर की ज़िंदगी में कई ऐसे मोड़ आए जिनकी वज़ह से वो उदासियों के गर्त में जा पहुँचे। 1984 के मेरठ दंगों में दंगाइयों ने बद्र साहब का घर जला दिया और इसका उन्हे जबरदस्त सदमा पहुँचा। इसीलिए वो अपने एक शेर में कहते हैं लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में.. तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में। 

बद्र साहब की एक ऐसी ही उदास ग़ज़ल मेरी आज की दूसरी पेशकश है।


(5)
मैं उदास रस्ता हूँ शाम का तिरी आहटों की तलाश है
ये सितारे सब हैं बुझे-बुझे मुझे जुगनुओं की तलाश है

वो जो दरिया था आग का सभी रास्तों से गुज़र गया
तुम्हें कब से रेत के शहर में नयी बारिशों की तलाश है

नए मौसमों की उड़ान को अभी इसकी कोई ख़बर नहीं
तिरे आसमाँ के जाल को नए पंछियों की तलाश है


मिरे दोस्तों ने सिखा दिया मुझे अपनी जान से खेलना
मिरी ज़िंदगी तुझे क्या ख़बर मुझे क़ातिलों की तलाश है

तिरी मेरी एक हैं मंजिलें, वो ही जुस्तजू, वो ही आरज़ू
तुझे दोस्तों की तलाश है मुझे दुश्मनों को तलाश है



 
मेरठ के उस हादसे के बाद बद्र साहब भोपाल चले गए। यहीं उनकी मुलाकात डा. राहत से हुई जो बाद में उनकी ज़िदगी की हमसफ़र बनी। उनकी सोहबत और उत्साहवर्धन ने बद्र साहब को एक नए जोश से भर दिया और उनकी लेखनी एक बार फिर से चल पड़ी। अपनी किताब में राहत बद्र के लिए उन्होंने बड़ा प्यारा सा शेर कहा है जो कुछ यूँ है
चाँद चेहरा, जुल्फ़ दरिया, बात ख़ुशबू, दिल चमन
इक तुम्हें देकर ख़ुदा ने, दे दिया क्या क्या मुझे


चलते चलते उनकी एक और ग़ज़ल सुन ली जाए...
(6)
ख़्वाब इन आँखों का कोई चुराकर ले जाए
क़ब्र के सूखे हुए फूल उठाकर ले जाए


मुन्तज़िर फूल में ख़ुश्बू की तरह हूँ कब से
कोई झोंके की तरह आये उड़ा कर ले जाए


ये भी पानी है मगर आँखों का ऐसा पानी
जो हथेली पे रची मेहँदी छुड़ाकर ले जाए


मैं मोहब्बत से महकता हुआ ख़त हूँ मुझको
ज़िंदगी अपनी किताबों में छुपाकर ले जाए


ख़ाक इंसाफ़ है इन अंधे बुतों के आगे
रात थाली में चराग़ों से सजाकर ले जाए


उनसे ये कहना मैं पैदल नहीं आने वाला
कोई बादल मुझे काँधे पे बिठाकर ले जाए  


 

आशा है बद्र साहब की चुनिंदा ग़ज़लों से मुख़ातिब होना आप सबको पसंद आया होगा। अब अगली मुलाकात होगी एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला में..
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9 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी on दिसंबर 28, 2013 ने कहा…

बशीर जी की गजलें लाजवाब हैं !

ANULATA RAJ NAIR on दिसंबर 28, 2013 ने कहा…

वाकई बशीर बद्र जी की गज़लें दिल को छू जाती हैं.....
बेहद खूबसूरत गज़लें आपने साझा की,पढ़ कर सुनाईं भी,
शुक्रिया
अनु

Parmeshwari Choudhary on दिसंबर 28, 2013 ने कहा…

बहुत अच्छा आलेख है। ग़ज़लों का चयन भी उम्दा है। साझा करने के लिए धन्यवाद्

Unknown on दिसंबर 29, 2013 ने कहा…

बहुत ही उम्दा गजलें है।साझा करने के लिए शुक्रिया मनीष जी।

Unknown on दिसंबर 29, 2013 ने कहा…

क्या बात है! बहुत अच्छे

दिगम्बर नासवा on दिसंबर 30, 2013 ने कहा…

बशीर साहब की गज़ल, उनकी अदायगी ... उनका खास अंदाज़ सबसे जुदा करता है उन्हें ... शुक्रिया इस तोहफे का ...

Unknown on दिसंबर 30, 2013 ने कहा…

मनीष जी बशीर बद्र की सारी उम्दा ग़ज़ल आपने भेजी है इसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया

बेनामी ने कहा…

बशीर बद्र साहब कि गजल वाह क्या गजल है

बेनामी ने कहा…

अंतर्मन को छूने वाली शायरी

 

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