बुधवार, मार्च 30, 2016

दस साल लगातार : एक शाम मेरे नाम ने पूरा किया हिंदी ब्लागिंग का एक दशक (2006-2016) !

पिछले हफ्ते यानि 26 मार्च को एक शाम मेरे नाम का दसवाँ जन्मदिन था यानि मुझे हिंदी ब्लॉगिंग में कदम रखे एक दशक गुजर गया। दस सालों के इस सफ़र को एक पोस्ट में समेट पाना निहायत ही मुश्किल काम है और मैं इसकी कोशिश भी  नहीं करूँगा। फिर भी कुछ बातें जो जरूरी हैं इस सफ़र की कड़ियाँ पिरोने के लिए, उनका जिक्र आज इस पोस्ट के माध्यम से करना चाहता हूँ।


वर्ष 2006 में जब अंग्रेजी से हिंदी ब्लॉगिंग में कदम रखा था तो मुश्किल से सौ के करीब ब्लॉग रहे होंगे जो क्रियाशील थे। ब्लॉगिंग तब हिंदी में लिखने वालों के लिए एक नई चीज़ थी। हिंदी में लिखने पढ़ने की चाह रखने वालों के लिए ये एक नया ज़रिया था आभासी मेल जोल बढ़ाने का। एक दूसरे की पोस्ट को पढ़ने के लिए एग्रग्रेटर बनाने का प्रचलन नारद से तभी शुरु हुआ। बाद में इसकी जगह ब्लॉगवाणी ने ले ली। इन शुरुआती सालों में हिंदी ब्लॉग में वैसे लोग ज्यादा आए जिनका सीधे सीधे हिंदी लेखन से कोई सरोकार नहीं था। लोग कम थे। ज्यादातर आभासी रूप में एक दूसरे से परिचित थे और एक दूसरे के ब्लॉगों पर आना जाना था। कविताएँ लिखने वालों की तादाद इनमें सबसे ज्यादा थी। 

पर बहुत से लोग ये समझ नहीं पाए कि ब्लॉगरों ये आवाजाही हमेशा नहीं रहेगी और उन्हें अपनी विषयवस्तु को ऐसा रखना होगा जिसे हिंदी में रुचि रखने वाला गूगल जैसे सर्च इंजन से खोज कर भी पहुँच सके। हुआ भी वही  जब सैकड़ों से हिंदी ब्लॉगों की संख्या हजार तक पहुँची तो ये संभव ही नहीं रहा कि ब्लॉगर सारे अन्य ब्लॉगरों को पढ़ सकें। ज्यादा संख्या हुई तो ढेर सारे गुट भी बन गए। एक दूसरे पर  छींटाकशी कुछ ब्लागों का शगल बन गया। पर वहीं कुछ ब्लॉग्स इन सब से दूर लेखन के इस वैकल्पिक  मार्ग को हिंदी ब्लॉग लेखन के परिदृश्य को विस्तृत करते रहे। कविता व कहानियों के इतर भी इतिहास, टेक्नॉलजी, व्यंग्य, समाज, भाषा, संगीत, सिनेमा, किताबों,  यात्रा पर अच्छे ब्लॉग्स बनें जो आज तक क्रियाशील हैं और जिनके पाठक वर्ग में कोईकमी नहीं आई है।

फिर एक दौर वो आया जिसमें बड़ी संख्या में पत्रकारों और मीडिया से जुड़े लोगों ने ब्लॉग की शक्ति को पहचाना और बड़े पैमाने पर लिखना शुरु किया। वक़्त के साथ हिंदी ब्लॉगिंग में वही लोग ठहर पाए जिन्होंने अपने ब्लॉग को एक विशिष्ट पहचान दी और अपनी विषय वस्तु मैं नवीनता लाते रहे। साहित्य में पैठ रखने वाले बहुत से लोगों ने ब्लागिंग को किताब लिखने के लिए एक सीढ़ी का इस्तेमाल किया और इसमें सफल भी रहे। एक बार साहित्यिक फलक तक पहुँचने के बाद ब्लागिंग के प्रति उनकी प्रतिबद्धता में कमी आई। वैसे भी फेसबुक जैसे सोशल मीडिया के आने के बाद लोगों को अपनी बातों को एक बड़े वर्ग तक पहुँचाने का हल्का फुल्का ही सही पर व्यापक माध्यम मिल गया  था। जिन लोगों ने अपने ब्लॉग को बतकही का माध्यम बना रखा था वो फेसबुक पर ही अड्डा जमाने लगे।

ये तो हुई हिंदी ब्लॉगिंग के इतिहास की बात। अपनी बात करूँ तो मुझे शुरु से इस बात का इल्म था कि अगर मुझे अपने ब्लॉगिंग की लय बनाई रखनी है तो उसके लिए अपने कांटेंट को सुधारने के लिए लगातार मेहनत करनी होगी। दूसरे ये कि मेरे ब्लॉग विषय आधारित ब्लॉग होंगे। इसी वज़ह से 2008 में मैंने अपने यात्रा लेखों को एक शाम मेरे नाम पर लिखना बंद कर मुसाफ़िर हूँ यारों नाम से यात्रा आधारित ब्लॉग की शुरुआत की। मुझे इस बात का फक्र है कि मुसाफ़िर हूँ यारों ने भारत भर के हिंदी व अंग्रेजी यात्रा ब्लॉगों के बीच अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। 

वहीं एक शाम मेरे नाम पर लगातार मैं गीतों, ग़ज़लों  व किताबों के बारे में लिखता रहा और जब जब अपनी आवाज़ में कुछ पढ़ने का मन किया तो पॉडकास्ट भी  किया। मेरी अक्सर ये कोशिश रही है कि जिन गीतों व ग़ज़लों को मैं आप तक पहुँचाऊँ तो उनके भावों के साथ बनने या लिखने के क्रम में हुई रोचक घटनाओं को भी आपके साथ साझा करूँ। संगीत में नए व पुराने का फर्क मैंने नहीं रखा। हिंदी फिल्म संगीत के स्वर्णिम काल के दिग्गज गीतकार , संगीतकार व गायकों के मधुर गीत भी आपसे बाँटे तो वहीं पिछले ग्यारह सालों से नए फिल्म संगीत में लीक से हटकर जो हो रहा है उसे अपनी वार्षिक संगीतमालाओं में जगह दी। 

सोशल मीडिया के इस दौर से मैं भी अछूता नहीं रहा और मैंने भी फेसबुक का इस्तेमाल अपने लेखों को साझा करने के लिए लगातार किया। बाद में फेसबुक पर अपने दोनों ब्लॉगों एक शाम मेरे नाममुसाफ़िर हूँ यारों के दो पृष्ठ भी बनाए ताकि जो लोग वहाँ मेरी मित्र मंडली में नहीं हैं वो भी ब्लॉग से जुड़ सकें। अब ब्लाग्स की नई प्रविष्टियों से आप गूगल प्लस व ट्विटर पर भी मुखातिब हो सकते हैं।

एक साथ दो ब्लॉगों पर लिखना और उसके बीच आठ घंटों की नौकरी करना कभी आसान नहीं रहा। पर ये मै कर सका तो इसलिए कि संगीत और यात्रा पर लिखते हुए मुझे अन्दर से खुशी मिलती है जो शब्दों से बयाँ नहीं की जा सकती। यही खुशी मुझमें उर्जा भरती है हर  रोज़ ब्लॉगिंग के लिए कुछ घंटे निकालने  के लिए। 

इस दस साल के सफ़र में तमाम पाठकों से मुखातिब रहा। कुछ से साथ छूटा तो कुछ नए साथ आकर जुड़ गए और ये कारवाँ मुझसे कभी अलग नहीं हुआ। यही वज़ह है कि बिना किसी विराम के दस साल का ये सफ़र निर्बाध, लगातार चलता रहा।

ब्लॉगिंग ने  ही संगीत व यात्रा से जुड़ी नामी हस्तियों से भी बातचीत करने का अवसर दिया। मैं इस विधा का शुक्रगुजार हूँ क्यूँकि इसकी वजह से ही मैंने कई बार अख़बार के पन्नों पर सुर्खियाँ बटोरीं,  रेडियो जापान पर बोलने का अवसर मिला, ABP News पर इंटरव्यू देने का मौका मिला पर इससे भी कहीं ज्यादा खुशी इस बात की है ब्लॉगिंग ने मुझे कुछ ऐसे मित्र दिए जो मेरी ज़िंदगी का अहम हिस्सा हैं और रहेंगे।  मुझे यकीं है कि आप सब का प्यार आगे भी एक शाम मेरे नाम मुसाफ़िर हूँ यारों को मिलता रहेगा और मेरी भी कोशिश रहेगी कि मैं आप सबकी की उम्मीद पर आगे भी खरा उतरूँ।

गुरुवार, मार्च 24, 2016

होली के रंग दोहों के संग...

दो तीन हफ्तों से ब्लॉग पर चुप्पी छाई है तो वो इस वज़ह से कि इसी बीच कॉलोनी में घर भी बदलना पड़ा और फिर BSNL वालों से टेलीफोन का स्थानांतरण करवाना कोई आसान काम थोड़े ही है। चलिए फोन अगर शिफ्ट करवा भी लिया तो फिर इंटरनेट सेवा की बहाली करना भी कम मुश्किल नहीं?

सारा कुछ होते होते दो हफ्ते बीत गए और होली भी आ गई तो सोचा सही अवसर है अपने नए घर से पहली पोस्ट करने का। नया घर कॉलोनी के कोने में है। पिछवाड़े में ग्वालों की बस्ती है सो दस बजे के बाद से ही कॉलोनी के अंदर व बाहर हुड़दंग का माहौल है। जोगीया सा रा रा की तर्ज पर एक से एक होली गीत गाए जा रहे हैं। तो मौसम का मिज़ाज देखते हुए लगा कि आपको भी होली के रंग में रँगे कुछ दोहे सुना दिए जाएँ।


इन्हें लिखा है पंकज सुबीर जी ने जो एक ख्यातिप्राप्त साहित्यकार हैं और अपने उपन्यास ये वो सहर तो नहीं के लिए ज्ञानपीठ नवलेखन व अपने कथा संग्रह महुआ घटवारिन के लिए इन्दु शर्मा सम्मान से नवाज़े जा चुके हैं।

बरसाने बरसन लगी, नौ मन केसर धार ।
ब्रज मंडल में आ गया, होली का त्‍यौहार ।।


सतरंगी सी देह पर, चूनर है पचरंग ।
तन में बजती बाँसुरी, मन में बजे मृदंग ।।


बिरहन को याद आ रहा, साजन का भुजपाश।
अगन लगाये देह में, बन में खिला पलाश ।। 


जवाकुसुम के फूल से, डोरे पड़ गये नैन ।
सुर्खी है बतला रही, मनवा है बेचैन ।।


बरजोरी कर लिख गया, प्रीत रंग से छंद ।
ऊपर से रूठी दिखे, अंदर है आनंद ।।


आंखों में महुआ भरा, सांसों में मकरंद ।
साजन दोहे सा लगे, गोरी लगती छंद ।।


कस के डस के जीत ली, रँग रसिया ने रार ।
होली ही हिम्‍मत हुई, होली ही हथियार ।।


हो ली, हो ली, हो ही ली, होनी थी जो बात ।
हौले से हँसली हँसी, कल फागुन की रात ।।

केसरिया बालम लगा, हँस गोरी के अंग ।
गोरी तो केसर हुई, साँवरिया बेरंग ।।

देह गुलाबी कर गया, फागुन का उपहार ।
साँवरिया बेशर्म है, भली करे करतार ।।

साँवरिया रँगरेज ने, की रँगरेजी खूब ।
फागुन की रैना हुई, रँग में डूबम डूब।।

कंचन घट केशर घुली, चंदन डाली गंध ।
आ जाये जो साँवरा, हो जाये आनंद ।।

घर से निकली साँवरी, देख देख चहुँ ओर ।
चुपके रंग लगा गया, इक छैला बरजोर ।।

बरजोरी कान्‍हा करे, राधा भागी जाय ।
बृजमंडल में डोलता, फागुन है गन्नाय ।।

होरी में इत उत लगी, दो अधरन की छाप ।
सखियाँ छेड़ें घेर कर, किसका है ये पाप ।।

कैसो रँग डारो पिया, सगरी हो गई लाल ।
किस नदिया में धोऊँ अब, जाऊँ अब किस ताल ।।

फागुन है सर पर चढ़ा, तिस पर दूजी भाँग ।
उस पे ढोलक भी बजे, धिक धा धा, धिक ताँग ।।

हौले हौले रँग पिया, कोमल कोमल गात ।
काहे की जल्‍दी तुझे, दूर अभी परभात ।।

फगुआ की मस्‍ती चढ़ी, मनवा हुआ मलंग ।
तीन चीज़ हैं सूझतीं, रंग, भंग और चंग ।।


इन दोहों की मस्ती को अपनी आवाज़ देने की कोशिश की है यहाँ...


मेरी तरफ़ से एक शाम मेरे नाम के पाठकों को होली की रंगारंग शुभकामनाएँ !

शनिवार, मार्च 05, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पुनरावलोकन : कौन रहे पिछले साल के संगीत सितारे ?

वार्षिक संगीतमाला 2015 के विधिवत समापन के पहले एक पुनरावलोकन पिछले साल के संगीत के सितारों की ओर। पिछला साल हिंदी फिल्म संगीत में गुणवत्ता के हिसाब से निराशाजनक ही रहा। फिल्में तो सैकड़ों के हिसाब से बनी पर कुल जमा दर्जन सवा दर्जन गीत ही कुछ खास मिठास छोड़ पाए। ये अलग बात है कि मेरी गीतमाला में पच्चीस गीतों की परंपरा है तो मैं भी उनकी फेरहिस्त हर साल सजा ही देता हूँ।

फिल्मी और गैर फिल्मी एलबम तो बाजार में आते ही रहते हैं। इस साल का एक नया चलन ये रहा कि कुछ संगीत कंपनियों ने सिंगल्स को वीडियो शूट कर बाजार में उतारा। सिंगल्स से मतलब ये कि ये  इकलौते गाने किसी फिल्म के लिए नहीं बने। अब तो कुछ और संगीतकार भी इसी दिशा में काम करने की सोच रहे हैं। देखें ये प्रयोग कितना सफल होता है।


साल भर जो दो सौ फिल्में प्रदर्शित हुई उनमें रॉय, बदलापुर, तनु वेड्स मनु रिटर्न, हमारी अधूरी कहानी, जॉनिसार, बजरंगी भाईजान, मसान, पीकू, दम लगा के हैस्सा, तलवार, तमाशा और बाजीराव मस्तानी जैसे एलबम अपने गीत संगीत की वज़ह से चर्चा में आए। पर अपनी पिछली फिल्मों के संगीत की छाया रखते हुए भी संगीतकार संजय लीला भंसाली साल के सर्वश्रेष्ठ एलबम  का खिताब अपने नाम कर गए। इस संगीतमाला में उनके एलबम के तीन गीत शामिल हुए और आज इबादत, पिंगा व दीवानी मस्तानी कगार पे रह गए।

साल के संगीत पर किसी एक संगीतकार का दबदबा नहीं रहा। रहमान, प्रीतम, अनु मलिक, सचिन जिगर, अजय अतुल, विशाल भारद्वाज, क्रस्ना, अंकित तिवारी, हीमेश रेशमिया, जीत गांगुली सबके इक्का दुक्का गाने इस संगीतमाला में बजे। अमित त्रिवेदी के कुछ एलबम जरूर सुनाई पड़े पर विशाल शेखर, शंकर अहसान लॉए, साज़िद वाज़िद जैसे नाम इस साल परिदृश्य से गायब से हो गए। हाँ अनु मलिक ने शानदार वापसी जरूर की।

गायकों में नये पुराने चेहरे जरूर दिखे। साल के सर्वश्रेष्ठ गायक का खिताब मेरे ख्याल से अरिजीत सिंह के नाम रहा। यूँ तो उनके गाए पाँच गाने इस गीतमाला का हिस्सा बने और कुछ बनते बनते रह गए पर बाजीराव मस्तानी के लिए उनका गाया गीत ''आयत'' गायिकी के लिहाज़ से मुझे अपने दिल के सबसे करीब लगा।


श्रेया घोषाल ने जॉनिसार की ग़जल, हमारी अधूरी कहानी के विशुद्ध रोमांटिक गीत और बाजीराव मस्तानी की शास्त्रीयता को बड़े कौशल से अपनी आवाज़ में ढाला। इसलिए मेरी राय में वो साल की सर्वश्रेष्ठ गायिका रहीं। पर साथ ही साथ मैं नवोदित गायिका राम्या बेहरा का भी नाम लेना चाहूँगा जिन्होंने हिंदी फिल्म के अपने पहले गीत से ही दिल में जगह बना ली। राम्या बेहरा, पायल देव व अंतरा मित्रा के डमी गीतों को जिस तरह बिना किसी दूसरे ज्यादा नामी गायक से गवाए हुए अंतिम स्वीकृति दी गई वो इस प्रवृति को दर्शाता है कि बॉलीवुड में नई प्रतिभाओं को आगे लाने के लिए कुछ निर्माता निर्देशक जोख़िम उठाने को तैयार हैं।

साल के सर्वश्रेष्ठ गीतकार तो निसंदेह वरुण ग्रोवर हैं जिन्होंने मोह मोह के धागे और तू किसी रेल सी गुजरती है जैसे गीतों को लिखकर सबका दिल जीत लिया। पर इस साल गीतकारों में कुछ नए नाम भी चमके जैसे अभयेन्द्र कुमार उपाध्याय और ए एम तुराज जिन्होंने रॉय व बाजीराव मस्तानी के लिए प्रशंसनीय कार्य किया। इरशाद कामिल व अमिताभ भट्टाचार्य के लिए भी ये साल अच्छा ही रहा। महिला गीतकार में इस बार सिर्फ क़ौसर मुनीर ही संगीतमाला में दाखिल हो सकीं।

मेरे गीतों के चयन से हर बार लोग कभी बहुत खुश होते हैं तो कभी नाराज़ भी।  पर कोई गीत किसी को क्यूँ अच्छा या खराब लगता है इसकी तमाम वजहें हो सकती हैं। आपको जान कर ताज्जुब होगा कि संगीत का मूल्यांकन करने वाले दक्ष लोग भी एक ही गीत के बारे में 180 डिग्री उल्टे विचार रखते हैं। अब देखिए ना इंटरनेट के RMIM समूह द्वारा हर साल दर्जन भर जूरियों की मदद से साल के सर्वश्रेष्ठ नग्मों का चयन होता है पर ऐसा हो ही नहीं सकता कि गीत पर व्यक्त सारे विचारों से सहमति हो। तीन चार बार जिसमें ये साल भी शामिल है, मुझे भी बतौर जूरी इस में शामिल होने का मौका मिला है पर कभी भी अंतिम निर्णय से ख़ुद को पूरी तरह सहमत नहीं पाया। 



अब मिसाल के तौर पर मेरे लिए जॉज़ से जुड़ा बाम्बे वेल्वेट में अमित त्रिवेदी का संगीत फिल्म की जरूरतों के हिसाब से तो ठीक ठाक लगा पर उसे मेरे साथ के जूरी मेम्बरान ने साल का बेस्ट एलबम कैसे करार दिया  ये निर्णय मेरे गले नहीं उतरा। इसकी दो वजहें हो सकती हैं या तो उन्होंने जो अच्छाई इस एलबम में देखीं वो मेरी समझ के परे रहीं या फिर हमारी संगीत को अच्छा बुरा कहने की कसौटी ही अलग है। दूसरी ओर उन्ही जूरी मेम्बर की राय बहुत सारे दूसरे गीतों मे हूबहू रही।

कहने का मतलब ये कि गीतों के प्रति मेरी या किसी की राय कोई पत्थर की लकीर नहीं है और ये जरूरी नहीं कि आप मेरी राय से इत्तिफाक रखें।  मुझे कोई गीत क्यूँ पसंद आता है उसकी वजहें मैं अपनी पोस्ट में यथासंभव लिखता हूँ। आप सहमत हैं मेरे आकलन से तो ठीक और नहीं है तो भी आप अपने विचार रखिए। आपकी पसंद जानना मुझे अच्छा लगता है। पर ना मैं अपनी पसंद बदलने में यकीन रखता हूँ ना आपकी बदलना चाहता हूँ। आप सोच रहे होंगे कि ये सब मैं क्यूँ लिख रहा हूँ तो उसकी वजह ये है कि कल एक संदेश आया कि मैं गीत चुनने में अपनी दिल की आवाज़ नहीं सुन पा रहा हूँ और दूसरों से प्रभावित होकर अपने गीत चुनता हूँ। मुझे हँसी भी आई और गुस्सा भी। हँसी इसलिए कि उन सज्जन ने मेरा मन कब पढ़ लिया और गुस्सा इसलिए कि लोग बिना किसी को जाने समझे उसकी ईमानदारी पर उँगलियाँ उठा देते हैं। मन तो हुआ कि डॉयलाग मार दूँ कि एक बार मैंने रेटिंग बना ली तो मैं खुद की भी नहीं सुनता :p। मैं ये भी जानता हूँ कि जो लोग ऐसी प्रतिक्रिया देते हैं उन्हें ख़ुद संगीत से बेहद लगाव है। पर ऐसे लोगों को दूसरे की राय के प्रति सम्मान रखने की भी तो आदत रखनी चाहिए।

ख़ैर,इससे पहले कि मैं आप सब से विदा लूँ अपने कुछ साथियों  मन्टू कुमार, कंचन सिंह चौहान, सुमित, दिशा भटनागर, राजेश गोयल, मनीष कौशल, कुमार नयन सिंह, स्वाति गुप्ता, स्मिता जयचंद्रन का विशेष धन्यवाद देना चाहूँगा जो लगातार इस श्रंखला के साथ बने रहे और बाकी  मित्रों का भी जो गीतों के प्रति अपने नज़रिये से मुझे अवगत कराते रहे। आशा है अगली वार्षिक संगीतमाला में भी आपका साथ मिलता रहेगा।

वार्षिक संगीतमाला 2015

मंगलवार, मार्च 01, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 सरताज गीत : मोह मोह के धागे Moh Moh Ke Dhage

दो महीनों की इस संगीत यात्रा के बाद बारी है आज वार्षिक संगीतमाला 2015 के सरताजी बिगुल को बजाने की। संगीतमाला की चोटी पर गाना वो जिसके साथ संगीतकार अनु मलिक ने की है हिंदी फिल्म जगत में शानदार वापसी। शिखर पर एक बार फिर हैं  वरुण ग्रोवर के प्यारे बोल जो पापोन व मोनाली ठाकुर की आवाज़ के माध्यम से दिल में प्रीत का पराग छोड़ जाते हैं। यानि ये कहना बिल्कुल अतिश्योक्ति नहीं होगी कि वो होगा ज़रा पागल जिसने इसे ना चुना :)। तो चलिए आज इस आपको बताते हैं इस गीत की कहानी इसे बनाने वाले किरदारों की जुबानी।



अनु मलिक का नाम हिंदी फिल्म संगीत में लीक से हटकर बनी फिल्मों के साथ कम ही जुड़ा है। पर जब जब ऐसा हुआ है उन्होंने अपने हुनर की झलक दिखलाई है। एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं के एक दशक से लंबे इतिहास में उमराव जान के गीत अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो के लिए वो ये तमगा पहले भी हासिल कर चुके हैं। पर इस बात का उन्हें भी इल्म रहा है कि अपने संगीत कैरियर का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने  बाजार की जरूरतों को पूरा करने में बिता दिया। इतनी शोहरत हासिल करने के बाद भी उनके अंदर कुछ ऐसा करने की ललक बरक़रार है जिसे सुन कर लोग लंबे समय याद रखें। उनकी इसी भूख का परिणाम है फिल्म दम लगा के हईशा  का ये अद्भुत गीत ! 

अनु मलिक ने गीत के मुखड़ा राग यमन में बुना जो आगे जाकर राग पुरिया धनश्री में मिश्रित हो जाता है। इंटरल्यूड्स में एक जगह शहनाई की मधुर धुन है तो दूसरे में बाँसुरी की। पर अनु मलिक की इस रचना की सबसे खूबसूरत बात वो लगती है जब वो मुखड़े के बाद तू होगा ज़रा पागल से गीत को उठाते हैं। पर  ये भी सच है की उनकी इतनी मधुर धुन को अगर वरुण ग्रोवर के लाजवाब शब्दों का साथ नहीं मिला होता तो ये गीत कहाँ अमरत्व को प्राप्त होता ?


वरुण ग्रोवर और अनु मलिक
वैसे इसी अमरत्व की चाह, कुछ अलग करने के जुनून  ने IT BHU के इस इंजीनियर को मुंबई की माया नगरी में ढकेल दिया। यूपी के मध्यम वर्गीय परिवार में पले बढ़े वरुण ग्रोवर का साहित्य से बस इतना नाता रहा कि उन्होंने बचपन में  बालहंस नामक बाल पत्रिका के लिए एक कहानी भेजी थी। हाँ ये जरूर था कि घर में पत्र पत्रिकाएँ व किताबें के आते रहने से उन्हें पढ़ने का शौक़ शुरु से रहा। वरुण कहते हैं कि छोटे शहरों में रहकर कई बार आप बड़ा नहीं सोच पाते। लखनऊ ने उन्हें अपने सहपाठियों की तरह इंजीनियरिंग की राह पकड़ा दी। बनारस गए तो पढ़ाई के साथ नाटकों से जुड़ गए और बतौर लेखक उनके मन में कुछ करने का सपना पलने लगा था। पुणे में नौकरी करते समय उन्होंने सोचा था कि दो तीन साल काम कर कुछ पैसे जमा कर लेंगे और फिर मुंबई की राह पकड़ेंगे। पर ग्यारह महीनों में  सॉफ्टवेयर जगत में काम करते हुए उनका अपनी नौकरी से  मोह भंग हो गया।

लेखक के साथ वरुण को चस्का था कॉमेडी करने का तो मुंबई की फिल्मी दुनिया में उन्हें पहला काम ग्रेट इ्डियन कॉमेडी शो लिखने का मिला। बाद में वो ख़ुद ही स्टैंड अप कॉमेडियन बन गए पर साथ साथ वो फिल्मों में लिखने के लिए अवसर की तलाश कर रहे थे। जिन लोगों के साथ वो काम करना चाहते थे वहाँ पटकथा लिखने का तो नहीं पर गीत रचने का मौका था। सो वो गीतकार बन गए। नो स्मोकिंग के लिए गाना लिखा पर वो उसमें इस्तेमाल नहीं हो सका। फिर अनुराग कश्यप ने उन्हें दि गर्ल इन येलो बूट्स में मौका दिया पर वरुण पहली बार लोगों की नज़र में आए गैंग्स आफ वासीपुर के गीतों की वजह से। फिर दो साल पहले आँखो देखी आई जिसने उनके काम को सराहा गया और आज देखिए इस वार्षिक संगीतमाला की दोनों शीर्ष पायदानों पर उनके गीत राज कर रहे हैं।

अनु मलिक ने अपने इस गीत के लिए जब पापोन को बुलाया तो वो तुरंत तैयार हो गए। अनु कहते हैं कि पहली बार ही गीत सुनकर पापोन का कहना था कि ये गाना जब आएगा ना तो जान ले लेगा

मोनाली ठाकुर और पापोन
जब गीत का फीमेल वर्सन बनने लगा तो अनु मलिक को मोनाली ठाकुर  की आवाज, की याद आई। ये वही मोनाली हैं जिन्होंने सवार लूँ से कुछ साल पहले लोगों का दिल जीता था।  मोनाली ने इंडियन आइडल में जब हिस्सा लिया था तो अनु जी ने उनसे वादा किया था कि वो अपनी फिल्म में उन्हें गाने का एक मौका जरूर देंगे। अनु मलिक को ये मौका देने में सात साल जरूर लग गए पर जिस तरह के गीत के लिए उन्होंने मोनाली को चुना उसके लिए वो आज भी उनकी शुक्रगुजार हैं। पापोन व मोनाली दोनों ने ही अपने अलग अलग अंदाज़ में इस गीत को बेहद खूबसूरती से निभाया है।

वरुण ने क्या प्यारा गीत लिखा है। सहज शब्दों में इक इक पंक्ति ऐसी जो लगे कि अपने लिए ही कही गई हो। अब बताइए मोह के इन धागों पर किसका वश चला है? एक बार इनमें उलझते गए तो फिर निकलना आसान है क्या? फिर तो हालत ये कि आपका रोम रोम इक तारा बन जाता है जिसकी चमक आप उस प्यारे से बादल में न्योछावर कर देना चाहते हों । अपनी तमाम कमियों और अच्छाइयों के बीच जब कोई आपको पसंद करने लगता है, आपकी अनकही बातों को समझने लगता है तो फिर  व्यक्तित्व की भिन्नताएँ चाहे दिन या रात सी क्यूँ ना हों मिलकर एक सुरमयी शाम की रचना कर ही देती हैं। इसीलिए गीत में वरुण कहते हैं.

हम्म... ये मोह मोह के धागे,तेरी उँगलियों से जा उलझे 
कोई टोह टोह ना लागे, किस तरह गिरह ये सुलझे 
है रोम रोम इक तारा.. 
है रोम रोम इक तारा ,जो बादलों में से गुज़रे.. 

ये मोह मोह के धागे....


तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना 
तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना 
कैसे तूने अनकहा, तूने अनकहा सब सुना 
तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना 
तू दिन सा है, मैं रात आना दोनों  
मिल  जाएँ शामों की तरह 

बिना आगे पीछे सोचे अपने प्रिय के साथ बस यूं ही समय बिताना बिना किसी निश्चित मंजिल के भले ही एक यूटोपियन अहसास हो पर उस बारे में सोचकर ही मन कितना आनंदित हो जाता है...नहीं ?


ये मोह मोह के धागे....
कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था 
कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था 
चिट्ठियों को जैसे मिल गया ,जैसे इक नया सा पता 
कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था 
खाली राहें, हम आँख मूंदे जाएँ 
पहुंचे कहीं तो बेवजह 

ये मोह मोह के धागे। ... 

 
अनु जी की धुन पर वरुण ने ये गीत पहले पापोन वाले वर्सन के लिए लिखा। मोनाली ठाकुर वाले वर्सन में गीत का बस दूसरा अंतरा बदल जाता है।

कि तेरी झूठी बातें मैं सारी मान लूँ
आँखों से तेरे सच सभी सब कुछ अभी जान लूँ
तेज है धारा, बहते से हम आवारा
आ थम के साँसे ले यहाँ



तो बताइए कैसा लगा आपको ये सरताज नग्मा ? पिछले साल के गीत संगीत की विभिन्न विधाओं में अव्वल रहे कलाकारों की चर्चा के साथ लौटूँगा इस संगीतमाला के पुनरावलोकन में।


वार्षिक संगीतमाला 2015

1  ये मोह मोह के धागे  Moh Moh Ke Dhage
 

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English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
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Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
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Lolita
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स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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