गुरुवार, जनवरी 26, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान संख्या 17 : पल्लवी जोशी जब पहुँची माइक के पीछे Chand Roz Meri Jaan...

आपको याद होगा कि कुछ साल पहले फिल्म हैदर में विशाल भारद्वाज ने फ़ैज़ की ग़ज़ल गुलो में रंग भरे का इस्तेमाल किया था और वो भी अरिजीत सिंह की आवाज़ में। इस साल फिर फ़ैज वार्षिक संगीतमाला का हिस्सा बने हैं एक नज़्म के साथ जिसे आवाज़ दी है एक अभिनेत्री ने।हिंदी फिल्मों में अभिनेत्रियों द्वारा गायिकी की कमान सँभालने के दृष्टांत हमेशा से रहे हैं और आजकल तो प्रियंका चोपड़ा, आलिया भट्ट व श्रद्धा कपूर ने इस प्रवृति को और गति प्रदान की है। पुराने ज़माने में भी सुरैया, गीता दत्त और सुलक्षणा पंडित ने नायिका व गायिका के रूप में अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। उमा देवी यानि टुनटुन ने हास्य अभिनय के साथ कुछ बेहद मशहूर नग्मे गाए। बाद में शबाना आज़मी की आवाज़ में कुछ गीत रिकार्ड हुए। इसी सिलसिले में एक नया नाम जुड़ा है पल्लवी जोशी का।


जो लोग पल्लवी जोशी के फिल्म जगत के आरंभिक दिनों से परिचित ना हों उन्हें बताना चाहूँगा कि हिंदी फिल्मों में सत्तर और अस्सी के शुरुआती सालों में सिनेमा के रूपहले पर्दे पर वो बतौर बाल कलाकार नज़र आयीं। अस्सी के उत्तरार्ध और नब्बे के दशक में हिंदी फिल्मों में भी वो यदा कदा दिखती रहीं। कला फिल्मों और बाद में टीवी धारावाहिकों में अपने जानदार अभिनय से वो एक जाना पहचाना चेहरा बन गयीं। फिर उन्हें गुनगुनाते हुए अनु कपूर के साथ मैंने जी टीवी के लोकप्रिय कार्यक्रम अंत्याक्षरी में देखा गया। तभी पता चला कि उन्होंने अभिनय के साथ शास्त्रीय संगीत भी सीखा हुआ है।

पिछले साल मई महीने में विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित एक फिल्म प्रदर्शित हुई Buddha in a Traffic Jam जो कि सामाजिक एवम् राजनीतिक ख़ामियों की ओर इशारा करती एक फिल्म थी। सामाजिक प्रताड़ना चाहे वो जबरन नैतिक आचार संहिता थोपने के रूप में हो या कट्टरवाद कै तौर पर उसका प्रतिरोध जरूरी है। यही इस फिल्म का संदेश था और इसके लिए विवेक एक गीत की तलाश में थे। स्वाभाविक रूप से उनकी खोज फ़ैज़ की इस नज़्म पर आकर समाप्त हुई। आख़िर फ़ैज की शायरी अपने ज़माने में सामाजिक और राजनीतिक बदलाव का स्वर बन कर उभरी थी और आज भी लोगों को प्रेरणा देती रही है। ये नज़्म भी फ़ैज़ ने तब लिखी थी जब पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाक़त अली खाँ की सरकार के तख्तापलट करने की साजिश रचने के जुर्म में उन्हें जेल भेज दिया गया था।


पल्लवी बताती हैं कि उनके पति व निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने उनसे कहा कि इस नज़्म के लिए उन्हें एक कच्ची या अपरिष्कृत आवाज़ की जरूरत है जो वो बखूबी पूरा कर सकती हैं। पल्लवी ने संगीत की तालीम जरूर ली थी पर कभी इस तरह गाने का ख़्याल उनके मन में नहीं आया था। पर विवेक के ज़ोर देने से वो मान गयीं और उन्हें इसे निभाने में कोई दिक्कत भी नहीं हुई। उनके लिए ये सुखद अनुभव रहा। ये अलग बात है कि घर का मामला होने की वज़ह से उन्हें इस नज़्म को गाने के लिए पैसे नहीं मिले।

इस गीत को संगीतबद्ध किया रोहित शर्मा  ने। वैसे जहाँ शब्द महत्त्वपूर्ण हो और फ़ैज़ जैसे शायर के लिखे हों वहाँ वाद्य यंत्रों की गुंजाइश कम ही रह जाती है और इसीलिए पूरी नज़्म में आपको पल्लवी की आवाज़ के साथ मात्र हारमोनियम ही बजता सुनाई देगा। तो आइए सुनते हैं पल्लवी जोशी की आवाज़ में ये संवेदनशील नज़्म

चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
ज़ुल्म की छाँव में दम लेने
पे मजबूर हैं हम
इक ज़रा और सितम सह लें तड़प लें रो लें
अपने अजदाद  की मीरास है माज़ूर हैं हम

जिस्म पर क़ैद है जज़्बात पे ज़ंजीरे हैं 
फ़िक्र महबूस है गुफ़्तार पे ताज़ीरें हैं

और अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिये जाते हैं
ज़िन्दगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है
जिसमें  
हर घड़ी दर्द के पैबंद लगे जाते हैं

बस कुछ ही दिनों की बात है मेरे हमदम सिर्फ कुछ दिनों की। अभी तो ये जुल्म ओ सितम सहना होगा। क्या करें अपने बाप दादा की इस धरोहर में हम फिलहाल लाचार हैं। शरीर तो क़ैद कर ही लिया इन्होंने और अब मन की भावनाओ को जकड़ना चाहते हैं। यहाँ तो सोचने, चिंतन करने और यहाँ तक कि बातचीत पर भी पाबंदी है। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं छोड़ी है भले ही ये ज़िंदगी के उस गरीब की फटी पुरानी पोशाक बन गयी है जिस पर जब तब दर्द के पैबंद लगते रहते हैं।  
 
लेकिन अब ज़ुल्म की मीयाद के दिन थोड़े हैं
इक ज़रा सब्र कि फ़रियाद के दिन थोड़े हैं

अर्सा-ए-दहर की झुलसी हुई वीरानी में
हम को रहना है पर यूँ ही तो नहीं रहना है
अजनबी हाथों का बेनाम गराँ-बार सितम
आज सहना है हमेशा तो नहीं सहना है



ये तेरे हुस्न से लिपटी हुई आलाम की गर्द
अपनी दो रोज़ा जवानी की शिकस्तों का शुमार
चाँदनी रातों का बेकार दहकता हुआ दर्द
दिल की बेसूद तड़प जिस्म की मायूस पुकार

चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त चंद ही रोज़ 

पर इस जुल्म की मीयाद लंबी नहीं। न्याय मिलने का दिन दूर नहीं। अत्याचार से झुलसे दुनिया के इस मैदान में हम इन हालातों में और नहीं रह सकते। आज इन पराए लोगों द्वारा मन को बोझिल कर देने वाला सितम हमेशा तो नहीं सहना है। तेरी सु्ंदरता में लिपटे इन ग़मों की धूल,  दिल की अनुत्तरित तड़प, जिस्म की भोली जरूरतें, चाँदनी रातों का उमड़ता दर्द  इन्हें इंतज़ार करना होगा। कुछ दिन और, सिर्फ कुछ दिन और!

यूँ तो पल्लवी जोशी ने पूरी नज़्म ही रिकार्ड की है पर फिल्म में गीत के वीडियो में नज़्म का एक हिस्सा कटा हुआ है।


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक

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12 टिप्पणियाँ:

Asha Kiran on जनवरी 27, 2017 ने कहा…

लाजवाब गीत -संगीत सुनवाने के लिये धन्यवाद ..

Manish Kumar on जनवरी 27, 2017 ने कहा…

इस नज़्म को पसंद करने का शुक्रिया आशा जी!

Manish Kaushal on जनवरी 27, 2017 ने कहा…

पहली बार ही सुना हूँ, सुंदर गीत ..

Manish Kumar on जनवरी 27, 2017 ने कहा…

हाँ इस तरह की फिल्में सिनेमा के पर्दे पर कुछ दिन की ही मेहमान होती हैं।

Raman Kaul on जनवरी 27, 2017 ने कहा…

बहुत बढ़िया गाया है पल्लवी ने इस नज़्म को। एक उच्चारण की त्रुटि है जो शायद गवाने वालों की ग़लती है। "अज़दाद" के स्थान पर "अजदाद" होना चाहिए।

Manish Kumar on जनवरी 27, 2017 ने कहा…

हाँ सही पकड़ा रमण जी। वैसे महबूस की जगह माहबूस भी गाया है उन्होंने.. पर गायिकी, पहली दफ़ा गाने के हिसाब से शानदार है। आशा है वो ये सिलसिला जारी रखेंगी।

Vinita Arora on जनवरी 27, 2017 ने कहा…

पता ही नही था कि पल्लवी जोशी ने कोई गीत भी गाया है। धन्यवाद ... पल्लवी जोशी हमेशा से मुझे अच्छी लगती हैं।

Manish Kumar on जनवरी 27, 2017 ने कहा…

Vinita jee जी टीवी की अंत्याक्षरी और उससे पहले धारावाहिकों और गंभीर फिल्मों में उनकी अदाकारी की तो हमारी पीढ़ी क़ायल रही है।

Kanchan Singh Chouhaan on जनवरी 29, 2017 ने कहा…

यह गीत है मेरी पसंद वाला गीत। यह फिल्म भी शायद अच्छी थी कुछ लोगों ने सजेस्ट की थी। अब ये गीत सुनने के बाद मूवी देखने की इच्छा पुनर्जागृत हो गयी

kumar gulshan on जनवरी 30, 2017 ने कहा…

और अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिये जाते हैं ज़िन्दगी क्या किसी मुफलिस की कबा है जिसमें हर घड़ी दर्द के पेबंद लगे जाते है ....क्या बात है शानदार.. पल्लवी जी नाम भी मुझे मालुम ना था ..पर टीवी पे देख काफी चूका हूँ

Manish Kumar on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

कंचन : फ़ैज़ की सदाबहार नज़्म है। आपने पहले भी सुनी होगी। वैसे पल्लवी ने भी अच्छी तरह निभाया है इसे।

Manish Kumar on फ़रवरी 06, 2017 ने कहा…

गुलशन : हाँ वो हमारी पीढ़ी की एक अच्छी अभिनेत्री हैं। इस गीत के बाद तो उन्हें एक अच्छी आवाज़ की मालकिन भी कह सकते हैं।

 

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