अँखियाँ भी क्या सुरीली हो सकती हैं? सच कहूँ तो कभी आँखों के सुरीलेपन को जाँचने की कोशिश की ही कहाँ मैंने? शायद उसके लिए गुलज़ार जैसी शायराना तबियत की जरूरत थी। हाँ ये जरूर है कि जब से गुलज़ार ने आँखों के लिए इस विशेषण का इस्तेमाल अपने लिखे इस गीत में कर दिया है तबसे मैं भी एक जोड़ी सुरीले नयनों की तलाश में हूँ। देखूँ ढूँढ पाता हूँ या नहीं :)!
शायरों की यही तो खासियत है कि ऐसे ऐसे रूपकों को इस्तेमाल करते हैं जिन्हें सुन कर सुनने वाला पहले तो ये सोचता है कि ये ख़्याल उसके मन में पहले क्यूँ नहीं आया और फिर लिपटता चला जाता है शायर द्वारा बिछाए गए कल्पनाओं के जाल में। वार्षिक संगीतमाला की सातवीं पॉयदान पर फिल्म वीर का ये गीत हृदय में कुछ ऐसा ही अहसास दे कर चला जाता है।
साज़िद वाज़िद वैसे तो बतौर संगीतकार पिछले बारह सालों से फिल्म उद्योग से जुड़े हैं। पर उनके द्वारा रचे गए पहले के संगीत में ऍसी कोई बात दिखती नहीं थी कि उन्हें संगीतकारों की भीड़ से अलग दृष्टि से देखा जाए। इस लिए जब निर्देशक अनिल शर्मा को अंग्रेजी राज के ज़माने की इस ऍतिहासिक प्रेम कथा के संगीत रचने के लिए साज़िद वाज़िद का नाम सलमान खाँ द्वारा सुझाया गया तो वो मन से इसके लिए तैयार नहीं थे। पर साज़िद वाज़िद की जोड़ी ने अपने बारे में उनकी सोच को बदलने पर मज़बूर कर दिया। गीतकार गुलज़ार जिन्होंने पहली बार साज़िद वाज़िद के साथ इस फिल्म में काम किया ने पिछले साल स्क्रीन पत्रिका में दिये गए एक साक्षात्कार में कहा था कि
खुद भाइयों की ये संगीतकार जोड़ी मानती हैं कि ये फिल्म उन्हें सही समय पर मिली। अगर कैरियर की शुरुआत में ऐसी फिल्म मिलती तो उसके साथ वे पूरा न्याय नहीं कर पाते। इस फिल्म को करते हुए उन्होंने अपने एक दशक से ज्यादा के अनुभव का इस्तेमाल किया। संगीत के हर टुकड़ों को रचने के लिए पूरा वक्त लिया और सही असर पैदा करने के लिए गीत की 'लाइव' रिकार्डिंग भी की।
गिटार और पियानो की पार्श्व धुन से शुरु होते इस गीत को जब गुलजार के बहते शब्दों और राहत की सधी हुई गायिकी का साथ मिलता है तो मूड रोमांटिक हो ही जाता है। गीत के पीछे के संगीत संयोजन में कम से कम वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल हुआ है पर उसकी मधुरता और बहाव गीत की भावनाओं के अनुरूप है। फिल्म के पश्चिमी परिवेश की वजह से गीत का एक अंतरा अंग्रेजी में लिखा गया है जिसे सूजन डिमेलो ने अपनी आवाज़ से सँवारा है।
तो आइए डूबते हैं गुलज़ार के शब्दों के साथ राहत जी के द्वारा गाए हुए इस बेमिसाल गीत में..
अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...
शायरों की यही तो खासियत है कि ऐसे ऐसे रूपकों को इस्तेमाल करते हैं जिन्हें सुन कर सुनने वाला पहले तो ये सोचता है कि ये ख़्याल उसके मन में पहले क्यूँ नहीं आया और फिर लिपटता चला जाता है शायर द्वारा बिछाए गए कल्पनाओं के जाल में। वार्षिक संगीतमाला की सातवीं पॉयदान पर फिल्म वीर का ये गीत हृदय में कुछ ऐसा ही अहसास दे कर चला जाता है।
साज़िद वाज़िद वैसे तो बतौर संगीतकार पिछले बारह सालों से फिल्म उद्योग से जुड़े हैं। पर उनके द्वारा रचे गए पहले के संगीत में ऍसी कोई बात दिखती नहीं थी कि उन्हें संगीतकारों की भीड़ से अलग दृष्टि से देखा जाए। इस लिए जब निर्देशक अनिल शर्मा को अंग्रेजी राज के ज़माने की इस ऍतिहासिक प्रेम कथा के संगीत रचने के लिए साज़िद वाज़िद का नाम सलमान खाँ द्वारा सुझाया गया तो वो मन से इसके लिए तैयार नहीं थे। पर साज़िद वाज़िद की जोड़ी ने अपने बारे में उनकी सोच को बदलने पर मज़बूर कर दिया। गीतकार गुलज़ार जिन्होंने पहली बार साज़िद वाज़िद के साथ इस फिल्म में काम किया ने पिछले साल स्क्रीन पत्रिका में दिये गए एक साक्षात्कार में कहा था कि
साज़िद वाज़िद बेहद प्रतिभाशाली हैं। इन्हें इनके हुनर के लिए जो सम्मान मिलना चाहिए वो अब तक उन्हें नहीं मिला। शायद इस फिल्म के बाद लोगों में वो अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हों। पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे प्रभावित कर दिया। उन्नीसवीं शताब्दी के ब्रिटिश राज में उपजी इस प्रेम कहानी को पाश्चात्य और लोक धुनों के जिस सम्मिश्रण की आवश्यकता थी वो इन दोनों ने भली भांति पूरी की है।
खुद भाइयों की ये संगीतकार जोड़ी मानती हैं कि ये फिल्म उन्हें सही समय पर मिली। अगर कैरियर की शुरुआत में ऐसी फिल्म मिलती तो उसके साथ वे पूरा न्याय नहीं कर पाते। इस फिल्म को करते हुए उन्होंने अपने एक दशक से ज्यादा के अनुभव का इस्तेमाल किया। संगीत के हर टुकड़ों को रचने के लिए पूरा वक्त लिया और सही असर पैदा करने के लिए गीत की 'लाइव' रिकार्डिंग भी की।
गिटार और पियानो की पार्श्व धुन से शुरु होते इस गीत को जब गुलजार के बहते शब्दों और राहत की सधी हुई गायिकी का साथ मिलता है तो मूड रोमांटिक हो ही जाता है। गीत के पीछे के संगीत संयोजन में कम से कम वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल हुआ है पर उसकी मधुरता और बहाव गीत की भावनाओं के अनुरूप है। फिल्म के पश्चिमी परिवेश की वजह से गीत का एक अंतरा अंग्रेजी में लिखा गया है जिसे सूजन डिमेलो ने अपनी आवाज़ से सँवारा है।
तो आइए डूबते हैं गुलज़ार के शब्दों के साथ राहत जी के द्वारा गाए हुए इस बेमिसाल गीत में..
सुरीली अँखियों वाले, सुना है तेरी अँखियों से
बहती हैं नींदें...और नींदों में सपने
कभी तो किनारों पे, उतर मेरे सपनों से
आजा ज़मीन पे और मिल जा कहीं पे
मिल जा कहीं, मिल जा कहीं समय से परे
समय से परे मिल जा कहीं
तू भी अँखियों से कभी मेरी अँखियों की सुन
सुरीली अँखियों वाले, सुना है तेरी अँखियों से...
जाने तू कहाँ है
उड़ती हवा पे तेरे पैरों के निशां देखे
ढूँढा है ज़मीं पे छाना है फ़लक पे
सारे आसमाँ देखे
मिल जा कहीं समय से परे
समय से परे मिल जा कहीं
तू भी अँखियों से कभी मेरी अँखियों की सुन
सुरीली अँखियों वाले सुना दे ज़रा अँखियों से
Everytime I look into your eyes, I see my paradise
The stars are shining right up in the sky, painting words or designs
Can this be real, are you the one for me
You have captured my mind, my heart, my soul on earth
You are the one waiting for
Everytime I look into your eyes, I see my paradise
Stars are shining right up in the sky, painting words or designs
ओट में छुप के देख रहे थे,
चाँद के पीछे, पीछे थे
सारा ज़हाँ देखा, देखा ना आँखों में
पलकों के नीचे थे
आ चल कहीं समय से परे
समय से परे चल दे कहीं
तू भी अँखियों से कभी मेरी अँखियों की सुन
अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...