अब जबकि युद्ध के बादलों की जगह बारिश के बादलों ने ले ली है तो इस संगीतमाला को फिर से शुरु करते हुए लौटते हैं पिछले साल के बेहतरीन गीतों की इस शृंखलाकी उन्नीसवीं पायदान के इस गीत की तरफ जिसे लिखा स्वानंद किरकिरे ने, धुन बनाई राम संपत ने और गाया श्रेया घोषाल ने। फिल्म लापता लेडीज़ तो आपमें से बहुतों ने देखी होगी और ये गीत फिल्म के सुखद अंत के समय आता है जब जया अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक नए सफ़र पर निकल पड़ती है। स्वानंद जया के मन को कुछ इन पंक्तियों में बाँधने की प्यारी कोशिश करते हैं।
संग चल मेरे, रोके क्यूँ जिया
हो,
धीमे-धीमे चले पुरवैया
रुत ये अनोखी सी आई, सजनिया
बादल की डोली में लो बैठी रे बुँदनिया
धरती से मिलने को निकली सावनिया
सागर में घुलने को चली देखो नदिया, धीमे-धीमे चले पुरवैया...
बादल की डोली में लो बैठी रे बुँदनिया
धरती से मिलने को निकली सावनिया
सागर में घुलने को चली देखो नदिया, धीमे-धीमे चले पुरवैया...
एक ऐसे अनजान गाँव से जहाँ नियति के चक्र ने उसे अचानक ला खड़ा किया था, जया अपने सपनों का मुकाम तलाशने शहर की ओर जा रही है। गाँव नदी, शहर समंदर और बादल की वो बूँद अगर जया हो तो स्वानंद का लिखा ये अंतरा कितना सार्थक हो उठता है। नई उम्मीद का संचार करता गीत का दूसरा अंतरा भी उतना ही प्रभावी है।
नया सफ़र है, एक नया हौसला, बाँधा चिड़ियों ने नया घोंसला
नई आशा का दीपक जला, चला सपनों का नया क़ाफ़िला
नई आशा का दीपक जला, चला सपनों का नया क़ाफ़िला
कल को करके सलाम, आँचल हवाओं का थाम
देखो उड़ी एक धानी चुनरिया, हो, धीमे-धीमे चले पुरवैया...
देखो उड़ी एक धानी चुनरिया, हो, धीमे-धीमे चले पुरवैया...
संगीतकार राम संपत ने शांत करती गीत की धुन के साथ तार वाद्यों का न्यूनतम संयोजन रखा है। श्रेया घोषाल की आवाज़ के साथ बस आँख बंद कर इस गीत की भावनाओं को दिल में समेटिए। एक बहती धारा की कलकल ध्वनि के बगल में बैठकर दिल में जो आनंद का अनुभव होता है कुछ वैसा ही शायद इस गीत को सुनकर आप महसूस करें।
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