संगीत नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों से मैथिली ठाकुर आजकल एक बेहद चर्चित नाम हो गया है। बिहार के चुनाव में उन्होंने इतनी कम उम्र में लड़ने का निश्चय किया और पिछले हफ्ते अपने चुनाव क्षेत्र से विजयी भी हुईं। बहरहाल पिछले तीन चार सालों से उन्होंने बड़ी लगन से अपने आप को मिथिला सहित तमाम अन्य बोलियों में लिखे गए लोक गीतों की अग्रणी गायिका के रूप में स्थापित किया है । राजनीति में उनके पदार्पण से संगीतप्रेमियों को पहली चिंता ये हुई की क्या वे अपनी गायिकी को मांजने के लिए पूरा वक़्त दे पाएंगी? ख़ैर इस प्रश्न का जवाब तो आने वाले समय देगा पर आज तो मैंने उनका ज़िक्र इसलिए किया क्यूंकि अजय देवगन और तब्बू द्वारा अभिनीत फिल्म औरों में कहाँ दम था के लिए गाया उनका गीत मेरी वार्षिक संगीतमाला के दस बेहतरीन गीतों में शामिल है।
वैसे तो मैथिली ने ये निर्णय लिया था की वे लोकगीतों को ही अपना पूरा समय देके भारत की इस सांस्कृतिक विरासत का प्रचार प्रसार करेंगी। फ़िल्मी गीतों को सामान्यतः वे अपनी आवाज़ नहीं देतीं। शायद इसकी एक और वज़ह संभवतः शुरुआती दिनों में रियलिटी शो में मिला रिजेक्शन भी रहा हो। पर जब ऑस्कर विजेता एम एम कीरवानी के संगीत निर्देशन में उन्हें मनोज मुन्तशिर का लिखा ये गीत गाने को मिला तो वो इतने अच्छे लिखे और संगीतबद्ध गीत को गाने से मना नहीं कर पाईं।
एम॰ एम॰ कीरावनी और मनोज मुंतशिर की जोड़ी जब जब साथ आयी है इन दोनों ने मिलकर कुछ अद्भुत रचा है। याद कीजिए वर्ष 2013 में आई फिल्म स्पेशल 26 का वो गीत कौन मेरा, मेरा क्या तू लागे क्यूँ तो बांधे मन से मन के धागे जो उस साल की संगीतमाला में शिखर के तीन गीतों में शामिल हुआ था या फिर दो साल बाद फिल्म बेबी में इस जोड़ी ने एक और बड़ा प्यारा गीत दिया जिसके बोल थे मैं तुझसे प्यार नहीं करती जिसमें मनोज ने लिखा
वो अलमारी कपड़ो वाली लावारिस हो जाती है
ये पहनूँ या वो पहनूँ
ये उलझन भी खो जाती है
मुझे ये भी याद नही आता
रंग कौन से मुझको प्यारे हैं
मेरे शौक, पसंद मेरी
बिन तेरे सब बंजारे हैं
ये पहनूँ या वो पहनूँ
ये उलझन भी खो जाती है
मुझे ये भी याद नही आता
रंग कौन से मुझको प्यारे हैं
मेरे शौक, पसंद मेरी
बिन तेरे सब बंजारे हैं
इस गीत के लिए भी मनोज की शब्द रचना कमाल की है। वियोग के संताप को कितनी खूबी से इन शब्दों में पकड़ा है गीतकार ने तन में तेरी छुअन तलाशूं, मन में तेरी छाप पिया, भाप के जैसे पल उड़ जाएं, प्रीत को है ये श्राप पिया। कीरावनी साहब की धुन का उतर चढाव किसी भी गायिका के लिए कठिन साबित हो सकता था पर मैथिली ने इतनी कम उम्र में भी उसे ठीक ठाक ही निभाया है। वैसे मेरी इच्छा है की सुनिधि चौहान की आवाज़ में भी कभी इस गीत को सुनने का अवसर मिले।
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| मनोज, नीरज व एम एम कीरावनी |
तो आइये सुनते हैं ये संवेदनशील नग्मा मैथिली ठाकुर की आवाज़ में
किसी रोज़, किसी रोज़, किसी रोज़, किसी रोज़
किसी रोज़ बरस जल थल कर दे, ना और सताओ साहिब जी
मैं युगों युगों की तृष्णा हूं, तू मेरी घटा हो साहिब जी
किसी रोज़, किसी रोज़ बरस जल थल कर देकिसी रोज़ बरस जल थल कर दे, ना और सताओ साहिब जी
मैं युगों युगों की तृष्णा हूं, तू मेरी घटा हो साहिब जी
ना और सताओ साहिब जी...
पत्थर जग में कांच के लम्हे, कैसे सहेजूं समझ न आए
तेरे मेरे बीच में जो है, ज्ञानी जग ये जान न पाए
तन में तेरी छुअन तलाशूं, मन में तेरी छाप पिया
भाप के जैसे पल उड़ जाएं, प्रीत को है ये श्राप पिया
कैसे रोकूं जल अंजुरी में, भेद बताओ साहिब जी...
किसी रोज़, किसी रोज़ बरस जल थल कर दे
ना और सताओ...साहिब जी...
मंदिर पूजे, दरगाहों में जाके चढाई भेंट पिया जी
माथे से ये बिरह की रेखा कोई ना पाया भेद पिया जी
तू ही तो पहली प्रीत है मेरी तू ही तो अंतिम आस मेरी
कोई बहाना ढूँढ के आ जा टूट ना जाए साँस मेरी
दिल का कोई दोष नहीं है, दिल ना दुखाओ साहिब जी
किसी रोज़, किसी रोज़ बरस जल थल कर दे
ना और सताओ...साहिब जी..
ना और सताओ...साहिब जी..























2 टिप्पणियाँ:
भाप के जैसे पल उड़ जाएं, प्रीत को है ये श्राप पिया...!🥰❤️ क्या खूब गाया है मैथिली ने! गीत, संगीत, गायकी सब बहोत खूबसूरत!!😊
इस गीत की सबसे प्यारी पंक्तियां हैं ये।
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