इस संगीतमाला के रनर्स अप का सेहरा बाँधा है जावेद अख्तर के लिखे और शंकर अहसान लॉय के संगीतबद्ध इस गीत ने ।
फिल्म कभी अलविदा ना कहना के इस गीत को गाया है शफकत अमानत अली खाँ ने जिनके बारे में इस गीतमाला में पहले भी चर्चा हो चुकी है ।
जावेद अख्तर अपनी बात हमेशा सीधे सरल अंदाज में करते हैं। पर अक्सर अपने गीतों में वो जीवन के उन पहलुओं को अनायास ही छू देते हैं जिन्हें कभी ना कभी किसी ना किसी रूप में हम सबने महसूस किया होता है। इस गीतमाला में वो देर से ही तशरीफ लाए हैं पर आए हैं अपने इस बेहतरीन गीत के साथ । क्या प्रथम दस गीतों में उनकी ये इकलौती पेशकश होगी , ये राज तो अभी राज ही रहने दें । ये गीत मुझे क्यूँ प्रिय है ये मैं पहले ही आपको विस्तार से यहाँ बता चुका हूँ । इस गीत के बोल भी आप वहीं पढ़ सकते हैं ।
चलें मेसरा से बरकाकाना की ओर: कांस के फूलों के साथ लिपटी हरियाली
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यूं तो कांस के फूल शरद ऋतु के आगमन का संकेत देते हैं पर इस बार संपूर्ण भारत
में इंद्र ने अपनी सेनाएं रावण के जलने तक वापस नहीं बुलाई। नतीजन बेचारा
रावण ...
6 दिन पहले
7 टिप्पणियाँ:
यह गीत मेरी भी पसंद है. आनन्द आ गया इसे दूसरी पायदान पर देख कर. होली की बहुत मुबारकबाद!! :)
जावेद अख्तरजी के गीत सच में मन पर कुछ जादू सा कर देते हैं । ये गीत मुझे भी काफ़ी पसन्द है ।
आप को एंव आपके समस्त परिवार को होली की शुभकामना..
आपका आने वाला हर दिन रंगमय, स्वास्थयमय व आन्नदमय हो
होली मुबारक
मुझे ये गीत बहुत सजीव लगता है.. कई सच य कहें कल्पना सजीव हो उठती हैं .. सुनते वक्त्त..
मनीषजी,और लोग भी इस सुमधुर स्ठल तक पहुँचें,इसलिए अपने ब्लॉग पर कड़ी लगा दी है।
समीर जी, नीरज भाई गीत पसंद करने का शुक्रिया
मान्या जी, बिलकुल सही कहा आपने
मोहिन्दर जी आपको भी होली की शुभकामनाएँ
अफलातून जी शुक्रिया जनाब !
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