बुधवार, अप्रैल 01, 2009

सुनें.. हमारे आज के सराकोरों से जुड़ी दुष्यन्त कुमार की एक ग़ज़ल : "मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा..."

जैसा कि कुछ दिनों पहले आपको बताया था कि आजकल जिन किताबों को पढ़ रहा हूँ उनमें दुष्यन्त कुमार की 'साये में धूप' भी है। इस किताब की तारीफ बहुत सुनी थी और राधाकृष्ण प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब को जितना सुना था, उससे बेहतर ही पाया। 
 आज लोग बड़ी संख्या में ग़ज़ल़ को सामाजिक राजनीतिक हालातों से जोड़ कर अपनी बात को कह रहे हैं। पर वहीं दुष्यन्त जी ने तो आज से ३५ वर्ष पहले ही (साये में धूप का पहला संस्करण १९७५ में छपा था) अपनी मारक लेखनी के द्वारा अपने आस पास की गरीबी, भ्रष्टाचार और समाज में बढ़ती संवेदनहीनता को बखूबी चित्रित किया था। दुख की बात ये है कि तीन चार दशक पहले लिखे इन अशआरों को देखने से ये लगता है कि ये आज की स्थिति के लिए लिखे गए हों। ऐसी ही एक ग़ज़ल को आज र पहुँचा रहा हूँ । इसका हर एक शेर मेरे दिल के आर पार निकल गया। 

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा 
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा 

और नीचे के शेर को पढ़ते समय क्या आपको हमारे अफसरशाहों और राजनीतिज्ञों की याद नहीं आती जिनकी योजनाओं के लिए स्वीकृत धन नदी के पानी की तरह उनकी जेब में ठहर जाता है। 

यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ 
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा 

और अगले अशआर हमारे समाज पर ऍसी तीख चोट करते हैं कि कहीं ना कहीं हम आप भी उसकी मार से अपने को लहुलुहान पाते हैं 

ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते 
वो सब के सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा 

तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है 
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा 

कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उसके बारे में 
वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं ,ऐसा हुआ होगा 

यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं 
ख़ुदा जाने यहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा 

 चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें 
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा

६० रुपये की ये किताब अगर आप के संग्रह में नहीं है तो इसे जरूर खरीदें।
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15 टिप्पणियाँ:

Madhaw on अप्रैल 01, 2009 ने कहा…
इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
"अर्श" on अप्रैल 01, 2009 ने कहा…

she're aajam janaab dushyant ko padhna hameshaa se achha laga hai... aapko bhi ye gazal padhwaane ke liye badhaaee....



arsh

कंचन सिंह चौहान on अप्रैल 01, 2009 ने कहा…

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा


चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें
कम-अज़-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा

khoooob....!

Udan Tashtari on अप्रैल 01, 2009 ने कहा…

’साये में धूप’ इस किताब के लिए तो दिल में हमेशा दीवानगी रही है. सतत खरीदी है जब भी कोई दोस्त मांग कर ले गया वापस नहीं आई.

बहुत अच्छा किया इस गज़ल को यहाँ पेश कर.

डॉ .अनुराग on अप्रैल 01, 2009 ने कहा…

मेरे कलेक्शन में है....उनकी कुछ ओर पंक्तिया है......

एक आदत सी बन गयी है तू
ओर आदत कभी नहीं जाती

daanish on अप्रैल 01, 2009 ने कहा…

kitaab to padhi hai pehle...
lekin aapne saari yaadeiN taaza kar deeN.....
shukriyaa
---MUFLIS---

दिलीप कवठेकर on अप्रैल 01, 2009 ने कहा…

क्या बात है.

हरकीरत ' हीर' on अप्रैल 01, 2009 ने कहा…

ये पुस्तक तो मेरे पास भी है पर यहाँ दोबारा पdh आनंद आ गया खास कर या शेर .....

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा

admin on अप्रैल 02, 2009 ने कहा…

दुष्‍यंत कुमार की गजल का जवाब नहीं, और वह जब सुनने को मिल जाए, तो समझिए सोने पे सुहागा।

-----------
तस्‍लीम
साइंस ब्‍लॉगर्स असोसिएशन

bhuvnesh sharma on अप्रैल 02, 2009 ने कहा…

बहुत खूब...कल ही खरीदते हैं

RAJ SINH on अप्रैल 02, 2009 ने कहा…

isee sangrh kee ek gazal ka sher hai ,

KAL NUMAISH ME MILA THA CHEETHDE PAHNE HUYE ,
MAINE POOCHA NAM TO BOLA KI HINDUSTAN HAI .

'SAYE ME DHOO ' MEEL KA PATTHAR HAI . DUSHYANT JEE KEE YAD AANKH NAM KAR JATEE HAI .

DHANYAVAD.!

रविकांत पाण्डेय on अप्रैल 02, 2009 ने कहा…

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा

बहुत सुंदर! दुष्यंत की और भी उम्दा गजलों से रूबरू करवाएँ।

बेनामी ने कहा…

Dear Manish

App key awaz mein ghazal sun ker buhat acha laga...
hmm..afsoos k yeah shair Pakistan mein inn key koi bhi kitaab dastayaab nahi.....warna zaroor koshish kerty in ko pharhnay key....hmmm.abh tu app he Dashyant Kumar ko hum sab tak pohncha saktay hain..

Anyways...buhat khoob hay app key post....buhat acha laga phar ker bhi or sun ker bhi...skhuria.

Ansoo.

आशुतोष नारायण त्रिपाठी on सितंबर 10, 2012 ने कहा…

बहुत सुन्दर ....!
अच्छी रचनाओँ को हम पाठको तक पहुँचाने के लिए धन्यवाद.........!

बेनामी ने कहा…

दुष्यंत कुमार की हर कविता प्रेरणादायक हैं।यदि हमारे युवा पीढ़ी अध्ययन करें तो सही राह पर चल सकते हैं।इनकी कई कविता हमारे समाज औऱ राजनीति पर करारा प्रहार है।

यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा
@संजय कुमार सुमन

 

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