होली की वज़ह से वार्षिक संगीतमाला 2009 ने लिया था एक विश्राम! तो एक बार फिर बाकी की सीढ़ियों का सफ़र शुरु करते हैं पॉयदान संख्या 8 से, जहाँ पर है एक छत्तिसगढ़ी लोकगीत जिसके बोलों को प्रसून जोशी द्वारा थोड़ा बहुत परिवर्तित करके फिल्म दिल्ली ६ में इस्तेमाल किया गया। संगीतकार ए आर रहमान और सहायक संगीत निर्देशक रजत ढोलकिया ने इस लोकगीत का पाश्चत्य संगीत के साथ इतना बेहतरीन सम्मिश्रण किया कि पिछले साल फिल्म रिलीज़ होने के साथ ही ये गीत सबकी जुबाँ पर चढ़ गया। इस गीत में लोकगीत की मिठास को कायम रखने के लिए रेखा भारद्वाज की गायिकी की जितनी प्रशंसा की जाए कम है। वैसे रेखा के साथ पीछे आने वाले कोरस में आवाज़ें थीं श्रृद्धा पंडित, सुजाता मजूमदार और वी न महथी की।
गीत चल गया तो साथ में ये मसला भी उठ गया कि प्रसून जोशी की जगह इस लोकगीत के लेखक को क्रेडिट देना चाहिए। क्रेडिट देने के मामले में फिल्म उद्योग का रिकार्ड जगज़ाहिर है। प्रसून का कहना है कि ये गीत उन्हें अभिनेता रघुवीर यादव ने दिया। वैसे इस संबंध में प्रसून का पक्ष जानने के लिए राजेश अग्रवाल जी की लिखी ये पोस्ट पढ़ें। पर आप ये जरूर जानना चाहेंगे कि इतन सहज और अपने से लगने वाले लोकगीत को लिखा किसने?
खोजबीन के बाद मुझे ये जानकारी मिली कि इसे स्व. गंगाराम शिवारे ने लिखा था और स्व. भुलवाराम यादव ने उसे स्वर दिया। भुलवाराम जी ने ही तीनों जोशी बहनों डा. रेखा, रमादत्त और प्रभादत्त को ये गीत सिखाया। जोशी बहनों का कहना है कि सत्तर के दशक में उन्होंने ये गीत पहली बार रायपुर में गाया।
ससुराल में सास की गालियाँ, ननद के ताने और देवर से सहानुभूति मिलना शायद ही संयुक्त परिवार में रही किसी दुल्हन के लिए नई बात होगी। हालाँकि धीरे धीरे शिक्षा के प्रसार और एकल परिवार की ओर अग्रसर होता भारतीय समाज इस मिथक को तोड़ने में प्रयासरत है। पर गीत में ससुराल को गेंदा फूल कहा जाना कुछ नया और उत्सुकता जगाने वाला है। अब गंगाराम शिवारे जी तो रहे नहीं कि ये प्रश्न उनसे पूछा जाए पर इस बारे में जब भी चर्चा चली लोगों ने कई तर्क दिये। वैसे यहाँ ससुराल को गुलाब फूल कहा जाता तो फूल के साथ काँटे की बात कह कर आसानी से ये रूपक सब की समझ में आ जाता। पर सवाल तो यहाँ ये है कि इस गेंदे में बनावट के लिहाज़ से ऐसी क्या खासियत है?
गेंदे के फूल की खासियत है इसमें बहुत सारे फूल एक ही तने से उगते और पलते बढ़ते हैं ठीक वैसे ही जैसे ससुराल रूपी तने से सास,ससुर,देवर, ननद जैसे रिश्ते पनपते हैं और साथ साथ फलते फूलते हैं। हो सकता है आप इस व्याख्या से सहमत ना हों पर इस बारे में आपका मत जानने की उत्सुकता रहेगी।
तो जब तक आप सोचे विचारें सुनते जाएँ ये प्यारा सा नग्मा..
सैंया छेड़ देवें, ननद चुटकी लेवे ससुराल गेंदा फूल
सास गारी देवे, देवरजी समझा लेवे, ससुराल गेंदा फूल
छोड़ा बाबुल का अँगना, भावे डेरा पिया का हो
सास गारी देवे, देवरजी समझा लेवे ससुराल गेंदा फूल...
सैंया है व्यापारी, चले है परदेश
सूरतिया निहारूँ जियरा भारी होवे, ससुराल गेंदा फूल....
सास गारी देवे देवरजी समझा लेवे, ससुराल गेंदा फूल
सैंया छेड़ देवे, ननद चुटकी लेवे, ससुराल गेंदा फूल...
छोड़ा बाबुल का अंगना भावे डेरा पिया का हो !
बुशर्ट पहिने खाईके बीड़ा पान, पूरे रायपुर से अलग है
सैंया...जी की शान ससुराल गेंदा फूल ....
सैंया छेड़ देवे, ननद चुटकी लेवे ससुराल गेंदा फूल ...
सास गारी देवे, देवरजी समझा लेवे ससुराल गेंदा फूल
छोड़ा बाबुल का अंगना ,भावे डेरा पिया का हो ....
ओय होय ओय होय-
होय होय होय होय होय होय .....
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5 माह पहले
12 टिप्पणियाँ:
हम बाप बेटी का यह फेवरेट गीत है। जब भी चलता है। बेटी सब कुछ छोड उसे सुनने लग जाती है। और गाने को खुद ही गाती चलती है। वैसे मनीष भाई इस बार की पोस्ट हमने अपनी बेटी के पसंद के गीत लगाए है।
yah geet to khub juban par chadha tha... Neha ko khub chidhaya bhi gaya unki bahano dwara is geet se.
vaise Genda phul ke vishay me saparivar ham logo ka mat to ye hai ki Gende ka phool tutane ke baad bhi sab se adhik din khila rahata hai. aur sath me kai kai pankhudi dal bhi rakhta hai, isiliye shayad sasural ko genda phool kaha gaya....
गेंदा फूल केवल एक फूल नहीं है यह अपने आप में कई फूलों का गुच्छा या समूह है। अर्थात वनस्पति शास्त्र के हिसाब से गेंदा फूल एक इकाई नहीं है, वह फूलों का समूह है। इसलिए ही परिवार की अन्य किसी फूल से तुलना नहीं की गयी है। क्योंकि परिवार भी कई गृहस्थियों का समूह होता है।
आनन्द आ गया....
यह गीत यूँ भी मेरे प्रिय गीतों की श्रेणी में है..
मनीष क्या दोबारा पोस्ट किया है ?ऐसा लगा पढ़ चूका हूँ
नहीं अनुराग दोबारा तो नहीं पोस्ट किया है। काउंटडाउन नौ तक पिछले हफ्ते पहुँची थी उसी सिलसिले को आगे बढ़ाया है।
डा. गुप्ता मुझे भी ऐसा ही लगा था।
कंचन ये भी रोचक व्याख्या है।
एक बार फीड में झलक देख लेने के बाद उत्सुकता थी इस पोस्ट को पूरी तरह पढ़ने की !
इस गीत के मूल रचयिता का नाम जानना बेहतर रहा ।
आभार गीत के लिये !
ड. गुप्ता का कथन सही लगता है. गेंदा फ़ूलों का समूह है जिसकी उपमा यहां सटीक बैठती है.
गाना बहुत ही बढिया कंपोज़ किया गया है.
मतलब जो भी रहा हो, गाना तो बहुत ही अच्छा है !
लोकगीतों की तो मैं यूँ भी दीवानी हूँ....और यह गीत सुनकर तो मन न झूमे ऐसा हो ही नहीं सकता....
अच्छा लगा। दरअसल पचासों बरस से यह गीत गाया जाता रहा है और आकाशवाणी रायपुर से बजने वाला रेकॉर्ड वही है, जिसका उल्लेख मैंने किया है, इसमें बीच-बीच में हबीब जी की आवाज साफ पहचानी जा सकती है और इसमें तीन बहनें कतई नहीं हैं।
दिल्ली-6 पर जितनी और जिस तरह की टिप्पणियां मिल रही हैं, उससे उत्साहित होकर छोटा सा एक और पोस्ट लिखने की तैयारी कर रहा हूं, उसके साथ मूल छत्तीसगढ़ी गीत की ऑडियो फाइल भी जोड़ने का प्रयास करूंगा।
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