सोमवार, अक्तूबर 11, 2010

तुम्हें याद करते करते जाएगी रैन सारी... कामयाबी की बुलंदियों को छूने वाली संगीतकार जोड़ी का एक बेमिसाल नग्मा...

क्या आपको पता है कि एक ज़माना वो भी था जब किसी संगीतकार को हिंदी फिल्मों में हीरो से भी ज्यादा पारिश्रमिक दिया जाता रहा हो? आज के हिंदी फिल्म उद्योग में तो ऐसा होना असंभव ही प्रतीत होगा। पर पचास और साठ के दशक में ऍसी ही एक संगीतकार जोड़ी थी जिसने अपने रचे गीतों की लोकप्रियता के आधार पर ये मुकाम हासिल किया था। ये संगीतकार थे शंकर जयकिशन यानि शंकर सिंह रघुवंशी और जयकिशन दयाभाई पंचाल।


जहाँ शंकर तबला बजाने में प्रवीण थे तो वहीं जयकिशन को हारमोनियम बजाने में महारत हासिल थी। काम के सिलसिले में एक गुजराती निर्देशक के कार्यालय में हुई पहली मुलाकात इनकी दोस्ती का सबब बन गई। तब शंकर पृथ्वी राज कपूर के थियेटर के पृथ्वी में काम किया करते थे। कहते हैं जयकिशन से उनकी ऐसी जमी कि उन्होंने उन्हें पृथ्वी थियेटर में बतौर हारमोनियम वादक काम दिला दिया। ये उन दिनों की बात है जब राज कपूर साहब आग की मिश्रित सफलता के बाद अपनी नई फिल्म बरसात के लिए संगीत निर्देशक की तलाश में थे। पर ये तालाश कैसे पूरी हुई ये वाक़या भी दिलचस्प है। शंकर ने दूरदर्शन में आने वाले कार्यक्रम फूल खिले हैं गुलशन गुलशन में तबस्सुम को दिए अपने एक साक्षात्कार के दौरान इस घटना का जिक्र करते हुए कहा था
राज साहब ने पिक्चर शुरू की ‘बरसात’। तो हरदम मिलते और कहते कि भाई गाने पसन्द आएँगे तो मैं लूँगा, तुम बनाते रहो। तो ऐसे कई गाने बनाए लेकिन उनको कभी पसन्द आए ही नहीं। हम उनको कहते कि भाई आप बनवाते हैं लेकिन लेते तो हैं नहीं। इत्तेफ़ाक़ से हम पूना गए एक वक़्त थिएटर के साथ। रात का वक़्त था , मैंने बाजा लिया। बाजा लेकर कहा – राज साहब! बैठिए, अब ये धुन सुनिए ज़रा – आपको कैसी लगती है! भले ही मत लीजिए लेकिन सुन लीजिए।. ‘अमुआ का पेड़ है, वही मुँडेर है, आजा मोरे बालमा, अब काहे की देर है’ ये गाना मैंने सुनाया। राज जी ने सुनते ही कहा कि भाई! अपन बम्बई चलते हैं और गाने को रिकॉर्ड करते हैं। तो बस फ़िर बम्बई आ गए और वाक़ई वो गंभीरतापूर्वक उस गाने के पीछे लग गए – भाई वो गाना ज़रा फिर सुनाओ! बाद में उस गाने के लिए हसरत मियाँ लिखने के लिए आएऔर हसरत जयपुरी जब आए तो जो गाना बनकर निकला वो था जिया बेक़रार है, छायी बहार है, आजा मोरे बालमा, तेरा इंतज़ार है

ये गीत और बरसात का पूरा संगीत कितना सफल हुआ इससे आप सब वाक़िफ हैं। दरअसल यहीं से शंकर, जयकिशन, शैलेंद्र, हसरत जयपुरी , लता और मुकेश जैसे कलाकारों का एक ऐसा समूह बना जो जयकिशन के निधन के पहले तक राजकपूर की फिल्मों का एक ट्रेडमार्क बन गया। शंकर जयकिशन ने अपनी आपसी सहमति से यह निर्णय कर रखा था कि दोनों में से अगर कोई दुनिया से चल बसा तो जो बचेगा वो भी अपने गीतों के क्रेडिट में शंकर जयकिशन का नाम ही इस्तेमाल करेगा।

यूँ तो शंकर जयकिशन के तमाम यादगार गीत रहे हैं। पर आम्रपाली के लिए उनका संगीतबद्ध ये गीत मुझे लता जी के गाए हुए गीतों में बेमिसाल लगता है। पिछले महिने लता जी के जन्मदिन के अवसर पर इसे आपके सामने प्रस्तुत करने की तमन्ना थी जो समयाभाव के कारण पूरी नहीं हो पाई। एक ऐतिहासिक प्रेम कथा पर आधारित इस विरह गीत का प्रत्येक अंतरा मन को भिगा देता है। इसे गीत के बोल लिखे थे शैलेंद्र ने।

गीत तो मधुर था ही पर ये बात भी गौर करने की है कि कितनी प्यारी हिंदी का प्रयोग किया था शैलेंद्र ने इस गीत में। दरअसल "बिरहा की इस चिता से तुम ही मुझे निकालो....जो तुम ना आ सको तो, मुझे स्वप्न में बुला लो" और "मन है कि जा बसा है, अनजान इक नगर में,कुछ खोजता है पागल खोई हुई डगर में..".जैसी पंक्तियाँ बड़ी ही तबियत से नायिका के मनोभावों को उभारती हैं। उभारेगीं कैसे नहीं हमारी स्वर कोकिला ने कोई कसर रख छोड़ी है अपनी बेमिसाल गायिकी में?

अधिकतर संगीत समीक्षक इसे शंकर की कम्पोसीशन मानते हैं। कहा तो यही जाता है कि फिल्म आम्रपाली के सारे गानों को शास्त्रीय रागों पर आधारित करने में शंकर का हाथ था। वैसे इस गीत के मुखड़े और अंतरे के पहले सितार की जो मधुर धुन शंकर ने रची है वो तो गीत में बस चार चाँद ही लगा देती है। तो आइए एक बार फिर सुनते हैं इस मीठे सम्मोहक गीत को जो फिल्माया गया था वैजयंतीमाला जी पर।



तुम्हें याद करते करते जाएगी रैन सारी
तुम ले गये हो अपने संग नींद भी हमारी


मन है कि जा बसा है, अनजान इक नगर में

कुछ खोजता है पागल खोई हुई डगर में
इतने बड़े महल में, घबराऊँ मैं बेचारी

तुम ले गये हो अपने संग नींद भी हमारी

तुम्हें याद करते करते
.....

बिरहा की इस चिता से तुम ही मुझे निकालो

जो तुम ना आ सको तो, मुझे स्वप्न में बुला लो

मुझे ऐसे मत जलाओ, मेरी प्रीत है कुँवारी

तुम ले गये हो अपने संग नींद भी हमारी

तुम्हें याद करते करते

तुम्हें याद करते करते
.....
Related Posts with Thumbnails

11 टिप्पणियाँ:

राज भाटिय़ा on अक्तूबर 11, 2010 ने कहा…

उस जमाने मे संगीत कार भी पेसो के लिये नही अपने नाम के लिये जाने जाते थे, बहुत अच्छी ओर सुंदर जानकारी दी आप ने, धन्यवाद

Abhishek Ojha on अक्तूबर 11, 2010 ने कहा…

बस आपकी पोस्ट देखी और आईपॉड निकाल के सुन रहा हूँ. जहाँ बैठा हूँ वहां यूट्यूब चलाना अच्छा नहीं लगता :)

daanish on अक्तूबर 11, 2010 ने कहा…

बहुत बहुत बहुत सुन्दर गीत सुनवाया आपने
कभी,,,, इसी फिल्म का वो गीत भी सुनवाएं ..
"...मन पंछी बन उड़ जाता है, हम खोये-खोये रहते हैं."

धन्यवाद

कंचन सिंह चौहान on अक्तूबर 11, 2010 ने कहा…

bahut hi sureela aur karnpriya geet....

Manav on अक्तूबर 12, 2010 ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Manav on अक्तूबर 12, 2010 ने कहा…

mai is jankari ko apne dosto ke sath bhi batunga.... aur ye geet to bahut hi surila hai

"अर्श" on अक्तूबर 12, 2010 ने कहा…

aapke pasand ka jawaab nahi saab..


arsh

अपूर्व on अक्तूबर 17, 2010 ने कहा…

खूबसूरत जानकारी से भरी दिलकश पोस्ट..सुनते तो हैं कि बाद मे ऐसे ही कुछ क्रियेटिव डेफ़रेंसेज आने की वजह से इस जोड़ी मे दरार पड़ गयी थी..जैसेकि जयकिशन साब का कहना था कि फ़िल्मों मे ज्यादातर म्यूजिक उनका ही होता था..खासकर संगम के ’यह मेरा प्रेमपत्र’ वाले गीत के बाद..
कुछ और भी लाइये उस दौर को सामने..

रंजना on अक्तूबर 20, 2010 ने कहा…

वाह.....

Anu Singh Choudhary on अक्तूबर 29, 2010 ने कहा…

मनीष जी, इसी फिल्म का एक और गीत है - इस नीलगगन की छांव में दिन-रैन गले से मिलते हैं। दिन पंछी बन उड़ जाता है, हम खोए-खोए रहते हैं। मुझे याद है कि ये गाना मैंने दसवीं के बोर्ड इम्तिहान के वक्त विविध भारती पर सुना था और पहली बार इसका अर्थ समझ में आया था। उस वक्त फेसबुक होता, तो पूरे एक महीने ये मेरा स्टेटस मेसेज होता। :) कमाल है कि कैसे कोई गीत, कुछ लफ्ज़ हमारे यादों के इंद्रधनुषी हिस्से बन जाते हैं!

Charu on दिसंबर 03, 2010 ने कहा…

mein badi choti thi jab ek puruskar swaroop mujhe ek cassett mila tha, jissme ye gana tha. kai dino tak wo cassett baar baar suna. bina matlab jane hi gane yaad ho gaye. fir cassett kho gaya aur gane bhi bhool gayi. apne wo din wapas yaad dila diye. bahut bahut dhanyawad. sach me bada sureela geet hai.

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie