शनिवार, मार्च 26, 2011

'एक शाम मेरे नाम' ने पूरे किए अपने पाँच साल..!

आज मेरे इस ब्लॉग का पाँचवा जन्मदिन है। विगत पाँच सालों से ब्लॉगिंग को अपनी ज़िंदगी का अहम हिस्सा बनाया है। इस बात का संतोष है कि अब तक जो कुछ लिखा या प्रस्तुत किया है उसमें मुझे खुद भी आनंद आता रहे। अगर पाँच सालों में बिना किसी विराम के ये निरंतरता इस चिट्ठे पर बनी रही है तो इसके पीछे इसी जज़्बे का हाथ है।


इस मौके पर इस चिट्ठे के तमाम पाठकों, ई मेल सब्सक्राइबरों, फालोवर्स और नेटवर्क ब्लॉग से जुड़े जाने अनजाने लोगों का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने इस चिट्ठे पर अपनी आस्था बनाई हुई है। आपकी मदद से ही अब तक इन 480 पोस्ट और तीन लाख पेज लोड्स का  ये सफ़र पूरा हुआ है।



और चिट्ठे के हिंदी और रोमन हिंदी संस्करणों की सब्सक्राइबर संख्या बारह सौ पार कर गई है।

इन पाँच सालों में हिंदी ब्लॉग जगत के उतार चढ़ावों का भी साक्षी रहा हूँ। हिंदी चिट्ठों के संकलको की सहायता से छोटे परिवार को आगे बढ़ते देखा है। संकलक लोकप्रिय हुए। फिर आलोचना के शिकार बने। नए संकलकों ने उनकी जगह ली और एक दिन वे भी उसी हस्र का शिकार हुए जैसे कि उनके पूर्ववर्ती। एक चर्चा मंच था फिर कई हुए। होने ही थे क्यूँकि ब्लॉगिंग कोई ऐसी विधा नहीं है जो कुछ क्षत्रपों द्वारा नियंत्रित और संचालित होती रहे। दुर्भाग्यवश हिंदी में चिट्ठा लिखने वालों में ये प्रवृति इसके शुरुआती दिनों से ही हावी रही। आज भी हिंदी में चिट्ठे लिखने वालों का एक बड़ा वर्ग अपनी लेखनी का इस्तेमाल इसलिए करता है कि उसकी रियासत कुछ और फैले। जब कई रियासतें फैलेंगी तो उनमें पारस्परिक संघर्ष तो होगा ही।

ख़ैर खुशी की बात ये है कि इस उठापटक के बावजूद भी सैकड़ों ऐसे चिट्ठे हैं जो चुपचाप ही सही पर रोचक और स्तरीय सामग्री नेट के हिंदी कोष में जमा करते जा रहे हैं। लोग इस बात को भी समझ चुके हैं कि जैसे जैसे ब्लॉगों की संख्या बढ़ती जाएगी संकलक अपनी उपयोगिता खोते जाएँगे। वैसे भी सोशल नेटवर्किंग के युग में संकलकों से कही ज्यादा आसानी से आप फेसबुक और ट्विटर के ज़रिए अपने पाठकों तक पहुँच सकते हैं। यही वज़ह है कि हिंदी ब्लॉगिंग से जुड़े तमाम लोग इन माध्यमों को तेजी से अपना रहे हैं।

चलते चलते एक बार फिर पिछले साल कही अपनी बात को दोहराना चाहूँगा कि

अपने अनुभवों से इतना कह सकता हूँ कि जैसे जैसे आप अपने विषय वस्तु यानि कान्टेंट में विस्तार करते जाते हैं, कुल पाठकों की संख्या में तो वृद्धि होती है पर उसमें एग्रगेटर से आनेवाले पाठकों का हिस्सा कम होता जाता है। इसलिए सनसनी या बिना मतलब के पचड़ों में पड़ने के बजाए अपने मन की बात कहें और पूरी मेहनत के साथ कहें।

उम्मीद करता हूँ कि संगीत और साहित्य का ये सफ़र आपके स्नेह से इस साल भी खुशनुमा रहेगा...

गुरुवार, मार्च 17, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - सरताज गीत पर बह रही है गुलज़ार विशाल व राहत की त्रिवेणी...

तो भाइयों एवम बहनों वार्षिक संगीतमाला के ढाई महिने के सफ़र के बाद वक़्त आ गया है सरताजी बिगुल बजाने का। यहाँ संगीतकार व गीतकार की वही जोड़ी है जिसने पिछले साल भी मिलकर सरताज गीत का खिताब जीता था। वैसे तो पहली पाँच पॉयदानों के गीत अपने आप में कमाल हैं पर पहली पॉयदन का ये गीत हर लिहाज़ में अलहदा है। बाकी पॉयदानों के गीतों को ऊपर नीचे के क्रम में सजाने में मुझे काफी मशक्क़त करनी पड़ी थी। पर पहली सीढ़ी पर विराजमान इश्क़िया फिल्म का ये गीत कभी अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। इस गीत के बोलों का असर देखिए कि साल पूरा हुआ नहीं कि गीत के मुखड़े को लेकर एक नई फिल्म रिलीज़ भी हो गई।


जी हाँ इस साल एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला का सरताज बनने का गौरव हासिल किया है गुलज़ार के लिखे, विशाल भारद्वाज द्वारा संगीतबद्ध और राहत फतेह अली खाँ द्वारा गाए गीत दिल तो बच्चा है जी ने..। इस गीत के बारे में नसीर भाई (जिन पर ये गाना फिल्माया गया है)की टिप्पणी दिलचस्प है. नसीर कहते हैं..
"गाने का काम है फिल्म में मूड को क्रिएट करना। जो जज़्बात उस वक़्त हावी हैं फिल्म में, उसको रेखांकित (underline) करना। मुझे नहीं मालूम था कि ये गाना फिल्म में बैकग्राउंड में होगा कि मैं इसे गाऊँगा। एक तरह से ये अच्छा ही हुआ कि मैंने गाया नहीं क्यूँकि इससे उससे उस आदमी (किरदार) के दिल के ख़्यालात और ज़ाहिर हुए।"

गुलज़ार के बारे में नसीर कहते हैं 
"आदमी उतना ही जवान या बूढ़ा होता है जितना आप उसे होने देते हैं और गुलज़ार भाई दिल से नौजवान हैं। बहुत कुछ ऐसा है गुलज़ार में जो आदमी उनसे अपेक्षा नहीं कर सकता और यही एक सच्चे कलाकार की निशानी है।"

सच, कौन नहीं जानता कि प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती। और ये भी कि प्रेम में पड़ जाने के बाद हमारा मस्तिष्क मन का दास हो जाता है। पर उन सर्वविदित अहसासों को गुलज़ार इतनी नफ़ासत से गीत की पंक्तियों में उतारते हैं कि सुनकर मन ठगा सा रह जाता है।

गुलज़ार की कलाकारी इसी बात में निहित हैं कि वो हमारे आस पास घटित होने वाली छोटी से छोटी बात को बड़ी सफाई से पकड़ते हैं । अब इसी गीत में प्रेम के मनोविज्ञान को जिस तरह उन्होंने समझा है उसकी उम्मीद सिर्फ गुलज़ार से ही की जा सकती है। अब गीत की इस पंक्ति को लें

हाए जोर करें, कितना शोर करें
बेवजा बातों पे ऐं वे गौर करें

बताइए इस 'ऐ वे' की अनुभूति तो हम सब ने की है। किसी की बेवजह की बकवास को भी मंत्रमुग्ध होते हुए सुना है। बोल क्या रहा है वो सुन नहीं रहे पर उसकी आवाज़ और अदाएँ ही दिल को लुभा रही हैं और मन खुश.. बहुत खुश.. हुआ जा रहा है। पर क्या कभी सोचा था कि कोई गीतकार प्रेम में होने वाले इन सहज से अहसासों को गीत में ढालेगा?

गुलज़ार की किसी जज़्बे को देखने और महसूस करने की अद्भुत क्षमता तो है ही पर साथ ही उनके बिंब भी बड़े प्रभावशाली होते हैं।मुखड़े में ढलती उम्र का अहसास दिलाने के लिए उनका कहना दाँत से रेशमी डोर कटती.. नहीं...मन को लाजवाब कर देता है।

संगीतकार विशाल भारद्वाज ने इस गीत का संगीत एक रेट्रो की फील देता है। ऐसा लगता है कि आप साठ के दशक का गाना सुन रहे हैं। वाद्य यंत्रों के नाम पर कहीं हल्का सा गिटार तो कहीं ताली को संगत देता हुआ हारमोनियम सुनाई दे जाता है। राहत फतेह अली खाँ को अक्सर संगीतकार वैसे गीत देते हैं जिसमें सूफ़ियत के साथ ऊँचे सुरों के साथ खेलने की राहत की महारत इस्तेमाल हो। पर वहीं विशाल ने इससे ठीक उलट सी परिस्थिति वाले (झिझकते शर्माते फुसफुसाते से गीत में) में राहत का इस्तेमाल किया और क्या खूब किया। तो आइए पहले सुनें और गुनें ये गीत



ऐसी उलझी नज़र उनसे हटती नहीं...
दाँत से रेशमी डोर कटती.. नहीं...
उम्र कब की बरस के सुफेद हो गयी
कारी बदरी जवानी की छटती नहीं


वर्ना यह धड़कन बढ़ने लगी है
चेहरे की रंगत उड़ने लगी है
डर लगता है तन्हा सोने में जी

दिल तो बच्चा है जी...थोड़ा कच्चा है जी

किसको पता था पहलु में रखा
दिल ऐसा पाजी भी होगा
हम तो हमेशा समझते थे कोई
हम जैसा हाजी ही होगा

हाय जोर करें, कितना शोर करें
बेवजा बातों पे ऐं वे गौर करें

दिल सा कोई कमीना नहीं..

कोई तो रोके , कोई तो टोके
इस उम्र में अब खाओगे धोखे
डर लगता है इश्क़ करने में जी


दिल तो बच्चा है जी
ऐसी उदासी बैठी है दिल पे
हँसने से घबरा रहे हैं
सारी जवानी कतरा के काटी
बीड़ी में टकरा गए हैं

दिल धड़कता है तो ऐसे लगता है वोह
आ रहा है यहीं देखता ही ना हो
प्रेम कि मारें कटार रे

तौबा ये लम्हे कटते नहीं क्यूँ
आँखें से मेरी हटते नहीं क्यूँ
डर लगता है तुझसे कहने में जी

दिल तो बच्चा है जी,थोड़ा कच्चा है जी

पर गीत को पूरी तरह महसूस करना है इस गीत का वीडिओ भी देखिए। गीत का फिल्मांकन बड़ी खूबसूरती से किया गया है। नसीर मुँह से कुछ नहीं बोलते पर उनकी आँखें और चेहरे के भाव ही सब कुछ कह जाते हैं..




इसी के साथ वार्षिक संगीतमाला का ये सालाना आयोजन यहीं समाप्त होता है। जो साथी इस सफ़र में साथ बने रहे उनका बहुत आभार।  

आप सब की होली रंगारंग बीते इन्हीं शुभकामनाओं के साथ..

सोमवार, मार्च 14, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - रनर्स अप : नैन परिंदे रौशन रौशन, अन्धियारे सारे धो देंगे,नैन परिंदे छलके छलके, पलकों को मूँद के रो लेंगे...

वार्षिक संगीतमाला की दूसरी पॉयदान पर गीत वो जिसे गाया शिल्पा राव, ने, धुन बनाई संगीतकार आर आनंद ने और इसके लाजवाब बोल लिखे स्वानंद किरकिरे ने। अब फिल्म का नाम बताने की जरूरत है क्या ? आधा नाम तो गीत के मुखड़े में ही है और उसमें बस लफंगा शब्द डाल दीजिए यानि कि 'लफंगे परिंदे'।

रुड़की विश्वविद्यालय से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले संगीतकार आर आनंद का परिचय इसी फिल्म के गीत 'मन लफंगा..' की चर्चा के दौरान कर चुका हूँ। पिछले बीस साल से विज्ञापनों के लिए धुन बनाने वाले आर आनंद ने अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में अपने मित्र गोपाल राव के साथ मिलकर एक स्टूडियो बनाया था। स्टूडियो का नाम ऐसा कि बड़े बड़ों को दिमाग की बत्ती जलाने के लिए मेन्टोस का सेवन करना पड़े।

जी हाँ उनके स्टूडियो का नाम था 'Aqua Regia' जिसका शाब्दिक अर्थ है 'Royal Water'। दरअसल रासायनशास्त्र की भाषा में इसे 'नाइट्रोहाइड्रोक्लोरिक एसिड' भी कहा जाता है और इस अम्ल को 'रॉयलटी' इस लिए मिली हुई है कि ये सोने और प्लेटिनम जैसी अकड़ में रहने वाली धातुओं को गलाने की क्षमता रखता है।

बाद में ड्रमवादक और आनंद के कॉलेज के मित्र, शालीन शर्मा भी इस समूह का हिस्सा बने और आगोश नाम के बैंड की शुरुआत हुई। बैंड ने एक एलबम जरूर बनाया पर वो ज्यादा चला नहीं और जैसा अक्सर होता है वक़्त के साथ बैंड बिखर गया।

प्रदीप सरकार एक ऐसे निर्देशक हैं जो अपनी फिल्मों के गीतकार व संगीतकार चुनने के बाद उन्हें अपने काम करने की पूरी आजादी दे देते हैं। आर आनंद कहते हैं कि नतीजन हमें भी लगने लगता है कि ऐसा काम किया जाए जिनसे उनके विश्वास पर खरा उतरा जा सके।


गीतकार स्वानंद किरकिरे को व्यावसायिक हिंदी सिनेमा में पहला मौका देने वाले भी प्रदीप सरकार ही थे। 'परिणिता' और 'लागा चुनरी में दाग' जैसी फिल्मों में स्वानंद ने जिस तरह का काम किया उसके बाद सरकार के लिए वो पहली पसंद ही बन गए। इस फिल्म की गीत रचना के बारे में स्वानंद कहते हैं

मुझे आनंद के कहा कि तुम पहले गीत लिख कर लाओ फिर मैं धुन बनाऊँगा। मैंने सोचा कि ये तो बड़ी अच्छी बात है। कितना भी लंबा गीत लिख दो कोई tension नहीं। फिल्म जिस तरह के युवाओं पर आधारित थी उनके बारे में सोचकर मुझे ख़्याल आया कि गली मोहल्लों के कई लड़के दिखते लफंगों जैसे हैं पर उनमें भी परिंदों की तरह उड़ान भरने की चाहत होती है। इस लिए लफंगे और परिंदे साथ हो गए। प्रदीप जी को ये शब्द इतने पसंद आए कि उन्होंने फिल्म का नाम भी यही रख दिया। मेरे लिए लफंगे और परिंदे शब्दों का साथ आना 'मन लफंगा' और 'नैन परिंदे' जैसे गीतों की रचना का सबब बन गया।

नैन परिंदे ..फिल्म का एकमात्र एकल गीत है जिसे फिल्म की हीरोइन पर फिल्माया गया है। दृष्टिहीन व्यक्ति भले ही देख नहीं सकता पर उसकी सोच का विस्तार वहाँ तक होता है जहाँ आम जन पहुँच भी नहीं पाते। स्वानंद ने अपने इस गीत में ऐसी ही एक लड़की के ख़्वाबों की उड़ान को शब्दों में बाँधने की कोशिश की है। स्वानंद सिर्फ तुकबंदी और राइमिंग को गीत रचना का ध्येय नहीं मानते। वो कोशिश करते हैं कि इनके अलावा गीत से वो विचार निकलें जो किरदार की भावनाओं को श्रोताओं तक पहुँचा सकें। स्वानंद की ये कोशिश मुखड़े और दोनों अंतरों में सफल होती नज़र आती है। वहीं संगीतकार आनंद का गिटार भी पहले इंटरल्यूड में अपना कमाल दिखला जाता है।

बाकी तो स्वानंद के शब्दों पर शिल्पा राव की आवाज़ मन में गहरी उतरती सी जाती है। जमशेदपुर से ताल्लुक रखने वाली शिल्पा राव को संगीत की दुनिया में लाने का श्रेय शंकर महादेवन को जाता है। जहाँ फिल्म आमिर में उनका गाया गीत इक लौ मुंबई पर हुए हमले के दौरान राष्ट्र का गीत बन गया था वहीं पिछले साल ख़ुदा जाने को बड़ी व्यावसायिक सफलता मिली थी। पर शिल्पा को उनकी प्रतिभा के हिसाब से जितने गीत मिलने चाहिए उतने मिल नहीं रहे। ख़ैर अभी तो सुनते हैं ये गीत..



नैन परिंदे, पगले दो नैन
नैन परिंदे, जागे दिन रैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन
नैन परिंदे, जागें दिन रैन
पंख झटक ये उड़ जाएँगे, आसमान में खो जाएँगे
मग़रूर बड़े, बंजारे नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन

नैन परिंदे बादल बादल, ख़्वाबों के सितारे चुग लेंगे
हो नैन परिंदे चाँद चुरा कर, पलकों से अपनी ढक लेंगे
पलक झपकते उड़ जाएँगे, सपनों को अपने घर लाएँगे
मशहूर बड़े, मतवाले नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन

हो नैन परिंदे रौशन रौशन, अन्धियारे सारे धो देंगे
हो नैन परिंदे छलके छलके, पलकों को मूँद के रो लेंगे
पलक झपकते उड़ जाएँगे, गम को भुला के मुस्काएँगे
मजबूर नहीं, सपनीले नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन

नैन परिंदे, पगले दो नैन...मग़रूर बड़े, बंजारे नैन




शीघ्र ही आपके सामने होगा वार्षिक संगीतमाला का सरताज गीत।

शनिवार, मार्च 12, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 पुनरावलोकन (Recap) : गीत जो संगीतमाला का हिस्सा बनते बनते रह गए..

वार्षिक संगीतमाला का इस साल का सफ़र अपने अंतिम मुकाम पर पहुँच रहा है। आइए देखते हैं कौन से गीत इस साल की गीतमाला में शामिल नहीं हो पाए और कैसा रहा इस साल का सफ़र संगीत से जुड़े महारथियों के लिए। अगर आप इस श्रृंखला में पेश किए गए गीतों पर नज़र डालेंगे तो ये निश्चय ही कहने में समर्थ होंगे कि मोटे तौर पर यह इस साल के संगीत पर किसी खास संगीतकार या गीतकार का वर्चस्व नहीं रहा। हाँ ये जरूर है कि कुछ के लिए ये साल पिछले से फीका जरुर रहा।

ए र रहमान इस साल हिंदी फिल्मों में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। रावण में उनकी गुलज़ार के साथ जोड़ी वो कमाल नहीं दिखला सकी जिसकी मुझे आशा थी। शंकर अहसान लॉए ने My Name is Khan में बेहतरीन संगीत दिया पर पूरे साल बाकी फिल्मों में दिया उनका संगीत कुछ विशेष उल्लेखनीय नहीं रहा। यही हाल संगीतकार सलीम सुलेमान का भी रहा। इस साल की फिल्मों में सबसे सुकून देने वाले संगीत की रचना का श्रेय साज़िद वाज़िद,विशाल शेखर,अमित त्रिवेदी और प्रीतम को जाता है। साज़िद वाज़िद ने 'दबंग' और 'वीर' के संगीत पर बेहतरीन काम कर फिल्म उद्योग में अपनी नई पहचान बना ली। विशाल शेखर भी 'I Hate Love Storys', 'अनजाना अनजानी' में अपने फार्म में नज़र आए वहीं प्रीतम ने साल में कम फिल्में करते हुए भी 'Once Upon A Time in Mumbai' और 'आक्रोश' में कर्णप्रिय संगीत दिया।

ए र रहमान को अपना प्रेरणा स्रोत मानने वाले और मेरे पसंदीदा संगीतकार अमित त्रिवेदी ने पिछले सालों की तरह इस साल भी 'उड़ान' और 'आयशा' में अपनी प्रतिभा के ज़ौहर दिखलाए। अपनी फिल्म 'आमिर' की बदौलत वार्षिक संगीतमाला का सरताज गीत का सेहरा पहनने वाले अमित अभी भी अपने संगीत में नित नए प्रयोगों से एक अलग तरह की आवाज़ हम तक पहुँचा रहे हैं। उनकी इस मुहिम में गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने बेहतरीन साथ दिया है। हिंदी कविता के प्रेमियों के लिए 'उड़ान' इस साल का एक यादगार एलबम रहेगा और अमिताभ भट्टाचार्य को इसका पूरा श्रेय जाना चाहिए।

गीतकारों की बात की जाए तो इस साल अमिताभ के आलावा गुलज़ार, स्वानंद किरकिरे और इरशाद क़ामिल का काम बेहतरीन रहा। गुलज़ार की प्रशंसा में जितना कहा जाए कम है। 'वीर' और 'इश्क़िया' में उनके रचे गीतों पर लोग अभी भी वाहवाहियाँ रुकी नहीं हैं। वहीं 'परिणिता', 'लगे रहो मुन्नाभाई' और 'थ्री इडियट्स' जैसी भिन्न प्रकृति की फिल्मों की सफल गीत रचना के बाद स्वानंद ने 'लफंगे परिंदे' और 'पीपली लाइव' के गीतों के माध्यम से 'सार्थक गीतो् को रचने वाले गीतकार' की अपनी छवि को बनाए रखा है। इरशाद क़ामिल के बारे में इस संगीतमाला के दौरान कई बार चर्चा हुई है और मेरा विश्वास है कि आगे के सालों में भी होती रहेगी। ये जरूर है कि इस साल जावेद अख़्तर और प्रसून जोशी जैसे माने हुए गीतकारों की झोली से कुछ खास नहीं निकला। नए गीतकारों में जीतेंद्र जोशी ने अपने लिखे गीत चमचम से मुझे खासा प्रभावित किया।

भले ही गीतकार और संगीतकारों ने इस साल की संगीतमाला में मिल कर सफलता के झंडे गाड़े हों पर पार्श्वगायिकी में ये साल पूरी तरह राहत फतेह अली खाँ के नाम रहा। संगीतमाला की आरंभिक दस पॉयदानों में से छः पर कब्जा जमाने वाले राहत ने अपनी बेमिसाल गायिकी से संगीतप्रेमियों के दिल में साल भर खूब राहत पहुँचाई। राहत के अलावा मोहित चौहान,रेखा भारद्वाज और श्रेया घोषाल के गाए गीतों को भी काफी लोकप्रियता मिली। जगजीत सिंह, सोनू निगम और शिल्पा राव के एक एक गीत इस गीतमाला में बजे पर उन गीतों में उन्होंने अपनी गायिकी से मन को मोहित कर दिया।

हर साल की तरह इस साल भी अंतिम पच्चीस में कुछ गीत आते आते रह गए। इस फेरहिस्त में बस इतनी सी तुमसे गुजारिश है.. गुजारिश, अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ ...इश्क़िया, जिंदगी दो पल की..Kites, बहने दे.. रावण, तेरे नैना My Name is Khan जैसे गीत शामिल हैं । ये गीत तो आपने पहले भी सुने होंगे पर आज मैं आपको सुनाना चाहता हूँ इस साल की संगीतमाला तैयार करते वक़्त सुने गए चार अनसुने गीत जो कुछ हट कर सुनने का अहसास मन में जगा गए..

पल में मिला जहाँ श्रेया घोषाल द्वारा गाया ऐसा नग्मा है जो उदास तो करता है पर मन को शांत भी कर देता है। गीत में संगीत ना के बराबर है पर भावों में डूबती श्रेया की गायिकी उसकी कमी महसूस नहीं होने देती।



फिल्म स्ट्राइकर के इस गीत फिर यूँ हुआ में गुलज़ार के शब्द और विशाल की आवाज़ का वैसा ही अद्भुत संगम है जिससे हम ओंकारा के ओ साथी रे और फिल्म कमीने के क्या करें जिंदगी इसको जो हम मिले के दौरान गुजर चुके हैं



अब आते हैं दस तोला के इस गीत पर जिसे गाया है सोनू निगम ने । ख़ुद गुलज़ार इस फिल्म में अपने रचे गीतों को पिछले साल की अपनी संतोषजनक कृतियों में मानते हैं।



अमित त्रिवेदी वेस्टर्न और भारतीय संगीत के फ्यूजन में माहिर हैं। एडमिशन ओपन में श्रृति पाठक द्वारा गाए गीत में हारमोनियम जैसे वाद्य से की गई कलाकारी तुरंत ध्यान खींचती है


तो आइए साल के सरताज और रनर्स अप गीत से रूबरू होने के पहले एक बार नज़रें घुमा लेते हैं ढाई महिने पुराने इस सफ़र पर...
  1.  
  2. नैन परिंदे पगले दो नैन.., संगीत: आर आनंद, गीत :स्वानंद किरकिरे, गायिका: शिल्पा राव चलचित्र :लफंगे परिंदे
  3. सजदा तेरा सजदा दिन रैन करूँ , संगीत: शंकर अहसान लॉए, गीत : निरंजन अयंगार, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : My Name is Khan
  4. फूल खिला दे शाखों पर पेड़ों को फल दे मौला, संगीत: रूप कुमार राठौड़, गीत : शकील आज़मी, गायक : जगजीत सिंह, चलचित्र : Life Express 
  5.  बिन तेरे बिन तेरे कोई ख़लिश है, संगीत: विशाल शेखर, गीत : विशाल ददलानी, गायक : शफ़कत अमानत अली खाँ, सुनिधि चौहान, चलचित्र : I hate Luv Storys
  6. तेरे मस्त मस्त दो नैन, संगीत:साज़िद वाज़िद, गीत : फ़ैज़ अनवर, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : दबंग
  7.  सुरीली अँखियों वाले, संगीत:साज़िद वाज़िद, गीत : गुलज़ार, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : वीर
  8. तू ना जाने आस पास है ख़ुदा, संगीत: विशाल शेखर, गीत : विशाल ददलानी, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : अनजाना अनजानी
  9. मन के मत पे मत चलिओ, संगीत: प्रीतम, गीत : इरशाद क़ामिल, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : आक्रोश
  10. मँहगाई डायन खात जात है, संगीत:राम संपत, गायक :रघुवीर यादव, चलचित्र : पीपली लाइव
  11. देश मेरा रंगरेज़ ऐ बाबू, संगीत:Indian Ocean, गीत :स्वानंद किरकिरे, संदीप शर्मा , गायक :राहुल राम, चलचित्र : पीपली लाइव
  12. कान्हा बैरन हुई रे बाँसुरी, संगीत:साज़िद वाज़िद, गीत : गुलज़ार, गायक : रेखा भारद्वाज, चलचित्र : वीर
  13. चमचम झिलमिलाते ये सितारों वाले हाथ, संगीत:शैलेंद्र बार्वे, गीत : जीतेंद्र जोशी, गायक : सोनू निगम, चलचित्र : स्ट्राइकर
  14. बहारा बहारा हुआ दिल पहली बार वे, संगीत: विशाल शेखर, गीत : कुमार, गायक : श्रेया घोषाल, चलचित्र : I hate Luv Storys
  15. आज़ादियाँ, संगीत: अमित त्रिवेदी, गीत : अमिताभ भट्टाचार्य, गायक : अमित व अमिताभ, चलचित्र : उड़ान
  16. तुम जो आए, संगीत: प्रीतम, गीत : इरशाद क़ामिल, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : Once Upon A Time in Mumbai
  17. सीधे सादे सारा सौदा सीधा सीधा होना जी , संगीत: प्रीतम, गीत : इरशाद क़ामिल, गायक : अनुपम अमोद, चलचित्र : आक्रोश
  18. पी लूँ तेरे गोरे गोरे हाथों से शबनम, संगीत: प्रीतम, गीत : इरशाद क़ामिल, गायक :मोहित चौहान चलचित्र : Once Upon A Time in Mumbai
  19. Cry Cry इतना Cry करते हैं कॉय को, संगीत: ए आर रहमान, गीत : अब्बास टॉयरवाला, गायक : राशिद अली, श्रेया घोषाल, चलचित्र : झूठा ही सही
  20. नूर ए ख़ुदा , संगीत: शंकर अहसान लॉए, गीत : निरंजन अयंगार, गायक : शंकर महादेवन, अदनान सामी, श्रेया घोषाल , चलचित्र : My Name is Khan
  21. मन लफंगा बड़ा अपने मन की करे, संगीत: आर आनंद, गीत :स्वानंद किरकिरे, गायक :मोहित चौहान चलचित्र :लफंगे परिंदे
  22. गीत में ढलते लफ़्जों पर, संगीत: अमित त्रिवेदी, गीत : अमिताभ भट्टाचार्य, गायक : अमित व अमिताभ, चलचित्र : उड़ान
  23. यादों के नाज़ुक परों पर, संगीत: सलीम सुलेमान, गीत :स्वानंद किरकिरे, गायक :मोहित चौहान चलचित्र :आशाएँ
  24. खोई खोई सी क्यूँ हूँ मैं, संगीत: अमित त्रिवेदी, गीत : जावेद अख़्तर, गायक : अनुषा मणि, चलचित्र : आयशा
  25. तुम हो कमाल, तुम लाजवाब हो आयशा , संगीत: अमित त्रिवेदी, गीत : जावेद अख़्तर, गायक : अमित त्रिवेदी, चलचित्र : आयशा 

गुरुवार, मार्च 10, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : सजदा तेरा सजदा, दिन रैन करूँ .ना ही चैन करूँ..

वार्षिक संगीतमाला का सरताज बिगुल बजने में अब सिर्फ दो पॉयदानों की दूरी है। यानि आज है तीसरी पॉयदान की बारी। गीतमाला की इस सीढ़ी पर जो गीत है उसकी खास बात ये है कि ये गीतकार का रचा पहला गीत है। गीतकार वही जो नूर ए ख़ुदा के साथ आपसे बीसवीं पॉयदान पर मुख़ातिब हुए थे। जी हाँ फिल्म My Name Is Khan का लिखा गीत सज़दा निरंजन अयंगार का बतौर गीतकार रचा पहला गीत है।

निरंजन के कच्चे गीतों से पक्के गीतकार बनने का वाक़या मैं आपसे पहले ही बाँट चुका हूँ। संगीतकार शंकर अहसान लॉए ने फिल्म की पटकथा के हिसाब से एक ऐसे गीत की दरकार थी जिसमें प्रेम के साथ सूफ़ियत का रंग भी हो और जिसकी शुरुआत सज़दा जैसे शब्द से हो। निरंजन को इसी आधार पर एक कच्चे गीत को लिखने का काम सौंपा गया। निरंजन ने जो गीत रचा उसे जब करण ज़ौहर घर ले के गए तो गीत के बोल सुन कर उनकी माँ ने पूछा क्या इसे जावेद साहब ने लिखा है? बाद में करण और शंकर एकमत हुए कि जो गीत निरंजन ने लिखा है वो ही फिल्म में जाएगा।

पर क्या आपके मन में ये प्रश्न नहीं आ रहा कि एक तमिल होते हुए भी निरंजन अयंगार ने अपने पहले कुछ गीतों में ही सूफ़ियत का इतना प्यारा रंग कैसे डाल दिया? दरअसल निरंजन को सूफ़ी और उर्दू कवियों की रचनाएँ शुरु से भाती रही हैं और वे बुल्ले शाह, गुलाम फ़रीद, ज़िगर मुरादाबादी और अहमद फ़राज़ जैसे शायरों को निरंतर पढ़ते रहे हैं।

सज़दा एक ऍसा गीत है जिसका संगीत संयोजन और गायिकी अव्वल दर्जे की है। गीत शुरु होता है ॠचा शर्मा के गहरे स्वर में। ॠचा प्रेम में अपने रोम रोम डूब जाने की बात खत्म करती ही हैं कि राहत अपनी रुहानी आवाज़ में सज़दा शब्द को इस तरह उठाते हैं कि दिल वाह वाह कर उठता है। पर जब इन गायकों के सुरीले स्वर के बाद कोरस उभरता है ये गीत एक अलग ही धरातल पर पहुँच जाता है और क्या आम क्या खास सभी संगीतप्रेमी इसे गुनगुनाने नज़र आते हैं।

शंकर अहसान लॉए ने इंटरल्यूड्स में सिंथेसाइजर और तबले के संयोजन से जो धुन निकाली है वो सहज ही आपका ध्या

न खींचती है। शंकर इस गीत के बारे में कहते हैं कि एक सहज गीत को संगीतबद्ध करना मुश्किल होता है। खासकर तब जब वो दिल को छूते वो एक सही और प्यारी सी बात भी कहता चले। पर इस मुश्किल काम को निभाने में शंकर अहसान लॉए की जोड़ी सफल रही है।

आइए सुनें ये नग्मा जो प्रेम की बात को एक आध्यात्मिक रंग देता हुआ चला जाता है...



रोम रोम तेरा नाम पुकारे
एक हुए दिन रैन हमारे
हम से हम ही छिन गए हैं
जब से देखे नैन तिहारे
सजदा ….

तेरी काली अँखियों से ज़िंद मेरी जागे
धड़कन से तेज दौडूँ, सपनों से आगे
अब जान लुट जाए, ये ज़हाँ छूट जाए
संग प्यार रहे, मैं रहूँ ना रहूँ

सजदा तेरा सजदा, दिन रैन करूँ .ना ही चैन करूँ
सजदा तेरा सजदा, लख बार करूँ मेरी जान करूँ

अब जान ....सजदा तेरा सजदा....

रांझणा.. नैनो के तीर चल गए..
साजना.. साँसों से दिल सिल गए…
पलकों में छुपा लूँ, तेरा सजदा करूँ
सीने में समा लूँ, दिन रैन करूँ
पलकों में छुपा लूँ, सीने में समा लूँ
तेरे अंग अंग रंग मेरा बोले
अब जान ....सजदा तेरा सजदा....

बेलिया…क्या हुआ जो दिल खो गया
माहिया.. इश्क़ में ख़ुदा मिल गया
जरा अँख से पिला दे..तेरा सजदा करूँ
जरा ख़्वाब सजा दे..ओ दिन रैन करूँ
अब जान ....सजदा तेरा सजदा....
तेरी काली ... ना रहूँ
सजदा तेरा सजदा.....

वैसे इस गीत के दौरान शाहरुख और काजोल की शादी को फिल्माया जाना था। शूटिंग स्थल था कॉलेज आफ फाइन आर्टस कैलीफोर्निया। पर शादी के लिए सजावट के लिए रंग बिरंगे कपड़े से पंडाल सजाना था। पर शूटिंग के दौरान हवा इतनी तेज हो गई कि शादी को एक बड़े पेड़ के नीचे शूट करना पड़ा।

सोमवार, मार्च 07, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक, धरती जितनी प्यासी है, उतना तो जल दे मालिक...

कभी कभी सीधी सहज बातें भी ग़जब का असर करती हैं खासकर जब वो दिल से कही गई हों। वार्षिक संगीतमाला की चौथी सीढ़ी का गीत एक ऐसा ही गीत है। जब भी मैं इस गीत को सुनता हूँ तो आँखें नम हो जाती हैं और अगर गुनगुनाने की कोशिश करूँ तो गला भर्रा जाता है।

देश के आम आदमी के जीवन की दरिद्रता को दर्शाता ये गीत भारत में व्याप्त आर्थिक असमानता को एक दम से सामने ला खड़ा करता है। गीत में ईश्वर से की जा रही प्रार्थना आपको ये सोचने पर मजबूर कर देती है हैं कि क्यूँ इतनी तरक्की के बावज़ूद हम अपने नागरिकों की छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने में आज तक असमर्थ हैं?

ग़ज़लगायिकी के बादशाह जगजीत सिंह ने फिल्मों में गीत यदा कदा ही गाए हैं। पर जब जब उनकी गायिकी फिल्मी पर्दे पर आई है तब तब उनकी आवाज़ का जादू सर चढ़कर बोला है। होठों से छू लो तुम.., तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो.., तुमको देखा तो ये ख्याल आया.., जाग के काटी सारी रैना.., होशवालों को ख़बर क्या ....जितना भी सोचता हूँ उनके गाई फिल्मी गीतों ग़ज़लों की फेरहिस्त सालों साल बाद भी उसी तरह ज़ेहन में तुरंत आ जाती है।


फिल्म लाइफ एक्सप्रेस में जब गायक रूप कुमार राठौड़ जिन्होंने इस फिल्म में संगीत दिया है, जगजीत के पास गए तो गिरते स्वास्थ के चलते कम सक्रिय रहने के बावज़ूद वो उनकी इल्तज़ा को ठुकरा नहीं सके। इस गीत के बारे में जगजीत कहते हैं कि

"रूप कुमार राठौड़ मेरे छोटे भाई की तरह हैं। बतौर संगीतकार ये उसकी तीसरी फिल्म है और ये मेरा उसके साथ गाया दूसरा गीत। फिल्म के लिए उसने बहुत बढ़िया संगीत रचा है। खासकर मेरे द्वारा गाए गीत का संगीत तो एकदम सहज मगर असरदार है।"
अफ़सोस ये रहा कि 'सरोगेट मदर' पर केंद्रित पटकथा पर बनी ये फिल्म अपने निर्माण की अन्य ख़ामियों की वज़ह से ज्यादा नहीं चली। इसलिए जगजीत का गाया ये बेहतरीन गीत ज्यादा चर्चा नें नहीं आया। रूप कुमार राठौड़ ने इस करुणामयी प्रार्थना के मूड के हिसाब से ही संगीत रचना की है। इस गीत का एक वर्जन रूप कुमार राठौड़ की आवाज़ में भी है पर जब शक़ील आज़मी के लिखे इस गीत को जगजीत की रुहानी आवाज़ का स्पर्श मिलता है तो सुननेवाले के मन में भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। आज इस गीत के प्रति मेरी भावनाओं को मैं शब्दों के बजाए इस गीत को गुनगुनाकर व्यक्त करना चाहूँगा।



फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक,
धरती जितनी प्यासी है, उतना तो जल दे मालिक

वक़्त बड़ा दुखदायक है, पापी है संसार बहुत,
निर्धन को धनवान बना, दुर्बल को बल दे मालिक

कोहरा कोहरा सर्दी है, काँप रहा है पूरा गाँव,
दिन को तपता सूरज दे, रात को कम्बल दे मालिक

बैलों को इक गठरी घास, इंसानों को दो रोटी,
खेतों को भर गेहूँ से, काँधों को हल दे मालिक

हाथ सभी के काले हैं, नजरें सबकी पीली हैं,
सीना ढाँप दुपट्टे से, सर को आँचल दे मालिक

अब सुनिए इस गीत को जगजीत सिंह के स्वर में...




अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

शनिवार, मार्च 05, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे... कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे...

वार्षिक संगीतमाला 2010 का सफ़र अब अपने अंतिम दौर में पहुँच गया है। और अब बात बची है संगीतमाला के प्रथम पाँच गीतों की। ये पाँचों नग्मे ऍसे हैं जिनको सुन कर मन उनमें डूबता सा जाता है। वैसे भी जब कोई गीत आपको अपने अभी के मूड से हटाकर सीधे गीत की भावनाओं में बहा ले जाता है तो वो आपके लिए विशिष्ट हो उठता है। पाँचवी पॉयदान के इस गीत को गाया है शफक़त अमानत अली खाँ और सुनिधि चौहान ने। फिल्म का नाम तो आप समझ ही चुके होंगे 'I Hate Luv Storys'.

मैंने ये फिल्म नहीं देखी पर इसके गीत संगीत पर विशाल शेखर ने जो काम किया है वो निश्चय ही प्रशंसनीय है। जैसा कि अनजाना अनजानी के गीत तू ना जाने आस पास है ख़ुदा ... के बारे में बातें करते वक़्त मैंने आपको बताया था कि विशाल और शेखर एकदम भिन्न संगीतिक परिवेश से आए हैं। पर इस भिन्नता को इन्होंने अपनी ताकत की तरह इस्तेमाल किया है। कुछ दिनों पहले मैं कोमल नाहटा द्वारा उनके टीवी पर लिए साक्षात्कार को सुन रहा था। साक्षात्कार में उनसे पूछा गया कि अपना संगीत वो किस तरह रचते हैं। क्या उनके पास कोई म्यूजिक बैंक है ? विशाल शेखर का कहना था..

आज का युग धुनों को इकट्ठा करके उन्हें इस्तेमाल करने का नहीं रह गया है। आज तो सारे निर्देशक हमें स्क्रिप्ट लिखने के समय से ही हमें विचार विमर्श में शामिल कर लेते है। हमारी खुशकिस्मती है कि अब तक हम लोगों ने जितने निर्देशकों के साथ काम किया है उनमें ज्यादातर हमारे निकट के मित्र थे। इसलिए धुन सुनाते समय हमें उनकी निष्पक्ष राय मिलती रही। वैसे भी अगर हम सफल हैं तो बस ऊपरवाले की वजह से। चाहे हम कितनी भी मेहनत कर लें पर विश्वास मानिए वो मेहनत गीत का मुखड़ा हमारे मन में नहीं लाती। हमारे अधिकांश लोकप्रिय नग्मों का सृजन कॉफी शाप में, गाड़ी में ड्राइव पर या ऐसी ही किसी अनौपचारिक अवस्था में हुआ है । इसीलिए हम अपने आप को बस एक माध्यम मानते हैं उसका जो हमसे ये करा रहा है। कोई गीत हिट होगा या नहीं इससे ज्यादा हमें ये बात ज्यादा मायने की लगती है कि हम अपने रचे संगीत का आनंद ले पा रहे हैं या नहीं।

विशाल ददलानी इस गीत के गीतकार भी हैं। गीतकार और संगीतकार की दोहरी भूमिकाएँ वो पहले भी निभा चुके हैं। वैसी भी रॉक बैंड से अपने संगीत के सफ़र की शुरुआत करने वाले विशाल को ये काम आसान लगता है क्यूँकि बैंड में काम करने वालों को गीत लिखने से लेकर उसके संगीत और गायन का काम खुद ही करना पड़ता है।

गिटार की धुन और फिर शुरुआती अंग्रेजी कोरस से इस गीत का आगाज़ होता है।

Lost n lonely coz you're the only
One that knows me
That I can't be without you
Lost n lonely coz you're the only
One that knows me
That I can't be without you


फिर उभरती है पार्श्व से शफक़त अमानत अली खाँ की आवाज़ जो मुखड़े के साथ ही आपको गीत की उदासी में भिंगो लेती है। बन कर बिगड़ते रिश्तों की पीड़ा गीत में सहज ही व्यक्त होती है। नतीजा ये कि नायक की जिंदगी का एकाकीपन आपको भी काटने सा दौड़ता है । खासकर तब जब अमानत तरह तरह से बिन तेरे..कोई ख़लिश है हवाओं में को अपने अलग अलग अंदाजों में दोहराते हैं। शफक़त अमानत अली खाँ , राहत की तरह हिंदी फिल्मों में निरंतरता से तो नहीं गाते पर अपने गिने चुने गीतों में वो खासा असर छोड़ जाते हैं। मितवा... और मोरा सैयाँ मोसे बोले ना... में उनकी गायिकी का मैं हमेशा से मुरीद रहा हूँ। तो आइए सुने उनकी व सुनिधि की आवाज़ में इस बेहतरीन नग्मे को...



है क्या ये जो तेरे मेरे दरमियाँ है
अनदेखी अनसुनी कोई दास्तां है
लगने लगी अब ज़िन्दगी खाली, है मेरी
लगने लगी हर साँस भी खाली
बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे
कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे

अजनबी से हुए क्यूँ पल सारे
ये नज़र से नज़र ये मिलाते ही नहीं
इक घनी तन्हाई छा रही है
मंजिलें रास्तों में ही गुम होने लगी
हो गयी अनसुनी हर दुआ अब मेरी
रह गयी अनकही बिन तेरे
बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे

राह में रौशनी ने है क्यूँ हाथ छोड़ा
इस तरफ शाम ने क्यूँ है अपना मुँह मोड़ा
यूँ के हर सुबह इक बेरहम सी रात बन गयी
है क्या ये ......

ये गीत इरफान खान और सोनम कपूर पर फिल्माया गया है और कोई ताज्जुब नहीं कि दोनों ही इसे इस फिल्म का सबसे अच्छा गीत मानते हैं।


इस गीत का एक और वर्सन भी फिल्म में है जिसे लिखा है कुमार ने और गाया है शेखर ने। इस वर्सन की खास बात ये है कि इसमें वाद्य यंत्र के रूप में सिर्फ गिटार का इस्तेमाल हुआ है।



चलते चलते गीत के मूड को क़ायम रखना चाहता हूँ कंचन जी की इन पंक्तियों के साथ

हँसी बेफिक्र वही और हमारी फिक्र वही,
तेरी शरीर निगाहों में मेरा ज़िक्र वही,
दिखाई देती न हो उसकी इबारत लेकिन,
है सारी बात फिज़ा में वही, हवा में वही...


तुम्हारी खुशबू अभी भी यही पे बिखरी है
तुम्हारी मुस्कुराहटें हैं आस पास वही...

गुरुवार, मार्च 03, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 6 : तेरे मस्त मस्त दो नैन..मेरे दिल का ले गये चैन

कुछ साल पहले की बात है जनाब अमज़द इस्लाम अमज़द साहब का इक शेर पढ़ा था। सालाना संगीतमाला की छठी पॉयदान पर विराजमान इस गीत को देख कर वही शेर बरबस याद आ जाता है

जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक
आँखों में तेरी डूब के देखेंगे किसी दिन

सच किसी भी चेहरे की जान होती हैं ये आँखें। इसीलिए शायरों की कलम जब भी इनकी तारीफ़ में चली है..चलती ही गई है। और नतीजा ये है कि

इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं
इन आँखों के वाबस्ता अफ़साने हजारों हैं

उन्हीं अफ़सानों को और समृद्ध करता फैज़ अनवर का लिखा फिल्म दबंग का ये गीत ऐसे ही दो मनचले शोख़ नयनों की कहानी कह रहा है। वैसे भी नैनों के वार से आशिक़ जन्म जन्मांतर से घायल होते रहे हैं। जगजीत जी की गाई ग़ज़ल की वो पंक्तियाँ याद है ना आपको

उनकी इक नज़र काम कर गई
होश अब कहाँ होश ए यार में

दबंग का ये गीत साल के सबसे चर्चित में से एक रहा है और इसकी मुख्य वज़ह है साज़िद वाज़िद की बेहद कर्णप्रिय धुन और राहत की गायिकी। वैसे क्या आपको पता है कि इन भाइयों की संगीतकार जोड़ी में कौन बड़ा है और कौन छोटा? चलिए आपकी मुश्किल मैं आसान किए देता हूं। बड़े हैं साज़िद जिन्हें रिदम में खास महारत हासिल है वहीं छोटे भाई वाज़िद शास्त्रीय संगीत सीखे हुए गायक हैं। संगीत इनके परिवार में कई पीढ़ियों से जुड़ा रहा है। इनके पिता उस्ताद शराफ़त खाँ माने हुए तबला वादक हैं।

इस जोड़ी ने जिस तरह पूरे गीत में तबले और इंटरल्यूड्स में गिटार का इस्तेमाल किया है वो एक बार सुन कर ही मन मोहित हो जाता है। पर गीत को लोकप्रियता के इस मुकाम तक पहुँचाने में राहत की गायिकी का भी बराबर का हाथ रहा है। वैसे इस गीत को राहत से गवाने के लिए साज़िद वाज़िद को काफी मशक्क़त उठानी पड़ी थी। मुंबई में जब रिकार्डिंग करने का समय आया तो राहत को भारत आने का वीसा नहीं मिल पाया। फिर गीत की रिकार्डिंग पाकिस्तान में हुई तो उसकी गुणवत्ता से साज़िद वाज़िद संतुष्ट नहीं हुए। अंत में साज़िद वाज़िद ने राहत को लंदन बुलाकर रिकार्डिंग करवाई।

उनकी गायिकी पर इतना विश्वास रखने वाले इन संगीतकारों के इस परिश्रम को राहत ने व्यर्थ जाने नहीं दिया और सम्मिलित प्रयासों से जो नतीजा निकला वो गीत के बाजार में आते ही हर संगीतप्रेमी शख़्स के होठों पर था। तो आइए एक बार फिर से आनंद लें इस गीत का.



ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में... हाए, नैनों में..... हाए...
ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में बसियाँ जैसे नैन ये तेरे
नैनों में बसियाँ जैसे नैन ये तेरे
तेरे मस्त मस्त दो नैन
मेरे दिल का ले गये चैन
मेरे दिल का ले गये चैन
तेरे मस्त मस्त दो नैन

पहले पहल तुझे देखा तो दिल मेरा
धड़का हाए धड़का, धड़का हाए
जल जल उठा हूँ मैं, शोला जो प्यार का
भड़का हाए भड़का, भड़का हाए
नींदों में घुल गये हैं सपने जो तेरे
बदले से लग रहे हैं अंदाज़ मेरे
बदले से लग रहे हैं अंदाज़ मेरे

तेरे मस्त मस्त दो नैन...

माही बेआब सा, दिल ये बेताब सा
तडपा जाए तडपा, तडपा जाए
नैनों की झील में, उतरा था यूँ ही दिल,
डूबा जाए डूबा, डूबा जाए
होशो हवास अब तो खोने लगे हैं
हम भी दीवाने तेरे होने लगे हैं
हम भी दीवाने तेरे होने लगे हैं
तेरे मस्त मस्त दो नैन...

ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में बंसिया जैसे नैन ये तेरे
नैनों में बंसिया जैसे नैन ये तेरे
तेरे मस्त मस्त दो नैन.....

और गीत का वीडिओ जो सलमान और सोनाक्षी सिन्हा पर फिल्माया गया है ये रहा।



सोनाक्षी कहती हैं कि वो सिर्फ सपने में सोचती थी कि उनकी आँखों को केंद्र में रखकर कोई गीत फिल्माया जाए। और देखिए उनका सपना कितनी जल्दी पूरा हो गया। चलते चलते उनके नयनों के लिए तो बस यही कहना चाहूँगा कि

डूब जा उन हसीं आँखों में फराज़
बड़ा हसीन समंदर है खुदकुशी के लिये

अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...
 

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