कल राष्ट्रकवि रामाधारी सिंह 'दिनकर' का जन्मदिन था। स्कूल और कॉलेज जीवन में मेरे प्रियतम कवि होने के बावज़ूद विगत कुछ सालों में "रश्मिरथी" के आलावा उनकी कोई और पुस्तक नहीं पढ़ पाया हूँ। ये जरूर है कि मेरे कार्यालय में दिनकर प्रेमी गाहे बगाहे उनको याद अवश्य कर लिया करते हैं। इसी बहाने उनके व्यक्तित्व से जुड़े कई वाकये और उनकी ओजमयी कविताएँ सुनने को मिल जाती हैं।
कल ऐसे ही एक कार्यक्रम में सहकर्मियों के साथ वक़्त गुजरा। पद्य के साथ गद्य पर उनके समान अधिकार, उनका आकर्षक रूप, विनम्र व्यवहार और ओजपूर्ण भाषा, 1971 के भारत पाक युद्ध के समय उनका लगातार तीन दिनों तक पटना में वीर रस कवि सम्मेलन का आयोजन कराना, नेहरु, राजेंद्र प्रसाद और जयप्रकाश नारायण से उनके घनिष्ठ संबंध और अंतिम दिनों में धनाभाव के चलते पौत्रियों के विवाह की चिंता... बहुत सारी बातों पर चर्चा हुई और मन उनके व्यक्तित्व के प्रति आदरभाव से हृदय में सब समेटता चला गया।
शाम को वापस लौटा तो दिनकर की लिखी ये कविता जो स्कूल के दिनों में पढ़ी थी बरबस याद आ गयी। तब भी इसे पढ़ते वक्त मन प्रफुल्लित हो उठता था और आज भी इसके पाठ के दौरान मैं वैसी ही भावनाओं से एक बार फिर गुजरा। कलम और तलवार में से एक को चुनने की दुविधा को दिनकर चंद पंक्तियों में बड़ी ही सहजता से दूर करते हुए तलवार के ऊपर कलम की सर्वोच्चता को स्थापित करते हैं। तो आइए दिनकर को याद करें उनकी इस कविता के माध्यम से
दो में से क्या तुम्हे चाहिए कलम या कि तलवार
मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति अजेय अपार
अंध कक्षा में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान
या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान
कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली,
दिल ही नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली
पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,
और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे
एक भेद है और वहाँ निर्भय होते नर -नारी,
कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारी
जहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले,
बादलों में बिजली होती, होते दिमाग में गोले
जहाँ पालते लोग लहू में हालाहल की धार,
क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में नहीं हुई तलवार
और चलते चलते उनकी इन पंक्तियों के साथ आपसे विदा लूँ
लोहे के पेड़ हरे होंगे,
तू गान प्रेम का गाता चल,
नम होगी यह मिट्टी ज़रूर,
आँसू के कण बरसाता चल।
अगर दिनकर की कविताएँ आपको भी उद्वेलित करती हैं तो इन्हें भी आप पढ़ना पसंद करेंगे
अगर दिनकर की कविताएँ आपको भी उद्वेलित करती हैं तो इन्हें भी आप पढ़ना पसंद करेंगे
13 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर रचना..
महाकवि को नमन...
अनु
bahut sundar
हमारी प्रिय कविता और हमारे प्रिय कवि !
बहुत सुन्दर रचना..
नई पोस्ट : अद्भुत कला है : बातिक
बहुत ही सुन्दर रचना, पढ़ने में आनन्द आ गया।
कवि रामधारी सिंह मेरी भी पसंदीदा कवि है।उन के जन्म दिन पर उन का खूबसूरत कविता पोस्ट करने के लिए हार्दिक धन्यवाद मनीष जी॥
Very inspiring
Dinkar ji ki meri pasindida kavitaon mein se ek
7th class me padhi thee......
:) MP Board me...
सुन्दर आलेख!!
Sir, chama karein parantu unki aakhri panktiyann kuch is prakar toh nahi thi......>>>>>
Lahu garam rakhne ko rakho man jwalant vichar...
Par hinsh jeev se bahne ko chahiye kintu talwaar....
पर हिंस्र जीव से बचने को
चाहिए किंतु तलवार.
उम्दा कृति
एक टिप्पणी भेजें