सचिन देव बर्मन से जुड़ी इस श्रंखला में बात चल रही है उनकी गायिकी से जुड़े कुछ पहलुओं की। अब तक चर्चा हुई बंदिनी और गाइड में गाए उनके कालजयी गीतों की। सचिन देव बर्मन के गाए गीतों की एक खासियत ये भी रही है कि वे किसी नायक पर नही फिल्माए गए बल्कि पार्श्व से आती आवाज़ के रूप में चलचित्रों में शामिल किए गए। वैसे भी सचिन देव बर्मन जिस आवाज़ के मालिक थे वो शायद ही उनके फिल्मी नायकों पर फबती। पार्श्वगीतों को फिल्म में रखने का एक फ़ायदा ये भी होता है वो किसी क़िरदार की भावना को ना व्यक्त कर, फिल्म की पूरी परिस्थिति को अपने दायरे में समेट लेते हैं।
ऐसा ही एक गीत था 1971 में आई फिल्म 'अमर प्रेम' का ! फिल्म के संगीत निर्देशक थे पंचम। इसी फिल्म में सचिन देव बर्मन ने एक गीत को आवाज़ दी थी डोली में बिठाई के कहार...लाए मोहे सजना के द्वार । वैसे सचिन दा का पंचम की किसी फिल्म के लिए गाया ये पहला और अंतिम गीत था। यूँ तो अमर प्रेम के सारे गीतों के संगीत निर्देशन का श्रेय पंचम के नाम है पर पंचम के वरीय सहयोगी और वादक मनोहारी सिंह की बात मानी जाए तो उनके अनुसार फिल्म बनते वक्त इस गीत के संगीत संयोजन का काम सचिन दा ने ही किया था। इस गीत की धुन जिसमें गीत के बोलों के बीच बाँसुरी का अच्छा इस्तेमाल है, दादा बर्मन के संगीत की अमिट छाप का संकेत देती है।
बहरहाल ये गीत अमरप्रेम की कास्टिंग के साथ आता है। आजकल तो शादी विवाह में डोली का प्रचलन रहा नहीं। पर एक ज़माना वो भी था जब डोली में दुल्हन अपने पिया के घर पहुँचती थी और फिर उसी घर की हो कर ही रह जाती थी। बड़ा चिरपरिचित संवाद हुआ करता था फिल्मों में उन दिनों कि डोली में आने के बाद अब इस घर से मेरी अर्थी ही निकलेगी।
यानि सामाजिक तानाबाना ऐसा बुना जाता था कि उस पराए घर के आलावा नवविवाहिता किसी और ठोर की कल्पना भी नहीं कर सकती थी। ऐसे माहौल में पली बढ़ी युवती को घर से अचानक ही निकाल दिया जाए तो कैसी मानसिक वेदना से गुजरेगी वो? गीतकार आनंद बक्षी को फिल्म की इन्हीं परिस्थिति के लिए गीत की रचना करनी थी। गीत तो उन्होंने बड़ा दर्द भरा लिखा पर उसमें निहित भावनाओं में प्राण फूँकने के लिए जरूरत थी, सचिन दा जैसी आवाज़ की।
सचिन दा जिस अंदाज़ में ओ रामा रे... कहकर गीत का आगाज़ करते हैं वो गीत में छुपी पीड़ा की ओर इशारा करने के लिए काफी होता है। सचिना दा की गूँजती आवाज़ के साथ बजती बाँसुरी के बाद आती है इस गीत की ट्रेडमार्क धुन (डोली में बिठाई के कहार के ठीक पहले) जो इस गीत की पहचान है। पूरे गीत में इसका कई बार प्रयोग हुआ है। तो आइए मन को थोड़ा बोझिल करते हैं अमर प्रेम के इस गीत के साथ..
हो रामा रे, हो ओ रामा
डोली में बिठाई के कहार
लाए मोहे सजना के द्वार
ओ डोली में बिठाई के कहार
बीते दिन खुशियों के चार, देके दुख मन को हजार
ओ डोली में...
मर के निकलना था, ओ, मर के निकलना था
घर से साँवरिया के जीते जी निकलना पड़ा
फूलों जैसे पाँवों में, पड़ गए ये छाले रे
काँटों पे जो चलना पड़ा
पतझड़, ओ बन गई पतझड़, ओ बन गई पतझड़ बैरन बहार
डोली में बिठाई के कहार...
जितने हैं आँसू मेरी, ओ, जितने हैं आँसू मेरी
अँखियों में, उतना नदिया में नाहीं रे नीर
ओ लिखनेवाले तूने लिख दी ये कैसी मेरी
टूटी नय्या जैसी तक़दीर
उठा माझी, ओ माझी, उठा माझी,
ओ माझी रे, उठा माझी
उठे पटवार
डोली में बिठाई के कहार...
टूटा पहले मेरे मन, ओ, टूटा पहले मन अब
चूड़ियाँ टूटीं, ये सारे सपने यूँ चूर
कैसा हुआ धोखा आया पवन का झोंका
मिट गया मेरा सिंदूर
लुट गए, ओ रामा, लुट गए, ओ रामा मेरे लुट गए
सोलह श्रंगार
डोली में बिठाई के कहार...
7 टिप्पणियाँ:
सुखद स्मृतियों से सजा आलेख |आभार भाई मनीष जी |
सचिन दा के विषय में आप रोज़ मेरे ज्ञान में इजाफा कर रहें हैं।। ये गाना मैंने आपके माध्यम से पहली बार सुना है, जिसके लिए आपका धन्यवाद । क्या आप सचिन दा के इस गाने के विषय में "खुशियाँ हैं माँ तेरे आँचल में" (गाना मुझे पूरा याद नहीं है) हाँ, लेकिन ये गाना आज कल एक खाना पकाने वाले तेल के विज्ञापन में आता है शायद आपने सुना हो ?? अगर हो सके तो, कृपया मुझे इस गाने के बारे में जानकारी दें।
नई कड़ियाँ : सदाबहार अभिनेता देव आनंद
कर्णप्रिय संगीत...निश्चय ही एक उपहार..
शब्द,संगीत और स्वर का सुन्दर संयोजन है इस गीत में।ऐसी दर्द भरा गीत शेयर करने के लिए शुक्रिया मनीष जी!
very heart touching song of this film. film was also superb love to see any time.
aisa hi to geet hai doli me sawar sajni ka pyar..chalo chalo re kahar....hum hum na ki humming ke saath...shandar butrman s ki virasat
Jankariyo se bharpur manoranjak aur gyanwardhak lekh ke liye aapka bahut bahut dhanywad.
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