वार्षिक संगीतमाला के समापन में अब सिर्फ आख़िरी की तीन सीढ़ियाँ बची हैं और इन तीनों गीतों के बोल कुछ ऐसे हैं जो इनकी मिठास को और बढ़ा देते हैं। तीसरी पॉयदान पर एक बार फिर बाजीराव मस्तानी का वो नग्मा जिस पर आपका ध्यान फिल्म देखते हुए शायद ही गया हो। गीत के बोल थे तुझे याद कर लिया है आयत की तरह क़ायम तू हो गई है रिवायत की तरह। अब इस आयत को क्षेत्रमिति वाला आयत (Rectangle) मत समझ लीजिएगा। दरअसल क़ुरान में लिखी बात को भी आयत कहते हैं। तो किसी को..याद करने की सोच को आयत का बिम्ब देना अपने आप कमाल है ना और ये कमाल दिखाया एक किसान के बेटे ने। जी हाँ इस गीत को लिखने वाले हैं ए एम तुराज़ जो कि मुजफ्फरनगर के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। अब तुराज़ साहब के बारे में क्या कहें।
तीन पीढ़ियों तक उन्होंने घर में किसानी का काम होते ही देखा। ख़ुद तो हिंदी मीडियम से पढ़े पर पिता के शायरी के शौक़ ने उन्हें उर्दू भी सिखा दी। पहली बार कविता तो उन्होंने अठारह साल का होने के बाद लिखी पर इससे पहले ये समझ गए कि उनसे खेती बारी नहीं होने वाली। पिता तो इस आशा में थे कि वो भी उनके साथ काम करें पर उन्होंने मुंबई जा कर काम करने की इच्छा जताई। पिता की अनुमति तो नहीं मिली पर दादी अपने लाडले पोते के बचाव में आ गई और उन्होंने उनके वालिद से कह दिया कि आप भेज रहे हैं या हम भेंजें। फिर क्या था पिताजी को झुकना पड़ा और बीस साल से भी कम उम्र में तुराज़ मुंबई आ गए।
अरिजीत सिंह व ए एम तुराज़ |
एक दो साल इधर उधर की खाक़ छानने के बाद टीवी सीरियल के लिए गीत व संवाद लिखने का काम मिलने लगा। वर्ष 2005 बतौर गीतकार उन्होंने इस्माइल दरबार के साथ अपनी पहली फिल्म की। इस्माइल दरबार ने ही उन्हें संजय लीला भंसाली से मिलवाया जब वे साँवरिया बना रहे थे। तुराज़ को साँवरिया में तो काम नहीं मिला पर गुजारिश के लिए संजय जी ने उन्हें फिर बुलाया। तुराज़ उस मुलाकात को याद कर कहते हैं कि
"संजय सर ने मुझसे यही कहा कि धुन, संगीत सब भूल जाओ बस कविता के लिहाज से तुमने जो सबसे अच्छा मुखड़ा लिखा हो वो मुझे दो । मेंने उन्हें ये तेरा जिक़्र है या इत्र है... सुनाया और उन्होंने इसे फिल्म के लिए चुन लिया जबकि यही मुखड़ा मैं बहुत लोगों को पहले भी सुना चुका था पर किसी की समझ में नहीं आया। मैं वो लिखना चाहता हूँ जिसे मुझे और सुननेवाले की रुह को सुकून मिले और संजय लीला भंसाली ऐसे निर्देशक हैं जिन्होंने ऐसा करने का मुझे अवसर दिया।"
जिंदगी में जब दूरियाँ बढ़ती हैं तो यादें काम आती हैं। अपने प्रिय के साथ बिताया एक एक पल हमारे जेहन में मोतियों की तरह चमकता है। उस चमक को हम अपने दिल में यूँ सँजो लेते है कि उन क्षणों के बारे में बार बार सोचना व महसूस करना हमारी आदत में शुमार हो जाता है। तुराज़ इन्हीं भावों से मुखड़े की शुरुआत करते हैं। पर मुखड़े के पहले ताल वाद्य की हल्की हल्की थाप के बीच अरिजीत सिंह का शास्त्रीय आलाप शुरु होता है जिसे सुन मन इस संजीदगी भरे गीत के रंग में रँग जाता है।
संजय लीला भंसाली का शुरुआती संगीत संयोजन और अरिजीत का आलाप मुझे रामलीला के उनके गीत लाल इश्क़ की याद दिला देता है। हम दिल दे चुके सनम के बाद से उन्होंने इस्माइल दरबार को बतौर संगीतकार काम नहीं करवाया हो पर अपने अभिन्न मित्र के संगीत की छाप उनके बाद की फिल्मों में भी दिखी है पर इसके बावज़ूद भी गर उनके गीत मुझे इतने मधुर लगे हैं तो इसकी वज़ह है गीतकार व गायकों का उनका उचित चुनाव।
अरिजीत सिंह ने इस गीत के बोलों को अपनी रूह से महसूस करते हुए गाया है। उन्हें भले ही इस साल का फिल्मफेयर एवार्ड सूरज डूबा है के लिए मिला पर इस गीत के लिए वो उस इनाम के ज्यादा हक़दार थे। मुखड़े के बीच की कव्वाली के टुकड़े में उनका साथ दिया है अजीज़ नाजा और शाहदाब फरीदी ने।
तुझे याद कर लिया है,
तुझे याद कर लिया है
आयत की तरह
क़ायम तू हो गयी है
क़ायम तू हो गयी है
रिवायत की तरह
तुझे याद कर लिया है
मरने तलक रहेगी
मरने तलक रहेगी
तू आदत की तरह
तुझे ..की तरह
ये तेरी और मेरी मोहब्बत हयात है
हर लम्हा इसमें जीना मुक़द्दर की बात है
कहती है इश्क़ दुनिया जिसे मेरी जान -ए -मन
इस एक लफ्ज़ में ही छुपी क़ायनात है ..
मेरे दिल की राहतों का तू जरिया बन गयी है
तेरी इश्क़ की मेरे दिल में कई ईद मन गयी है
तेरा ज़िक्र हो रहा है, तेरा ज़िक्र हो रहा है, इबादत की तरह
तुझे ..की तरह
8 टिप्पणियाँ:
ये गीत तीसरे पर नहीं एक्सपेक्ट कर रही थी मैं। असल में अंतरा मुखड़े से ज़्यादा अच्छा है। तीसरे नम्बर पर आये गीत को मेलोडियस भी खूब होना था मेरे अनुसार। बल्कि संगीत के हिसाब से इसी मूवी का जो गीत चौथे नम्बर पर आपने चुना वो मुझे इससे बेहतर लगा।
मतलब अपनी पसन्द बता रही हूँ बस :p
मोहे रंग दो लाल व आयत दोनों ही मधुर गीत हैं मेरी समझ से। वैसे गीतों के बारे में हमारी राय सालों साल से कभी पूरी नहीं मिली है अब क्या मिलेगी :p ।
अब देखिए ना तुम साथ हो मेरे प्रथम पाँच में भी नहीं है जो आपको इतना पसंद आया। वहाँ अलका जी की आवाज़ मेरा दिल इतना नहीं छू सकी जितना यहाँ पर अरिजीत की छू रही है। :)
अगर तुम साथ हो" प्रथम पाँच मे भी नहीं यही मलाल तो खत्म नहीं हो रहा। शुक्र है वह गीत अब तक गीतमाला में नहीं आया है जो मुझे सर्वश्रेष्ठ गीत लगा साल का। शॉक तब लगेगा जब कहीं ऐसा ना हो जाये कि वह गीत शामिल ही ना हो पूरी गीतमाला में।
आपको मेरी पसंद का अंदाजा भले ना हो मुझे आपकी पसंद का है :)
इस गीत के लेखक के बारे में जानकर अच्छा लगा....इस गीत के बोल और खासकर 'आयत' शब्द इसे एक रूहानी 'टच' देता है।'आयत' और इसके तुक वाले अन्य बोल 'रिवायत','इबादत' के बारे में ख़ास बात ये भी है कि ये गीत की मात्राओं में पूरी तरह 'फिट' नहीं बैठते बल्कि उन्हें एक विशेष तरीके से खींच कर गाया गया है....जिससे 'त' का बोल बन्द आये। और ये काम अरिजीत ने बेहद ख़ूबसूरती से किया है।
बाक़ी धुन की दृष्टि से यह 'रामलीला' के गीत 'लाल इश्क़' का सगा भाई है।:) मैं इस गीत को ख़ालिस गायकी का उदाहरण मानती हूँ।
वाह दिशा बड़ी अच्छी बात बताई तुमने। फिरा सुना उस बंद होते 'त' को। सुनने का आनंद बढ़ गया। :)
लाल इश्क़ को भी अरिजीत आलाप से ही शुरु करते हैं। कहीं पढ़ा कि आलाप राग वसंत से प्रेरित है । ऐसे आलाप कितनी बार भी सुन लो मन बँध जाता है उनकी आवाज़ से। इस साल अरिजीत के गाए जितने गीत सुने उनमें ये सबसे बेहतरीन लगा।
जहाँ तक बोलों की बात है आयत क बिंब तो रुहानी लगा ही वो पंक्ति तेरे इश्क़ की मेरे दिल में कई ईद मन गई है भावों का नए तरीके से संप्रेषण लगा।
बड़ी बारीकी से अध्ययन करते हैं आप लोग... मैं तो बस संगीत का आनंद लेता हूँ... तकनीकी बातें ज्यादा नहीं जनता...बस ख़ुशी है की इस बेहतरीन एल्बम के तीन गीत गीतमाला में शामिल हुए ... :)
कविता में दिलचस्पी रही इसीलिए शब्दों को परखना अच्छा लगता है. संगीत और गायिकी के छोटे छोटे बिंदुओं को समझने व सीखने की कोशिश ज़ारी है और इसमें मित्रों का भी खासा सहयोग रहा है। वैसे भी संगीत तो वो अथाह समुद्र जिसमें जितनी गहरी डुबकी लगाएँगे कम ही पड़ेगी। पिंगा, दीवानी मस्तानी, मल्हारी भी इस फिल्म ऐसे गीत हैं जो भले ही इस गीतमाला का हिस्सा ना हों पर उनकी कुछ बातें मुझे अच्छी लगी थीं।
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