शुक्रवार, अप्रैल 28, 2017

विनोद खन्ना : वे पाँच नग्मे जो मुझे उनकी सदा याद दिलाएँगे.. Vinod Khanna 1946 -2017

विनोद खन्ना हमारे बीच नहीं रहे। सोशल मीडिया पर कुछ हफ्ते पहले उनकी बीमारी की हालत में ली गयी तस्वीर उनके चाहने वालों को गहरा धक्का दे गयी थी। लोगों के मन में हमेशा उनके बाँके छबीले नौजवान हीरो की छवि तैरती रही भले ही उन्होंने उम्र  के इस पड़ाव में चरित्र अभिनेता का चोला पहन लिया था। उन पर फिल्माए कुछ गीत हमेशा किसी ना किसी वज़ह से मुझे याद रहे। आज उन्हीं चंद गीतों के माध्यम से उनसे जुड़ी अपनी स्मृतियाँ ताजा करना चाहता हूँ।



उस वक्त सारी फिल्में मैं अपने परिवार के साथ सिनेमा हॉल में देखा करता था। विनोद खन्ना की फिल्मों की बात करूँ तो बचपन में मैंने  मुकद्दर का सिकंदर, अमर अकबर एंथोनी और कुर्बानी देखी थी। यानि तब तक विलेन से अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले विनोद देश के चहेते हीरो बन चुके थे।

उस दौर में जब अमिताभ, धर्मेंद्र, जीतेंद्र, शत्रुघ्न व संजीव कुमार जैसे नायकों का बोलबाला था, आकर्षक कद काठी पर मीठी सी मुस्कुराहट लिए  विनोद बिल्कुल अलग से दिखते थे। मुकद्दर का सिकंदर और अमर अकबर एंथोनी में तो अमिताभ इस क़दर छाए रहे कि विनोद का किरदार मेरी स्मृतियों में स्थायी रूप ना ले सका। पर कुर्बानी में फिरोज खान के साथ उनका रोल खासा लोकप्रिय हुआ। कुबुक कुबुक और तुझपे कुरबाँ मेरी जान से ज्यादा जो गीत लंबे समय तक यादों में शामिल रहा वो था जीनत अमान के साथ विनोद खन्ना पर फिल्माया नग्मा। जिसके बोल कुछ यूँ थे हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे मरने वाला कोई ज़िंदगी चाहता हो जैसे.. अगर आपने इसे सुना भी हो तो मनहर उधास की आवाज़ में इसे फिर सुन लीजिए..


विनोद खन्ना के कैरियर के इस दौर में बहुत सारी  फिल्में हिट हुयीं पर  उनमें ज़्यादातर में एक से ज्यादा हीरो थे। ये वो दौर था जब उन्हें उतनी सही कहानियाँ नहीं मिल पायीं जिसके वो हक़दार थे। फिर भी गुलज़ार ने उन्हें जो  मौके मेरे अपने (1971), अचानक (1973) और मीरा  (1979) में दिए, उसके साथ उन्होंने पूरा न्याय किया। फिल्म मेरे अपने में  किशोर दा का गाया  गीत जिसे विनोद जी ने अभिनीत किया था, बरसों मेरे इंजीनियरिंग कॉलेज के एकाकी दिनों का साथी रहा

कोई होता जिसको अपना
हम अपना कह लेते यारों
पास नहीं तो दूर भी होता
लेकिन कोई मेरा अपना



अपने कैरियर के चढ़ाव पर ओशो की शरण में संन्यास लेकर विनोद खन्ना ने अपने प्रशंसकों को चौंका दिया था। मेरे पिता भी ओशो से खासे प्रभावित थे और उनकी लगभग हर किताब उनकी अलमारी की शोभा  बढ़ाया करती थी। इसलिए अख़बार में जब भी विनोद के संन्यासी जीवन की ख़बरें आतीं मैं उन्हें चाव से पढ़ता।अमेरिका जाने के पहले उन्होंने गुलज़ार की फिल्म मीरा की थी। गुलज़ार से वो तब कहा करते थे कि मेरा तो मन मीरा का किरदार निभाने को करता है क्यूँकि मैं उसकी भक्ति को अपने भगवान से जोड़ कर देख सकता हूँ। ये उनकी अगाध श्रद्धा का ही परिचायक था कि उन्होंने ओशो के आश्रम में माली से लेकर टॉयलट साफ करने तक के काम किए। वो वापस क्यूँ लौटे ये तो कहना मुश्किल है। क्या गुरु से उनका मोह भंग हुआ या फिर आर्थिक परेशानियाँ इस पर तो अब क़यास ही लगाए जा सकते हैं।

पाँच साल के इस  लंबे इंटरवल के बाद फिर बतौर नायक फिल्मों में आने लगे। 1989 में उन्होंने ॠषि कपूर व श्रीदेवी  के साथ फिल्म चाँदनी में एक प्यारा सा किरदार निभाया और उन पर फिल्माया ये नग्मा बरसों बेवज़ह आँखें नम करता रहा। बारिश की छनछनाहट के बीच सुरेश वाडकर की डूबती आवाज़..मन तब गुम हो जाता था इस गीत में

लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है
वही आग सीने में फिर जल पड़ी है




कॉलेज के ज़माने में जितना समय किशोर, जगजीत और गुलज़ार को सुनने में लगाया उतना पढ़ने में भी लगाया हो इस पर विश्वास तो नहीं होता। शायद लगाया भी हो...पढ़ाई तो भूल भी गयी पर जो वक़्त इनके साथ गुजरा वो हमेशा हमेशा के लिए दिल पे नक़्श हो गया।

अपनी दूसरी पारी में गुलज़ार निर्देशित सिर्फ एक फिल्म की वो थी लेकिन। उस दौर के अभिनेताओं में संजीव कुमार मेरी पहली पसंद थे। देखने वाली बात है कि गुलज़ार ने संजीव कुमार के साथ तो काफी काम किया ही, विनोद को भी कम मौके नहीं दिये। विनोद खन्ना में अपने अन्तर्मन को तलाश करने का जो भाव रहा उसे गुलज़ार ने बारहा टटोलने की कोशिश की।  गुलज़ार ने विनोद के अभिनय का वो स्वरूप उभारा जिनसे उनके चाहने वाले अनजान ही रहे हैं। फिल्म लेकिन में ही एक गीत था सुरमयी शाम इस तरह आए साँस लेते हैं जिस तरह साए। सुरेश वाडकर का गाया गीत मेरे लिए क्यूँ खास रहा है उसके बारे में यहाँ मैने लिखा है। गीत का वीडियो यू ट्यूब पर तो है पर शेयर करने के लिए उपलब्ध नहीं है। आज विनोद जी की यादों में इस गीत को  भी  शामिल कीजिएगा।

कोई आहट नहीं बदन की कोई
फिर भी लगता है तू यहीं हैं कहीं
वक़्त जाता सुनाई देता है
तेरा साया दिखाई देता है
जैसे खुशबू नज़र से छू जाए
साँस लेते हैं जिस तरह साए


जगजीत की आवाज़ और गुलज़ार के बोलों के साथ सिनेमा के रुपहले पर्दे पर विनोद खन्ना 2002 में फिल्म लीला में नज़र आए । इस फिल्म के तमाम नग्मे शानदार थे पर कल अचानक उनके चले जाने से उस गीत की ये पंक्तियाँ बार बार मन को गीला कर रही थीं..

जाग के काटी सारी रैना
नैनों में कल ओस गिरी थी

क्या पता था कि उनका हँसता मुस्कुराता चेहरा यूँ अचानक ही दृष्टिपटल से ओझल हो जाएगा।



बिंदास, खुशमिजाज़, दोस्तों की कद्र और हमेशा मदद करने वाले विनोद खन्ना को ये दुनिया एक छैल छबीले हीरो के रूप में हमेशा याद रखेगी। विनोद खन्ना से जुड़ी आपकी भी कुछ व्यक्तिगत यादे हैं तो जरूर बाँटें..
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12 टिप्पणियाँ:

kumar gulshan on अप्रैल 29, 2017 ने कहा…

सफर शायद कभी खत्म नहीं होता इसलिए वो जिस भी दुनिया में है खुदा उन्हें सुकून बक्शे ..उनकी बेहतरीन फिल्मों में से मुझे सबसे ज्यादा उनकी फिल्म लेकिन पसंद आई और मैंने इसे कई दफा देखा है बेजोड़ संगीत जब भी सुरमई शाम आएगी वो याद आयेंगे

Manish Kumar on अप्रैल 29, 2017 ने कहा…

बिल्कुल सहमत हूँ आपसे। आपने मेरे पसंदीदा गीत की याद दिला दी गुलशन। उसे भी मैंने इस पोस्ट में शामिल कर लिया है़।

Upendra Prasad Singh on अप्रैल 30, 2017 ने कहा…

विनोद खन्ना पर फिल्माये गए गीतों में मेरा एक पसंदीदा गीत है फिल्म इम्तिहान से " रूक जाना नहीं तू कहीं हार के " . विनोद खन्ना पर फिल्माए कुछ और गीत जो लोकप्रिय हुए उनमें " जब कोई बात बिगड़ जाए", " वादा कर ले साजना " , " चाहिए थोड़ा प्यार" , और " आज फिर तुम पर प्यार आया है " उल्लेखनीय हैं।

Manish Kumar on अप्रैल 30, 2017 ने कहा…

हाँ बिल्कुल सही कह रहे हैं। विनोद खन्ना पर फिल्माए ये सारे नग्मे खासे लोकप्रिय हुए। मैंने तो बस वही पाँच नग्में चुने हैं जिन्हें मैं अपनी ज़िंदगी के किसी ना किसी पड़ाव से जुड़ा पाता हूँ।

Manish Kaushal on अप्रैल 30, 2017 ने कहा…

लगी आज सावन की.. और हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे.. दोनों गीत मुझे बेहद पसन्द हैं.. स्व० खन्ना को श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।

Manish Kumar on अप्रैल 30, 2017 ने कहा…

आपकी उम्र में मुझे भी ये गीत इतने ही पसंद थे।

HARSHVARDHAN on मई 01, 2017 ने कहा…

आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मन्ना डे और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

दिगम्बर नासवा on मई 02, 2017 ने कहा…

इन सदाबहार गीतों के क्या कहने ... नमन है इस जिंदादिल इंसान को ...

Rohit Singh on मई 03, 2017 ने कहा…

उनके जाने के बाद लगता है कि मैं कितना प्रभावित था....क्योंकि कई बार लगता है ये तो हैं ही...ये कहां जाने वाले...पर.....जाना तो होगा ही...जब समय आएगा ...मैने भी कुछ बांटा है अपने ब्लॉग पर

Manish Kumar on मई 04, 2017 ने कहा…

दिगम्बर व रोहित उनकी मुस्कुराती छवि हमेशा हमारी आँखोँ के सामने रहेगी।

हार्दिक आभार ब्लॉग बुलेटिन।

dev on मई 05, 2017 ने कहा…

बहुत ही अच्छा लिखा है

बीच ड्रेस: बीच पर आपका कैसा हो ड्रेस स्टाइल, आसान और न्यू अराइवल

Manish Kumar on मई 22, 2017 ने कहा…

धन्यवाद !

 

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