सोमवार, फ़रवरी 18, 2019

बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता ....

देश में ग़म का माहौल है। एक साथ इतने सारे परिवारों पर दर्द का तूफान उमड़ पड़ा है। आख़िर कौन हैं ये लोग जिनके घर की रौनक चली गई है? छोटे मोटे मेहनतकश परिवारों के सुपूत जिन पर पूरे परिवार की जिम्मेदारी थी, उनकी आशाओं और सपनों का भार था। इन लोगों को देश की राजनीति से मतलब नहीं पर उनके सामने दो सवाल जरूर हैं। 

एक तो ये कि क्या उनके बेटों की शहादत बिना किसी ठोस प्रतिकार के ही चली जाएगी और दूसरे ये कि क्या जवानों को लाने ले जाने में जो सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराई गयी थी वो पर्याप्त थी या उसमें अगर चूकें हुईं तो उसकी जवाबदेही किसकी है और आगे उसे सुधारने के लिए कितनी तत्परता दिखाई जाएगी? सनद रहे कि सी आर पी एफ की टुकड़ियों के साथ ऐसे हादसे छत्तीसगढ़ और झारखंड में पहले भी हो चुके हैं। 


चित्र सौजन्य PTI
जिन परिवारों के घर का चिराग असमय बुझ गया है उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि अपने हुक्मरानों पर लोकतांत्रिक तरीके से पूरा दबाव बना कर रखें कि शहीद परिवारों की इन दोनों जायज़ अपेक्षाओं पर समुचित कार्यवाही की जाए।

सोशल मीडिया में लोगों की प्रतिक्रियाएँ ज्यादातर ऐसी हैं जिनका सरोकार इन परिवारों द्वारा सही जा रही पीड़ा से कम और अपने राजनीतिक एजेंडे को साधने से ज्यादा है। उचित प्रतिकार की माँग करने के साथ साथ कुछ लोग सच्चे देशभक्त के तमगे को चमकाने के नाम पर अपने मन की घृणात्मक भड़ाँस की उल्टी करने में लगे हैं तो दूसरी ओर वे लोग हैं जिन्हें इस घटना के दर्द से ज्यादा ये चिंता खाए जा रही है कि कहीं इस मुद्दे से सरकार राजनीतिक फायदा ना उठा ले और वो इस संवेदनशील घड़ी में सरकार के हर कृत्य में मीन मेख निकालते हुए विषवमन कर रहे हैं।

मुझे लगता है कि हमें इन दोनों तरह के लोगों से दूरी बनाए रखने की जरूरत हैं। दुख की इस घड़ी में स्वविवेक और संयम का इस्तेमाल करते हुए वो करें जो आपकी समझ से देशहित में हो बाकी तो सेना व सरकार पर छोड़ दें क्यूँकि कई चीजें आपके वश में नहीं हैं। 


चित्र सौजन्य ANI
ये जो कड़ा वक्त है गुजर ही जाएगा पर जितनी जल्दी ये पीड़ा कम हो उतना ही अच्छा।  निदा फ़ाज़ली साहब की ग़ज़ल का एक शेर था जो मेरे आपके दिल के हालातों को बहुत कुछ बयाँ कर रहा है 

बेनाम-सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता

मराठी गायिका प्रियंका बार्वे ने इस शेर में छुपे दर्द को बड़ी संवेदनशीलता के साथ अपनी आवाज़ में उभारा था। इसे सुनते हुए आप उन परिवारों के कष्ट को महसूस कर पाएँगे ऐसी मेरी उम्मीद है..

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10 टिप्पणियाँ:

शिवम् मिश्रा on फ़रवरी 18, 2019 ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 18/02/2019 की बुलेटिन, " एयरमेल हुआ १०८ साल का - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Manish Kumar on फ़रवरी 18, 2019 ने कहा…

धन्यवाद मेरी विचारों को बुलेटिन तक पहुँचाने के लिए।

Ruchira Shukla on फ़रवरी 18, 2019 ने कहा…

Patience and a balanced mind is the need of the hour. Not over the top emotions.

Manish Kumar on फ़रवरी 18, 2019 ने कहा…

जी, बिल्कुल !

Smita Jaichandran on फ़रवरी 18, 2019 ने कहा…

सही कहा मनीष जी। यह वक्त उन सैनिकों के साथ होना चाहिए हमे।

Manish Kumar on फ़रवरी 18, 2019 ने कहा…

Smita एक उक्ति खूब बाँटी जा रही है और जिससे मैं सहमत हूँ कि हमें ऐसी जनता बनना है जिसकी रक्षा करते हुए हमारे सैनिक गर्व महसूस कर सकें।

Pammi singh'tripti' on फ़रवरी 19, 2019 ने कहा…



आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 13 फरवरी 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

विकास नैनवाल 'अंजान' on फ़रवरी 19, 2019 ने कहा…

जी सही कहा। अभी विवेक और संयम बरतने की जरूरत है न कि जोश में होश खोने की जरूरत है।

Manish Kumar on फ़रवरी 22, 2019 ने कहा…

शुक्रिया पम्मी!

Manish Kumar on फ़रवरी 22, 2019 ने कहा…

हाँ विकास सेना अपनी रणनीति के तहत उचित प्रतिकार अवश्य लेगी ऐसा भरोसा है।

 

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