गुरुवार, मार्च 14, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : कल रात आया मेरे घर इक चोर

वार्षिक संगीतमाला की पिछली पोस्ट पर मैंने जिक्र किया था देश में पनप रहे स्वतंत्र संगीत (Independent Music) का। कई अच्छे स्वतंत्र गीत बनते हैं और गुमनामी के अँधेरों में खो जाते हैं पर वहीं दूसरी ओर ऐसे भी गीत हैं जो बिना किसी प्रचार के ही वायरल हो जाते हैं। गीत के सेट और अपनी वेशभूषा पर आप चाहे जितनी भी खर्च करें वो सिर्फ कुछ दिनो् तक देखने सुनने वालों का ध्यान खींच सकता है। उसके बाद तो गीत के बोल, धुन और आवाज़ ही लोगों की याददाश्त में रह पाते हैं। आप सज्जाद अली के गीत देखिए। साल में उनके गिने चुने गीत आते हैं और वो भी बड़े साधारण से परिदृश्य और गेटअप के साथ पर रावी विच पानी कोई नहीं उनके गाने के बाद भी आप वर्षों गुनगुनाते रहते हैं और गाते गाते आँखे भी भर जाती हैं। तो ये कमाल है सच्चे गीत संगीत का।

आज जो गीत दाखिल हो रहा है वार्षिक संगीतमाला में वो रिलीज़ तो हुआ था पिछले साल दिसंबर में पर उसके दो महीने बाद तक किसी ने उसकी खोज ख़बर नहीं ली थी। फिर फरवरी के आख़िर में एक ही हफ्ते में इंटरनेट पर वो ऐसा वायरल हुआ कि बॉलीवुड की अभिनेत्रियों से लेकर छोटे छोटे स्कूल के बच्चे भी उस पर ताबड़तोड़ रील बनाने लगे। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ गीत कल रात आया मेरे घर इक चोर की।

इस गीत को गाया, लिखा और धुन से सजाया एक ऐसे शख़्स ने जिसका वास्तविक नाम अभी तक लोगों को पता नहीं। दुनिया के लिए उन्होंने अपना एक अजीब सा नाम रखा है और वो है जुस्थ। उनसे जब ये सवाल किया जाता है तो वो कहते हैं कि आख़िर नाम में क्या रखा है, आप उसके पीछे के व्यक्ति को  देखिए। जुस्थ एक चार्टेड एकाउटेंट थे। वो सब छोड़ छाड़ कर संगीत की दुनिया में चले आए। अमेरिका में कई जगहों पर अपने शो कर चुके हैं पर आजकल मुंबई में उनका बसेरा है। अपने से लिखते हैं, गाते हैं, गिटार भी खुद ही बजाते हैं और फिर यूँ ही बिना किसी प्रचार के अपने गाने रिलीज़ कर देते हैं। अगर उनका ये चोर ना आया होता तो हम आज जुस्थ के बारे में बातें भी नहीं करते।

चोर के बोलों को गौर से सुनेंगे तो पाएँगे कि उसमें जीवन से लेकर मुक्ति तक की पूरी फिलासफी छुपी है। इस गीत को सुनकर मुझसे सबसे पहले रब्बी शेरगिल का गीत बुल्ला कि जाणा मैं कौन याद आ गया था जिसमें दार्शनिकता का ऐसा ही पुट था। वो गीत भी अपने वक़्त में काफी लोकप्रिय हुआ था। अगर इस गीत की बात करें तो यहाँ भी चोर तो बस एक बिंब है जिसे जुस्थ ने एक गहरी बात कहने के लिए इस्तेमाल किया है। जब हम इस दुनिया में आते हैं हमारे पास कुछ नहीं होता। फिर जैसे जैसे उम्र बढ़ती है ज़िंदगी की पोटली भरती चली जाती है। रिश्ते नातों, जाति मजहब, ख्वाबों, दौलत, शोहरत, ग़म तन्हाई, सफलता असफलता कितने चाही अनचाही भावनाओं का बोझ हमारे दिल पर होता है और सोचिए कोई चोर आकर इन सबसे हमको अलग कर दे तो हम अपनी शख्सियत से ही आज़ाद हो जाएँगे या यूँ कहें कि हमें मुक्ति का मार्ग ही मिल जाएगा।

मुझे नहीं लगता कि सारे लोग जो इस गीत को पसंद कर रहे हैं उनमें सारे इसके धीर गंभीर भाव तक पहुँचे होंगे। फिर क्यूँ बच्चे, युवा और बुजुर्ग इस गीत को सराह रहे हैं? पहला कारण तो ये कि जुस्थ की आवाज़ में एक प्यारी सी ठसक है। गीत में चोर को लाने का उनका विचार भी मज़ेदार है और चैतन्य द्वारा संयोजित किया गया गिटार पर आधारित संगीत, कानों में रस घोलता है। इन सबसे बड़ी बात ये कि इस गाने की पंक्तियों को आप इमोट कर सकते हैं । मतलब रील बनाने के लिए ये गीत सर्वथा उपयुक्त है। तो आइए सुनते हैं बनारस में फिल्माए इस गहरे पर मज़ेदार गीत को जुस्थ की आवाज़ में

कल रात आया मेरे घर इक चोर

आ के बोला दे दे मुझे जो भी तेरा है
मैंने बोला 
मेरा नाम भी ले जा मेरा काम भी ले जा
मेरा राम भी ले जा मेरा श्याम भी ले जा
कल रात आया मेरे घर इक चोर
आ के बोला दे दे मुझे जो भी तेरा है
मैंने बोला 
मेरी जीत भी ले जा, मेरी हार भी ले जा
मेरा डर भी ले जा, मेरा घर भी ले जा
मेरे ख़्वाब भी ले जा, मेरे राज भी ले जा
मेरा ग़म भी ले जा, हर जख़्म भी ले जा
मेरी जात भी ले जा, औकात भी ले जा
मेरी  बात भी ले जा, हालात भी ले जा
ले जा मेरा, जो भी दिखे
जो ना दिखे, वो भी ले जा
कर दे मुझे आज़ाद आज़ाद आज़ाद
कल रात आया मेरे घर इक शोर


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11 टिप्पणियाँ:

Swati Gupta on मार्च 16, 2024 ने कहा…

कमाल का गीत है कितना सुंदर गाया है और कितने खूबसूरत अंदाज में जिंदगी का फलसफा सामने रख दिया 😊

Manish Kumar on मार्च 16, 2024 ने कहा…

@Swati हाँ, इसीलिए तो लोगों ने इसे हाथों हाथ लपक लिया वो भी बिना किसी प्रचार के।

Manish on मार्च 16, 2024 ने कहा…

सीधे-सरल शब्दों में बड़ी गहरी बातें कही गयीं हैं!😊❤️

Manish Kumar on मार्च 16, 2024 ने कहा…

Manish हाँ बिल्कुल। चोर के साथ गायक की बातचीत बच्चों को भी खूब पसंद आ रही है।

Swati Gupta on मार्च 16, 2024 ने कहा…

बिल्कुल सहमत हूं आपकी बात से कि गीत के बोल और धुन अच्छे हैं तो ना तो प्रचार की जरूरत है ना बड़े सेट और गेटअप की.. सज्जाद अली वाली बात भी बिल्कुल सही कही आपने, रावी मेरे फेवरेट गानों में से है

Sonal Singh on मार्च 16, 2024 ने कहा…

मैंने भी इस गाने को FM पर सुनते ही पसंद किया था, लेकिन नाम याद नहीं रहा था। अब हमेशा याद रहेगा। आपकी पसंद भी इस गाने की तरह उम्दा है

Manish Kumar on मार्च 17, 2024 ने कहा…

जानकर खुशी हुई सोनल कि मेरी ये पसंद आपको भी उतनी ही अच्छी लगी😊

Anjali Kumar on मार्च 21, 2024 ने कहा…

पर एक बात सोचने पर मजबूर हूँ , इन्हें गानों की केटेगरी में रखूँ या कविता . क्यों की ये गाने शब्द शायद थोड़े ठीक हैं पर जिस को सुनकर मधुर ना लगे उसे मैं गाना नहीं कहती हूँ.

Manish Kumar on मार्च 21, 2024 ने कहा…

अपनी राय से अवगत कराने का शुक्रिया🙏। मधुरता के पैमाने हर व्यक्ति के लिए अलग अलग या एक हो सकते हैं। मुझे तो ये गीत मधुर भी लगा और सार्थक भी इसलिए अपनी सूची में शामिल करना उचित समझा।

Anjali Kumar on मार्च 21, 2024 ने कहा…

Manish Kumar ओह ये तो बहुत अच्छी बात है। और यह भी स्पष्ट है कि पसंद काफ़ी व्यक्तिगत होता है । मुझे एहसास हो रहा कि शायद मैं अपनी पसंद में थोड़ी प्राचीन हो चुकी हूँ 😀. मेरा संदर्भ सिर्फ़ मधुरता को ले कर है । मुझे नये गाने भी बहुत पसंद हैं । मैं इस गाने को अनुभ जैन के “ हुस्न” के साथ रखूँगी ।

Manish Kumar on मार्च 21, 2024 ने कहा…

Anjali Kumar हर जेनेरेशन की पसंद में तो फर्क जरूर पड़ता है पर जेनेरेशन से अधिक ये मसला व्यक्तिगत पसंद और नापसंद का ज़्यादा है। अब इस गीत को लें तो साठ के पास पहुँचने वाली माधुरी दीक्षित से लेकर उनकी आधी उम्र वाली सारा अली खाँ ने इसे अपनी वॉल पर शेयर किया। छोटे छोटे बच्चों ने स्कूल में इसकी पुनरावृति की।

मेरी पसंद का अगला गीत चालीस और पचास के दशक की याद दिलाएगा पर हो सकता है कि मेरी ही आयु वर्ग के लोगों को वो बिल्कुल ना सुहाए 🙂।

 

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