शनिवार, मार्च 09, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : मैं हँसता रहा और आँखों से बह गयी नदी : कैसी कहानी ज़िंदगी ?

आज कल स्वतंत्र संगीत (जिसे हम बोलचाल की भाषा में Independent Music के नाम से जानते हैं) ने आकार लेना शुरु कर दिया है।  सोशल मीडिया के आ जाने के बाद हर अच्छा कलाकार छोटे छोटे बैनरों के तले अपना संगीत ढेर सारे म्यूजिकल प्लेटफार्म्स पर अपलोड कर रहा है। फिल्म संगीत और ओटीटी पर रिलीज़ फिल्मों के सारे गीतों को तब भी आप सुन सकते हैं पर स्वतंत्र संगीत के गहरे सागर के सारे मोतियों को सुनना और चुनना असंभव ही है। वैसे भी सब के पास इतने संसाधन नहीं होते कि वो अपने गीतों को ढंग से प्रचारित कर श्रोताओं के सम्मुख ला सकें।

फिर भी एक संगीतप्रेमी होने के नाते आप उसमें हो रहे अच्छे कामों को अनदेखा नहीं कर सकते। 25 गीतों से सजी इस इस गीतमाला में मैंने इस कोटि के तीन ऐसे गीतों को चुना है जिन्होंने एक बार सुनने के बाद साल भर मेरा पीछा नहीं छोड़ा। इसमें पहला गीत है 'कैसी कहानी ज़िदगी' जिसमें गीत और गायिकी है शांतनु घटक की और संगीत संयोजन है अनूप सातम का। 


बतौर संगीतकार शांतनु घटक से मेरा पहला परिचय फिल्म तुम्हारी सुलु के गीत रफ़ू से हुआ था जो कि उस साल की गीतमाला का सरताज गीत भी बना था। शांतनु हैं तो बंगाल के पर बतौर गीतकार भी बेहद कमाल लिखते हैं। उनकी गायिकी हेमंत दा वाली टोन की याद दिला देती है। वैसे शांतनु जब कोई धुन नहीं बना रहे होते हैं तब विज्ञापनों और फिल्मों में भी यदा कदा वो अभिनय करते नज़र आ जाते हैं।

शांतनु ने इस गीत में जीवन से किसी ख़ास के चले जाने का दर्द बयां किया है। जिस रिश्ते को पोषित पल्लवित करने में हमारी भावनाओं की उर्जा लगी होती है उससे अचानक ही निकल कर जीवन में आगे बढ़ जाना सिर्फ 'मूव आन कहने' जितना सरल नहीं होता। ऊपर ऊपर से तो सब सामान्य रहता और दिखता है पर थोड़ा कुरेदते ही कसकती यादों, हरे जख़्मों और जमे हुए आँसुओं की कई परतें नज़र आने लगती हैं। 

शांतनु की लेखनी बाहर और अंदर के इसी विरोधाभास को गीत में जगह जगह उभारती है। मसलन मैं हँसता रहा और आँखों से बह गयी नदी....मैं बनता गया पर बनती गयी तेरी कमी...मैं रुकता गया कब गुजर गयी तेरी सदी । अनूप सातम का मुखड़ा के पहले पियानो पर बजाया आधे मिनट का टुकड़ा जो अंतरों में भी दोहराया जाता है मन को मधुर तो लगता ही है साथ ही गीत के मायूस करते मूड में ढाल देता है। 

मैं हँसता रहा और आँखों से बह गयी नदी 
कैसी कहानी ज़िंदगी
मैं बसता गया पर पैरों से उड़ चली ज़मीं
कैसी कहानी ज़िंदगी

जब कभी यहाँ छाए बादल
यूँ लगा कि है तेरा काजल
जब वो काजल धुला,  कहीं पे सूरज ना मिला
मैं रुकता गया कब गुजर गयी तेरी सदी 
कैसी कहानी ज़िंदगी

अब तो है तेरा अलग ठिकाना
इस घर ने फिर भी ना माना
खिड़कियाँ खोल के तेरे नज़ारों को छाना
मैं बनता गया पर बनती गयी तेरी कमी
कैसी कहानी ज़िंदगी

तो आइए सुनिए विछोह की इस कहानी को शांतनु की जुबानी

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6 टिप्पणियाँ:

Anjali Kumar on मार्च 10, 2024 ने कहा…

और बाक़ी के २ गीत ? 😊

Manish Kumar on मार्च 10, 2024 ने कहा…

उनके बारे में अलग अलग लिखूंगा

Munish Sharma on मार्च 10, 2024 ने कहा…

हेमन्त दा का पुनर्जन्म

Manish Kumar on मार्च 10, 2024 ने कहा…

जी, उनकी आवाज़ की बनावट कुछ वैसी ही है😊

Santanu Ghatak on मार्च 16, 2024 ने कहा…

Thank you so much sir 🙏🙏

Manish Kumar on मार्च 16, 2024 ने कहा…

❤️

 

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