ये इश्क़ है जिसने इसे रहने के काबिल कर दिया

जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से! अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो,,,
महजबीं हसीन दुल्हन से मिलो
वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो
होगा कोई माहरु जिसकी मुझे आरज़ू
होगा कोई माहरु जिसकी मुझे आरज़ू
मेरी हस्ती ज़रा चमके किसी जुगनू की तरह
मेरी साँसें सदा महकें नई खुशबू की तरह
किसी तितली की तरह खुश लगे ये जस्तजू जस्तजू
ओह वल्लो वल्लो,,,महजबीं हसीन दुल्हन से मिलो
वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो
ना जी ना अभी अहर्ताएं और भी हैं और ये तो और ज्यादा जरूरी हैं
किसी ज़ेवर की तरह साथ रखे याद मेरी
किसी बच्चे की तरह ज़िंदगी हो शाद मेरी
मेरे हँसने मेरे रोने से उसे फर्क पड़े
उसे पा कर के लगे ज़िंदगी दिलशाद मेरी
फरियाद मेरी ओ फरियाद मेरी
खुश रहे तू अज़ीज़ा आबाद मेरी
शगुन वाली रात आई, खुशियों के जज़्बात लाई
रौनकें सब साथ लाई, देखो देखो देखो देखो
चाँदनी है दर पे खड़ी, होंठों पे मुस्कान बड़ी
अँखियों में बूँदों की लड़ी, देखो देखो देखो देखो
वल्लो वल्लो ,,,महजबीं हसीन दुल्हन से मिलो ,,,वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो
गायिकाओं , संगीतकार गीतकार की जोड़ी के साथ इस गीत के वीडियो में कुछ प्यारे बच्चे भी हैं जिनकी वज़ह से वो देखने लायक बन गया है। अमित त्रिवेदी ने भी अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि वो इस गीत से एक खास लगाव रखते हैं। इस गीत को देखिए कहीं आप भी मेरी तरह इसके अनुरागी बन जाएँ
पृथ्वी गंधर्व को मैं पिछले कुछ सालों से एक ऐसे ग़ज़ल गायक के रूप में देखता आया था जो मुंबई कि छोटी बड़ी महफिलों में हारमोनियम लिए कभी ख़ुद तो कभी अपने साथी कलाकारों के साथ गाते गुनगुनाते नज़र आते थे। उनकी गायिकी में गुलाम अली, मेहदी हसन व हरिहरण का प्रभाव स्पष्ट ही दिखता है। मेहदी हसन के साथ तो उन्होंने वक़्त बिताया ही है आजकल भी गुलाम अली के साथ विदेशों में एक साथ मंच साझा करते रहे हैं।
पृथ्वी गंधर्व एक संगीत से जुड़े परिवार से आते हैं। दादा, पिता, बहन सब किसी न किसी वाद्य यंत्र में महारत रखते हैं। गायिकी में मां की रुचि थी पर ऐसे संगीतमय माहौल में शास्त्रीय संगीत और ग़ज़ल गायिकी सीखने के लिए पृथ्वी हरिहरण जी के पास पहुंचे और उनके पुत्र के साथ रियाज़ करते करते उनका विश्वास जीता।
इन्हीं महफिलों का असर था कि बंदिश बैंडिट्स के निर्देशक आनंद तिवारी और आकाशसेन गुप्ता को किसी ने पृथ्वी का नाम सुझाया। आनंद ने चार पाँच घंटे के संगीत सत्र में उनसे 16 बंदिशें गवाई पर मामला कुछ जमा नहीं। हालांकि संगीत के ये दौर चलते रहे। ऐसे ही एक सत्र में उनसे कुछ अपना स्वरचित सुनाने की फर्माइश हुई और तब जो गीत पृथ्वी गंधर्व के ज़ेहन में आया वो था निर्मोहिया जिसकी धुन उन्होंने पियानो पर कोविड काल में उज्जैन में घर बैठे रिकार्ड की थी। |
पृथ्वी गंधर्व और सुवर्णा तिवारी
निर्मोहिया में शास्त्रीयता के साथ साथ कानों पर तुरंत चढ़ जाने का असर भी था। इसलिए इस वेब सीरीज के लिए तुरंत ही उनकी ये बंदिश चुन ली गई। राग यमन पर आधारित इस बंदिश में पृथ्वी गंधर्व का साथ दिया सुवर्णा तिवारी ने जो ख़ुद ही एक मँजी हुई शास्त्रीय गायिका हैं। सुवर्णा की गहरी और धारदार आवाज़ के साथ पृथ्वी गंधर्व की मुलायमित खूब सराही गयी। यूँ तो बंदिश बैंडिट्स में पृथ्वी ने कई गीतों में अपनी उपस्थिति गायक या संगीतकार के रूप में दर्ज की है पर निर्मोहिया की बात कुछ अलग है।
ये मेरे जीवन की सबसे यादगार चार रातें थीं और इन बेहतरीन धुनों पर काम करते हुए इतना आनंद मुझे पहले कभी नहीं आया। इस फिल्म को दिल्ली में जब सैनिकों को विशेष रूप से दिखाया गया तो बहुतों की रुलाई छूट गयी पर साथ ही फिल्म के गीतों पर दर्शकों की प्रतिक्रिया देखकर संगीतकार जी वी प्रकाश को कहना पड़ा कि हिंदी वर्सन के गीत संगीत तो लगता है तमिल की अपेक्षा ज्यादा बेहतर तरीके से उभर कर आए हैं।सजीव और प्रकाश के गीत संगीत से सजा जो गीत मेरी इस गीतमाला का हिस्सा बना है वो है मन रे मन रे। दो लोगों के मिलने, परिणय सूत्र में बँधने और उनके निरंतर प्रगाढ़ होते प्रेम को दिखाता हुआ फिल्म का ये गीत पार्श्व में चलता रहता है। बाँसुरी के मधुर टुकड़े से ये गीत शुरु होता है जब मुखड़े में सजीव लिखते हैं..
श्रीराम राघवन की फिल्मों का अनूठा पहलू यह है कि उनकी फिल्मों के गाने पटकथा से सीधे तौर पर जुड़े होते हैं। यह मेरे लिए कहानी और मूड के सार को पकड़ने का मौका तो देता ही है, साथ ही फिल्म के संदर्भ से इतर भी कुछ मनोरंजक रचने का अवसर प्रदान करता है। बिना इसकी पटकथा जाने हुए भी लोगों ने इस फिल्म के गीतों को पसंद किया है।
सच तो ये है कि मैंने भी मेरी क्रिसमस नहीं देखी पर इसके बावज़ूद भी इसके गीत मेरी गीतमाला का हिस्सा बने हैं।
ये फिल्म क्रिसमस के आस पास रिलीज़ हुयी थी। इसका जो ये शीर्षक गीत है वो इसी त्योहार की मौज मस्ती की तरंग को अपने अंदर समाता हुआ सा बहता है। वरुण के शब्द और सुनिधि की प्यारी गायिकी इस खुशनुमा माहौल को धनात्मक उर्जा और प्रेम के रंगों से भर देते हैं। सुनिधि की गायिकी कितनी शानदार है वो आप इस गीत के ऐश किंग वाले वर्सन को सुन कर समझ सकते हैं। प्रीतम ने अपने इस गीत में ट्रम्पेट का बेहतरीन इस्तेमाल किया है जिसे आप गीत के बोलों के आगे पीछे इस गीत में बारहा सुनेंगे।
वार्षिक संगीतमाला की 24 वीं पायदान पर गाना वो जिसे संगीतबद्ध किया सागनिक कोले ने और गाया हंसिका पारीक ने। ये गीत किसी फिल्म से नहीं बल्कि स्वतंत्र संगीत की उपज है जो आजकल इंटरनेट की सर्वसुलभता की वज़ह से तेजी से अपनी जड़ें जमा रहा है। इस गीत का शीर्षक है रतियाँ।
रतियाँ एक प्यारा सा गीत है जिसमें चाँद तारों के माध्यम से नायिका बड़ी शिद्दत से अपने प्रेमी को याद कर रही है। बांग्ला और हिंदी दोनों भाषाओं में लिखने वाले गीतकार सोहम मजूमदार के बोल सहज हैं पर दिल को छूते हैं। इतना तो तय है कि जिन लोगों ने तन्हाई के पलों में छत पर लेटे लेटे चांद सितारों से दीप्तमान आकाश को घंटों निहारते हुए अपने प्रिय को याद किया होगा उन्हें ये गीत जरूर अच्छा लगेगा।
वैसे चाँद तारे तो फ़िल्मी गीतों के अभिन्न अंग रहे हैं। कितने ही सदाबहार गीत इन बिंबों को ले के लिखे गए हैं। चाँद फिर निकला मगर तुम न आए, वो चाँद हंसा वो तारे खिले ये रात अजब मतवाली है, ऐ चाँद खूबसूरत, ऐ आसमान के तारे तुम मेरे संग ज़मीन पर थोड़ी तो रात गुजारो, तू मेरा चाँद मैं तेरी चांदनी, चाँद तारे तोड़ के लाऊँ बस इतना सा ख्वाब है , मतलब जितना सोचिये उतने गीत निकलते जाएंगे। सोहम भी इसी सिलसिले को एक और रूप देते हुए लिखते हैं...
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