जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
जीवन की चुनौतियों से जूझते हुए बहुधा ऐसा होता है कि हम हिम्मत हार जाते हैं। अपने पर से भरोसा उठने लगता है। किसी काम को करने के पहले इतना अगर मगर सोच लेते हैं कि खुले मन से उस कार्य को अच्छे तरीके से कर भी नहीं पाते। नतीजन कई बार असफलता हाथ लगती है जो तनाव को जन्म देती है। ये दुष्चक्र कभी कभी हमें अवसाद की ओर ढकेल देता है।
स्वानंद, श्रेया और कनिष्क सेठ
गीतकार संगीतकार स्वानंद किरकिरे ने रोजमर्रा की जिंदगी में आने वाली इसी भावना को पकड़ा और एक लोरियों सा मुलायम गीत रच दिया जो सच पूछिए तो एक तरह का आत्मालाप है जिसे शायद ही किसी ने दिल से महसूस नहीं किया होगा। 2024 में जितने भी स्वतंत्र गीत बने उसमें किसी गीत की भी शब्द रचना इतनी उत्कृष्ट नहीं होगी जितनी इस गीत की है।
ये गीत इस बात की ताकीद करता है कि जब बुरे ख़्यालों से मन परेशान हो जाता है तो हम कल्पना के सागर में भटकते हुए ऋणात्मक सोच के दलदल में धंसते चले जाते हैं। ऐसे में एक ढाढस संजीवनी का काम करता है। पर ये ढाढस हमें अपने अंदर से ही लाना होगा। अपनी काबिलियत पर भरोसा करना होगा। उदासियों के जाल से मुक्त होने के लिए अपना दुलार खुद करना होगा।
स्वानंद को पता था कि उन्होंने एक व्यक्ति की मनोभावना को इस गीत में बड़ी बारीकी से पकड़ा है। अब उन्हें तलाश थी एक ऐसी आवाज़ की जो इस गीत को इसके उचित मुकाम तक ले जाए। इसके लिए उनके मन में एक ही आवाज़ थी और वो आवाज़ थी श्रेया घोषाल की। श्रेया ने जब इस गीत के लिए हां कि तो स्वानंद की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। श्रेया के आने से गीत निखरा भी उसी अंदाज़ में।
मन को शांत करती धुन, काव्यात्मक बोल और श्रेया का दिव्य स्वर एक ऐसा मिश्रण था जो किसी को भी मुग्ध कर दे।
ख़ुद श्रेया घोषाल का कहना था कि
ये गाना ऐसा था कि रिकॉर्डिंग के समय हम इसे गाए जा रहे थे। ये ऐसे बैठ गया था मेरे जेहन में जैसे कि मेरा ही कोई हिस्सा हो। इस गीत का टेम्पो बच्चे को सुनाई जाने वाली लोरियों जैसा है। शूट में आने के पहले कल ही मैंने अपने बच्चे को सुलाते वक़्त ये गाना सुनाया था।
कोक स्टूडियो भारत ने इस गीत में संगीत arrange करने की जिम्मेदारी सौंपी कनिष्क सेठ को जो लोकप्रिय गायिका कविता सेठ के पुत्र हैं। स्वानंद और श्रेया की सलामी जोड़ी ने शुरुआत इतनी अच्छी दे दी थी कि नाममात्र का संगीत भी इस गीत के लिए काफी था। कनिष्क ने इसके लिए तार और ताल वाद्यों के साथ अंत में हल्के हल्के कोरस का सहारा लिया जो गीत में अंतर्निहित सुकून को एक विस्तार देता है।
भीड़ है ख़यालोंकी, इक अकेला मन
नोचती खरोंचती, ये सोच ज़ख्म दे कोई मेरे मन को लगा दे मरहम सो जा रे
खींचता दिशा दिशा, तनाव बेरहम
रे मन तू गुमसुम गुपचुप सो जा रे रे मन तू गुमसुम गुपचुप सो जा रे
ख़यालों से ना डर, कल की छोड़ दे फिक्र ख़यालों से ना डर, कल की छोड़ दे फिक्र आज नींद के अंधेरों में खो जा रे रे मन तू गुमसुम गुपचुप सो जा रे रे मन तू गुमसुम गुपचुप सो जा रे सो जा रे
दिल में जो सहमा सहमा डर है या मलाल है दिल में जो सहमा सहमा डर है या मलाल है सच कहूँ जो भी है वो सिर्फ़ इक ख़याल है तेरे ही तसव्वुरों का खोखला कमाल है मुस्कुरा मुस्कुरा, क्यों दर्द की लड़ियाँ पिरोता रे खोल दे तू इस घड़ी सुकून का झरोखा रे
ख़यालों से ना डर...... सो जा रे
कि पलकों की दो खिड़कियाँ तू हौले बंद कर ले कि धड़कनों की थपकियों से तू ज़रा सँवर ले साँसों की सुन ले लोरी, पलने की जैसे डोरी तू ही साथी तेरा, न खुद से ही तू थोड़ा प्यार और दुलार कर जा रे सो जा रे...
तो आइए सुनें इस गीत को जो आपके अंदर एक विश्वास तो जगाएगा ही पर साथ ही साथ मन को सुकून भरी दुनिया में भी पहुंचा देगा।
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