इस युगल गीत के साथ पहली बार इस गीतमाला में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं आज के युग के दो बेमिसाल गायक सुखविंदर सिंह और कैलाश खेर। इन दोनों महारथियों को एक साथ सुनना किसी भी संगीतप्रेमी के लिए सोने पर सुहागा जैसी बात होती है। वैसे तो इन गायकों की खासियत रही हे कि आम से गीत को भी अपनी अदाएगी से खास बना दें पर जब बोल गुलज़ार के हों और धुन विशाल भारद्वाज की तो उनका काम और आसान हो जाता है।
कमीने फिल्म के इस गीत ने जितनी चुनौती गायकों के लिए थी उससे कहीं ज्यादा गीतकार संगीतकार की जोड़ी के लिए। गीत लिखना था एक ऐसी स्थिति पर जिसमें नायक जो एक सामाजिक कार्यकर्ता है , घूम घूम कर रेड लाइट एरिया में कंडोम का वितरण कर रहा है और साथ ही लोगों को एड्स के खतरे के बारे में बता रहा है। किसी भी गीतकार के लिए इस विषय को बिना उपदेशात्मक हुए कविता में बाँधना एक टेढ़ी खीर थी। पर गुलज़ार ने इस काम को बड़े सलीके से अंजाम दिया। वहीं विशाल का संगीत संयोजन और फटाक शब्द का गीत की लय के साथ बेहतरीन इस्तेमाल श्रोताओं का ध्यान सहज ही आकर्षित कर लेता है।
तो आइए सुनें कैलाश और सुखविंदर की आवाज़ में ये नग्मा
कि भँवरा भँवरा आया रे फटाक फटाक
गुन गुन करता आया रे
सुन सुन करता गलियों से
अब तक कोई ना भाया रे
सौदा करे सहेली का
सर पर तेल चमेली का
कान में इतर का फाहा रे
कि भँवरा भँवरा आया रे फटाक फटाक.. ..
गिनती ना करना इसकी यारों में
आवारा घूमे गलियारों में
ये चिपकू हमेशा सताएगा
ये जाएगा फिर लौट आएगा
खून के मैले कतरे हैं
जान के सारे खतरे ...
कि आया रात का जाया रे..फटाक ...
जितना भी झूठ बोले थोड़ा है
कीड़ों की बस्ती का मकौड़ा है
ये रातों का बिच्छू है काटेगा
ये ज़हरीला है ज़हर चाटेगा
दरवाजे में कुन्दे दो
दफ़ा करो ये गुंडे ये शैतान का साया रे फटाक फटाक..
ये इश्क़ नहीं आसान, अजी AIDS का खतरा है
पतवार पहन जाना ये आग का दरिया है
ये नैया डूबे ना ये भँवरा काटे ना
और हाँ गीत सुनने के साथ बगल की साइड बार में चल रही वोटिंग में अपनी पसंद का इज़हार जरूर कीजिए।