सोमवार, फ़रवरी 27, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 6 : होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ Hone Do Batiyan

वार्षिक संगीतमाला की छठी पॉयदान के हीरो हैं संगीतकार अमित त्रिवेदी जिन्होंने गीतकार स्वानंद किरकिरे के साथ मिलकर एक बेहद प्यारा युगल गीत रचा है फिल्म फितूर के लिए। जेबुन्निसा बंगेश व नंदिनी सिरकर का गाया ये नग्मा जब आप पहली बार सुनेंगे तो ऐसा लगेगा मानो दो बहनें आपस में बात कर रही हों। अब ये बात अलग है कि फिल्म में ये गीत नायक व नायिका की बोल बंदी को तोड़ने का प्रयास कर रहा है।


जेबुन्निसा बंगेश या जेब से आपकी मुलाकात मैं पहले भी करा चुका हूँ जब उन्होंने स्वानंद और शांतनु के साथ मिलकर टीवी शो The Dewarist के लिए एक गाना रचा था जिसे काफी पसंद किया गया था। जेब बंगेश उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान से ताल्लुक रखती हैं और हाल फिलहाल में इनकी आवाज़ आपने फिल्म मद्रास कैफे के आलावा हाइवे के गीत  सूहा साहा में भी सुनी होगी।

यूँ तो जेब मुंबई आते जाते कई बार अमित त्रिवेदी से मिल चुकी थीं पर उनके मित्र स्वानंद ने उन्हें अमित से तब मिलवाया जब वे फितूर के लिए काम कर रहे थे।  ये मुलाकात उन्हें इस युगल गीत का हिस्सा बना गयी। इस गीत में जेब का साथ दिया नंदिनी सिरकर ने। विज्ञान की छात्रा और कंप्यूटर प्रोफेशनल रही नंदिनी यूँ तो संगीत के क्षेत्र में दो दशकों से सक्रिय हैं पर रा वन के गीत भरे नैना से वो हिंदी फिल्म संगीत के आकाश में चमकीं। मुझे उनका फिल्म शंघाई के लिए गाया नग्मा जो भेजी  थी दुआ सबसे अच्छा लगता है और इस गीत में भी अपनी आवाज़ की खनक से वे मन को खुश कर देती हैं।

चार्ल्स डिकन्स की किताब ग्रेट एक्सपेक्टेशन से प्रेरित फितूर की कहानी कश्मीर में पलती बढ़ती है और इसीलिए फिल्म के गानों में अमित ने इलाके के संगीत का अक़्स लाने की कोशिश की है। अब इस गीत के संगीत संयोजन को ही लीजिए। अफ़गानिस्तान के राष्ट्रीय वाद्य रबाब और ग्रीस के वाद्य यंत्र बोजूकी के साथ अमित त्रिवेदी आरमेनिया के साज़ और अपने संतूर को मिलाते हए ऐसी रागिनी पैदा करते है जो हर बार सुनते हुए मन में बसती चली जाती है। गीत की शुरुआत का रबाब और पहले इंटरल्यूड में बोजूकी की धुन के साथ मन झूम उठता है। गीत के बोलों के साथ संतूर भी थिरकता है।


तापस रॉय
 अक्सर गीतों को सुनते वक़्त हम वाद्य यंत्रों को बजाने वाले गुमनाम चेहरों से अपरिचित ही रह जाते हैं। पर जब मुझे ये पता चला कि इस गीत में रबाब, बोजूकी, साज़ और संतूर चारों एक ही वादक तापस रॉय ने बजाए हैं तो उनके हुनर को नमन करने का दिल हो आया। तापस के पिता पारितोष राय मशहूर दोतारा वादक थे। सत्यजित रे से लेकर रितुपूर्ण घोष के साथ काम कर चुके तापस को  इन वाद्यों के आलावा मेंडोलिन और दोतारा में भी महारत हासिल है।

मुझे आपका तो पता नहीं पर मैं तो बेहद बातूनी इंसान हूँ और जिन लोगों को पसंद करता हूँ उनसे घंटों बातें कर सकता हूँ।  मेरा ये मानना है कि किसी की अच्छाई को जानने के लिए, उसके व्यक्तित्व के पहलुओं से रूबरू होने के लिए उसके मन तक के कई दरवाजों को खोलना पड़ता है और वो बातों से ही संभव है। इसलिए स्वानंद जब कहते हैं सुनों बातों से बनती है बातें बोलो.. तो वो मन की ही बात लगती है।

गीतकार स्वानंद किरकिरे इस गीत में ऐसे दो संगियों की बातें कर रहे हैं जो एक साथ बड़े हुए, एक ही माटी में पैदा हुए, बातों बातों में ही प्यार कर बैठे पर फिलहाल चुप चुप से हैं। तो आइए सुनते हैं ये गीत और तोड़ते हैं दो दिलों के बीच का मौन..


होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ
कोने में दिल के प्यार पड़ा
तन्हा.. तन्हा..
दिलों की दिल से
होने दो बतियाँ, होने दो बातें
होने दो बतियाँ, होने दो बातें

होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ
सीने में छुपके धड़के दिल
तनहा तनहा, दिलों की दिल से
होने दो बतियाँ, होने दो बातें
होने दो बतियाँ, होने दो बातें

रात के दर पे कबसे खड़ी है
भीनी-भीनी सुबह
खोले झरोखे फिज़ा हैं बेनूर..
संग चले हैं, संग पले हैं
धूप छैंया दोनों
सुनों बातों से बनती है बातें बोलो..
होने दो बतियाँ.. होने दो बातें

हाँ मैं भी हूँ माटी, तू भी है माटी
तेरा मेरा क्या है
क्यूँ हैं खड़े हम, खुद से इतनी दूर..
साँसों में तेरी, साँसों में मेरी
एक ही तो हवा है
मर जायेंगे हम, यूँ ना हमको छोड़ो..

आ.. होने दो बतियाँ.. होने दो बातें


और ये है गीत का संक्षिप्त वीडियो


स्वानंद इस गीत के माध्यम से नायक नायिका के बीच के मौन को तोड़ पाए या नहीं ये तो फिल्म देख के पता ही चलेगा पर अपने किसी खास से आगर हल्की फुल्की तनातनी हो गयी तो बस इस गीत के मुखड़े को गुनगुना दीजिए.. :)
वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

बुधवार, फ़रवरी 22, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 7 क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'? Kyun Re..

वार्षिक संगीतमाला के साल के दस बेहतरीन गीतों की फेरहिस्त में जो गीत सबसे ज्यादा ग़मगीन कर देता है वो हैं क्यूँ रे...। बच्चे किसे प्यारे नहीं होते। उनका निर्मल मन, उनकी खिलखिलाती हँसी, उनकी शरारतें हमारे हृदय को पुलकित करती रहती हैं। ऐसे में वे अचानक से ही ज़िदगी से बेहरमी से अलग कर दिए जाएँ तो असहनीय पीड़ा होती है। फिल्म Te3n का ये गीत एक बुजुर्ग की ऐसी ही वेदना को व्यक्त करता है जो उनकी अपहृत पोती के हत्यारों की तलाश में है। 

विद्या बालन, अमिताभ बच्चन और नवाजुद्दीन सिद्दिकी जैसे शानदार कलाकारों से परिपूर्ण ये फिल्म सिनेमाघरों में ज्यादा दिन तक तो टिक नहीं पाई पर फिल्म का गीत संगीत अपनी छाप अवश्य छोड़ गया। इस फिल्म के गीत हक़ है मुझे से आप पहले ही इस संगीतमाला में रूबरू हो चुके हैं। आज बारी है इसी फिल्म के एक दूसरे गीत की जिसे अमिताभ बच्चन ने ख़ुद अपनी आवाज़ दी है।



अमिताभ की आवाज़ का तो सारा देश दीवाना है और मैं भी उनकी आवाज़ के जादू से अछूता नहीं हूँ। अब तक नई पुरानी तीस से ज्यादा फिल्मों में अमिताभ अपनी आवाज़ का परचम लहरा चुके हैं। अमिताभ बच्चन ने अपने चिर परिचित मजाकिया अंदाज़ में इस फिल्म का संगीत जनता के सामने रखते हुए इस गीत से जुड़े कुछ प्रसंगों का उल्लेख किया था। अमिताभ का कहना था। .
"पहली बार जब मैंने ये गाना गाया तो इन लोगों ने उसे बेकार कह के नकार दिया। फिर किसी ने कहा क्लिंटन को बुलवा दें। अब बताइए जिन हजरात को आप बचना चाहते हो उन्हीं को आपके छः इंच पर बैठा दिया जाए तो मेरे जैसे शख़्स की, जो गायक नहीं है क्या हालत हुई होगी। सच पूछिए तो मैंने बिल्कुल बेसुरा गाया। अब ये लोग हैं ना बेसुरी आवाज़ को भी मशीन में डालकर और उसमें कोरस और संगीत से अच्छा बना देते हैं। सो जो आप सुनेंगे वो मेरी नहीं मशीनी आवाज़ होगी।"
जब अमिताभ बोल रहे थे तो उनके साथ बैठे क्लिंटन की हँसी रुक नहीं पा रही थी। क्लिंटन का कहना था कि अमिताभ की गहरी आवाज़ का इस्तेमाल हम सब एक दूसरे रूप में करना चाहते थे। उनके द्वारा निभाए किरदार जॉन बिश्वास की आवाज़ एक टूटे हुए इंसान की थी जो वक़्त के हाथों लाचार हो गया था। इसलिए हमने उन्हें उसी चरित्र को अपनी आवाज़ में ढालने को कहा। वाकई अमिताभ बच्चन ने अमिताभ भट्टाचार्य के बोलों के पीछे भावनाओं को हूबहू आवाज़ में तब्दील कर दिया। 



संगीतकार क्लिंटन ने इस साल संगीतमाला में शामिल में अपने चार  गीतों डिगी डिगी डुग, महरम हक़ है और क्यूँ रे  गिटार का जिस तरह इस्तेमाल किया है वो काबिलेतारीफ़ है। ये सारे गीत शब्द प्रधान हैं और सबमें संगीत नाममात्र का ही है। अमिताभ भट्टाचार्य का हँसी के लिए जलतरंग की उपमा का इस्तेमाल मन को सोहता है। दोनो अंतरों से गुजरते गुजरते आँखे नम हो जाती है। ऐसा लगता है मानों कोई अपना ही ज़िंदगी से बिछुड़ गया हो...


जलतरंग सी हँसी तेरी, सुनायी दे आज भी
खुशबू तेरी रह गयी तेरे जाने के बाद भी
घर का वो कोना तेरा, सूना बिछौना तेरा
तेरी गैर मौजूदगी में भी, लगे होना तेरा
क्यूँ रे, क्यूँ रे, कर गया तनहा मुझे ऐसे
क्यूँ रे, क्यूँ रे काँच के लमहों के रह गए
रह गए चूरे

तेरी चीजें अब भी वैसे ही रखता हूँ
बैठा सन्नाटे में उनको  तकता हूँ
जब लौटेगी तब तक रस्ता देखूँगा
इसके आलावा कर भी क्या सकता हूँ
ऊँगली से मुझको फिर से, सुलझाने दे ना अपने
गुच्छे घुंघरैले बालों के भूरे
क्यूँ रे, क्यूँ रे कर गया तनहा मुझे ऐसे
क्यूँ रे, क्यूँ रे काँच के लमहों के रह गए
रह गए चूरे


मासूम सा में आपने एक पिता के दिल की करुण पुकार सुनी थी आज सत्तर वर्षीय उस बुजुर्ग की सुनिए जो बड़ी कातरता से एक प्रश्न कर रहा है कि ये सब हुआ तो क्यूँ हुआ...


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

सोमवार, फ़रवरी 20, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान #8 क्या है कोई आपका भी 'महरम'? Mujhe Mehram Jaan Le...

हर साल फिल्मी गीत कुछ अप्रचलित शब्दों को हमारी बोलचाल की भाषा में डाल ही देते हैं। बहुधा ऐसा निर्माता निर्देशक गीतों में एक नवीनता लाने के लिए करते रहे हैं। पिछले कुछ सालों में अम्बरसरिया, ज़हनसीब, आयत, कतिया करूँ जैसे शब्दों ने गीत के प्रति लोगों का आरंभिक जुड़ाव बनाने में काफी मदद की थी। अब महरम (जिसे मेहरम की तरह भी उच्चारित किया जाता है) को ही लीजिए, फिल्मी गीतों के लिए अनजाना तो नहीं पर कम प्रयुक्त होने वाला तो लफ़्ज़ है ही ये। मुझे याद पड़ता है कि आज से पाँच साल पहले गीतकार स्वानंद किरकिरे ने फिल्म ये साली ज़िंदगी के गीत में महरम शब्द का प्रयोग कुछ यूँ किया था

कैसे कहें अलविदा, महरम
कैसे बने अजनबी, हमदम

भूल जाओ जो तुम, भूल जाएँगे हम
ये जुनूँ ये प्यार के लमहे...... नम

जावेद अली द्वारा गाया बड़ा प्यारा नग्मा था वो भी !


वैसे कहाँ से आया है ये "महरम'? इस्लाम के धार्मिक नज़रिए से देखें तो महरम वैसे सगे संबंधियों को कहते हैं जिनसे आपकी शादी नहीं हो सकती। पर साहित्य या फिल्मी गीतों में अरबी से उर्दू में आए इस शब्द का प्रयोग एक अतरंग, एक बेहद घनिष्ठ मित्र के तौर पर होता रहा है। इस मित्रता को भी आप प्रेम ही मान सकते हैं। पर जब ये प्रेम पाने से ज्यादा कुछ देने के लिए हो, उसकी बातों का राजदार बनने के लिए हो, दुख व परेशानियों में उसके साथ खड़े रहने के लिए हो.... तो आप सच में किसी के महरम बन जाते हैं।

यही वज़ह थी कि कहानी 2 में जब अरुण व दुर्गा के किरदारों के आपसी रिश्ते को एक शब्द से बाँधने की क़वायद में अमिताभ भट्टाचार्य निकले तो उनकी खोज महरम पर जा कर समाप्त हुई। अमिताभ द्वारा लिखा गीत का मुखड़ा महरम को कुछ यूँ परिभाषित कर गया ..तेरी ऊँगली थाम के, तेरी दुनिया में चलूँ...मेरे रंग तू ना रंगे, तो तेरे रंग में मैं ढलूँ...मुझे कुछ मत दे, बस रख ले मेरा नज़राना..बिन शर्तों के, हाँ तुझसे मेरा याराना

कहानी 2 के इस गीत को संगीत से सँवारा है क्लिंटन सेरेजो ने। क्लिंटन की इस संगीतमाला की है ये तीसरी संगीतबद्ध रचना है। इस गीत में प्राण फूँकने में सचिन मित्रा के साथ उनके बजाए गिटार और अरिजीत की आवाज़ का कम योगदान नहीं है। अरिजीत सिंह भले इस साल सलमान खाँ द्वारा दुत्कारे गए हों पर फिर वो साल के सबसे लोकप्रिय गायक के रूप में उभरे हैं। ऊँचे सुरों पर उनका आधिपत्य रहा है और ये गीत उसी कोटि का है इसलिए इसे वे बड़ी आसानी व मधुरता से निभा जाते हैं। तो चलिए इस गीत का पहले और फिर वीडियो



तेरी ऊँगली थाम के, तेरी दुनिया में चलूँ
मेरे रंग तू ना रंगे, तो तेरे रंग में मैं ढलूँ
मुझे कुछ मत दे, बस रख ले मेरा नज़राना
बिन शर्तों के, हाँ तुझसे मेरा याराना

मुझे महरम महरम महरम मुझे महरम जान ले
 
मुझे महरम महरम महरम मुझे महरम जान ले
मेरी आँखों में तेरी सूरत पहचान ले
मुझे महरम महरम महरम मुझे महरम मुझे महरम जान ले

खुल के ना कह सके, कानों में बोल दे
अपना हर राज़ तू आ मुझ पे खोल दे
मेरे रहते.. भला किस बात का है घबराना
अब से तेरा.. हाफ़िज़ है मेरा याराना
मुझे महरम महरम महरम....जान ले

तेरे हिस्से का नीला आसमान, होगा न कभी बादल में छुपा
तुझपे आँच ना, कोई आएगी, तकलीफें कभी छू ना पाएँगी
मुझे ये वादा है जीते जी पूरा कर जाना
बिन शर्तो के.. हाँ तुझसे मेरा याराना
मुझे महरम महरम महरम....जान ले



वैसे अब तो बताइए क्या आपकी ज़िंदगी में भी कोई महरम है?
 

वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

शनिवार, फ़रवरी 18, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 9 : जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina

आँख , नैन, नैना ना जाने अब तक कितने फिल्मी गीतों के मुखड़े का हिस्सा बनें होंगे। हाल फिलहाल में  फिल्म जय हो का तेरे नैना मार ही डालेंगे, दबंग 2 का  तेरे नैना दगाबाज़ रे और दबंग का तेरे मस्त मस्त दो नैन , खूबसूरत का नैना नू  पता है को आप नहीं भूले होंगे। पुराने गीतों की बात करें तो सबसे पहले उमराव जान का गीत इन आँखो् की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं से लेकर ये नयन डरे डरे तक फिल्मी मुखड़ों में इस शब्द और पर्यायों के इस्तेमाल की रिवायत चली आ रही है।



पर पिछले साल की सबसे सफल फिल्म दंगल के एक गीत में नैना शब्द का इस्तेमाल आठ अलग अलग भावों को व्यक्त करने में हुआ है। अगर बोलों की गुणवत्ता की बात करूँ तो अमिताभ भट्टाचार्य का लिखा ये नग्मा साल के सबसे अच्छे लिखे हुए गीतों में से एक होगा। इस दर्द से भरे मधुर गीत को आवाज़ दी है अरिजीत सिंह ने और इसे संगीतबद्ध किया है प्रीतम ने।

पिता और पुत्री के बीच खेल की तकनीक से लेकर रहन सहन और अनुशासन के तौर तरीकों से उपजे तनाव को अमिताभ अपनी लेखनी से इस गीत में जीवंत करते नज़र आते हैं। ये गीत उस पिता और बेटी की कहानी कहता है जो एक सा ख़्वाब दिल में पाले हुए एक लक्ष्य की ओर साथ साथ बढ़ते हैं, मेहनत कर पसीना बहाते हैं पर  मंजिल के पास आ कर दो अलग रास्तों पर चल पड़ते हैं। ऐसी हालत में पिता की पीड़ा अरिजीत अपनी आवाज़ में यू समाहित कर लेते हैं कि उन्हें सुन कर वो हर अभिभावक को अपनी सी लगने लगती है।

प्रीतम का संगीत संयोजन एक बार फिर गिटार के इर्द गिर्द घूमता है। गीत के शब्द इतने दमदार हैं कि प्रीतम ने वाद्यों का स्तर न्यूनतम रखा है। इंटरल्यूड्स व गीत के अंतरों में डफली, गिटार के साथ एकार्डियन का प्रयोग भी भला लगता है। अरिजीत सिंह इस संगीतमाला में तीसरी बार दाखिल हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे। कहना ना होगा कि ये साल उनके व अमिताभ भट्टाचार्य के लिए बेहतरीन सालों में से एक रहा है। तो चलिए सुनते हैं ये गीत जिसे शायद आपने फिल्म देखते हुए उतना ध्यान नहीं दिया हो...

झूठा जग रैन बसेरा, साँचा दर्द मेरा
मृग-तृष्णा सा मोह पिया, नाता मेरा तेरा

नैना.. जो सांझे ख्वाब देखते थे
नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ
नैना.. जो मिलके रात जागते थे
नैना.. सहर में पलकें मीचते हैं यूँ


जुदा हुए कदम, जिन्होंने ली थी ये कसम
मिलके चलेंगे हर दम, अब बाँटते हैं ये ग़म
भीगे नैना.. जो खिड़कियों से झाँकते थे
नैना.. घुटन में बंद हो गए
हैं यूँ

साँस हैरान है, मन परेशान है
हो रही सी क्यूँ रुआँसा ये मेरी जान है
क्यूँ निराशा से है, आस हारी हुई
क्यूँ सवालों का उठा सा, दिल में तूफ़ान है
नैना.. थे आसमान के सितारे
नैना.. ग्रहण में आज टूटते हैं यूँ
नैना.. कभी जो धूप सेंकते थे
नैना.. ठहर के छाँव ढूँढते हैं यूँ


जुदा हुए कदम, जिन्होंने ली थी ये कसम
मिलके चलेंगे हर दम, अब बाँटते हैं ये ग़म
नैना.. जो सांझे ख्वाब देखते थे
नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi



मंगलवार, फ़रवरी 14, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 10 : आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg

वार्षिक संगीतमाला में अब बारी है साल के दस शानदार गीतों की। मुझे विश्वास है कि इस कड़ी की पहली पेशकश को सुन कर आप मुसाफ़िरों वाली मस्ती में डूब जाएँगे। ये गीत है फिल्म जुगनी से जो पिछले साल जुगनुओं की तरह तरह टिमटिमाती हुई कब पर्दे से उतर गयी पता ही नहीं चला। इस गीत को लिखा शैली उर्फ शैलेंद्र सिंह सोढ़ी ने और संगीतबद्ध किया क्लिंटन सेरेजो ने जो बतौर संगीतकार दूसरी बार कदम रख रहे है इस संगीतमाला में। इस गीत से जुड़ी सबसे रोचक बात ये कि विशाल भारद्वाज ने पहली बार किसी दूसरे संगीतकार के लिए अपनी आवाज़ का इस्तेमाल किया है।


पहले तो आपको ये बता दें कि ये शैली हैं कौन? अम्बाला से आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाले शैली के पिता हिम्मत सिंह सोढ़ी ख़ुद कविता लिखते थे और एक प्रखर बुद्धिजीवी  थे। उनके सानिध्य में रह कर शैली गा़लिब, फ़ैज़ और पाश जैसे शायरों के मुरीद हुए। शिव कुमार बटालवी के गीतों ने भी उन्हें प्रभावित किया। चंडीगढ़ से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने के बाद आज 1995 में वो गुलज़ार के साथ काम करने  मुंबई आए पर बात कुछ खास बनी नहीं। हिंदी फिल्मों में पहली सफलता उन्हें 2008 में देव डी के गीतों को लिखने से मिली। इसके बाद भी छोटी मोटी फिल्मों के लिए लिखते रहे हैं। पिछले साल उड़ता पंजाब के गीतों के कारण वो चर्चा में रहे और जुगनी के लिए तो ना केवल उन्होंने गीत लिखे बल्कि संवाद लेखन का भी काम किया।

चित्र में बाएँ से शेफाली, शैली, जावेद बशीर व क्लिंटन
शैली को फिल्म की निर्देशिका शेफाली भूषण ने बस इतना कहा था कि फिल्म के गीतों में लोकगीतों वाली मिठास होनी चाहिए। इस गीत के लिए क्लिंटन ने शैली से पहले बोल लिखवाए और फिर उसकी धुन बनी। क्लिंटन को हिंदी के अटपटे बोलों को समझाने के लिए शैली को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। पर जब क्लिंटन ने उनके बोलों को कम्पोज़ कर शैली के पास भेजा तो वो खुशी से झूम उठे और तीन घंटे तक उसे लगातार सुनते रहे।

क्लिंटन के दिमाग में गीत बनाते वक़्त विशाल की आवाज़ ही घूम रही थी। जब उन्होंने ये गीत विशाल के पास भेजा तो विशाल की पहली प्रतिक्रिया थी कि गाना तो तुम्हारी आवाज़ में जँच ही रहा है तब तुम मुझे क्यूँ गवाना चाहते हो? पर क्लिंटन के साथ विशाल के पुराने साथ की वज़ह से उनके अनुरोध को वो ठुकरा नहीं सके। गीत में जो मस्ती का रंग उभरा है उसमें सच ही विशाल की आवाज़ का बड़ा योगदान है।

शैली चाहते थे कि इस गीत के लिए वो कुछ ऐसा लिखें जिसमें उन्हें गर्व हो और सचमुच इस परिस्थितिजन्य गीत में उन्होंने ये कर दिखाया है। ये गीत पंजाब की एक लोक गायिका की खोज करती घुमक्कड़ नायिका के अनुभवों का बड़ी खूबसूरती से खाका खींचता है । गिटार और ताल वाद्य के साथ मुखड़े के पहले क्लिंटन का बीस सेकेंड का संगीत संयोजन मन को मोहता है और फिर तो विशाल की फुरफराहट हमें गीत के साथ उड़ा ले जाती है उस मुसाफ़िर के साथ।

हम जब यात्रा में होते हैं तो कितने अनजाने लोग अपनी बात व्यवहार से हमारी यादों का अटूट अंग बन जाते हैं। शैली एक यात्री की इन्हीं यादों को आवभगत में मुस्कानें,फुर्सत की मीठी तानें..भांति भांति जग लोग दीवाने, बातें भरें उड़ानें ...राहें दे कोई फकर से, कोई खुद से रहा जूझ रे ....एक चलते फिरते चित्र की भांति शब्दों में उतार देते हैं। निर्देशिका शेफाली भूषण की भी तारीफ़ करनी होगी कि उन्होंने इस गीत का फिल्मांकन करते वक़्त गीत के बोलों को अपने कैमरे से हूबहू व्यक्त करने की बेहतरीन कोशिश की। तो आइए  हम सब साथ साथ हँसते मुस्कुराते गुनगुनाते हुए ये डुगडुगी बजाएँ


फुर्र फुर्र फुर्र नयी डगरिया
मनमौज गुजरिया
रनझुन पायलिया नजरिया
मंन मौज गुजरिया

ये वास्ते रास्ते झल्ले शैदां, रमते जोगी वाला कहदा
आवभगत में मुस्कानें,फुर्सत की मीठी तानें
दायें का हाथ पकड़ के, बाएँ से पूछ के
ओये ओये होए डुग्गी डुग्गी डुग्ग
ओये ओये होए डुग्गी डुग्गी डुग्ग 
ओये ओये होए डुग्गी डुग्गी डुग्ग डुग्गी डुग्ग डुग्गी डुग्ग

फिर फिर फिर राह अटरिया 
सुर ताल साँवरिया
साँझ की बाँहों नरम दोपहरिया
सुर ताल सँवरिया
परवाज़ ये आगाज़ ये है अलहदा
रौनक से हो रही खुशबू पैदा
भांति भांति जग लोग दीवाने, बातें भरें उड़ानें
राहें दे कोई फकर से, कोई खुद से रहा जूझ रे
ओये ओये  होए ...   डुग्ग ,

बहते हुए पानी से, इस दुनिया फानी से ,
है रिश्ता खारा, रंग चोखा हारा ,
और जो रवानी ये,
धुन की पुरानी है ये नाता अनोखा
हाँ कूबकु के माने, दहलीज़  लांघ  के  जाने ,
दायें का हाथ पकड़ के, बाएँ से पूछ के
ओये ओये होए डुग्गी डुग्गी डुग्ग


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 

शनिवार, फ़रवरी 11, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 11: ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi

लगभग चालीस दिन के सफ़र के बाद साल के बेहतरीन पच्चीस गीतों की ये श्रंखला जा पहुँची है ग्यारहवीं पायदान पर और यहाँ पर है अस्सी के दशक का वो गाना जिसे मैं आज भी गाहे बगाहे तरन्नुम से गुनगुनाता हूँ....आप सब भी गुनगुनाते होंगे ऐ ज़िंदगी गले लगा ले ..हमने भी तेरे हर इक ग़म को गले से लगाया है है ना।  दशकों बाद भी गुलज़ार के लिखे इन शब्दों की ताकत इतनी है कि जीवन की हैरान परेशान करती गलियों से गुजरता हर शख़्स कभी ना कभी इन्हें गले लगा ही लेता है। 

पर डियर ज़िंदगी की निर्देशिका गौरी शिंदे इस गीत को अपनी फिल्म में डालने का ख़्याल आया कैसे ? दरअसल ये उनके पति आर बालाकृष्णन जिन्हें फिल्मी दुनिया आर बालकी के नाम से बुलाती है की दिमागी उपज थी। निर्देशक बालकी हमेशा कहते हैं कि उनकी पसंद का सिनेमा दो कलाकारों के बिना अधूरा है। एक तो अमिताभ बच्चन और दूसरे इलयराजा ! इसीलिए उनकी निर्देशित फिल्मों चीनी कम, पा, शमिताभ में इलयराजा के संगीत एक अनिवार्य अंग रहा है। इसलिए जब उन्होने डियर जिंदगी की कहानी सुनी तो उन्हेोंने गौरी को इस गीत को फिल्म का हिस्सा बनाने का सुझाव दिया।



फिल्म की मुख्य पात्र कायरा एक उभरती छायाकार हैं और अपनी एक ख़ुद की फिल्म बनाने की ख्वाहिश रखती हैं। अपने प्रेम संबंधों के टूटने और अपने करीबियों से जीवन में आई दूरी से परेशान कायरा मानसिक अवसाद में चली जाती हैं। कायरा के मानसिक हालातों को गुलज़ार के शब्द इस तरह पकड़ते हैं मानों ये गीत इसी फिल्म के लिए लिखा गया हो। इंसानों से भरी इस दुनिया हमें कभी बेगानियत का अहसास दिला जाती है। बड़े अकेले अलग थलग पड़ जाते हैं हम और तब लगता है कि ये जिंदगी हमें थोड़ी पुचकार तो ले। कोई राह ही दिखा दे, किसी रिश्ते का किनारा दिला दे...

अमित त्रिवेदी सामान्यतः किसी पुराने गीत को शायद ही अपनी फिल्मों में डालने के लिए बहुत उत्साहित रहते हैं पर संगीतकार इलायराजा के वे भी उतने ही बड़े प्रशंसक हैं। इतने बड़े क्लासिक को आज के दौर के संगीत के साथ पुनर्जीवित करना इतना आसान ना था पर अमित ने अरिजीत सिंह के साथ ये काम बखूबी कर दिया। शुरुआत में गिटार की झनझनाहट और ताल वाद्यों के साथ जिस तरह गीत की लय से उठती है उसे सुन का अच्छा लगता है। डियर ज़िदगी में इस गीत के मुखड़े और पहले अंतरे का इस्तेमाल हुआ है। इंटरल्यूड्स के हिस्सों में जो गीत के आधिकारिक वीडियो में नहीं है अमित ने रॉक संगीत का समावेश किया है जो मुझे कुछ खास नवीनता लिए नज़र नहीं आया।

पर इलयराजा की मूल धुन और गुलजार का लिखा एक मुखड़ा और अंतरा ही काफी है इस गीत को आपके दिल में एक बार फिर घर करने के लिए और फिर अरिजीत अपनी गायिकी से सुरेश वाडकर की कमी खलने नहीं देते हैं। अरिजीत पर एक ही तरह के गीत गाने का इलजाम लगता रहा है पर जब जब उन्हें लीक से हटने का मौका मिला है उन्होंने दिखा दिया है कि ऐसे ही नहीं वो करोड़ों दिलों पर राज करते हैं। इस गीत को आलिया से भी गवाया गया है पर वो वर्सन अरिजीत के वर्सन के आगे कहीं नहीं ठहरता। तो  सुनते हैं इस सदाबहार गीत को अरिजीत की आवाज़ में..


गीत का आधिकारिक वीडियो जिसमें इंटरल्यूड को हटा दिया गया है




वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 

गुरुवार, फ़रवरी 09, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 12: क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ Gileheriyaan

दंगल पिछले साल की सर्वाधिक चर्चित फिल्म रही है। फिल्म की पटकथा व अभिनय की तो काफी तारीफ़ हुई ही पर साथ ही इस फिल्म का गीत संगीत भी काफी सराहा गया। यही वज़ह है कि वार्षिक संगीतमाला में इस फिल्म के तीन गाने शामिल हैं और इस कड़ी में पहला नग्मा है गिलहरियाँ  जिसे नवोदित गायिका जोनिता गाँधी ने अपनी आवाज़ से सँवारा है।

बचपन से हम सभी इस मासूम से जन्तु को अपने आस पास धमाचौकड़ी मचाते देखते रहे हैं। फिर स्कूल में महादेवी वर्मा जी द्वारा लिखे गिल्लू के संस्मरण को पढ़कर गिलहरियों पर ममत्व और जाग उठा था। पर किसे पता था कि कभी इनका जिक्र एक गीत की शक़्ल में होगा। दिल की धड़कनों के लिए गिलहरियों जैसा बिम्ब सोच कर उसे गीत में पिरोने का श्रेय अर्जित किया है मेरे पसंदीदा गीतकारों में से एक अमिताभ भट्टाचार्य ने ।


यूँ तो दंगल के अधिकांश गीत फिल्म की कथावस्तु के अनुरूप हरियाणवी मिट्टी में रचे बसे हैं पर प्रीतम को इस गीत को उस परिपाटी से अलग रचने का मौका मिला। गीत की शुरुआत प्रीताम गिटार और चुटकियों की मिश्रित जुगलबंदी से करते हैं।  गाँव की बँधी बँधाई दिनचर्या से निकल कर शहरी आजादियों का स्वाद चखती एक लड़की की मनोस्थिति में क्या बदलाव आता है, ये गीत उसी को व्यक्त करता है।  इस गीत में शब्दों की ताज़गी के साथ साथ आवाज़ की भी एक नई बयार है।

अगर आप जोनिता से पहले परिचित ना हों तो ये बता दूँ कि दिल्ली में जन्मी 27 वर्षीय जोनिता की परवरिश कनाडा में हुई। पिता वैसे तो इंजीनियर थे पर संगीत के शौकीन भी। जोनिता ने अपनी पढ़ाई के साथ पश्चिमी संगीत सीखा और अब हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत भी सीख रही हैं। पाँच साल पहले यू ट्यूब में पानी दा रंग के कवर वर्सन को गाने के बाद वे सुर्खियों में आयीं। 2013 में चेन्नई एक्सप्रेस के शीर्षक गीत को गाकर उन्होंने बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआता की़। फिर ए आर रहमान के एलबम रौनक का हिस्सा बनीं। पिछले साल दंगल के आलावा उनके गया  पिंक एंथम और ऐ दिल ए मुश्किल का  ब्रेकअप सांग भी काफी लोकप्रिय हुआ।

जोनिता गाँधी

बहरहाल अमिताभ के इस गीत में गणित की उबन के साथ शरारती अशआर का भी जिक्र है, आसमान और ज़मीं की आपसी नोकझोंक भी है और सिरफिरे मौसम व मसखरे मूड में रचा बसा माहौल भी। शब्दों के साथ इस गीत  में उनकी चुहल, लुभाती भी है और गुदगुदाती भी। तो आईए जोनिता की रस भरी आवाज़ में सुनें ये हल्का फुल्का मगर प्यारा सा नग्मा

रंग बदल बदल के, क्यूँ चहक रहे हैं
दिन दुपहरियाँ, मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना
क्यूँ फुदक फुदक के धडकनों की चल रही गिलहरियाँ
मैं जानूँ ना जानूँ ना

क्यूँ ज़रा सा मौसम सिरफिरा है, या मेरा मूड मसखरा है, मसखरा है
जो जायका मनमानियों का है, वो कैसा रस भरा है
मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना
क्यूँ हजारों गुलमोहर से
भर गयी है ख्वाहिशों की टहनियाँ
मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना

इक नयी सी दोस्ती आसमान से हो गयी
ज़मीन मुझसे जल के, मुँह बना के बोले
तू बिगड़ रही है

ज़िन्दगी भी आज कल, गिनतियों से ऊब के
गणित के आंकड़ों के साथ, एक आधा शेर पढ़ रही है
मैं सही ग़लत के पीछे, छोड़ के चली कचहरियाँ
मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 

रविवार, फ़रवरी 05, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 13 : कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई, क्यूँ लाई Kaari Kaari

फिल्में जब हमारी रोजमर्रा की समस्याओं को हूबहू पर्दे पर उतारती हैं तो आप कई दिनों तक उस विषय से जुड़ी सामाजिक विकृतियों को और गहराई से महसूस करते हैं। पिंक एक ऐसी ही फिल्म थी। लड़कियों के प्रति लड़कों की सोच को ये समाज किस तरह परिभाषित करने में मदद करता है या यूँ कहें कि भ्रमित करता है, उससे आप सब वाकिफ़ ही होंगे। पिंक में इसी सोच की बखिया उधेड़ने का काम किया गया था। इस संवेदनशील विषय से जुड़ा इसका मुख्य गीत ऍसा होना था जो फिल्म की थीम को कुछ अंतरों में समा ले और श्रोताओं को सोचने पर मजबूर कर दे कि अगर ऐसा है तो आख़िर ऐसा क्यूँ है? तनवीर गाज़ी की सशक्त लेखनी, शान्तनु मोईत्रा की गंभीर धुन और नवोदित पाकिस्तानी गायिका की ज़ोरदार आवाज़ ने सम्मिलित रूप से ऐसा मुमकिन कर दिखाया। 


तो इससे पहले इस गीत की खूबियों की चर्चा करें कुछ बातें गायिका क़ुरातुलेन बलोच के बारे में। 29 वर्षीय क़ुरातुलेन बलोच का आरंभिक जीवन मुल्तान पाकिस्तान में गुजरा। माता पिता के अलगाव के बाद वो अमेरिका के वर्जीनिया में चली गयीं। उन्होंने कभी संगीत की कोई पारंपरिक शिक्षा नहीं ली।  2010 में दोस्तों के कहने पर पहली बार उन्होंने अपनी प्रिय गायिका रेशमा का गाया गीत अखियों नूँ रैण दे यू ट्यूब पर लगाया जो इंटरनेट पर काफी सराहा गया। संगीत में उनके कैरियर में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब 2011 में एक धारावाहिक हमसफ़र के शीर्षक गीत वो हमसफ़र था , मगर उससे हमनवाई ना थी, कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई ना थी को गाकर उन्होंने रातों रात पूरे पाकिस्तान में जबरदस्त लोकप्रियता हासिल कर ली। हालांकि चार साल पहले हुई एक सड़क  दुर्घटना में गले पर चोट की वज़ह से उनकी आवाज़ जाते जाते बची।

क़ुरातुलेन बलोच
नुसरत फतेह अली खाँ, रेशमा, आबिदा परवीन, पठाने खाँ को बचपन से सुनते हुए क़ुरातुलेन सूफ़ी और लोक संगीत की ओर उन्मुख हो गयीं। आज उनकी गायिकी में लोग जब रेशमा का अक़्स देखते हैं तो वो बेहद गर्वान्वित महसूस करती हैं। क़ुरातुलेन को कारी कारी गाने का प्रस्ताव फिल्म के एक निर्माता रॉनी लाहिड़ी ने रखा।  जब क़ुरातुलेन ने फिल्म का विषय सुना तो उन्हें इस गीत के लिए हामी भरते जरा भी देर नहीं लगी। उनका कहना था कि वो  ख़ुद पाकिस्तान के सामंती समाज से लड़कर गायिकी के क्षेत्र में उतरी हैं इसलिए ऐसी कोई फिल्म जो महिलाओं के प्रतिरोध को दर्शाती है का हिस्सा बनना उनके लिए स्वाभाविक व जरूरी था।

पर कुरातुलेन की आवाज़ का असर तब तक मारक नहीं होता जब शायर तनवीर गाज़ी ने वैसे बोल नहीं रचे होते। अमरावती से ताल्लुक रखने वाले तनवीर को फिल्म जगत से जुड़े डेढ दशक बीत गया। पन्द्रह वर्ष पहले उन्होंने फिल्म मंथन में सुनिधि चौहान द्वारा गाए एक आइटम नंबर को अपने बोल दिए थे पर पहली बार उनकी प्रतिभा का सही उपयोग पिंक में जाकर हुआ। 

तनवीर ग़ाज़ी 
तनवीर ने इस गीत के आलावा फिल्म के लिए एक कविता तू ख़ुद की खोज़ में निकल तू किस लिए हताश है लिखी जिसे अमिताभ बच्चन ने अपनी आवाज़ दी। तनवीर गीतकार के आलावा एक लोकप्रिय शायर भी हैं और देश के विभिन्न हिस्सों में होने वाले मुशायरों में एक जाना पहचाना नाम रहे हैं। अपना परिचय वो अपने एक शेर में वो कुछ यूँ देते हैं

मैं बिन पंखों का जुगनू था जहाज़ी कर दिया मुझको
ग़ज़ल ने छू लिया तनवीर गाज़ी कर दिया मुझको

लड़कियों के साथ आए दिन होने वाली अपराधिक घटनाओं से आहत तनवीर की लेखनी गीत के मुखड़े में पूछ बैठती है उजियारे कैसे, अंगारे जैसे..छाँव छैली, धूप मैली क्यूँ हैं री? दूसरे अंतरे में तो उनके शब्द दिल के आर पार हो जाते हैं जब वो कहते हैं कि पंखुड़ी की बेटी है, कंकड़ों पे लेटी है..बारिशें हैं तेज़ाब की..ना ये उठ के चलती हैं, ना चिता में जलती है..लाश है ये किस ख़्वाब की। शांतनु मोइत्रा ने गीत की इन दमदार पंक्तियों को गिटार आधारित धुन के साथ बड़ी संजीदगी से पिरोया है। तो आइए एक बार फिर सुनते हैं ये गीत..


कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई, क्यूँ लाई
रौशनी के पाँवों में ये बेड़ियाँ सी क्यूँ आईं, क्यूँ आईं
उजियारे कैसे, अंगारे जैसे
छाँव छैली, धूप मैली क्यूँ हैं री


तितलियों के पंखों पर रख दिए गए पत्थर
ए ख़ुदा तू गुम हैं कहाँ
रेशमी लिबासों को चीरते हैं कुछ खंजर
ए ख़ुदा तू गुम हैं कहाँ
क्या रीत चल पड़ी हैं, क्या आग जल पड़ी हैं
क्यूँ चीखता हैं सुरमई धुआँ
क्या रीत चल पड़ी हैं, क्या आग जल पड़ी हैं
क्यूँ चीखता हैं सुरमई धुआँ

कारी कारी रैना ....क्यूँ हैं री

पंखुड़ी की बेटी है, कंकड़ों पे लेटी है
बारिशें हैं तेज़ाब की
ना ये उठ के चलती हैं, ना चिता में जलती है
लाश है ये किस ख़्वाब की

रातो में पल रही हैं, सडको पे चल रही हैं
क्यूँ बाल खोले दहशते यहाँ
रातो में पल रही हैं, सडको पे चल रही हैं
क्यूँ बाल खोले दहशते यहाँ

कारी कारी रैना ....क्यूँ हैं री


फिल्म में ये गीत टुकड़ों में प्रयुक्त होता है इसलिए एक बार सुनने में अंतरों के बीच का समय कुछ ज्यादा लगता है।


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 

शुक्रवार, फ़रवरी 03, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 14 : सुबह की वो पहली दुआ या फूल रेशम का, मासूम सा Masoom Sa

हिंदी फिल्म संगीत में माँ और बच्चे के बीत का वातसल्य तो कई गीतों में झलका है पर एक पिता के अपने पुत्र या पुत्री से प्रेम को नग्मों के माध्यम से व्यक्त करने के अवसर फिल्मों में कम ही आए हैं। दो साल पहले एक बच्ची का अपने गुम पिता को याद करता बेहद संवेदनशील गीत क्या वहाँ दिन है अभी भी, पापा तुम रहते जहाँ हो...ओस बन के मैं गिरूँगी, देखना, तुम आसमाँ हो इस संगीतमाला का सरताज बना था। वहाँ एक बच्ची के  जीवन से पिता हमेशा हमेशा के लिए गुम हो गए थे। यहाँ उसके ठीक उलट एक बेटा पिता की ज़िंदगी से अनायास  ही  छीन लिया  गया है। वार्षिक संगीतमाला की चौदहवीं पॉयदान पर फिल्म मदारी का ये गीत असमय हुए पुत्र विछोह का दर्द बयाँ करता है। 


इस गीत को संगीतबद्ध किया है सनी और इन्दर बावरा की जोड़ी ने। बठिंडा से ताल्लुक रखने वाले इन भाइयों का असली नाम इन्दरजीत सिंह बावरा और परमजीत सिंह बावरा है। बावरा खानदान में संगीत की परंपरा तीन पीढ़ियों से थी। बठिंडा से आरंभिक शिक्षा लेने के बाद जहाँ इन्दर भारतीय संगीत की बारीकियों को मुंबई जाकर रवींद्र जैन, एन आर पवन और सुरेश वाडकर से सीखते रहे वहीं उनके छोटे भाई पश्चिमी संगीत में महारत हासिल करने के लिए लंदन जा पहुँचे। विगत कुछ वर्षों में इस जोड़ी ने टीवी धारावाहिकों में ही अपना  ज्यादातर संगीत दिया है ।  

वैसे पिछले साल फिल्म रॉकी हैंडसम में उनका गीत रहनुमा काफी सराहा गया था। जहाँ तक मासूम सा की बात  है, गीत की प्रकृति को देखते हुए बावरा बंधुओं ने संगीत  को शांति से शब्दों के पीछे बहने दिया है। पहले व दूसरे अंतरे के बीच बाँसुरी और सेलो जो वॉयलिन जाति का ही एक वाद्य है का संगीत संयोजन गीत की उदासी को और विस्तार देता है।

सुखविंदर की आवाज़ का प्रयोग अक़्सर संगीतकार ऊँचे सुरों के लिए करते रहे हैं। पिता पुत्र की आपसी संवेदनाओं को उभारते इस गीत में सुखविंदर मुलयामियत के साथ गीत की व्यथा को अपनी आवाज़ में शामिल कर पाए हैं। पर इस गीत का सबसे मजबूत पक्ष है, इसके दिल को छू लेने वाले बोल। इरशाद क़ामिल ने इस अलग से विषय को भी अपने रूपको से इस तरह आत्मसात किया है कि गीत सुनते सुनते पलकें नम हो जाती हैं। इस गीत के आख़िरी अंतरे में क़ामिल की  ये पंक्तियाँ दिल पर गहरा असर करती हैं जब कामिल कहते हैं.. मेरी ऊँगली को पकड़ वो चाँद चलता शहर में, ज़िन्दगी की बेहरम सी धूप में, दोपहर में..मैं सुनाता था उसे अफ़साने रंगीन शाम के.. ताकि  वो चलता रहे, चलता रहे और ना थके... 

 

पालने में चाँद उतरा खूबसूरत ख़्वाब जैसा
गोद में उसको उठाता तो मुझे लगता था वैसा
सारा जहान मेरा हुआ, सारा जहान मेरा हुआ
सुबह की वो पहली दुआ या फूल रेशम का
मासूम सा मासूम सा, मेरे आस पास था मासूम सा
मेरे आस पास था मासूम सा, हो मासूम सा

एक कमरा था मगर सारा ज़माना था वहाँ
खेल भी थे और ख़ुशी थी, दोस्ताना था वहाँ
चार दीवारों में रहती थी हजारों मस्तियाँ
थे वही पतवार भी, सागर भी थे और कश्तियाँ

थे वही पतवार भी, सागर भी थे और कश्तियाँ
मेरी तो वो पहचान था, मेरी तो वो पहचान था
या यूँ कहो की जान था वो चाँद आँगन का
मासूम सा मासूम सा, मेरे आस पास था मासूम सा
मेरे आस पास था मासूम सा, हो मासूम सा

मेरी ऊँगली को पकड़ वो चाँद चलता शहर में
ज़िन्दगी की बेहरम सी धूप में, दोपहर में
मैं सुनाता था उसे अफ़साने रंगीन शाम के
ताकि वो चलता रहे, चलता रहे और ना थके

ताकि वो चलता रहे, चलता रहे और ना थके
ना मंजिलो का था पता, ना मंजिलो का था पता
थी ज़िन्दगी इक रास्ता, वो साथ हर पल था
मासूम सा मासूम सा, मेरे आस पास था मासूम सा
मेरे आस पास था मासूम सा, हो मासूम सा


फिल्म के मुख्य अभिनेता इरफान खाँ कहते हैं कि जब भी मैं ये गीत सुनता हूँ तो मुझे अपने पिता याद आते हैं। आशा है इसे सुनने के बाद आप सब की यही स्थिति होगी।

zxc

वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
 

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