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| कल्पना गंधर्व |
जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से! अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
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| कल्पना गंधर्व |
पिछले साल की हिट फिल्मों में स्त्री 2 का नाम खास तौर पर लिया जाता है। एक हॉरर कॉमेडी के हिसाब से मुझे ये फिल्म बस ठीक ठाक ही लगी थी पर इसके गीतों को जिस तरह चौक चौराहों पर बजाया गया उससे ये तो जरूर लगता है कि इस फिल्म की सफलता में इसके संगीत का बहुत बड़ा योगदान था।
इस फिल्म के वैसे तो दो गाने इस संगीतमाला में शामिल हैं पर दसवीं पायदान का ये गीत पिछले साल एक बार सुनते ही मेरी इस फेरहिस्त में शामिल हो गया था। एक समय बारहवीं सीढ़ी पर विराजमान इस गीत ने छलांग लगा कर आठवीं सीढ़ी पर कब्जा जमाया था पर जैसे जैसे 25 गीतों की पूरी सूची तैयार होती गई तो ये दो सीढ़ियां नीचे गिरते जा पहुंचा प्रथम दस के दसवें पड़ाव पर।
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| वरुण जैन और शिल्पा राव |
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| सचिन - जिगर |
इस उपन्यास में नायक और नायिका समेत तमाम किरदार हैं जो इस प्रेम कथा के इर्द गिर्द के समाज को प्रतिबिंबित करते हैं।
निश्चय ही गांव कस्बों से निकले युवाओं को ये प्रेम कथा कभी गुदगुदाएगी तो कभी अश्रु विगलित भी करेगी। उस उम्र संधि से आगे निकल गए लोगों के लिए पूरी किताब तो नहीं पर उसके कुछ अंश अवश्य प्रभावित करेंगे। यूं तो उन सारे प्रसंगों का यहां उल्लेख नहीं कर पाऊंगा, पर कुछ का जिक्र करना बनता है। जैसे कि लेखक द्वारा लिया गया चांदपुर गांव का ये व्यंग्यात्मक परिचय जो आज की हिंदी पट्टी के गांवों के तथाकथित विकास की कलई खोलता है।
"यहाँ से गिनकर दो मिनट चलने पर एक प्राइमरी और एक मिडिल स्कूल भी बना है। जिसकी दीवारों पर गिनती, पहाड़ा के अलावा ‘सब पढ़ें-सब बढ़ें’ का बोर्ड लिखा तो है, लेकिन कभी-कभी बच्चों से ज्यादा अध्यापक आ जाते हैं, तो कभी समन्वय और सामंजस्य जैसे शब्दों की बेइज्जती करते हुए एक ही मास्टर साहेब स्कूल के सभी बच्चों को पढ़ा देते हैं।
स्कूल के ठीक आगे पंचायत भवन है, जिसके दरवाजे में लटक रहे ताले की किस्मत और चाँदपुर की किस्मत में कभी खुलना नहीं लिखा है। मालूम नहीं कब ग्राम सभा की आखिरी बैठक हुई थी लेकिन पंचायत घर के बरामदे में साँड़, गाय, बैल खेत चरने के बाद सुस्ताते हुए मुड़ी हिला-हिलाकर गहन पंचायत करते रहते हैं और कुछ देर बाद पंचायत भवन में ही नहीं गाँव की किस्मत पर गोबर करके चले जाते हैं।
हाँ, गाँव के उत्तर एक निर्माणाधीन अस्पताल भी है। जो लगभग दो साल से बीमार पड़ा है। उसकी दीवारों का कुल जमा इतना प्रयोग है कि उस पर गाँव की महिलाओं द्वारा गोबर आसानी से पाथा जा सकता है।"
उपन्यास में मंटू द्वारा चंदा को लिखा गया प्रेम पत्र अब इंटरनेट पर वायरल हो गया है। प्रेम पत्र तो ख़ैर लाजवाब है ही। इस चिट्ठी के पढ़ कर हंसते हंसते पेट फूल जाएगा अगर आपका भोजपुरी का ठीक ठाक ज्ञान हो तो। लेखक का मुहावरे के रूप में यह कहना कि मोहब्बत में अखियां आन्हर और आदमी वानर हो जाता है दिल जीत ले जाता है।
"मेरी प्यारी चंदा तुमको याद है तुम पिछले साल पियरका सूट पहनकर शिव जी के मंदिर में दीया बारने आई थी। ए करेजा, जो दीया मंदिर में जलाई थी, वो तो उसी दिन बुता गया। लेकिन जो दीया मेरे दिल में जर गया है न, वो आज तक भुकभुका रहा है। आज हम रोज तुम्हारे प्रेम के मंदिर में दीया जराते हैं, रोज मूड़ी पटककर अगरबत्ती बारते हैं। डीह बाबा, काली माई, पिपरा पर के बरम बाबा, से लेकर बउरहवा बाबा मंदिर तक जहाँ भी जाते हैं, हर जगह दिल में तीर बनाकर लिख आते हैं- ‘चाँदपुर की चंदा’। लेकिन ए पिंकी, हमको इहे बात समझ में नहीं आता कि हमारे पूजा-पाठ में कौन अइसन कमी है जो दिल की बजती घंटी तुमको सुनाई नहीं दे रही है?"
"तुमको का पता कि तुम्हारे एक ‘हाँ’ के चक्कर में आज हम तीन साल से इंटर में फेल हो रहे हैं। साला जेतना मेहनत लभ लेटर लिखने में किए हैं, ओतना मेहनत पढ़ाई में कर लिए होते तो अब तक यूपी में लेखपाल होकर खेतों की चकबंदी कर रहे होते। लेकिन का करोगी! मोहब्बत में अँखिया आन्हर और आदमी बानर हो जाता है न। हमारा भी हाल बानर का हाल हो गया है।"
प्रेम के बारे में लेखक के उद्गार पढ़कर आपको लगेगा कि वो आपके मन की बात ही कह रहे हों मसलन
“आज पहली बार पता चला कि जीवन में प्रेम हो तो बाढ़ आँधी-तूफान में भी खुश रहा जा सकता है। और प्रेम न हो तो सावन की सुहानी बौछार भी जेठ की धूप के समान है।”
या फिर
"जहाँ शरीर का आकर्षण खत्म होता है वहाँ प्रेम का सौंदर्य शुरू होता है। फिर प्रेमी करीब रहे या दूर रहे, वो मिले या बिछड़ जाए। बिना इसकी परवाह किए वहाँ प्रेम किया जा रहा होता है।"
और हां अतुल, नायिका के माध्यम से आपने महादेवी वर्मा की बेहतरीन कविता जाग तुझको दूर जाना की याद दिलवा दी इसके लिए पुनः धन्यवाद। उपन्यास में इस कविता का उल्लेख बार बार होता है और वो नायिका के मन में विकट परिस्थितियों में भी आशा की एक किरण जगाती है जिसके सहारे वो जीवन में आगे बढ़ने का मार्ग अंततः ढूंढ ही लेती है। अच्छा साहित्य चाहे किस काल खंड में रचा गया हो उसे समाज या व्यक्ति विशेष को उद्वेलित करने की क्षमता होती है ये भली भांति चंदा के चरित्र स्पष्ट हो जाता है। तो इस चर्चा का समापन महादेवी जी की उन्हीं पंक्तियों के साथ
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| मनोज, नीरज व एम एम कीरावनी |
ये क्रिकेट विश्व कप भारतीय महिला क्रिकेट टीम के लिए perfect नहीं था। बड़े उतार चढ़ाव का सामना किया इस टीम ने। शुरुआती मैच में कमजोर विपक्ष के सामने आपके स्टार खिलाड़ी नहीं चले पर मध्यक्रम ने आपको बचा लिया। फिर आई बारी प्रतियोगिता की तीन बड़ी टीमों ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका की और हमारी टीम ने हर मैच में काफी समय तक मजबूत स्थिति में रहने के बाद भी लगातार तीनों मैच गंवा दिया।
भारतीय महिला टीम के साथ जीती हुई परिस्थितियों मैं मैच गंवाने का सिलसिला नया नहीं है। यूं तो इस टीम ने इससे पहले 2005 और फिर 2017 में फाइनल में प्रवेश किया पर जिस तरह ये टीम 2017 में इंग्लैंड के खिलाफ मैच हारी उसने मेरा इस टीम पर विश्वास डगमगा दिया था। भारत को तब जीत के लिए सात ओवरों में मात्र 38 रन बनाने थे और उसके सात विकेट गिरने बाकी थे, पर इस टीम ने अपने सातों विकेट मात्र 28 रन और बनाकर लुटा दिए और भारत केवल 9 रनों से वो जीता हुआ मैच हार गया।
इस प्रतियोगिता में भी इस टीम में वही खामियां नज़र आ रही थीं जो सालों से इस टीम को हुनरमंद टीम से चैंपियन टीम बनने से रोक रही थीं। खराब क्षेत्ररक्षण, विकटों के बीच रंग भागने के लिए धीमी दौड़, बीच और आखिर के ओवरों में लचर गेंदबाजी, तीस ओवर से ज्यादा बैटिंग करने पर फिटनेस से जूझते बल्लेबाज।
फिर भी हमारी टीम ने विश्व कप जीत लिया क्योंकि जब जब हम करो या मरो वाली स्थिति में पहुंचे किसी न किसी ने अपना शानदार खेल दिखा कर मामला संभाल लिया। श्रीलंका के खिलाफ अमनजोत कौर, न्यूजीलैंड के खिलाफ स्मृति मंधाना और प्रतिका रावल की सलामी जोड़ी, सेमीफाइनल में जेमिमा, हरमनप्रीत के साथ ऋचा घोष और दीप्ति शर्मा और फिर फाइनल में में शेफाली वर्मा और दीप्ति शर्मा का किरदार यादगार रहा। अभी साल भर के अंदर टीम में शामिल हुई श्री चरनी ने भी अपनी धारदार स्पिन गेंदबाजी से कई जमती हुई साझेदारियां तोड़ीं।
फाइनल में भी अहम मौकों पर दोनों टीमों ने कैच छोड़े पर ज़मीनी क्षेत्ररक्षण में सभी ने जी जान लगा दी। पूरी टीम गेंद की दिशा में अपने शरीर को झोंकती नज़र आई। भारतीय बैटिंग तो कल मैंने पूरी देखी पर उसके बाद जब जब टीवी खोलता कुछ न कुछ ऐसा होता कि टीवी बंद करना पड़ता। और मजे की बात ये कि बंद करने के बाद ही कोई नया विकेट गिर जाता और फिर से आशा बंध जाती। राधा यादव द्वारा लगातार दो छक्के पिटवाने के बाद तो लगा कि अब तो प्रार्थना के अलावा कोई चारा नहीं है। पर जैसे ही अमनजोत ने दक्षिण अफ्रीकी कप्तान के छूटे हुए कैच को अपने तीसरे प्रयास में पकड़ा तो जान में जान आई कि हां अब बिना किसी तनाव के टीवी खोल के देखा जा सकता है।
जितना आनंद आखिरी विकेट को देखते हुए आया उससे कहीं अधिक जीत के बाद वर्तमान और भूतपूर्व खिलाड़ियों के भावनात्मक उद्गार को देख कर। सेमीफाइनल में जेमिमा का सबके सामने अपने anxiety attacks के बारे में खुल कर बोलना, हरमन का कोच की डांट के बारे में उनकी नकल उतारते हुए बताना, फाइनल में जीत के बाद हरमन का कोच अमोल मजूमदार का पैर छूना, प्रतिका रावल का व्हील चेयर पर बैठकर जीत के जश्न में शामिल होना, झूलन का हरमन और स्मृति के साथ गले लगा कर रोना इस विश्व कप के कुछ ऐसे पल थे जो मुझे हमेशा याद रहेंगे। इसमें कोई शक नहीं कि हमारी महिला क्रिकेट टीम एक ऐसे परिवार की तरह है जिसका हर सदस्य एक दूसरे का ख्याल रखता है और एक दूसरे की उपलब्धि को जश्न की तरह मनाता है। इस टीम ने विश्व कप का सपना देखा, अपनी क्षमताओं पर यकीन किया और जब जरूरत पड़ी तो अपना उत्कृष्ट खेल दिखा कर विश्व कप जीतने के सपने को हक़ीक़त में बदल दिया।
निश्चय ही ये जीत सारे पूर्ववर्ती और आज के खिलाड़ियों के लिए एक ऐसा लम्हा है जिसे वो जीवन में शायद ही भूल पाएं। महिला क्रिकेट को निश्चय ही ये परिणाम नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा क्योंकि अभी भी हमारी टीम में सुधार की असीम संभावनाएं है। ऐसे भी अगर जीत का स्वाद एक बार लग जाए तो वो जल्दी नहीं छूटता।
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ये गीत एक ऐसे भाव से मन में बनना शुरू हुआ जिसे मैं बोल कर व्यक्त नहीं कर सकता था। काग़ज़ एक माध्यम है अबोले को अभिव्यक्त करने का। दुख और खुशियों के लम्हों को काग़ज़ी स्लेट पर उकेरने का।मैंने जब ये विचार गर्वित के सामने रखा तो उसने इसे उस व्यक्ति की कहानी बना दी जो लिखे हुए शब्दों के दायरे में रहते हुए ही अपने प्रेम को संप्रेषित कर पाता हो। जो इनकी छांव में ही सुकून पाता हो। ये गीत उन सारे लोगों के लिए है जो प्रेम को एक पाती में, अधूरी कविताओं में या अधलिखे विचारों में ही समेट पाए।
"मेरा पहला गाना था बावरा मन..यही होता था कि हम बावरा मन गाते थे और लोग हाथ पकड़ के निकल जाते थे। शोर गुल भी वैसा ही गाना है। मैं चाहता हूं कि इसे सुनने के बाद कुछ लोग हाथ पकड़ कर निकलें। एक प्यार वाली फीलिंग है इसमें।फिल्म उद्योग में गाने लिखने की दौड़ धूप में हम हिट होगा फ्लॉप होगा के चक्कर में ही पड़े रहते हैं। इसके बीच में आप खुद कोई गाना बना रहे होते हो जिसके लिए किसी ने आपको कुछ बताया नहीं। जिसका कोई brief नहीं है। इस तरह के गीत अपने आप ऑर्गेनिक रूप से बाहर आते हैं। जब गीत लिखा तो फिर मैंने इसे उज्ज्वल को सुनाया कि क्या ये गाना लोगों को प्रभावित कर पाएगा। "
तेरी उंगलियों में गूंथ लूंगी उंगलियां मेरी
सार्थक ने एक दशक से ज्यादा अवधि तक भारतीय शास्त्रीय संगीत में महारत हासिल करने में अपना समय दिया है। एक रियलिटी शो के दौरान वे ए आर रहमान के संपर्क में आए और पिछले पांच सालों से वे उनके सहायक का काम कर रहे हैं। पिछले साल उन्होंने चमकीला और मैदान जैसी फिल्मों में रहमान के साथ काम किया। रहमान की देखरख में उन्होंने वेस्टर्न हार्मनी पर भी अपनी पकड़ बनाई। शास्त्रीय संगीत का उनका हुनर उनकी गायिकी में स्पष्ट झलकता है।
साहिबा शहरयार जिन्होंने ये ग़ज़ल लिखी है श्रीनगर से ताल्लुक रखती हैं। हालांकि उनके नाम से ये न समझ लीजिएगा कि वो प्रसिद्ध शायर शहरयार से संबंधित हैं।
यूं तो मैं उनकी लिखी ग़ज़लों से ज्यादा नहीं गुजरा पर उनके लिखे कुछ पसंदीदा शेर मेरी डायरी के हिस्से रहे हैं जैसे कि
पहले होता था बहुत अब कभी होता ही नहीं
दिल मेरा कांच था टूटा तो यह रोता ही नहीं
और बारिश के बारे में उनके लिखे ये अशआर तो आजकल चल रहे मौसम का मानो हाल बयां करते हैं
एक दिया जलता है कितनी भी चले तेज़ हवा
टूट जाते हैं कई एक शजर बारिश में
आंखें बोझल हैं तबीयत भी कुछ अफ़्सुर्दा
कैसी अलसाई सी लगती है सहर बारिश में
साहिबा ने इस ग़ज़ल के लिए कुछ उम्दा शेर कहे हैं जो किसी आशिक की मनोदशा को कुछ यूं व्यक्त करते हैं
अब कोयल और हिरण तो बेजुबान ठहरे वर्ना अमिताभ पर मानहानि का मुकदमा जरूर दायर करते। वैसे मजाक एक तरफ अमिताभ के लिखे बोलों में एक नयापन तो है ही जो सुनने में अच्छा लगता है।
सचिन जिगर यहां संगीत संयोजन में एक पाश्चात्य वातावरण रचते हैं जिसमें थिरकने की गुंजाइश रह सके हालांकि फिल्म की कहानी से इसका कोई लेना देना नहीं है। दरअसल ये गीत फिल्म के मूल कथानक के समाप्त होने के बाद आता है जहां वरुण धवन अतिथि कलाकार के रूप में पहली बार अपनी शक्ल दिखाते हैं। आजकल फिल्मी गीतों के बीच कोरस का प्रचलन बढ़ गया है। सचिन जिगर भी इसी शैली का यहां सफल अनुसरण करते दिखते हैं।
रही गायिकी की बात तो विशाल मिश्रा का गाने का अपना एक अलग ही अंदाज है। वह हर गाना बड़ा डूब कर गाते हैं। युवाओं का उनका ये तरीका भाता भी है। कबीर सिंह, एनिमल और हाल फिलहाल में सय्यारा में उनके गाए गीत काफी लोकप्रिय हुए हैं। ये अंदाज़ रूमानी गीतों पर फबता भी है पर बार बार वही तरीका अपनाने से एक एकरूपता भी आती है जिससे विशाल को सावधान रहना होगा।
खूबसूरती पर तेरी, खुद को मैंने कुर्बान किया
मुस्कुरा के देखा तूने, दीवाने पर एहसान किया
खूबसूरती पर तेरी, खुद को मैंने कुर्बान किया
मुस्कुरा के देखा तूने, दीवाने पर एहसान किया
कि कोई इतना खूबसूरत, कोई इतना खूबसूरत
कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकता है?
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