गुरुवार, मार्च 30, 2017

एक शाम मेरे नाम ने पूरे किए अपने ग्यारह साल ! ( 2006-2017)

पिछले हफ्ते एक शाम मेरे नाम ने अपने ग्यारह वर्ष पूरे किए। जो लोग इस ब्लॉग से हाल में ही जुड़े हैं वो मेरे इस लंबे सफ़र की कहानी यहाँ पढ़ सकते हैं। आज कुछ खास आपसे नया कहने को नहीं हैं। चंद बातें जो नयी हुई हैं वो ये कि पिछले साल से एक शाम मेरे नाम अपने डोमेन यानि http://www.ek-shaam-mere-naam.in/  पर आ गया है और कुछ महीने पहले ही यू ट्यूब पर इस ब्लॉग का आडियो चैनल  भी शुरु हो गया है जिसमें मैं अपने पसंदीदा नज़्में, गीत और कविता आपको  अपनी आवाज़ में सुनाता रहूँगा।


आज हक़ीकत ये है कि  मेरे अधिकांश शुरुआती साथी ब्लॉग की दुनिया से दूर चले गए हैं या नियमित नहीं रहे। पर जहाँ तक मेरा सवाल है, ब्लॉग मेरा पहला घर था और रहेगा। यही वज़ह है कि सोशल मीडिया पर मेरी गतिविधियों का केंद्र भी मेरे दोनों ब्लॉग एक शाम मेरे नाम व मुसाफ़िर हूँ यारों रहे हैं।

सोशल मीडिया आज हर ब्लॉगर की जरूरत बन गया है क्यूँकि वहाँ रहकर नई पोस्ट तक पहुँचना पढ़ने लिखने वालो के लिए ज्यादा सुविधाजनक है। एक शाम मेरे नाम का फेसबुक पन्ना आप यहाँ से फॉलो कर सकते हैं अगर आप ट्विटर  पर ज्यादा सक्रिय हैं तो मेरी ट्विटर  प्रोफाइल ये रही। बाकी ई मेल सब्सक्रिप्शन का विकल्प तो है ही😊

बाकी मैं यही चाहूँगा कि इस ब्लाग की बेहतरी के लिए आपके मन में कुछ हो तो जरूर बताएँ। सालों साल इस ब्लॉग का अनुसरण करने वाले पाठकों को मेरा तहे दिल से शुक्रिया व प्यार। ग्यारह वर्षों के इस सफ़र में कितने राही आए साथ रहे और फिर जुदा भी हो गए और ये क्रम चलता रहा है। आगे भी चलता रहेगा गर मैं ना थकूँ.. उम्मीद है कि आप मुझे थकने भी ना देंगे..और हमारा ये साथ आगे भी बना रहेगा।

 

शनिवार, मार्च 25, 2017

अनारकली आरा वाली .. नारी अस्मिता को उभारती एक सशक्त फिल्म Anaarkali of Arrah

आरा से मेरा छोटा सा ही सही, एक रिश्ता जरूर है। मेरे पिता वहाँ  तीन सालों तक पदस्थापित रहे। पहली बार इंटर में अकेले रेल यात्रा मैंने पटना से आरा तक ही की थी । आरा के महाराजा कॉलेज में संयोगवश भौतिकी की प्रयोगशाला में जाने का अवसर मिला तो पता चला कि भोजपुरी में विज्ञान कैसे पढ़ाया जाता है। आज अविनाश दास की फिल्म अनारकली आफ आरा ने इस शहर से पुराने तार फिर जोड़ दिए।   बिहारी मिट्टी की खुशबू लिए एक कसी हुई, संवेदनशील फिल्म बनाने के लिए  निर्देशक अविनाश दास हार्दिक बधाई के पात्र हैं।



अनारकली आरा वाली, भ्रष्ट पुलिस, रसूखदार व रँगीले उप कुलपति और मौकापरस्त नौटंकी मालिक के बीच पिसती एक नाचनेवाली की सहज सी कहानी है जो  बिना किसी लाग लपेट या भाषणबाजी के साथ कही गयी है । ये अविनाश की काबिलियत है कि द्विअर्थी गीत गाने वाली अनारकली पर फिल्म बनाते हुए भी अश्लीलता परोसने के लालच में बिना फँसे हुए उन्होंने विषय पर अपनी ईमानदारी बनाए रखी है। अविनाश इस लिए भी बधाई के पात्र हैं कि जो कलाकार उन्होंने इस फिल्म के विभिन्न किरदारों के लिए चुने हैं उन्होंने कमाल का काम किया है।

स्वरा भास्कर ने तनु वेड्स मनु के दोनों संस्करणों में अपने अभिनय की छाप छोड़ी थी। निल बटे सन्नाटा में उनका काम सराहा गया था पर यहाँ तो उन्होंने अनारकली के किरदार को पूरी तरह जी लिया है। इतना तो तय है कि ये फिल्म बतौर अभिनेत्री उनके कैरियर में मील का पत्थर साबित होगी। स्वरा के साथ जो किरदार छोटे समय में भी दिल को गुदगुदाते हुए भिंगो कर चला जाता है वो है हीरामन तिवारी का। सच, इस छोटे से रोल में इस्तियाक खाँ के अभिनय की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। संजय मिश्रा और पंकज त्रिपाठी की अभिनय क्षमता से हम सभी पहले से ही वाकिफ़ हैं। इस फिल्म में भी उन्होंने अपना यश कायम रखा है।

रही बात गीत संगीत की तो इस फिल्म में वो कहानी का एक हिस्सा है। बिहार की पान दुकानों से लेकर बस के अंदर तक, मेलों से लेकर ठेलों तक दोहरे अर्थों वाला भौंड़ा भोजपुरी संगीत वहाँ के किस बाशिंदे ने नहीं सुना होगा। फिल्म के संगीतकार रोहित शर्मा और गीतकारों के लिए चुनौती थी कि उस पूरे माहौल को फिल्मी पर्दे पर उतार दें। रोहित ने वो तो किया ही है साथ ही कुछ ऐसे संवेदनशील गीतों को भी इस फिल्म का हिस्सा बनाया है जो दिल में एक घुटन और दर्द का अहसास जगाते हैं। रेखा भारद्वाज का गाया बदनाम जिया दे गारी और सोनू निगम का मन बेक़ैद हुआ कुछ ऐसा ही गीत  हैं।

औरत चाहे जो भी काम करे उसके चरित्र को ना उसके काम से आँका जा सकता है और ना ही उसकी ना का वज़न उसके काम से छोटा हो जाता है। अविनाश इस फिल्म के माध्यम से ये  संदेश देने में सफल हुए हैं। फिल्म का संपादन चुस्त है। फिल्म अपनी बिहारीपनती से हँसाती भी है और अनारकली की पीड़ा से कोरों को गीला भी करती है। अब "भकुआ" के का देख रहे हैं? गर्दवा ऐसे थोड़ी उड़ेगा। जाइए जल्दी फिलिम देख आइए। 😉

चलते चलते सोनू निगम की आवाज़ में प्रशांत इंगोले का लिखा इस फिल्म का लिखा गीत  सुन लीजिए। इसमें आपको स्वरा भास्कर के साथ दिखेंगे इस्तियाक खाँ !

बुधवार, मार्च 22, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पुनरावलोकन : कौन रहे पिछले साल के संगीत सितारे ? Top 25 Songs of 2016 : Recap

तो चलिए वार्षिक संगीतमाला 2016  के समापन के अवसर पर आज चर्चा करते हैं पिछले साल के संगीत सितारों पर। सबसे पहले संगीतकारों की बात। पिछले साल ए आर रहमान, विशाल भारद्वाज, सलीम सुलेमान, साजिद वाजिद, अजय अतुल जैसे नामी संगीतकार हिंदी फिल्म संगीत के परिदृश्य से लगभग गायब ही रहे। हाँ, शंकर अहसान लॉय ने जरूर मिर्जया में किए गए प्रयोगों से सुर्खियाँ बटोरीं वहीं विशाल शेखर सुल्तान के संगीत से अपनी गिरती साख बचाने में सफल रहे।


उभरते हुए नए संगीतकारों में अरमान मलिक ने  एयरलिफ्ट, M S Dhoni The untold story, अज़हर, सरबजीत, सनम रे जैसी फिल्मों में अपने गीतों की मधुरता की वज़ह से खासी लोकप्रियता अर्जित की। वहीं बावरा बंधुओं का मदारी के लिए रचा गीत भी भविष्य की संभावनाओं के लिए दस्तक दे गया।

पर अगर मुझे साल 2016  के तीन विशिष्ट संगीतकारों का नाम लेना हो तो मैं उस सूची में क्लिंटन सेराजो, प्रीतम और अमित त्रिवेदी का नाम लेना चाहूँगा। क्लिंटन की गायिकी से तो मैं पहले भी परिचित था पर गिटार पर उनकी माहिरी   का स्वाद मैंने  TE3N, जुगनी और कहानी 2 के उन गीतों से चखा जो इस संगीतमाला का हिस्सा बने हैं। प्रीतम ने दंगल में तो हरियाणवी दंगल ही मचा दिया। ऐ दिल है मुश्किल में उनका संगीत भी काफी सराहा गया। 

पर मेरे लिए इस साल के संगीतकार रहे अमित त्रिवेदी। फितूर में उनका संगीत संयोजन बेमिसाल रहा। उड़ता पंजाब और डियर ज़िदगी के कुछ गीतों में भी उन्होंने जान डाल दी।

साल के बेहतरीन एलबम का सेहरा मैं हरियाणवी रंग में रँगे दंगल को पहनाना चाहूँगा। फितूर, सुल्तान, एम एस धौनीऐ दिल है मुश्किल भी साल के कुछ अन्य अच्छे संगीत एलबम रहे।

साल की आवाज़ का तो खिताब तो अरिजीत सिंह ले गए। चन्ना मेरेया, मरहम, नैना, ऐ ज़िंदगी गले लगा ले और तेरे बिना जी ना लगे जैसे गीतों से उन्होंने इस गीतमाला में एकछत्र राज किया। सरताज खाँ , सरवर खाँ और जुबीन नौटियाल साल की कुछ नयी प्रतिभाशाली आवाज़ों में से थे। आश्चर्य की बात ये रही कि संगीतमाला में सिर्फ चार गीत ऐसे थे जिसमें सिर्फ गायिकाओं की आवाज़ गूँजी। फ़ैज़ की नज़्म चंद रोज़ में पल्लवी जोशी का काम काफी सराहा गया  वहीं जोनिता गाँधी की आवाज़ दंगल में दिल को गिलहरियों की तरह फुदकाने में कामयाब रही। क़ुरातुलेन बलोच, नंदिनी सिरकर के गाए गीत भी संगीतमाला का हिस्सा बने। पर श्रेया और सुनिधि की अनुपस्थिति को क्या उनके युग का अस्ताचल माना जाना चाहिए?


गीतकारों में ये साल बिना किसी प्रतिस्पर्धा के अमिताभ भट्टाचार्य के नाम रहा। संगीतमाला में उनके लिखे सात गीत शामिल हुए। स्वानंद किरकिरे ने फितूर के लिए शानदार काम किया वहीं इरशाद कामिल ने सुल्तान और मदारी के लिए कुछ बेहतरीन गीत लिखे। तनवीर गाज़ी ने पिंक के गीत कारी कारी को लिखकर दिल जीत लिया वहीं मनोज मुन्तसिर  धोनी, रुस्तम और वन नाइट स्टैंड जैसी फिल्मों में अपने नर्म मुलायम नग्मों से हमें बहलाते रहे।

डांस नंबर्स में सबसे ज्यादा मजा बागी के छम छम छम और ऐ दिल है मुश्किल के ब्रेकअप सांग में आया। वैसे युवा पीढ़ी पिछले साल काला चश्मा और बेबी को बेस पसंद है पर भी खूब थिरकी। साल का सबसे मनोरंजक या हँसाने वाला गाना निसंदेह हानिकारक बापू रहा। 

तो ये था पिछले साल के हिंदी फिल्म संगीत सितारों का लेखाजोखा। इस संगीतमाला के साथ बने रहने और समय समय पर अपनी राय से अवगत कराते रहने के लिए शुक्रिया। आशा है ये श्रंखला आप सब को पसंद आयी होगी।

वार्षिक संगीतमाला  2016 
1. चन्ना मेरेया Channa Mereya
2. इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत गुम है गुम है गुम है Ikk Kudi
3. जग घूमेया थारे जैसा ना कोई Jag Ghoomeya
4. पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina
5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9.   जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

गुरुवार, मार्च 16, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 सरताज गीत: मेरे ज़िक्र का जुबाँ पे स्वाद रखना ..चन्ना मेरेया Channa Mereya

वार्षिक संगीतमाला 2016 की आख़िरी सीढ़ी पर पहुँचते हुए वक़्त आ गया है सरताजी बिगुल बजाने का और बिना किसी आश्चर्य के यहाँ गीत है फिल्म ऐ दिल है मुश्किल का। ये गीत पिछले साल खूब बजा और अभी भी लगातार बज रहा है। अरिजीत सिंह की मर्मस्पर्शी गायिकी, अमिताभ भट्टाचार्य के खूबसूरत बोल और प्रीतम का पश्चिमी और भारतीय संगीत का प्यारा मिश्रण ही इस गीत को मेरे लिए साल के पच्चीस बेहतरीन गीतों की सूची में अव्वल नंबर पर ले आया है। मैंने अक्सर महसूस किया है है कि जो गीत अपने साथ उदासी की चादर लपेटे होते हैं उनका साया दिनों दिन दिल पर गहराता सा जाता है और चन्ना मेरेया एक ऐसा ही गीत है।


चाँद को लेकर ना जाने कितने गीतों के मुखड़े रचे गए होगे। साहिर का चाँद, मज़रूह का चाँद, गुलज़ार का चाँद... लगभग सारे गीतकारों ने चाँद को केंद्र में रखकर गीत लिखे हैं। चाँद है भी तो इतना खूबसूरत कि हर बार उसे देखकर हमारी भावनाएँ अलग अलग रूपों में निकलती हैं। कभी बासी नहीं होतीं। अमिताभ भट्टाचार्य ने उसी बिम्ब का बेहतरीन इस्तेमाल करते हुए एक अतिरिक्त काम ये जरूर किया है कि उन्होंने इसी बहाने चाँद के पंजाबी रूप चन्ना से हमारा परिचय करा दिया। मानना होगा अमिताभ की प्रतिभा को कि बस एक शब्द से गीत को वो हल्का सा ही सही पर आंचलिक रंग देने में सफल हो जाते हैं। दंगल का घणा हो या यहाँ चन्ना मेरेया यानि मेरा चाँद, ये शब्द कानों में वहाँ की मिट्टी की मिठास घोल देते हैं।

प्रीतम और अमिताभ की जोड़ी कोई नयी नहीं है। पिछले कुछ सालों से इस जोड़ी ने कई शानदार नग्मे दिए हैं। प्रीतम की आदत है कि वो हमेशा फिल्म के एक गीत के लिए कई धुनें बनाते हैं। ऐ दिल है मुश्किल की कहानी करण जौहर से सुनने के बाद उन्हो्ने पाँच छः धुने बनायीं और उन्हें सुनाने के लिएले गए। इनमें से तीन धुनें करण ने पहली बार सुनते ही स्वीकृत कर दी। चन्ना मेरेया की धुन उनमें से एक थी। प्रीतम भारतीय वाद्यों के पश्चिमी वाद्य यंत्रों के साथ फ्यूजन में माहिर रहे हैं। यहाँ भी गिटार परिवार के सदस्यों के साथ ढोलक, मुखड़े और अंतरों में साथ बजता है वहीं इंटरल्यूड्स में शहनाई और सारंगी की तान भी सुनाई देती है। एक अनुभवी संगीतकार होने के नाते इस शब्द प्रधान गीत में वो संगीत को कहीं हावी नहीं होने देते और अरिजीत तो बस कमाल हैं। दर्द भरे गीतों में अगर शास्त्रीयता का मिश्रण हो तो वो अरिजीत की आवाज़ में खूब फबता है।

ऐ दिल है मुश्किल बतौर फिल्म तो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं आयी थी। इकतरफ़े प्रेम का विषय संभावना से भरा तो था पर घटिया पटकथा ने अच्छे कलाकारों के होते हुए भी मजा किरकिरा कर दिया था। पर जो बात फिल्म उतने अच्छे से कह नहीं पायी वो ये गीत कह गया। कहते हैं अच्छी दोस्तियाँ बहुधा प्रेम में तब्दील हो जाती हैं। अगर दोनों ओर समान भावनाएँ ना हों तो इकतरफा प्रेम में पड़े रहने या फिर माया मोह को त्याग कर वैरागी बनने का विकल्प तो हैं  ही। पर हक़ीकत तो ये भी है कि इन विकल्पों को जीना इतना आसान भी नहीं ।
 

ख़ैर साथ ना भी हो तो गीतकार ये उम्मीद जगाते ही हैं कि जब भी इन दोस्तों का आपसी जिक्र हो, दूसरे की जुबाँ पर एक मिठास आ जाए और  माहौल चंदन सी खुशबू से समा जाए।  विरह बेला में रचे इस गीत को रणबीर कपूर पर्दे पर अपनी उदासी आंखों से जीवंत करते नज़र आते हैं। तो आइए सुनते हैं एक बार फिर ये नग्मा..

अच्छा चलता हूँ दुआओं में याद रखना
मेरे ज़िक्र का जुबाँ पे स्वाद रखना
दिल के संदूकों में मेरे अच्छे काम रखना
चिट्ठी तारों में भी मेरा तू सलाम रखना
अँधेरा तेरा, मैंने ले लिया
मेरा उजला सितारा तेरे नाम किया
चन्ना मेरेया मेरेया चन्ना मेरेया मेरेया

चन्ना मेरेया मेरेया बेलिया ओ पिया ..

महफ़िल में तेरी हम ना रहें जो
गम तो नहीं है गम तो नहीं है
किस्से हमारे नज़दीकियों के
कम तो नहीं हैं कम तो नहीं हैं
कितनी दफा सुबह को मेरी
तेरे आँगन में बैठे मैंने शाम किया
चन्ना मेरेया मेरेया चन्ना मेरेया मेरेया...पिया...

तेरे रूख से अपना रास्ता मोड़ के चला..
चन्दन हूँ मैं अपनी ख़ुशबू छोड़ के चला..
मन की माया रख के तेरे तकिये तले
बैरागी, बैरागी का सूती चोला ओढ़ के चला
ओ पिया ..


वार्षिक संगीतमाला की आखिरी कड़ी में करेंगे 2016  के संगीत का पुनरावलोकन और देखेंगे कि आख़िर पिछला साल रहा संगीत के किन दिग्गजों के नाम..

वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
2. इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत गुम है गुम है गुम है Ikk Kudi
3. जग घूमेया थारे जैसा ना कोई Jag Ghoomeya
4. पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina
5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

मंगलवार, मार्च 14, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 रनर्स अप : इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत गुम है गुम है गुम है Ikk Kudi

वार्षिक संगीतमाला 2016 के रनर्स अप खिताब का सेहरा बँधा है पंजाब के लोकप्रिय कवि शिव कुमार बटालवी की कविता इक कुड़ी जेदा नाम मोहब्बत के एक अंश पर आधारित उड़ता पंजाब के इस गीत के नाम। शिव कुमार बटालवी का नाम पंजाब के उन कवियों में शुमार होता है जो वहाँ के बाशिंदों के ह्रदय में बसते हैं। उड़ता पंजाब के निर्देशक अभिषेक दुबे ने उनकी कविता का अपनी फिल्म में इस्तेमाल कर इस कवि के प्रति पूरे देश में रुचि उत्पन्न कर दी जिसकी वजह से काव्य प्रेमी शिव कुमार बटालवी की  कई अन्य बेहतरीन रचनाओं से रूबरू हो पाए हैं । 

शिव कुमार बटालवी की निजी ज़िंदगी से इस कविता का क्या सरोकार था,? कौन थी वो लड़की जो उनकी ज़िदगी से गुम हो गयी थी ? इन सब के बारे में मैं पहले ही यहाँ विस्तार से लिख चुका हूँ। आज तो आपको मुझे  ये बताना है कि ये प्यारा सा नग्मा उड़ता पंजाब का हिस्सा कैसे बन गया?


दरअसल फिल्म के निर्देशक जब फिल्म की कहानी पर काम कर रहे थे तभी इस गीत की जरूरत उन्हें महसूस हुई। फिल्म में बिहारी मजदूर का किरदार निभाती आलिया भट्ट की पंजाब में आने के पहले की ज़िंदगी और उसके अंदर एक हाकी खिलाड़ी बनने की चाह को निर्देशक इस गीत को पार्श्व में रखकर दिखाना चाहते थे। जब बटालवी की पूरी कविता चार पन्नों में सज कर अमित त्रिवेदी के पास पहुँची तो वो असमंजस में पड़ गए कि आख़िर फिल्म के गीत के लिए इसका कौन सा हिस्सा चुना जाए ? आख़िरकार कविता के शुरुआती हिस्से को चुना गया। गीत के दो वर्जन बने। एक को शाहिद माल्या से गवाया गया और दूसरे को दिलजीत दोसांझ से। गीत दोनों रूपों में बेहतरीन है पर दिलजीत की आवाज़ के साथ अमित त्रिवेदी की धुन दिल को सचमुच जीत ले जाती है।

पंजाब के संगीत उद्योग में दिलजीत दोसांझ कोई नया नाम नहीं हैं। जालंधर के दोसांझ कलां गाँव से ताल्लुक रखने वाले दिलजीत पिछले एक दशक से भी ज्यादा समय से पंजाबी संगीत जगत में सक्रिय हैं। दस के करीब संगीत एलबम निकालने वाला ये गायक कई पंजाबी फिल्मों का भी हिस्सा रह चुका है। जहाँ तक हिंदी फिल्मों का सवाल है उड़ता पंजाब के आलावा दिलजीत  तेरे नाल लव हो गया, मेरे डैड की मारुति, यमला पगला दीवाना 2  और सिंह इज़ ब्लिंग जैसी फिल्मों में अपनी आवाज़ दे चुके हैं। बटालवी ने ख़ुद इसे जिस अंदाज़ में गाया था उससे अलग लय में अमित ने दिलजीत से ये गीत गवाया और उनकी इस बात के लिए तारीफ करनी होगी की गीत के मूड को उन्होंने यूँ  पकड़ा की उनकी आवाज़ में उस गुम हुई लड़की का दर्द सहज ही उभर आया। गीत में उदासी की लकीरों को और गहरा करने में साथ दिया इलेक्ट्रिक व बास गिटार से सजे  संगीत संयोजन ने ।

आख़िर गीत के पंजाबी बोलों में बटालवी ने कहना क्या चाहा है?


इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है
साद मुरादी सोणी फब्बत
गुम है गुम है गुम है

सूरत ओसदी परियाँ  वरगी, 
सीरत दी ओ.. मरियम लगदी
हसदी है ताँ फुल्ल झड़दे ने
तुरदी है ताँ ग़ज़ल है लगदी
लम्म स लम्मी सरू दे  क़द दी। . हाय
उम्र अजे है मर के अग्ग दी
पर नैणा दी गल्ल समझ दी
इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत
गुम है गुम है गुम है...

इक लड़की जिसका नाम मोहब्बत था, वो गुम है, गुम है , गुम है। सादी सी, प्यारी सी वो लड़की गुम है। उसका चेहरा परियों जैसा था और हृदय मरियम सा पवित्र। वो हँसती तो लगता जैसे फूल झड़ रहे हों और चलती तो लगता जैसे एक ग़ज़ल ही मुकम्मल  हो गई हो। लंबाई ऐसी कि सरू के पेड़ को भी मात दे दे। जवानी तो जैसे उसके अभी उतरी थी पर आंखों की भाषा वो खूब समझती थी। पर वो आज नहीं है। कहीं नहीं है। :(



सच कहूँ तो इस गीत का कैनवस फिल्म से कहीं आगे तक विस्तृत है। अगर आप उड़ता पंजाब ना भी देखें तो भी इस गीत से जुड़ने आपको थोड़ा सा भी वक़्त नहीं लगेगा। आख़िर कितनी प्रेम कहानियाँ अपने मुकाम तक पहुँच पाती हैं? जिस मोहब्बत का हम सपना देखते हैं क्या वो भाव जीवन पर्यन्त हमारे साथ रहता है? क्या हम एक समझौते के तहत प्रेम में बने रहने का ख़ुद से छलावा नहीं करते? क्या उस खोयी मोहब्बत की गुमशुदगी का अहसास रह रह कर हमें नहीं कचोटता?

शिव कुमार बटालवी का ये सहज सा गीत इसलिए विशेष नहीं कि वो उनकी प्रेमिका की खूबसूरती बयाँ करता है बल्कि इसलिए कि ये हमारे अंदर की उस टीस, उस हसरत को उभारता है जिस मोहब्बत को हमने वक़्त के हाथों लाचार होकर भुलाया हुआ है।

वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
2. इक कुड़ी जिदा नाम मोहब्बत गुम है गुम है गुम है Ikk Kudi
3. जग घूमेया थारे जैसा ना कोई Jag Ghoomeya
4. पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina
5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

शुक्रवार, मार्च 10, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान #3 : जग घूमेया थारे जैसा ना कोई Jag Ghoomeya

वार्षिक संगीतमाला 2016 की आख़िरी तीन पायदानें बची हैं और इन पर विराजमान तीनों नग्मे बड़े प्यारे व लोकप्रिय हैं और आपने पिछले साल इन्हें कई दफ़ा जरूर सुना होगा। संगीतमाला की तीसरी सीढ़ी  पर जो गीत है उसे संगीतबद्ध किया विशाल शेखर ने और बोल लिखे इरशाद कामिल ने।  सुल्तान फिल्म का ये गीत है जग घूमेया। इस गीत के दो वर्जन हैं। एक जिसे गाया राहत फतेह अली खाँ ने और दूसरे को आवाज़ दी नेहा भसीन ने। गाने तो आपको आज दोनों ही सुनाएँगे पर पहले ज़रा जान तो कि किस तरह जग घूमेया की धुन पहले दिन की पहली संगीत सिटिंग में ही बना ली गयी।

विशाल शेखर को जब सुल्तान की पटकथा सुनाई गयी तो उन्हें लगा ये तो बड़ी रोचक कहानी है और इसके लिए संगीत रचने में मजा आने वाला है। अगले ही दिन जब वो यशराज  स्टूडियो पहुँचे तो उन्होंने चार पाँच धुनें तैयार कीं पर इन धुनों में उन्होंने सबसे पहले जग घूमेया को ही फिल्म के निर्देशक अली अब्बास जाफ़र को सुनाया। अली ने धुन सुनते जी कहा कि क्या बात है ! अदित्य चोपड़ा को भी धुन पसंद आयी। अक्सर निर्माता निर्देशक  कई तरह की धुनें सुनना पसंद करते हैं पर यहाँ मामला पहली बार में ही लॉक हो गया। अली और आदि ने माना कि ये सुल्तान के संगीत की बेहतरीन शुरुआत है।

पर धुन तो गीत नहीं होता तो उसमें इरशाद कामिल को अपने शब्द भरने थे। कामिल अली के साथ पहले ही गुंडे और मेरे ब्रदर की दुल्हन में साथ काम कर चुके थे। इस गीत के लिए उन्हें सुल्तान के चरित्र में डूबना पड़ा। इरशादकामिल का इस गीत  के बारे में कहना है
जब तक आप चरित्र को पूरी तरह समझ नहीं लेते तब तक आप दिल से नहीं लिख सकते। ऊपरी तौर पर भी गीत लिखे जाते हैं पर जग घुमेया जैसे रूमानी गीत को लिखने के लिए मुझे ख़ुद सुल्तान के चरित्र को आत्मसात करना पड़ा।


शायद ही हममें से कोई ऐसा हो जिसने अपने होने वाले हमसफ़र के लिए सपने गढ़े ना हों। पर सपने कहाँ हमेशा सच होते हैं और कई बार तो हमारी तमन्नाएँ ही माशाल्लाह इतनी लंबी चौड़ी होती हैं कि वो पूरी हो भी नहीं सकती। फिर भी कुछ लोग होते हैं सुल्तान जैसे जिन्हें उनके सपनों के जहाँ से आगे की ऐसी शख़्सियत मिलती है जो दुनिया में अपनी तरह की अकेली हो। 

वैसे ये भी तो है कि अगर कोई अच्छा लगने लगे तो फिर दिल भी पूरी तरह अनुकूल यानि conditioned हो जाता है उनके लिए। उनका चेहरा हो या आँखें, मुस्कुराहट हो या नादानियाँ सब इतने प्यारे, इतने भोले लगने लगते हैं जैसे पहले  कभी लगे ही ना थे। इरशाद कामिल इन्हीं भावनाओं को बेहद नर्म रूपकों में कुछ यूँ क़ैद करते हैं...




ओ.. ना वो अखियाँ रूहानी कहीं, ना वो चेहरा नूरानी कहीं
कहीं दिल वाली बातें भी ना, ना वो सजरी जवानी कहीं
जग घूमेया थारे जैसा ना कोई, जग घूमेया थारे जैसा ना कोई

ना तो हँसना रूमानी कहीं, ना तो खुशबू सुहानी कहीं
ना वो रंगली अदाएँ देखीं, ना वो प्यारी सी नादानी कहीं
जैसी तू है वैसी रहणा...जग घूमेया...

बारिशों के मौसमों की भीगी हरियाली तू
सर्दियों में गालों पे जो आती है वो लाली तू
रातों का सुकूँ भी है, सुबह की अज़ान है
चाहतों की चादरों में, मैंने है सँभाली तू

कहीं अग जैसे जलती है, बने बरखा का पाणी कहीं
कभी मन जाणा चुपके से, यूँ ही अपनी चलाणी कहीं
जैसी तू है वैसी रहणा...जग घूमेया...

अपणे नसीबों में या, हौसले की बातों में
सुखों और दुखों वाली, सारी सौगातों में
संग तुझे रखणा है, यूने संग रहणा
मेरी दुनिया में भी, मेरे जज्बातों में

तेरी मिलती निशानी कहीं, जो है सबको दिखानी कहीं
तू तो जाणती है मरके भी, मुझे आती है निभाणी कहीं
वो ही करना है जो है कहणा

ये गीत पहले अरिजीत सिंह की आवाज़ में रिकार्ड किया गया था। बाद में सलमान से अनबन की वजह से अंततः राहत इस गीत की आवाज़ बने।  विशाल कहते हैं कि गीत के दो वर्जन अलग अलग मूड लिए हुए हैं और उनका कहना बिल्कुल सही है। राहत के वर्जन में जहाँ प्यार की खुमारी है, एक उत्साह है वही नेहा भसीन के वर्जन में प्यार के साथ एक ठहराव है, सुकून है और मेंडोलिन और तुम्बी का नाममात्र का संगीत संयोजन है। नेहा इस तरह के गीत कम ही गाती हैं पर उन्होंने इसे बखूबी निभाया है..


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
3. जग घूमेया थारे जैसा ना कोई Jag Ghoomeya
4. पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina
5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

मंगलवार, मार्च 07, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 4 : पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina

वार्षिक संगीतमाला की चौथी पॉयदान पर गीत वो जो अपने आप में अनूठा है। ये अनूठापन है इस गीत के उतार चढ़ावों में, इसके खूबसूरत संगीत संयोजन में, इसके साथ बहने वाले शब्दों में। फिल्म फितूर का एक गीत होने दो बतिया आप पहले ही सुन चुके हैं और वहीं मैंने जिक्र किया था कि फिल्म की प्रेम कहानी कश्मीर में जन्म लेती है़। वहीं पलती बढ़ती है।


उसी प्रेम को परिभाषित करने के लिए गीतकार स्वानंद किरकिरे को एक रूपक की तलाश थी जो उसी मिट्टी का हो और पश्मीना के रूप में उनकी वो खोज साकार हो गयी। पश्मीना है भी तो क्या? एक बेहद पतला मुलायम धागा जो लद्दाख की एक खास किस्म की बकरियों के रोएँ से निकाला जाता है। प्रेम आख़िर नर्म मुलायम सा ही तो अहसास है जो पश्मीना से बने ऊन की तरह चाहत की गर्मी से दिल को तरो ताजा बनाए रखता है।

पश्मीना धागों के संग
कोई आज बुने ख़्वाब ऐसे कैसे
वादी में गूँजे कहीं
नये साज़ ये रवाब ऐसे कैसे
पश्मीना धागों के संग..


कलियों ने बदले अभी ये मिज़ाज
अहसास ऐसे कैसे
पलकों ने खोले अभी नये राज
जज़्बात ऐसे कैसे
पश्मीना धागों के संग
कोई आज बुने ख्वाब ऐसे कैसे

जब प्यार कच्चा होता है या यूँ कहे पनप रहा होता है तो दिल और दिमाग काबू में नहीं रहते। एक अनजानी डोर उन्हें खींचती रहती है और अगर वो डोर पश्मीना जैसा अहसास जगाए तो फिर उसका साथ छोड़ने का दिल कहाँ करता है? वो कह उठता है मैं साया बनूँ, तेरे पीछे चलूँ, चलता रहूँ....

कच्ची हवा कच्चा धुआँ घुल रहा
कच्चा सा दिल लम्हे नये चुन रहा
कच्ची सी धूप कच्ची ड़गर फिसल रही
कोई खड़ा चुपके से कह रहा
मैं साया बनूँ, तेरे पीछे चलूँ, चलता रहूँ....
पश्मीना धागों के संग
कोई आज बुने ख्वाब ऐसे कैसे ..


स्वानंद दूसरे अंतरे में इन प्रेमसिक्त हृदयों की तुलना उन ओस की बूँदों से करते हैं जो एक दूसरे के पास सरकती हुई यूँ घुल जाती हैं कि उनमें कोई भेद ही नहीं रह जाता। फिर वो अलग भी हो जाएँ तो  दिल और दिमाग का ये बंधन उन्हें ख़यालों से जुदा कब होने देगा?

शबनम के दो कतरे यूँ ही टहल रहे
शाखों पे वो मोती से खिल रहे
बेफिक्र से इक दूजे में घुल रहे
जब हो जुदा ख्यालों में मिल रहे
ख्यालों में यूँ, ये गुफ्तगू, चलती रहे.. ओ..

पानी में गूँजे कहीं, मेरे साज़ ये रवाब
ऐसे कैसे, ऐसे कैसे, ऐसे कैसे, ऐसे कैसे

अमित त्रिवेदी ने इस गीत में गायक और संगीतकार दोनों की भूमिका निभाई  है जिसमें संगीतकार की भूमिका में वो सौ फीसदी खरे उतरे हैं। गिटार के साथ आइ डी राव की बजाई मधुर बाँसुरी प्रील्यूड का हिस्सा बनती है। डेढ़ मिनट बाद पहले इंटरल्यूड में  वॉयलिन के साथ अन्य वाद्यों का समावेश यूँ किया गया है कि मन वाह वाह कर उठता है। संगीत के साथ गीत की उठती गिरती लय आपको अंत तक इससे बाँध कर रखती है। 

हाँ ये जरूर है कि इस गीत को उन्होंने किसी मँजे हुए पार्श्व गायक से गवाया होता तो वो अपनी आवाज़ के कुछ और रंग इसमें भर पाता। ये गीत धीरे धीरे दिल में अपनी जगह बनाता है और जितना इसमें डूबते हैं उतना ही दिल में घर करता  जाता है..


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
4. पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina
5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

गुरुवार, मार्च 02, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 5 : बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है Hanikaarak Bapu

वार्षिक संगीतमाला के सरताज गीत से मुलाकात करने में पाँच कदमों का ही फासला रह गया है। पर आज पिछले कुछ महीनों में सबसे लोकप्रिय रहे गीत की बात करते हुए एक दूसरे सरताज से आपको जरूर मिलवाएँगे।

सिगरेट या तम्बाकू कै पैकेटों पर ये जुमला तो आपने दशकों से पढ़ा होगा कि इनका सेवन सेहत के लिए हानिकारक है पर सिगरेट के खाँचे में बापू को डाल देना अमिताभ भट्टाचार्य का गजब का मास्टर स्ट्रोक था। फिल्म दंगल में आमिर खान के चरित्र से ये गीत इतना जुड़ गया कि लोगों ने इसे  हाथों हाथ लिया। गाना हिट हो ही रहा था कि बाकी की प्रसिद्धि मुलायम अखिलेश प्रकरण ने दिलवा दी। अब इतना तो तय है  कि ये गीत खासकर इसका मुखड़ा तो हमेशा अपना वज़ूद बनाए रखेगा  क्यूँकि बच्चों पर सितम करने वाले बापुओं की तो ना पहले कमी थी, ना आगे रहेगी। :)

प्रीतम दा ने इस गीत में हरियाणवी लोक संगीत की महक बरकरार रखी है। अमिताभ भट्टाचार्य ने गीत तो हिंदी में लिखा पर हरियाणवी तड़का देने के लिए उन्होंने कुछ पंक्तियों के आख़िर वाले शब्दों को वहाँ की मिट्टी का रंग देने का प्रयास जरूर किया है। हिंदी में एक शब्द है घना यानि dense इसीलिए हम कहते हैं घनी आबादी, घना जंगल पर हरियाणवी में घना घणा हो जाता है और उसका अर्थ होता है कुछ ज्यादा ही। मसलन घणी बावरी हो रही है तो तू यानि कुछ ज्यादा ही बावली हो गयी है़ तू। अमिताभ ने पिता के अनुशासनात्मक आदेशों को गीत में घणा टार्चर का मजेदार रूप दिया है। बाकी तो हिंदी शब्दों में 'न 'को ' ण' कर कोई भी गीत वहाँ की टोन में गाया जाए तो हरियाणवी रंग बिखेर देता है। अमिताभ की शब्द रचना हर अंतरे में होठों पर मुस्कुराहट ले ही आती है।

दंगल के लिए अमिताभ के लिए तीन गीत इस गीतमाला में शामिल हुए हैं। उनके लिए दंगल के गीत लिखना कुछ विशेष रहा होगा क्यूँकि ये आमिर खाँ की फिल्म थी जिनके वो बचपन से प्रशंसक रहे हैं। अपने साक्षात्कार में वो कह चुके हैं कि आमिर की फिल्म जो जीता वही सिकंदर उन्होंने अपनी कक्षाएँ छोड़कर पाँच बार देखी थीं। उनके साथ काम करने का ख़्याल उन्हें कभी सपने में भी नहीं आया था। पर अमिताभ ने हानिकारक बापू के साथ साथ दंगल के अन्य गीतों में जो जान फूँकी उससे आगे भी उनका आमिर के साथ काम करने का मार्ग प्रशस्त जरूर हुआ होगा।

सरताज खान  व सरवर खान
पर बापू हमारे लिए इतने हानिकारक सिद्ध ना हुए होते अगर इन्हें सरवर खान और सरताज खान जैसी शानदार व जानदार आवाज़ों का सहारा ना मिला होता। जैसलमेर के मांगणियार समुदाय से ताल्लुक रखने वाले इन दोनों बालकों की उम्र दस से पन्द्रह के बीच की है पर जब ये गाते हैं तो इनकी आवाज़ का जोर बड़े बड़ों को मात दे सकता है। दरअसल मांगणियार समुदाय के लोगों का काम सदियों से लोक धुनों को गाना बजाना रहा है। सरवर और सरताज़ को ये हुनर अपने परिवार से मिला है। 

जब से उनका ये गीत हिट हुआ है स्कूल में उनका रुतबा बढ़ गया है। टीचर से डाँट मिलनी बंद हो गयी है और बाकी बच्चे उनसे बार करने को उत्सुक रहते हैं। जैसलमेर के आडिशन में बीस बच्चों में बाजी मारने वाले इन बच्चों को पहले अमिताभ भट्टाचार्य की आवाज़ में ये गाना सुनाया गया था जिसे टुकड़ों में उनकी आवाज़ में रिकार्ड किया गया। बहरहाल इन दोनों बच्चों की इच्छा एक गायक के तौर पर जीवन में नाम कमाने की है। ये कितने सफल होते हैं ये तो वक़्त ही बताएगा। एक श्रोता के रूप में तो हम सभी उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना ही कर सकते हैं। 

औरों पे करम, बच्चों पे सितम
रे बापू मेरे ये ज़ुल्म ना कर, ये ज़ुल्म ना कर..
डिंग ड़ांग, डिंग ड़ांग डिंग ड़ांग..डिंग ड़ांग,
डिंग ड़ांग डिंग ड़ांग डिंग ड़ांग ओ बापू

बापू सेहत के लिए, तू तो हानिकारक है
बापू सेहत के लिए, तू तो हानिकारक है
हम पे थोड़ी दया तो करो हम नन्हा बालक है..
हम पे थोड़ी दया तो करो हम नन्हा बालक है
डिसीप्लीन इतना, डिसीप्लीन इतना
ख़ुदकुशी के लायक है, बापू सेहत के लिए, तू तो हानिकारक है
डिंग ड़ांग, डिंग ड़ांग.....ओ बापू

तन्ने बोला पिकणिक शिक्णिक जाणा है मणा
यो तो टार्चर है घाणा, रे यो तो टार्चर है घणा
रे बच्चों से ई बोले, के ना करना बचपाणा
यो तो टार्चर है घाणा, रे यो तो टार्चर है घणा

ओ बापू, टॉफ़ी चूरन खेल खिलोने, कुलचे नान पराठा
कह गए हैं टाटा, जबसे बापू तूने डाँटा
जिस उम्र में शोभा देते, मस्ती सैर सपाटा
उस उम्र को नाप रहा है, क्यूँ घड़ी का काँटा
अपनी किस्मत की गाडी की खस्ता हालत है
ओ रे म्हारे बापू, ओ आ गयो रे बापू
ओ हमारे बापू, इस गाडी के वाहन चालक हैं
बापू सेहत के लिए, हाँ तू तो हानिकारक है

तन्ने बोला खट्टा तीखा खाणा है माणा
यो तो टार्चर है घणा, रे यो तो टार्चर है घणा
मिटटी की गुड़िया से बोले, चल बॉडी बणा
यो तो टार्चर है घणा, रे यो तो टार्चर है घणा
तेल लेने गया रे बचपन, झड़ गयी फुलवारी
कर रहे हैं जाने कैसी, जंग की तैयारी
सोते जगते छूट रही है, आँसू की पिचकारी
फिर भी खुश ना हुआ मोगम्बो, हम तेरे बलिहारी
तेरी नज़रों में क्या हम, इतने नालायक हैं


रे तुझसे बेहतर तो, मन्ने छोड़ दो रे बापू
रे तुझसे बेहतर अपनी, हिंदी फिल्मो के खलनायक हैं
बापू सेहत के लिए, तू तो हानिकारक है

फिलहाल सुनते हैं साल के इस सबसे मजेदार गीत को..



वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi
 

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