बुधवार, जनवरी 31, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान 15 :ये मौसम की बारिश... ये बारिश का पानी Baarish

वार्षिक संगीतमाला में अब बची है आखिरी की पन्द्रह सीढ़ियाँ। पन्द्रहवीं सीढ़ी पर गाना वो जिसमें रूमानियत भी है और मधुरता भी। इस गीत का संगीत दिया है फिर एक बार तनिष्क बागची ने और इसे लिखा है अराफात महमूद ने। फिल्म हाफ गर्लफ्रेंड के इस गाने को तो आप पहचान ही गए होंगे। जी हाँ ये गाना है 'बारिश'। अब बारिश की बूँदों चाहे हौले हौले गिरें या तड़तड़ाकर, इनका स्पर्श मन में मखमली सा अहसास तो  जगा ही देता है। 

आप किसी को चाहते हैं पर उसे कह नहीं पाते तो होता ये है कि आपकी सारी भावनाएँ मन में ही घनीभूत होती रहती हैं। गीतकार अराफात महमूद के पास संगीतकार तनिष्क बागची कहानी की ऐसी ही एक परिस्थिति लेकर आए और कहा कि कुछ ऐसा लिखो कि तुम्हारे शब्दों किसी की भी प्रेमिका प्रभावित हो जाए। तनिष्क की चुनौती स्वीकार करते हुए अराफात ने लिखा कभी तुझमें उतरूँ, तो साँसों से गुजरूँ...तो आए दिल को राहत.मैं हूँ बे ठिकाना, पनाह मुझको पाना..हैं तुझमें दे इजाज़त। अराफात इसे अपना गीत का पसंदीदा टुकड़ा मानते हैं।



वैसे अराफात महमूद में एक दशक से फिल्म जगत में सक्रिय हैं पर बमुश्किल उन्होंने बीस के लगभग गीत लिखे होंगे। पहली बार उनका लिखा नग्मा वार्षिक संगीतमाला 2014 में शामिल हुआ था। गाने के बोल थे मैं ढूँढने को ज़माने में जब वफ़ा निकला पता चला कि गलत ले के मैं पता निकला तभी से मुझे उनकी काबिलियत का अंदाजा हो गया था।

बंगाल के आसनसोल से ताल्लुक रखने वाले अराफात ने तालीम AMU से हासिल की। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि वो एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं। शायरी से उनका प्रेम उन्हें मुंबई खींच लाया जहाँ आठ नौ सालों की जद्दिज़हद के बाद उन्होंने सफलता का स्वाद चखा। उनका मानना है कि वही काम करना चाहिए जिसमें मजा आए और सीखने की हसरत कभी कम ना हो। अपने वरीय गीतकारों के अच्छे काम को सुनने से ही उन्हें और अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है।

अराफात गीत के दूसरे अंतरे हवाओं और परिंदों का जिक्र कर मन को गुदगुदाते हैं तो वहीं मौन रहकर भी अपनी प्रेयसी से उनके दिल की बात समझ लेने की गुजारिश भी करते हैं।

संगीतकार तनिष्क गीत की शुरुआत संतूर की मधुर तान से करते हैं और इंटल्यूड्स के समय साथ में गिटार और वायलिन भी ले आते हैं। अपने एक साक्षात्कार में वो ये कहना नहीं भूले कि ये गीत उन्हें उनकी प्रेम कहानी की याद दिला देता है। इस गीत को तनिष्क ने गवाया है ऐश किंग से तो आइए सुनते हैं अर्जुन और श्रद्धा कपूर पर अभिनीत ये गाना...ये गीत आपको अपने किसी ऐसे दोस्त की याद जरूर दिला जाएगा  जिसे बारिश से बेहद प्यार हो


चेहरे में तेरे, खुद को मैं ढूँढूँ
आँखों के दर्मियाँ तू अब है इस तरह
ख़्वाबों को भी जगह ना मिले...

ये मौसम की बारिश ये बारिश का पानी
ये पानी की बूँदें तुझे ही तो ढूँढें .....
ये मिलने की ख्वाहिश, ये ख्वाहिश पुरानी
हो पूरी तुझी से.. मेरी ये कहानी

कभी तुझमें उतरूँ, तो साँसों से गुजरूँ
तो आए दिल को राहत.
मैं हूँ बे ठिकाना, पनाह मुझको पाना
हैं तुझमें दे इजाज़त

ना कोई दर्मियाँ, हम दोनों हैं यहाँ
फिर क्यों हैं तू बता फासले
ये मौसम की बारिश... मेरी ये कहानी

ना ना .....ला ला ...

हवाओं से तेरा पता पूछता हूँ
अब तो आजा तू कहीं से
परिंदों की तरह यह दिल है सफ़र में
तू मिला दे ज़िन्दगी से ....
बस इतनी इल्तजा
तू आके इक दफा जो दिल ने ना कहा
जान ले ......

ये मौसम की बारिश... मेरी ये कहानी


वार्षिक संगीतमाला 2017

शनिवार, जनवरी 27, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान #16 : मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र Mere Rashke Qamar

साल के पच्चीस बेहतरीन गीतों की फेरहिस्त में आज चर्चा उस गीत की जिसे जनता जनार्दन ने पिछले साल हाथों हाथ लिया था । गीत की धुन तो इतनी लोकप्रिय हुई कि नक्कालों ने इसका इस्तेमाल कर जो भी  पैरोडी बनाई  वो भी हिट हो गयी। जी हाँ, बात हो रही है रश्के क़मर की जिसे मूलरूप में कव्वाली के लिए नुसरत फतेह अली खाँ ने संगीतबद्ध किया और गाया था। इसे लिखा था फ़ना बुलंदशहरी ने जिनके पुरखे भले भारत से रहे हों पर उन्होंने अपना काव्य पाकिस्तान में रचा। 

बहुत से लोग इस गीत के मुखड़े का अलग मतलब लगा लेते हैं क्यूँकि "क़मर" और "रश्क" जैसे शब्द उनकी शब्दावली के बाहर के हैं। उनकी सुविधा के लिए बता दूँ कि शायर ने मुखड़े में कहना चाहा है कि तुम्हारी खूबसरती तो ऐसी हैं कि चाँद तक को तुम्हें देख कर जलन होती है। ऐसे में तुमसे नज़रें क्या मिलीं  दिल बाग बाग हो गया। तुम्हें देख के ऐसा लगा मानो आसमान में बिजली सी चमक गयी हो। अब तो जिगर जल सा उठा है पर इस अगन का मज़ा ही कुछ और है ।



मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया 
बर्क़ सी गिर गयी काम ही कर गयी आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया 
जाम में घोल कर हुस्न की मस्तियाँ चाँदनी मुस्कुराई मज़ा आ गया 

चाँद के साए में ऐ मेरे साकिया तू ने ऐसी पिलाई मज़ा आ गया 
नशा शीशे में अंगड़ाई लेने लगा बज़्म ए रिन्दाँ में सागर खनकने लगे 
मैकदे पे बरसने लगी मस्तियाँ जब घटा गिर के छाई मज़ा आ गया 
बेहिजाबाँ जो वो सामने आ गए 
और जवानी जवानी से टकरा गयी  
आँख उनकी लड़ी यूँ मेरी आँख से 
देख कर ये लड़ाई मज़ा आ गया मेरे 
मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

आँख में थी हया हर मुलाक़ात पर 
सुर्ख आरिज़ हुए वस्ल की बात पर  
उसने शर्मा के मेरे सवालात पे  
ऐसे गर्दन झुकाई मज़ा आ गया 
मेरे रश्के क़मर .....मज़ा आ गया  
बर्क़ सी गिर गयी ...मज़ा आ गया 

शेख साहिब का ईमान बिक ही गया 
देख कर हुस्न-ए-साक़ी पिघल ही गया 
आज से पहले ये कितने मगरुर थे 
लुट गयी पारसाई मज़ा आ गया 
ऐ फ़ना शुक्र है आज बाद-ए-फ़ना 
उसने रख ली मेरे प्यार की आबरू 
अपने हाथों से उसने मेरी क़ब्र पर 
चादर-ए-गुल चढ़ाई मज़ा आ गया 
मेरे रश्के क़मर तू ने पहली नज़र जब नज़र से मिलाई मज़ा आ गया

(शब्दार्थ :   रश्क- ईर्ष्या, बर्क़ - बिजली, क़मर - चाँद, रिंद - शराब पीने वाले,  बेहिज़ाब  - बिना किसी पर्दे के, आरिज़ - गाल, मगरुर - अहंकार, वस्ल - मिलन, फ़ना -मृत्यु )

नुसरत साहब ने इस कव्वाली में अपनी हरक़तें डालकर इसके शब्दों को एक अलग ही मुकाम पे पहुँचा दिया था। इसलिए अगर आप नुसरत प्रेमी हैं तो मैं चाहूँगा कि इस कव्वाली पर आधारित गीत को सुनने के पहले मूल रचना को अवश्य सुनें। फ़ना साहब की शायरी में जो शोखी और रसीलापन है वो जरूर आपके मन में आनंद जगा जाएगा..


फिल्म  बादशाहो के निर्माता भूषण कुमार ने नुसरत की ये गाई ग़ज़ल जब सुनी थी तभी से इसे गीत की शक्ल में किसी फिल्म में डालने का विचार उनके मन में पनपने लगा था। निर्देशक मिलन लूथरा ने जब उन्हें फिल्म में नायक नायिका के पहली बार आमने सामने होने की परिस्थिति बताई तो भूषण को लगा कि  नुसरत साहब की उस कव्वाली को इस्तेमाल करने की ये सही जगह होगी। मिलन ख़ुद नुसरत प्रेमी रहे हैं। मजे की बात ये है कि उनकी पिछली फिल्म कच्चे धागे का संगीत निर्देशन भी नुसरत साहब ने ही किया था और उस फिल्म में भी अजय देवगन मौज़ूद थे। यही वज़ह रही कि भूषण जी का विचार तुरंत स्वीकृत हुआ।

गीत के बोलों को आज के दौर के हिसाब से परिवर्तित करने का दायित्व गीतकार मनोज मुन्तशिर को सौंपा गया। संगीत की बागडोर सँभाली इस साल सब से तेजी से उभरते संगीतकार तनिष्क बागची ने। अगर आपने नुसरत साहब की कव्वाली सुनी होगी तो पाएँगे कि मूल धुन से तनिष्क बागची ने ज़रा भी छेड़ छाड़ नहीं की है। कव्वाली में हारमोनियम के साथ तालियों के स्वाभाविक मेल को उन्होंने यहाँ भी बरक़रार रखा है। जोड़ा है मेंडोलिन को  जो कि इंटरल्यूड्स में  बजता सुनाई देता है। कव्वाली और गीत के बोलों के मिलान आप समझ जाएँगे कि मुखड़े और बर्क़ सी गिर गई वाले अंतरे को छोड़ बाकी के बोल मनोज मुन्तशिर के हैं।

ये अलग बात है कि मनोज अक़्सर कहते रहे हैं कि पुराने गीतों को नया करने का ये चलन उन्हें पसंद नहीं है क्यूँकि इसमें गीतकार और संगीतकार को श्रेय नहीं मिल पाता। बात सही भी है अगर इस गीत को कोई याद करेगा  तो वो सबसे पहले नुसरत और फ़ना का ही नाम लेगा। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसे गाया है राहत फतेह अली खाँ साहब ने

ऐसे लहरा के तू रूबरू आ गयी
धड़कने बेतहाशा तड़पने लगीं
तीर ऐसा लगा दर्द ऐसा जगा
चोट दिल पे वो खायी मज़ा आ गया

मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र
जब नज़र से मिलायी मज़ा आ गया
जोश ही जोश में मेरी आगोश में
आके तू जो समायी मज़ा आ गया
मेरे रश्के क़मर .... मज़ा आ गया

रेत ही रेत थी मेरे दिल में भरी 
प्यास ही प्यास थी ज़िन्दगी ये मेरी
आज सेहराओं में इश्क़ के गाँव में
बारिशें घिर के आईँ मज़ा आ गया
मेरे रश्के क़मर  तूने पहली नज़र ...

रांझा हो गए हम फ़ना हो गए ऐसे तू मुस्कुरायी मज़ा आ गया
मेरे रश्के क़मर तूने पहली नज़र जब नज़र से मिलायी मज़ा आ गया
बर्क़ सी गिर गयी काम ही कर गयी  आग ऐसी लगायी मज़ा आ गया



चलते चलते ये भी बता दूँ कि आज इस गीत की लोकप्रियता का ये आलम है कि मुखड़े में हास्यास्पद तब्दीलियाँ करने के बावज़ूद मेरे रश्क़ ए क़मर तूने आलू मटर इतना अच्छा बनाया मजा आ गया जैसी पंक्तियाँ भी उतने ही चाव से सुनी जा रही हैं।

वार्षिक संगीतमाला 2017

बुधवार, जनवरी 24, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान 17 : चोरी से, चोरी से छुप-छुप के तिनका तिनका, चुन के सपना एक बनाया Sapne Re

जब किसी उभरती गायिका पर फिल्म बनेगी तो ज़ाहिर है उसको निभाने के लिए अभिनेत्री के साथ उसकी आवाज़ की भी तलाश होगी। सीक्रेट सुपस्टार की स्क्रिप्ट जब अद्वैत चंदन और आमिर ने संगीतकार अमित त्रिवेदी को थमाई तो साथ ही उन्हें एक किशोर  गायिका को  खोजने का दायित्व भी दे दिया जो फिल्म में ज़ायरा वसीम की आवाज़ बन सके।

अमित अपने काम में लग गए। 28 लोगों को बुलाया गया। उनमें सात आठ आवाजें छांटी गयीं और अंततः मेघना की आवाज़ में अमित वो पा गए जो वो चाहते थे। अमित ने उनकी आवाज़ को सहजता से बहता हुआ पाया। एक बार जब आमिर और अद्वैत की स्वीकृति मिल गयी तब जाकर आगे का काम शुरु हुआ। वैसे मेघना हैं कौन ये तो आप जानना चाहेंगे ही।


मेघना ग्यारहवी की छात्रा हैं और मुंबई में पली बढ़ी हैं। उनके पिता उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिले से ताल्लुक रखते हैं। पिता ख़ुद गायिकी से जुड़े हैं और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से संगीत में परास्नातक हैं। गाजीपुर से मुंबई आकर उन्होंने भी अपने आप को यहाँ स्थापित करने की कोशिश की। कुछ खास मौके नहीं मिले तो संगीत सिखाने में जुट गए। मेघना की माँ एक तबला वादक हैं। इतने भरे पूरे संगीत के माहौल में मेघना नहीं गाती तो आश्चर्य था। हालांकि उनका सफ़र भी इतना आसान नहीं रहा। छठी कक्षा में इंडियन आइडल जूनियर में भाग लेने गयीं पर जल्द ही बाहर हो गयीं। फिर भी संगीत सीखना नहीं छोड़ा। एक मराठी फिल्म में गाने का मौका मिला और फिर उस फिल्म के संगीत निर्देशक ने सीक्रेट सुपरस्टार के लिए उनका नाम अमित त्रिवेदी को सुझाया।

ज़ायरा वसीम और मेघना मिश्रा 

अमित त्रिवेदी ने  मेघना से  इस फिल्म के लिए  पाँच एकल गीत गवाए । टीवी पर मैं कौन हूँ और नचदी फिरा का जोर शोर से प्रचार हुआ और नचदी फिरा के लिए फिल्मफेयर ने उन्हें इस साल की सर्वश्रेष्ठ गायिका भी घोषित कर दिया। पर उनके गाए गानों में मुझे मेरी प्यारी अम्मी जो हैं और सपने रे ने सबसे ज़्यादा प्रभावित किया। मेरी प्यारी अम्मी की जगह तो इसी फिल्म के एक और प्यारे गीत गुदगुदी ने ले ली पर सपने रे ने मेरे दिल में अंत तक अपनी जगह बनाई रखी।

सीक्रेट सुपरस्टार एक ऐसी फिल्म थी जिसके गानों में ही फिल्म की कहानी पलती बढ़ती रही। गीत के बोलों और संगीत पर इसका खासा असर रहा। ये गीत फिल्म में तब आता है जब नायिका अपनी दोस्तों के साथ सफर पर है। साथ में है उसका गिटार। दोस्त जब गाने की फर्माइश करते हैं तो शुरुआत होती है सपने रे की।

क़ौसर मुनीर को एक किशोरी के मन में धीरे धीरे आकार ले रहे सपने को शब्द देने थे । उनकी चुनौती ये भी थी कि वो गीत में  जिस भाषा का प्रयोग करें वो स्कूल की छात्रा की भाषा हो। इसलिए क़ौसर ने मुखड़े में पक्षियों की तरह तिनका तिनका बुन के नवजात सपने को घोंसले में जगह तो दी पर जब उसे छुपाने का वक़्त आया तो डॉयरी और गुथी हुई चोटी को उन्होंने मुनासिब समझा । 

अमित के संगीत में गिटार और ताल वाद्यों का प्रमुखता से उपयोग होता है। यहाँ भी ये वाद्य उपस्थित हैं पर साथ में बाँसुरी का हल्का फुल्का तड़का भी है।

कोई भी बच्चा चाहे किसी का हो हमें कितना प्यारा लगता है। फिर आप बताइए अगर मन में शिशु के रूप में एक सपने का जन्म हो तो उसे आप गलत नज़रों से बचा कर, खूब सहेज कर रखेंगे ना। वैसे भी हम सभी अगर अपने नन्हे सपनों से प्यार नहीं करेंगे तो वो बड़े कैसे होंगे? इस प्यारी सी भावना को ये गीत श्रोताओं के दिलों तक पहुँचाता है। चलिए आज आप भी मिल आइए इस मासूम सपने से..

चोरी से, चोरी से छुप-छुप के 
मैंने चोरी से, चोरी से छुप-छुप के 
तिनका तिनका, चुन के सपना एक बनाया 
डोरी से, डोरी से बुन बुन के मैंने डोरी से, 
टुकड़ा टुकड़ा सी के सपना एक बनाया.. 
सपने रे, सपने रे.. सपने मेरे सच 
हो जाना रे हो जाना रे हो जाना रे

आजा डायरी में छुपा दूँ 
आजा तुझको चोटी में बाँधूँ 
कहीं किसी को ना दिख जाए  
सपने रे, सपने रे, सपने मेरे
हाथ तेरा कस के पकड़ लूँ 
साथ साथ तेरे मैं चल दूँ 
डर तुझे ना किसी से लग जाए 
सपने रे, सपने रे, सपने मेरे 
रातों को, रातों को जग जग के मैंने  
तारा तारा, चुन के सपना एक बनाया 
सपने रे, सपने रे सपने मेरे सच हो जाना रे हो जाना रे....




वार्षिक संगीतमाला 2017

सोमवार, जनवरी 22, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान #18 : कि चोरी चोरी चुपके से चुपके से रोना है ज़रूरी Hai Zaroori

मनोज मुन्तशिर और अमाल मलिक ये दो ऐसे कलाकार हैं जिनके लिखे और रचे गीत युवाओं में खासे लोकप्रिय हैं। मनोज इस साल अपने हॉफ गर्लफ्रेंड के गीत मैं फिर भी तुम को चाहूँगा के लिए काफी उत्साहित दिखे और ये गीत लोकप्रिय भी हुआ। पर उस गीत से कहीं अच्छी मुझे उसके पीछे की नज़्म लगी जिसे मनोज ने 2001 में लिखा था। वहीं अमल मलिक इस साल बद्रीनाथ की दुल्हनिया में रचे अपने गीतों की सफलता पर बेहद खुश थे हालांकि कुल मिलाकर मुझे उस फिल्म का संगीत औसत ही लगा।  



पिछले साल के सारे गीतों को सुनते हुए मुझे इस जोड़ी की कृतियों में सबसे ज्यादा प्रभावित किया नूर के इस गाने ने। ये गाना इस साल ज्यादा बजा भी नहीं पर फिर भी एक बार सुनते ही इसके बोल और संगीत रचना दिल को अंदर तक छू गयी और यही वज़ह है कि साल के पच्चीस शानदार गीतों में ये नग्मा अपनी जगह बना सका है।

नूर एक ऐसे पत्रकार की कहानी थी जो अपने जीवन की परेशानियों से हताश है। अपने लिए समय की कमी, बढ़ते वजन की चिंता, मनचाहा साथी ना मिल पाने का ग़म और  बॉस की उसके काम से नाराजगी उसकी ज़िंदगी को बेढंगा किए जा रहा था। फिर परिस्थितियों ने ऐसी करवट ली कि नौकरी और निजी ज़िन्दगी में सब कुछ सही सा लगने लगा। पर उसने जिस शख़्स में अपनी भविष्य की खुशियाँ देखीं वही उसका विश्वास तोड़ कर चला गया। 

मनोज मुन्तशिर को नूर के मानसिक हालातों को गीत में शब्द देने थे और ये काम उन्होंने बखूबी किया। हम कितने भी ज़हीन क्यूँ ना हों किसी का असली चेहरा हमेशा नहीं पढ़ पाते। गलतियाँ हो ही जाती हैं और भावनात्मक ठेस से हम टूट जाते हैं। पर ज़िदगी का मजबूती से सामना करने के लिए टूटना भी जरूरी है। आँसुओं को हमेशा कमजोरी की निशानी नहीं समझना चाहिए। ये बहते हैं तो इनके साथ हमारी मुलायमियत भी बह जाती है। रह जाता है तो हमारा लक्ष्य को बेंधने का संकल्प  इसलिए मनोज लिखते हैं 

कभी कभी लगे यही जो मिलना था मिला वही 
बिखरना भी दुआओं का है ज़रूरी 
किसी के वास्ते कहाँ ज़मीन पे आया आसमान 
ये दूरियाँ रही बस दूरियाँ 
कि चोरी चोरी चुपके से चुपके से रोना है ज़रूरी 
कि पानी पानी अँखियों का अँखियों का होना है ज़रूरी.. 

अमाल मलिक का संगीत इस शब्द प्रधान इस गीत के पीछ धीरे धीरे बहता है। इंटरल्यूडस में गिटार और फिर वायलिन की धुन गीत की मायूसी में गुथी नज़र आती है। पियानों की हल्की धनक भी गीत के साथ चलती है। गीत का अंत सेक्सोफोन और पियानो की जुगलबंदी से होता है।

गीत की मनोभावनाओं को प्रकृति कक्कर अपनी आवाज़ से उभारने में कामयाब रही हैं। मेरी समझ से टुटिया दिल के बाद पिछले कुछ सालों में बॉलीवुड के लिए गाया सबसे बेहतरीन गीत है। अंतरों में भी मनोज की कलम उतनी ही मजबूती से चलती है। पागल दिल की आसमानी बातों का जिक्र अपना सा लगता है इसीलिए भाता है। आशा  है इस गीत के साथ आप सब भी अपने दिल के तारों को जोड़ पाएँगे।


कभी कभी लगे यही 
जो होना था हुआ वही 
बदलना भी हवाओं का है ज़रूरी

कभी कभी लगे यही जो मिलना था मिला वही 
बिखरना भी दुआओं का है ज़रूरी 
किसी के वास्ते कहाँ ज़मीन पे आया आसमान 
ये दूरियाँ रही बस दूरियाँ 
कि चोरी चोरी चुपके से चुपके से रोना है ज़रूरी 
कि पानी पानी अंखियों का अंखियों का होना है ज़रूरी.. 
रह गयी आरज़ू एक अधूरी के 
कि कभी कभी ऐसा भी, ऐसा भी होना है ज़रूरी

नासमझ थे हम जो ये भी ना समझे 
वक़्त आने पर सब बदलते हैं 
मंजिलें क्या हैं और रास्ते क्या हैं 
लोग पल भर में यहाँ रब बदलते हैं 
किसी के वास्ते कहाँ किनारे आये कश्तियाँ 
ये दूरियाँ रही बस दूरियाँ 
कि चोरी चोरी  है ज़रूरी 

मुस्कुराने के कितने बहाने थे 
फिर भी आँखों ने क्यूँ नमी चुन ली 
दिल की बातें तो सब आसमानी थी 
हम ही पागल थे इस दिल की जो सुन ली 
किसी के वास्ते कहाँ मिली है रात से सुबह 
कि दूरियाँ रही बस दूरियाँ 
कि चोरी चोरी .... है ज़रूरी

वार्षिक संगीतमाला 2017

शनिवार, जनवरी 20, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान #19 : नज़्म नज़्म.. त्रुटिपूर्ण भाषा की मार सहती एक मधुर धुन ! Nazm Nazm

वार्षिक संगीतमाला की 19 वीं पायदान पर गाना वो जो मेरे आरंभिक आकलन के बाद सुनते सुनते कई सीढ़ियाँ नीचे की ओर लुढ़का है। पर अब भी अगर ये मेरी गीतमाला में शामिल  है तो उसकी वज़ह है इसके मुखड़े का शानदार भाव और इसकी धुन की मधुरता। ये गीत है फिल्म 'बरेली की बर्फी' का जिसे रचा है अर्को ने।


अर्को प्रावो मुखर्जी के गीतों से मेरा प्यार और दुत्कार वाला रिश्ता रहा है। बतौर संगीतकार वो मुझे बेहद प्रभावित करते हैं। उनके शायराना हृदय के खूबसूरत भाव  रह रह कर उनके गीतों में झलकते हैं। पर भाषा पर पकड़ न होने के कारण वो एक गीतकार की भूमिका में खरे नहीं उतरते और ये बात वो जितनी जल्द समझ लें उतना अच्छा। 

अब बरेली की बर्फी के इस गीत को लीजिए। कितना रूमानी ख्याल था मुखड़े में कि मेरी प्रेयसी एक नज़्म की तरह मेरे होठों पर ठहर जाए और मैं उसकी आँखों में  मैं एक ख़्वाब बनकर जाग जाऊँ। वाह भई वाह! अर्को इस मुखड़े के लिए तो आप शाबासी के हकदार हैं पर ये क्या आपने तो नज़्म का लिंग ही बदल दिया। अरे नज़्म की बातें करते हुए कम से कम गुलज़ार की इन पंक्तियों को याद कर लेते तो मुखड़े में ऐसी गलती नहीं करते 

नज़्म उलझी हुई है सीने में 
मिसरे अटके हुए हैं होठों पर 
उड़ते-फिरते हैं तितलियों की तरह 
लफ़्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नहीं 

कब से बैठा हुआ हूँ मैं जानम 
सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा
बस तेरा नाम ही मुकम्मल है 
इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी

इसलिए आपको कहना चाहिए था
तू नज़्म नज़्म सी मेरे होंठो पे ठहर जा 
मैं ख्वाब ख्वाब सा तेरी आँखों में जागूँ रे 

लिंग की ये गलतियाँ इत्र सा (सी) और तेरे (तेरी) कुर्बत और मेरे (मेरी) साँसों में भी बरक़रार रहती हैं और गीत सुनने के आनंद को उसी तरह बाधित करती हैं जैसे चावल में कंकड़। मुझे समझ नहीं आता कि इतनी गलतियाँ  निर्देशिका और उनकी पूरी टीम को नज़र कैसे नहीं आई? गायक के तो उसे पकड़ने का सवाल ही नहीं उठता क्यूंकि इस गीत की लिखने और संगीतबद्ध करने के साथ गाने की भी जिम्मेदारी अर्को ने सँभाली थी। 

फिर भी गीत की गिटार प्रधान धुन ऐसी है जो तुरंत ज़हन में बस जाती है और आपको मुखड़े को गुनगुनाने पर विवश कर देती है। अर्को के रचे इंटरल्यूड्स कर्णप्रिय हैं। गीत का फिल्मांकन नायक नायिका के बीच एक ओर खिलती दोस्ती और दूसरी ओर पनपते प्यार के छोटे छोटे पलों को अच्छी तरह पकड़ता है इसलिए इसे देखना भी मन को रूमानियत से भर देता है। तो आइए सुने ये गीत इस उम्मीद के साथ कि अर्को ऐसी गलतियों से बाज आएँगे।

तू नज़्म नज़्म सा (सी) मेरे होंठो पे ठहर जा 
मैं ख्वाब ख्वाब सा तेरी आँखों में जागूँ रे 
तू इश्क़ इश्क़ सा मेरे रूह में आ के बस जा 
जिस ओर तेरी शहनाई उस ओर मैं भागूँ रे 

हाथ थाम ले पिया करते हैं वादा 
अब से तू आरजू तू ही है इरादा 
मेरा नाम ले पिया मैं तेरी रुबाई 
तेरे ही तो पीछे-पीछे बरसात आई, बरसात आई 

तू इत्र इत्र सा (सी) मेरे (मेरी) साँसों में बिखर जा 
मैं फ़कीर तेरे (तेरी) कुर्बत का तुझसे तू माँगूँ रे 
तू इश्क इश्क सा मेरे रूह में आ के बस जा 
जिस ओर तेरी शहनाई उस ओर मैं भागूँ रे 

मेरे दिल के लिफाफे में तेरा ख़त है जाणिया 
तेरा ख़त है जाणिया .. 
नाचीज़ ने कैसे पा ली किस्मत ये जाणिया वे 
तू नज़्म नज़्म सा (सीमेरे होंठो पे ठहर जा। 

वार्षिक संगीतमाला 2017

शुक्रवार, जनवरी 19, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान 20 :मीर-ए-कारवाँ Meer e Kaarwan

एक हफ्ते के विराम के बाद वार्षिक संगीतमाला का कारवाँ फिर चल पड़ा है साल के बचे हुए बीस शानदार गीतों के सफ़र पर  संगीतमाला की बीसवीं पायदान पर गीत वो जिसे लिखा नवोदित गीतकार अधीश वर्मा ने, धुन बनाई संगीतकार रोचक कोहली ने और जिसमें आवाज़े दीं नीति मोहन व अमित मिश्रा ने । जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ फिल्म लखनऊ सेंट्रल के गीत मीर ए कारवाँ की।

चंडीगढ़ से ताल्लुक रखने वाले रोचक कोहली का सितारा पहली बार आयुष्मान के साथ रचे उनके गीत पानी दा रंग के साथ चमका था। आरंभिक कुछ सालों में आयुष्मान के साथ अपना फिल्म संगीत की शुरुआत करने वाले रोचक कोहली इस साल नाम शबाना, करीब करीब सिंगल और लखनऊ सेंट्रल से बतौर संगीतकार अपनी व्यक्तिगत पैठ बनाते दिखे। चाहे विकी डोनर का पानी दा रंग हो या हवाईज़ादा कासपना है निजाम का ,रोचक की गिटार पर महारत देखते ही बनती है।


मीर ए कारवाँ में भी मुखड़े के पहले  गिटार के साथ तबले का अद्भुत मेल श्रोताओं का ध्यान एक बार ही में आकर्षित कर लेता है। गिटार और तबले की ये संगत ऐसी है जिसे बार बार सुनने का मन  होता है और रोचक इसीलिए उसका प्रयोग इंटरल्यूड्स में भी करते हैं। ये कहना लाजिमी होगा कि संगीत का ये टुकड़ा इस गीत की सिग्नेचर ट्यून बन कर उभरा है। रोचक कोहली ने अधीश की मदद से इस गीत को सूफियत का जामा पहनाने की कोशिश की है। पर गीत के कुछ हिस्से "मितवा" की याद दिला देते हैं जिससे बचा जा सकता था।

फिल्म के गीतकार अधीश वर्मा का फिल्मों के लिए लिखा गया दूसरा गीत है। इससे पहले वे रोचक के साथ बैंक चोर  का एक गीत लिख चुके थे। मीर ए कारवाँ एक ऐसा गीत है जो फिल्म की कहानी में ज़िंदगी की अलग अलग राहों से भटकते हुए किरदारों को संगीत के माध्यम से जोड़ता है। जेल की सलाखों में बंद इन किरदारों को एक नयी मंज़िल की तलाश है।

अधीश ने गीत में मीर-ए-कारवाँ का जुमला उछाला है। दरअसल सफ़र में साथ चलने वाले समूह के नेता को ही 'मीर-ए-कारवाँ' कहा जाता  है। पर अधीश ने इस गीत में कहना चाहा है कि जब हम जीवन की जटिल राहों में अकेले ही संघर्ष करते हैं तो हमारी उम्मीद की किरण, हमारे सफ़र का मसीहा यानि हमारा मीर ए कारवाँ बस एक ऊपर वाला होता है। अधीश इसी मीर ए कारवाँ से अपने किरदारों (जो जीवन की इस गहरी स्याह रात से होकर गुज़र रहे हैं ) के लिए नए उजाले की दुआ करते हैं। 

बहार क्यूँ तेरे दर ना आती.. वाले अंतरे में अधीश किरदारों की अपने आस पास की परिस्थितियों से उपजी हताशा को बखूबी रेखांकित करते हैं। नीति मोहन की आवाज़ मुझे हमेशा से प्यारी लगती रही है। इस गीत में उनका अमित मिश्रा  ने भी बखूबी साथ दिया  है तो आइए सुनें इन दोनों के स्वर में फिल्म लखनऊ सेंट्रल का ये गाना...


ओ बंदेया ओ बंदेया
ओ बंदेया ओ बंदेया
ओ बंदेया ओ बंदेया

तेरी मंज़िलें हुईं गुमशुदा
फिर भी रास्ता है तेरा मेहेरबां
ओ मीर-ए-कारवाँ 
तेरी राहों पे रवाँ
कि मेरे नसीबों में
हो कोई तो दुआ
ओ मीर-ए-कारवाँ
ले चल मुझे वहाँ
ये रात बने जहाँ सुबह
मीर-ए-कारवाँ, ओ मीर-ए-कारवाँ

ओ बस कर दिल अब बस कर भी
हो बस कर दिल अब बस कर भी
उस राह मुझे जाना ही नहीं
पल दो पल का साथ सफ़र फिर
होगी जुदा रहगुज़र
नदिया थाम के जो बहते रहे
मिलते हैं वो किनारे कहाँ

ओ मीर-ए-कारवाँ, तेरी राहों पे रवाँ...

बहार क्यूँ तेरे दर ना आती
है क्या भरम जो नज़र दिखाती
अब और कितनी ये रात बाक़ी
है रात बाक़ी, ये रात बाक़ी
निगल ना जायें तुझे ये साये
गले में घुटती हैं सर्द आहें
बता ओ बंदे क्यूँ मात खाये
क्यूँ मात खाये रे

लागे ना दिल अब लागे नहीं
लागे ना दिल अब लागे नहीं
मेरे पैरों तले निकली जो ज़मीं
इस बस्ती में था मेरा घर
उसे किस की लगी फिर नज़र
वो जो सपनों का था काफ़िला
ऐसा झुलसा की अब है धुआँ

ओ मीर-ए-कारवाँ, तेरी राहों पे रवाँ...
चल अकेला राही, चल चल अकेला राही
हाफ़िज़ तेरा इलाही, हाफ़िज़ तेरा इलाही



वार्षिक संगीतमाला 2017


गुरुवार, जनवरी 11, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान 21 : गुदगुदी , गुदगुदी करने लगा है हर नज़ारा Gudgudi

वार्षिक संगीतमाला की 21 वीं सीढ़ी पर गाना है फिल्म सीक्रेट सुपरस्टार का। जग्गा जासूस की तरह ही सीक्रेट सुपरस्टार भी पिछले साल की एक म्यूजिकल थी। अमित त्रिवेदी पूरे एलबम के संगीत संयोजन में प्रीतम जैसा तो कमाल नहीं दिखा सके फिर भी उन्होंने एक अलग तरह के विषय पर बनाई फिल्म में कौसर मुनीर के शब्दों को अपनी धुनों से मधुर बनाने की अच्छी कोशिश जरूर की है।


गीतमाला में इस फिल्म का जो पहला गीत शामिल हुआ है वो है "गुदगुदी" जिसे गाया है सुनिधि चौहान ने। अमित त्रिवेदी को फिल्मों में ज्यादातर गाने ऐसे मिले हैं जो फिल्म की कहानी से पूरी तरह गुथे होते हैं। ये गीत भी इसी प्रकृति का है। कहानी एक किशोरी की है जो प्रतिभावान है, गायिका बनना चाहती है पर घर की बंदिशों ने उसकी बाहरी दुनिया तक पहुँचने की हसरत को नाउम्मीदी में बदल दिया है। ऐसे में जब उसकी माँ एक लैपटाप ले आती हैं तो इंटरनेट के माध्यम से उसे खुशियों का खजाना सा मिल जाता है क्यूँकि अब वो यू ट्यूब के माध्यम से अपने गाने रिकार्ड को दुनिया को सुना सकती है।

अगर हम मन से प्रसन्न हो ना तो छोटी से छोटी बात में खुशी ढूँढ लेते हैं। गीतकार कौसर मुनीर मन के इसी भाव को "गुदगुदी" के रूपक में बाँधा है। अक्सर आप किसी के प्यारे दोस्त के बारे में बात करें तो उसके प्रफुल्लित चेहरे को देख कर कहते हैं क्यूँ उसका जिक्र सुनकर दिल में गुदगुदी हुई ना?

यहाँ हमारी ये किशोर नायिका तो ख़ैर इतनी खुश है कि माँ का लाड़, छोटे भाई की तकरार और सहपाठी का प्यार सब मन में गुदगुदी ही जगा रहा है। तभी तो कौसर उनकी आवाज़ बनकर लिखती हैं..

अभी अभी आँखों ने सीखा मटकना
अभी अभी दाँतों ने सीखा चमकना
लगता है जैसे अभी अभी इस दिल ने
सीखा दिल से हँसना

अभी अभी बालों ने सीखा है खुलना
अभी अभी दागों ने सीखा है धुलना
लगता है जैसे अभी अभी इस दिल ने
सीखा दिल से हँसना

गुदगुदी , गुदगुदी करने लगी बिंदियाँ
गुदगुदी , गुदगुदी करने लगी चोटियाँ
गुदगुदी , गुदगुदी करने लगा है हर नज़ारा

गुदगुदी , गुदगुदी करने लगी तितलियाँ
गुदगुदी , गुदगुदी करने लगी चिड़ियाँ
गुदगुदी , गुदगुदी करने लगा है हर नज़ारा

अमित त्रिवेदी ने गीत के इंटरल्यूड्स में मैंडोलिन और सैक्सोफोन के मधुर टुकड़े डाले हैं। बीच बीच में कोरस भी गीत में नया जोश सा भरता है। गीत के मस्ती और शोखी के मूड को सुनिधि ने अपनी धारदार गायिकी से जीवंत कर दिया है।  हफ्ते भर पहले वो वास्तविक जीवन में माँ भी बनी है। उम्मीद है कि इस गीत के साथ ही नया साल उनकी ज़िंदगी को खुशियों से भर दे। तो आइए सुनते हैं उनकी आवाज़ में  इस प्यारे से गीत को..

वार्षिक संगीतमाला 2017

मंगलवार, जनवरी 09, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान 22 : संगमरमर के बँगले बनाता है, दिल अकबर का पोता है

फिल्मों गीतों में गालियों को मुखड़ों में इस्तेमाल करने का रिवाज़ नया नहीं है। दरअसल गीतों में उनका प्रयोग  कुछ इस तरह से हुआ है कि अव्वल तो वो गालियाँ रही नहीं बल्कि एक तरह की उलाहना बन गयीं हैं। मजे की बात है कि गीतकारों की सारी खुंदस मुए इस दिल पर ही उतरी है। दिल बदमाश भी है (बदमाश दिल तो ठग है बड़ा..सिंघम)और बदतमीज़ भी ( बदतमीज़ दिल YZHD)। गुलज़ार साहब तो एक स्तर और बढ़ गए और उसे 'कमीना' ही बना दिया। पर इस कमीने दिल पर क्या खूब कहा था उन्होंने..    

क्या करे ज़िन्दगी, इसको हम जो मिले
इसकी जाँ खा गये, रात दिन के गिले
रात दिन गिले...
मेरी आरज़ू कमीनी, मेरे ख्वाब भी कमीने
इक दिल से दोस्ती थी, ये हुज़ूर भी कमीने..

इसलिए जब जग्गा जासूस में अमिताभ भट्टाचार्य ने इस दिल को 'उल्लू के पठ्ठे' की संज्ञा दे दी तो लगा कि इस बेचारे दिल को ना जाने आगे और कितने बुरे दिन देखने हैं। कसूर भी क्या जाना ना हो जहाँ वहीं जाता है..फूटी तक़दीर आज़माता है। अब बात भले सही हो पर ज़िंदगी में जो कुछ भी अच्छा है वो तो इसी दिल की बदौलत है। भले ये काबू में नहीं रहता, दिमाग से लड़ झगड़ कर हमसे उल्टी सीधी हरक़ते  करवा लेता है पर ये तो उन लहरों की तरह है जो अगर तट पर उथल पुथल ना मचाएँ तो शरीर रूपी सागर बिल्कुल बेजान हो जाए।



वैसे सच बताऊँ तो  इस गाने ने मेरा ध्यान अपनी ओर गाली वाली हुक लाइन से नहीं बल्कि प्रील्यूड में प्रीतम के गिटार के शानदार संयोजन की वज़ह से आकर्षित किया था। प्रीतम ने इस गीत में इलेक्ट्रिक और एकॉस्टिक गिटार के आलावा फ्लोमेनको गिटार का इस्तेमाल किया जो स्पेन से प्रचलन में आया।फ्लोमेनको गिटार का ऊपरी सिरा परंपरागत गिटार से थोड़ा पतला होता है। स्पेनिश नृत्य में पैरों की थाप के बीच तेज आवाज़ की जरूरत होती है जो इस गिटार के आधार को रोजवुड जैसी मजबूत लकड़ी से बनाए जाने से उत्पन्न की जा सकती है। 

इस गीत को अपनी आवाज़ दी है अरिजीत सिंह और निकिता गाँधी ने और गीत के मूड के साथ उनकी गायिकी जँची भी है। गीत में अमिताभ ने दिल की शान में कुछ मजेदार पंक्तियाँ रची हैं। मिसाल के तौर पर संगमरमर के बँगले बनाता है, दिल अकबर का पोता है या फिर आजकल के प्रेम के परिपेक्ष्य में उनका कहना जैसे आता है चुटकी में जाता है दिल सौ सौ का छुट्टा है। अमिताभ की मस्तिष्क की इस उर्वरता को देख मन मुस्कुराए बिना नहीं रह पाता।

पर्दे पर चेहरे पर शून्यता का भाव लिए  हुए रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ ने जो रोबोट सदृश लटके झटके किये हैं वो भी दर्शकों का दिल लुभाते हैं। तो आइए इस गीत की मस्ती के साथ मन को थोड़ा आनंदमय कर लें ...


और हाँ अगर वीडियो देख के आप के मन में ये सवाल उठ रहा हो कि ये किस देश में फिल्माया गया तो बता दूँ कि रणवीर कैटरीना का ये गाना उत्तर अफ्रीका के देश मोरक्को में शूट हुआ था।😊

वार्षिक संगीतमाला 2017

रविवार, जनवरी 07, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान #23 : स्वीटी तेरा ड्रामा मचा दे हंगामा... Sweety Tera Drama

वार्षिक संगीतमाला के पिछले गीत गलती से मिस्टेक के साथ अगर आप थिरकने से रह गए हों तो कोई बात नहीं गीतमाला की 23वीं सीढ़ी पर के गीत में झटके मटके कम नहीं हैं। एक बार इसकी बीट्स सुनकर रजाई से बाहर झटक लिए तो फिर पूरे गीत में मटकते ही रहेंगे। इस गीत की झुमाने वाली धुन बनाई है एक ऐसे संगीतकार ने जिसने हिंदी फिल्मों में प्रवेश ही दो साल पहले लिया था।

हिंदी फिल्म उद्योग हर साल नए संगीतकारों को जन्म दे रहा है। यू ट्यूब की उपलब्धता संगीत से जुड़े फ़नकारों को सीधे जनता तक पहुँचने का एक अच्छा माध्यम दे रही है। पर पिछले कुछ सालों से मैं ये भी देख रहा हूँ कि ये नए संगीतकार जितनी शुरुआती सफलता के साथ अपना नाम बनाते हैं उस स्तर को  बनाए नहीं रख पाते। बहरहाल इस साल क्षितिज पर जिस संगीतकार का नाम चमका है उनका नाम है तनिष्क बागची। वैसे तो तनिष्क ने सबसे पहले अपने जोड़ीदार वायु के साथ मिलकर तनु वेड्स मनु रिटर्न के गीत बन्नो तेरा स्वैगर में खासा धमाल मचाया था। फिर 2016 में कपूर एंड स्स के गीत बोलना में वे सुरीली धुन देने में कामयाब रहे थे।


पर 2017 में तो उन्होंने बद्रीनाथ की दुल्हनिया, हाफ गर्लफ्रेंड और शुभ मंगल सावधान के लिए खासी लोकप्रियता अर्जित की है। वैसे अब तक वे ज्यादातर वैसे एलबमों में अपनी भागीदारी कर पाए हैं जिसमें एक से ज्यादा संगीतकार थे। शायद आने वाले साल में ये स्थिति बदले। कोलकाता से ताल्लुक रखने वाले तनिष्क फिल्मों में मौका पाने के पहले टीवी शोज़ में संगीत संयोजन का काम देखते थे।  इस गीत के संगीत संयोजन के बारे में तनिष्क कहते हैं

"इस गीत का संगीत रचते हुए मुझे बस यही ख्याल रहा कि चूँकि ये बरेली के लिए गीत बन रहा है तो इसमें खूब सारी ढोलक होनी चाहिए । इसी लिए मैंने भारतीय वाद्यों का चयन किया ताकि एक देशी माहौल बन सके।"

तनिष्क और उनके साथियों ने ढोलक और सारंगी के साथ अन्य ताल वाद्यों का ऐसा सम्मिश्रण किया कि गीत की शुरुआती बीट्स को सुनकर ही आपका मन झूमने को कर उठे। उत्तराखंड से उभरते नवोदित गायक देव नेगी की गायिकी भी गीत की उर्जा के अनुरूप रही। गीत में देव का साथ दिया पवनी पांडे और श्रद्धा पंडित ने जबकि रैप का मोर्चा सँभाला प्रवेश मलिक ने।

इस गीत में फिल्म के सारे किरदार इकठ्ठे थे और इस गीत की वज़ह से सबको अपने हाथ पैर सीधे करने का मौका मिल गया 😉। ज्यादातर गंभीर किस्म का किरदार निभानेवाले राजकुमार राव का कहना था कि

"मुझे तो अपनी फिल्मों में शायद ही कभी नाचने का मौका मिलता है जबकि मुझे ऐसा करना पसंद है इसलिए इस गीत के फिल्मांकन का मैंने खूब आनंद उठाया।"

तो आइए एक बार फिर थोड़ा हंगामा मचा लें इस गीत के साथ


वार्षिक संगीतमाला 2017

शुक्रवार, जनवरी 05, 2018

वार्षिक संगीतमाला 2017 पायदान # 24 यही उमर है कर ले गलती से मिस्टेक! Galti Se Mistake

वार्षिक संगीतमाला की चौबीसवीं सीढ़ी पर गाना वो जिसमें मेरी समझ से इस साल की सबसे बेहतरीन कोरियोग्राफी हुई है। गाने में प्रयुक्त संगीत ऐसा कि आप चाहे भी तो अपने को थिरकने से नहीं रोक सकते। संगीतकार प्रीतम की ये खासियत रही है कि वो पश्चिमी संगीत के साथ लोक संगीत का इस तरह मिश्रण करते हैं कि हर वक़्त एक नई आवाज़ बाहर निकल कर आती है।


इस बार प्रीतम ने असम के लोक नृत्य के साथ के संगीत को अपने इस गीत में समाहित किया है। प्रीतम के सहायक ध्रुवदास जिन्होंने इस गीत की प्रोग्रामिंग की है ने इसका खुलासा करते हुए अपने एक साक्षात्कार में बताया था कि
"असमी बिहू नृत्य गीतों का अंत द्रुत लय में होता है जिसकी बहुत सारी तहें होती हैं। शुरुआत में धीमी लय ज्यादा ऊँची और तेज होती चली जाती है। इस गीत में बिहु के रूप को बरक़रार रखा गया है।"
ध्रुवदास क्या कहना चाहते हैं वो आप गीत के शुरुआती पन्द्रह सेकेंड और फिर अंत के आधा मिनट (2.15 - 2.45 तक ) में सुन कर महसूस कर सकते हैं।  बिहु में असम के लोकवाद्य पेपा (जो भैंस के सींग से बनाया जाता है और तुरही जैसा दिखता है) के साथ ढोल की अद्भुत संगत होती है जिसका एक नमूना आप को यहाँ सुनने को मिलेगा।

  


जग्गा जासूस के इस गीत में पेपा का स्वर देर तक गूँजा है। वैसे जहाँ प्रीतम रहेंगे वहाँ थोड़े विवाद भी जरूर रहेंगे। गीत के रिलीज़ होने के बाद उँगली उठी कि गीत की धुन मेक्सिको के एक बैंड के इस गीत से मिलती जुलती है। मेंने जब दोनों गीतों को सुना तो पाया कि दोनों में इस्तेमाल हुई ताल वाद्यों की बीट्स मिलती जुलती हैं लेकिन संगीत निर्माता का कहना है कि ये बीट्स एक Common tribal music library से लिए गए हैं इसलिए ये आरोप बेबुनियाद हैं। 

ये गीत किशोर और युवा होते लड़कों का गीत है। गीत के बोल मजाहिया लहजे में युवावस्था में प्रवेश करते लड़कों को गलती से mistake करने को प्रोत्साहित करते हैं। गीत में एक पागलपन हैं जो गीत की कोरियोग्राफी में उभर कर सामने आता है। दरअसल लड़कों के हॉस्टल में जिसने भी कुछ समय बिताया हो वो इस पागलपन से ख़ुद को सहज ही जोड़ सकता है।😊😊

इस गीत की सफलता में संगीतकार, गीतकार और गायक के आलावा निर्देशक अनुराग बसु, अदाकार रणवीर कपूर और कोरियाग्राफर टीम का बराबर का हाथ है। मजे की बात ये है कि इस गीत में अनुराग सांता क्लॉज बनकर आते हैं। तो अगर मन और तन दोनों को को तरंगित करना चाहते हैं तो अरिजीत सिंह और अमित मिश्रा की आवाज़ और प्रीतम के संगीत के साथ झूमना ना भूलें..


वार्षिक संगीतमाला 2017

 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie