मंगलवार, मार्च 06, 2018

वार्षिक संगीतमाला पायदान # 9 : खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया Kho Diya

पिछला साल संजय दत्त के फिल्म उद्योग में वापसी का साल था और उनकी वापसी हुई थी फिल्म भूमि के साथ। फिल्म और उसका संगीत, समीक्षको और जनता दोनों को ही पसंद नहीं आया। फिल्म तो मैंने नहीं देखी पर इसका एक गीत मुझे बेहद कर्णप्रिय लगा। इस गीत की खास बात है कि संगीतकार सचिन जिगर की जोड़ी के एक स्तंभ सचिन संघवी ने इस गीत को अपनी आवाज़ दी है। 



इस गीत का संगीत संयोजन कह लें या सचिन की बहती आवाज़ का जादू कि इस गीत को सुन के मन एक सुकून से भर उठता है। आश्चर्य की बात है कि पिछले एक दशक में दर्जनों फिल्में संगीतबद्ध करने के बाद भी ये पहला मौका है जब एकल स्वर में सचिन ने आपनी आवाज़ दी है। उनकी इस पहली कोशिश को फिल्मफेयर ने भी शानदार पार्श्व गायन के लिए नामित किया और ये भी उनके लिए फक्र की बात होगी।


जैसा कि मैं पहली भी सचिन जिगर से जुड़े आलेखों में बता चुका हूँ कि शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लिये हुए सचिन के मन में संगीतकार बनने का ख़्वाब ए आर रहमान ने पैदा किया। सचिन रोज़ा में रहमान के संगीत संयोजन से इस क़दर प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि मुझे भी यही काम करना है। अपने मित्र अमित त्रिवेदी के ज़रिए उनकी मुलाकात जिगर से हुई। दो गुजरातियों का ये मेल एक नई जोड़ी का अस्तित्व ले बैठा। 

सचिन जिगर का भूमि के इस गाने के लिए किया संगीत संयोजन संजय लीला भंसाली के रचे गीतों आयत और लाल इश्क़ की याद दिला देता है। सचिन जिगर ने संभवतः इस गीत के संगीत संयोजन में राग यमन का प्रयोग किया है। ताल वाद्यों के साथ गिटार, बाँसुरी और हल्के हल्के बजे मँजीरे की संगत में सचिन की लहराती आवाज़ के साथ मन गीत की दुनिया में खो जाता है। 

आदमी जब किसी की मोहब्बत की गिरफ्त में होता तो उसका "मैं" "हम" में तब्दील हो जाता है क्यूँकि वो अपने वज़ूद की कल्पना अपने प्रियतम से अलग रहकर नहीं कर सकता। मुझे मीर को वो शेर याद आता है जिसे फिल्म बाजार में लता जी ने अपनी आवाज़ से सँवारा था। मीर ने वहाँ कहा था दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया..मुझे आप से जुदा कर चले.. उसी भाव को प्रिया सरैया जो इस गीत की गीतकार और जिगर की अर्धांगिनी भी हैं मुखड़े  में कुछ यूँ बयाँ करती हैं खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया .. रूठा है रब, छूटा मज़हब छूटा है ये जग सारा

गीत के अंत में बड़ा खूब प्रश्न किया है उन्होंने कि इश्क़ और दरिया में किसकी गहराई ज्यादा है? वैसे इस सवाल का उत्तर  तो एक बार प्रेम में डूब कर ही पता चल सकता है।  डूबने की बात पर अमज़द इस्लाम अमज़द साहब का लिखा  ये शेर याद आ रहा है

जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक?
आँखों में तेरी डूब के देखेंगे किसी दिन..

तो जब तक मैं इस शेर में डूबा हूँ आप इस गीत में डूबकर देख लीजिए..


खो दिया है मैंने ख़ुद को जबसे हमको है पाया 
रूठा है रब, छूटा मज़हब छूटा है ये जग सारा 
खो दिया है मैंने खुद को ...

मेरे प्यार को ना समझ ये गलत 
आ.. आ.. इन निगाहों का तेरी ही तो कायल हूँ मैं 
उम्र भर.. मैं तुझे.. उम्र भर मैं तुझे देखता ही रहूँ 
इस ख़ता की हर सजा मंज़ूर है 
खो दिया है मैंने ख़ुद को ...

तू दरिया तो मैं इश्क़ हूँ 
कुछ देर मुझसा बन के तो देख 
कौन कितना गहरा है 
मुझमे जरा.. जरा डूब के तो देख

वार्षिक संगीतमाला में अब तक

वार्षिक संगीतमाला 2017

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4 टिप्पणियाँ:

Alka Kaushik on मार्च 07, 2018 ने कहा…

Your sangeet posts never fail to reconnect me with what I keep forgetting in the din of life

Manish Kumar on मार्च 07, 2018 ने कहा…

अच्छा लगा जानकर अलका जी। इस गीत की भावनाएँ हों या गायिकी मन को बहा ले जाती हैं और यही सुकून तो चाहिए एक थके हारे दिन के बाद। :)

Sumit on मार्च 08, 2018 ने कहा…

Beautiful! Sachin should sing more songs.

Manish Kumar on मार्च 08, 2018 ने कहा…

हाँ सुमित बिल्कुल एक अच्छी आवाज़ है उनके पास।

 

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